How Nature Support: Logic Vs Feeling in Hindi Short Stories by Dr. Gyanendra Singh books and stories PDF | प्रकृति की सीख: भावना और तर्क का संगम

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प्रकृति की सीख: भावना और तर्क का संगम


सुबह की ठंडी हवा थी। मैं बगीचे में धीरे-धीरे टहल रहा था। मन में एक प्रश्न बार-बार उठ रहा था—“क्या हम इंसान भावनाओं के बहाव में बह जाते हैं और तर्क को भूल जाते हैं? या फिर तर्क की कठोरता में इतने उलझ जाते हैं कि भावनाओं की मिठास खो बैठते हैं?” यह सवाल मुझे भीतर तक परेशान कर रहा था।

इसी सोच में खोया हुआ मैं अचानक ठिठक गया। एक हवा का झोंका आया और ऊँचे पेड़ से एक पीली पत्ती टूटकर धीरे-धीरे नीचे उतर आई। मैंने देखा कि वह पत्ती हवा के साथ नाच रही थी, जैसे कोई नन्हीं बच्ची खेल रही हो। मेरे मन ने कहा—“देखो, यह भावना है—मुक्त, सहज, बंधनरहित।”

पर तभी भीतर से एक और आवाज़ आई—“यह यूँ ही नहीं गिर रही, इसे धरती की ओर खींचने वाला गुरुत्वाकर्षण है। यही तर्क है।”

मुझे लगा जैसे प्रकृति मुझे जवाब दे रही हो।


🌊 नदी और तटबंध का संवाद

थोड़ा आगे बढ़ा तो एक नदी बह रही थी। उसका पानी तेज़ी से उछलता, चमकता और संगीत सा बजता हुआ बह रहा था। मैंने सोचा—“यह तो शुद्ध भावना है—जज्बा, जोश, जीवन का नृत्य।”

तभी मेरे मन ने तटबंध की ओर इशारा किया। वह शांत खड़ा था, नदी की धार को नियंत्रित करता हुआ। उसने मानो कहा—“और मैं तर्क हूँ। अगर मैं न रहूँ, तो यह भावना बेकाबू होकर खेत-खलिहान सब बहा ले जाएगी।”

मुझे लगा नदी और तटबंध दोनों बातचीत कर रहे हों। नदी कह रही थी—“बिना मेरे जीवन सूना है।” और तटबंध उत्तर देता—“बिना मेरे जीवन बिखर जाएगा।”

यह संवाद मेरे भीतर गूंजने लगा। मैंने समझा कि भावना और तर्क अलग नहीं, बल्कि एक-दूसरे के पूरक हैं।



🌸 फूल और ऋतु का रहस्य

बगीचे में खिले फूलों ने भी मुझे कुछ सिखाया। गुलाब की पंखुड़ियाँ मुस्कुराती सी लग रही थीं। मैंने सोचा—“फूलों का खिलना तो भावना है—खुशी, प्रेम और सुंदरता की अभिव्यक्ति।”

लेकिन फूल तभी खिलते हैं जब ऋतु अनुकूल हो, जब सूरज की रोशनी और मिट्टी की नमी संतुलित हो। यही तो तर्क है।

फूल ने मानो कहा—“भावना मुझे रंग देती है, पर तर्क मुझे समय और अवसर देता है। यदि ऋतु का तर्क न हो तो भावनाओं का यह सौंदर्य कभी प्रकट ही न हो पाए।”


🔎 आत्ममंथन की यात्रा

प्रकृति के इन संकेतों ने मुझे अपने भीतर झाँकने पर मजबूर कर दिया। मैंने सोचा—क्या मैं अपने निर्णय केवल भावनाओं में बहकर लेता हूँ?या फिर इतनी गणनाओं में फँस जाता हूँ कि अवसर हाथ से निकल जाते हैं?

मुझे समझ आया कि जीवन तभी संतुलित होता है जब मैं दिल और दिमाग दोनों की आवाज़ सुनूँ।भावना बिना तर्क—आग की तरह है, जो उजाला तो देती है पर साथ ही सब कुछ जला भी सकती है।तर्क बिना भावना—सूखे पत्थर की तरह है, स्थिर तो है पर जीवनहीन।भावना और तर्क साथ-साथ—दीपक की लौ की तरह हैं, जिसमें ऊष्मा भी है और प्रकाश भी।

यह सोचते हुए मुझे लगा कि प्रकृति वास्तव में एक दर्पण है। वह हमें हमारा ही सच दिखाती है, पर हम अक्सर उसे समझ नहीं पाते।



🌞 प्रकृति का अंतिम संदेश

जब मैं बगीचे से बाहर निकला, तो मन हल्का था। मेरे भीतर जो सवाल था, उसका उत्तर मुझे मिल चुका था।

प्रकृति ने कहा—“भावना और तर्क एक-दूसरे के विरोधी नहीं हैं। भावना जीवन को रंग देती है, तर्क उसे रूपरेखा देता है। भावना उड़ान देती है, तर्क पंखों को संतुलन देता है। जब दोनों साथ होते हैं तभी जीवन अर्थपूर्ण और सुंदर बनता है।”✨ निष्कर्ष

हम अक्सर सोचते हैं कि जीवन में निर्णय लेने के लिए या तो भावना का सहारा चाहिए या तर्क का। लेकिन सच्चाई यह है कि दोनों के संगम में ही पूर्णता है। प्रकृति हमें बार-बार यही समझाती है कि भावना और तर्क एक साथ मिलकर ही सच्चा ज्ञान, सच्ची खुशी और सच्चा संतुलन पैदा करते हैं।