कविता में संपूर्ण रामायण
रामायण केवल एक धार्मिक ग्रंथ ही नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला, कर्तव्य का बोध और नैतिकता का आधार भी है। यही कारण है कि रामायण और रामजी मुझे प्रेरित करते हैं.
रामायण में हैं आदर्श जीवन की शिक्षा
राम हमें सिखाते हैं कि कठिनाइयों और अन्याय के बीच भी धर्म और कर्तव्य से विचलित नहीं होना चाहिए, सीता त्याग, धैर्य और स्त्री-शक्ति की प्रतीक हैं, लक्ष्मण भाईचारे और सेवा-भाव के उदाहरण हैं, हनुमान भक्ति और निःस्वार्थ समर्पण के प्रतीक हैं.
हमारे जीवन के कर्तव्य क्या हैं ये उसका बोध कराती हैं. रामायण दिखाती है कि व्यक्ति को अपने निजी सुख-दुख से ऊपर उठकर परिवार, समाज और धर्म के प्रति उत्तरदायित्व निभाना चाहिए।
🙏 राम ने राजसिंहासन छोड़कर पिता के वचन की रक्षा की।
🙏लक्ष्मण ने भाई के साथ 14 साल का वनवास निभाया।
मानवीय जीवन में धर्म और अधर्म का संघर्ष
राम और रावण का युद्ध केवल दो राजाओं की लड़ाई नहीं, बल्कि धर्म और अधर्म की टक्कर है। यह हमें याद दिलाता है कि चाहे बुराई कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, अंत में विजय सत्य और धर्म की ही होती है।
🙏 संघर्ष में धैर्य और साहस
वनवास, कठिनाइयाँ, युद्ध – सबके बावजूद भी राम, सीता, लक्ष्मण और हनुमान धैर्य, साहस और आस्था नहीं खोते। यही गुण हमें जीवन के संघर्षों में आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं।
🙏 समर्पण और भक्ति
हनुमानजी का चरित्र बताता है कि जब मनुष्य निःस्वार्थ भाव से सेवा और भक्ति करता है तो असंभव भी संभव हो जाता है।
🙏 आदर्श समाज और परिवार
राजा जनता के लिए त्याग करता है।
भाई एक-दूसरे के लिए जीवन न्योछावर करते हैं।
मित्र (जैसे राम-सुग्रीव, राम-विभीषण) धर्म और सत्य पर आधारित होते हैं।
रामायण केवल त्रेता युग की कथा नहीं है। यह हर युग के लिए सन्देश देती है—
अन्याय का विरोध करो।
वचन का पालन करो।
परिवार और समाज को साथ लेकर चलो।
सच्चाई और धर्म की राह पर डटे रहो।
इसलिए रामायण मुझे यह प्रेरणा देती है कि जीवन चाहे जितना कठिन क्यों न हो, धर्म, सत्य, त्याग और भक्ति के मार्ग पर चलने वाला ही सच्चा विजेता होता है।
जय श्री राम
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रामायण की प्रेरणा
राम कथा है दीपक जैसी, जो अंधियारा हर लेती है,
धर्म-पथ पर चलने वाले की, राह स्वयं यह कर देती है।
त्याग, भक्ति, साहस, सेवा, सबकी इसमें झलक दिखी,
राम-सी मर्यादा पाना हो, तो करनी होगी साधना सखी।
रावण चाहे कितना शक्तिशाली, अंत उसका हार हुआ,
सत्य और धर्म की धरती पर, अन्याय कभी न टिक पाया।
हनुमान की भक्ति सिखाती, समर्पण से शक्ति मिलती है,
सीता का धैर्य बताता, स्त्री-शक्ति कभी न रुकती है।
लक्ष्मण-सा भाई, भरत-सा प्रेम, परिवार का आदर्श यहां,
रामायण हमें समझाती है, जीवन जीने का मर्म जहां।
🙏 जय श्री राम
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🙏 बालकांड (काव्य रूपांतरण)
आदि में महर्षि वाल्मीकि मन में,
सोच रहे थे जग जीवन जन में।
कैसा हो नर, गुणी और दयालु,
सत्य परायण, विनम्र, निष्कलुष भावु।
नारद मुनि तब प्रकट हुए,
राम कथा का अमृत कह गए।
दशरथ नन्दन, रघुकुल तिलक,
धर्म धुरीधर, रघुनाथ विवेक।
अयोध्या नगरी अनुपम सुहानी,
सदा जहाँ बहती सरयू की धारा पवानी।
राजा दशरथ, धर्म निष्ठ महान,
चार रानियाँ – कोमल, दयानिधान।
बाल विहार में राम सुहाने,
लक्ष्मण संग खेलते प्यारे।
भरत-शत्रुघ्न, साथ निभाते,
चारों भाई मन मोहन कहलाते।
मंगल बेला आई सुहानी,
विश्वामित्र ऋषि पहुँचे राजधानी।
यज्ञ को उनके राक्षस डराते,
दशरथ से वे राम को माँग लाते।
राजा पहले विचलित हुए,
फिर गुरु वशिष्ठ से धीर पाये।
राम-लक्ष्मण को संग दिए,
ऋषि संग वन-वन वे चले।
रास्ते में ताड़का आई,
राम के बाण से प्राण गँवाई।
मार्ग हुआ अब निर्मल पावन,
ऋषि हुए सब हर्षित सावन।
यज्ञ हुए अब सफल सुहाने,
राम-लक्ष्मण संग ऋषि गाने।
फिर चले मिथिला नगरी को,
देखें जनक दरबार नवलोको।
राजा जनक ने प्रतिज्ञा ठानी,
शिव धनुष परवर को उठानी।
धनुष बड़ा, सब वीर थकाए,
रामचन्द्र ने सहज उठाए।
एक ही क्षण में धनुष टूटाया,
सभा में हर्ष का सिंधु समाया।
सीता ने वरमाला पहनाई,
धरती पर स्वयं लक्ष्मी आई।
जनकपुर में मंगल छाया,
राम-सिया का विवाह रचाया।
चारों भाइयों संग विवाह,
उमड़ा आनन्द, हुआ उत्साह।
पर लौटते जब सब अयोध्या आये,
मार्ग में परशुराम प्रकट हुए भय दिखलाये।
राम ने सहज शालीन विवेक दिखाया,
परशुराम का क्रोध भी शांत कराया।
अंत हुआ इस कांड का प्यारा,
रामकथा का आरम्भ उजियारा।
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🙏 अयोध्याकांड (काव्य रूपांतरण)
अयोध्या नगरी हर्षित थी,
आनंद धरा पर बरसित थी।
राजा दशरथ मन में चाहें,
राम को राज तिलक करवा दें।
मंगल गान बजी हर गली,
श्रृंगार सजी अयोध्या भली।
सिंहासन पर बैठेंगे राम,
धरा पर होगा धर्म का धाम।
पर तभी कैकयी के मन में,
मंथरा ने ज्वाला भर दी क्षण में।
"भरत बने राजा, राम वन जाएँ,
वरदान माँग कर हक जताएँ।"
कैकयी ने वर माँग लिया,
दशरथ ने वचन निभा दिया।
राम वन जाएँ चौदह बरस,
भरत राज करें यही वरबस।
राजा दशरथ टूट गए मन में,
राम गए हर्षित वचन पालन में।
"पिता की आज्ञा है मेरी धर्म,
वन गमन करूंगा मैं सदा अचर्म।"
सीता बोली – "जहाँ आप जाएँगे,
संग अपने प्राण मैं लाऊँगी।
पति के बिना मुझे सुख न भाए,
वन ही स्वर्ग लगे संग छाए।"
लक्ष्मण ने भी प्रण किया,
"भैया संग मैं भी चलूँगा।
धनुष बाण लेकर कर संग,
सेवा करूँगा जीवन भर अंग।"
अयोध्या रोई, प्रजा दुखी,
अश्रु बहे गलियों में सभी।
राजा दशरथ ने राम को देखा,
जैसे जीवन का प्राण ही लेखा।
राम, सीता, लक्ष्मण निकले वन,
जननी कौशल्या हुई मगन।
पर हृदय में पीड़ा की ज्वाला,
पुत्र बिछोह सहा न संभाला।
भरत लौटे जब नगर को आए,
सुन कथा तो क्रोधित हो जाए।
"न मैं राज सिंहासन लूँगा,
पादुका राम की धर धरूँगा।"
राम संग वनगमन न हो पाया,
भरत ने निष्ठा का दीप जलाया।
चरण पादुका राजसिंहासन पर रखीं,
अयोध्या की धरती धैर्य में ढकी।
दशरथ का जीवन छूट गया,
राम-वियोग में प्राण रूठ गया।
अयोध्याकांड यही दिखलाता,
धर्म निभाना सिखलाता।
🙏 जय श्री राम
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🙏 अरण्यकांड (काव्य रूपांतरण)
वन में चलते तीनों भाई,
राम, लक्ष्मण, सीता संग लाई।
ऋषि मुनि सब दर्शन पाते,
वन का जीवन सुखद बनाते।
वन में आश्रम बने निराले,
ऋषि जन करते तप शुभ प्याले।
राम ने सबका दुख हर पाया,
राक्षसों से वन मुक्त कराया।
शूर्पणखा राक्षसी आई,
राम रूप पर मोहित हो छाई।
राम ने हँसकर किया इन्कार,
लक्ष्मण ने भी किया उपहास।
क्रोध से शूर्पणखा चिल्लाई,
लक्ष्मण ने उसकी नाक कटाई।
दौड़ी रावण के दरबार,
कहा – “लक्ष्मी है वन में अपार।”
रावण सुनकर मन ललचाया,
सीता को हर ले जाने का सोच बनाया।
पहले मारीच का रूप रचाया,
स्वर्ण मृग बनकर वन में आया।
सीता बोली – “लाइए स्वामी,
स्वर्ण मृग है मन को भानेवाली।”
राम गए उस मृग के पीछे,
लक्ष्मण रहे वन की सीमा सींचे।
मृग मारा जब राम ने तीर,
मरीच ने पुकारा राम गंभीर।
सीता ने समझा राम संकट में हैं,
लक्ष्मण से बोलीं – “जाओ तुरन्त वहीं।”
लक्ष्मण बोले – “राम अजर अमर हैं,
भ्रम तुम्हारा व्यर्थ विचार है।”
पर सीता ने कठोर कहा,
लक्ष्मण को वन से बाहर किया।
इधर रावण साधु का भेष बनाए,
सीता के द्वार पर वे आए।
“भिक्षाम देहि” कहकर बुलाया,
सीता ने दान देकर सम्मान जताया।
तभी रावण प्रकट हो गया,
रथ में बैठा, सीता हर लिया।
जटा से पकड़ा, नभ में उड़ाया,
वन में रुदन का स्वर फैलाया।
सीता ने आकाश पुकारा,
राम-राम का नाम उचारा।
जटायु वीर गरुड़ पंख फैलाए,
रावण से युद्ध करने आए।
भीषण युद्ध हुआ दोनों में,
जटायु गिरे घायल क्षण में।
रावण सीता को लंका ले गया,
राम लक्ष्मण लौटे, हृदय दग्ध हुआ।
राम ने जटायु से वचन सुने,
वन में घूमे व्यथित बने।
अरण्यकांड का यहीं है सार,
सीता वियोग, राम का संहार।
🙏 जय श्री राम
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🙏 किष्किन्धाकांड (काव्य रूपांतरण)
वन में चलते राम-लखन भाई,
सीता बिछोह की पीड़ा समाई।
जटायु मरे, खोज अधूरी,
भटके दोनों वन की दूरी।
ऋष्यमूक पर्वत पर आए,
जहाँ सुग्रीव व्यथित थे पाए।
भाई बाली ने राज हराया,
वन में दुखी उसे भटकाया।
हनुमान जी भेष बदल लाए,
राम-लक्ष्मण को पास बुलाए।
प्रेम से दोनों का मिलन कराया,
सुग्रीव संग बंधुता बंधाया।
राम ने वचन दिया सहज,
“तेरे दुख हर लूँगा आज।”
सुग्रीव ने कहा – “भाई बाली,
मुझसे छीन लिया सब खाली।”
फिर हुआ दोनों का संग्राम,
बाली आया बलवान तमाम।
राम ने बाण चलाया करारा,
बाली गिरा धरा पर हारा।
मरण शय्या पर बाली बोला,
“धर्म कठिन है, न्याय अनोखा।
पर अब शंका मन से मिटाई,
तेरी लीला को सत्य पाई।”
सुग्रीव बना फिर राजा वन का,
मित्र हुआ अब राम जीवन का।
हनुमान, अंगद, नल-नील वीर,
सब जुटे खोज में धीर-गंभीर।
चारों ओर दल भेजे गए,
समुद्र तट तक पग बढ़ाए।
किष्किन्धाकांड यही बतलाता,
राम-सुग्रीव की मित्रता गाता।
🙏 जय श्री राम
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🙏 सुंदरकांड (काव्य रूपांतरण)
समुद्र किनारे बैठी सेना,
रामवियोग से व्याकुल रैना।
लक्ष्मण, सुग्रीव, अंगद सब रोए,
सीता के दर्शन की आशा खोए।
हनुमान ने प्रण किया गम्भीर,
“माता को खोजूँगा धीर।”
जटायु पुत्र सम्पाति से जाना,
लंका का ठिकाना, रावण का ठिकाना।
समुद्र किनारे पर्वत खड़ा,
हनुमान मन में बल बड़ा।
राम नाम का जप कर भारी,
भर ली उड़ान पवनकुमारि।
समुद्र लाँघ गए पल भर में,
पर्वत, नाग, सुरसा संग धर में।
सिंहिका ने चरण पकड़ा कसकर,
हनुमान ने मार गिराया झटकर।
लंका नगरी आई नज़र,
रात्रि का समय, चंद्र का असर।
लघु तन कर नगर में उतरे,
सीता की खोज में गली-गली घूमें।
अशोक वाटिका में देखा,
सीता का रूप तपस्विनी लेखा।
रावण डराकर समझाए,
सीता राम नाम ही गाए।
हनुमान ने अश्रु बहाए,
राम का अंगूठी संग दिखाए।
सीता हर्षित, बोले वचन,
“राम जल्द ही देंगे दर्शन।”
हनुमान ने तब बल दिखलाया,
अशोक वाटिका उथल-पुथलाया।
रावण के सैनिक पकड़े उन्हें,
लंका में बाँध कर ले गए सब।
रावण दरबार में हनुमान खड़े,
भक्ति-बल से निर्भीक बड़े।
पूँछ में बाँध दी आग भयानक,
हनुमान जले, पर लंका दहक।
लंका जलती, पर सीता सुरक्षित,
हनुमान लौटे होकर विजयी।
राम चरण में आकर बोले,
“माता का संदेश मैंने खोले।”
सुंदरकांड गाता यही कहानी,
भक्ति, पराक्रम और बलिदानी।
रामभक्त हनुमान महान,
करते सदा जगत का कल्याण।
🙏 जय श्री राम, जय हनुमान
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🙏 युद्धकांड (काव्य रूपांतरण)
समुद्र तट पर बैठे सब वीर,
राम सोचते मन गंभीर।
“कैसे पार करूँ यह सागर,
लंका पहुँचूँ, रावण संहार?”
समुद्र देव ने मार्ग बताया,
नल-नील ने सेतु बनवाया।
पत्थर तैरते राम नाम से,
पुल बना सागर के ग्राम से।
वानर सेना जयकारा गाए,
लंका की ओर कदम बढ़ाए।
शंख-नाद से गूँजी धरती,
रावण की नगरी काँपी भरती।
भय से राक्षस घबराए,
रण के नगाड़े गगन बजाए।
राम-सुग्रीव, अंगद, हनुमान,
सबने किया वीरता का गान।
रावण भेजे कई बलशाली,
कुम्भकर्ण, इन्द्रजित मतवाली।
जाम्बवन्त, नल, नील, अंगद,
सब लड़े बन वीर प्रचण्ड।
कुम्भकर्ण गिरा रण मैदान,
राम बाण से हुआ बलिदान।
इन्द्रजित ने माया रचाई,
लक्ष्मण पर शक्ति चलवाई।
हनुमान संजीवनी लाए,
द्रोणगिरि पर्वत उठा लाए।
लक्ष्मण पुनः हुए रण में खड़े,
शत्रु के दल को चीर-फाड़ पड़े।
अंत में रावण रण में आया,
अहंकार से नभ थर्राया।
राम-सिया का अपहरणकारी,
मृत्यु के जाल में फँसनेवाला भारी।
राम ने बाण चढ़ाया करार,
“ब्रह्मास्त्र” से किया प्रहार।
रावण गिरा रण भूमि में,
धरा गूँजी जयध्वनि में।
लंका में मंगल छा गया,
राम-राज्य का प्रकाश फैल गया।
सीता से पुनर्मिलन हुआ,
भक्तों का जीवन सफल हुआ।
विभीषण को राज मिला,
लंका का भाग्य नया खिला।
युद्धकांड का यही है सार,
सत्य सदा पाता जय-अपार।
🙏 जय श्री राम
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🙏 उत्तरकांड (काव्य रूपांतरण)
लंका विजय कर राम सिय संग,
अयोध्या लौटे सजे आनंद।
भरत मिले चरण पखार कर,
भाई गले लगे अश्रु झर-झर।
राज्याभिषेक हुआ विशाल,
सज उठा नगर, बजा नाद मधुर ताल।
रामराज्य का आरम्भ हुआ,
धरा पर सुख का स्वप्न खिला।
प्रजा सुखी, न कोई दुखी था,
सत्य, धर्म का दीप जला था।
धरती पर था स्वर्ग समाना,
रामराज्य का दृश्य सुहाना।
पर विधि का लेख कहाँ टलता,
लोकमत का स्वर मन मचलता।
कुछ लोग सीता पर छींटा डालें,
राम को सत्य का धर्म सम्भालें।
राजधर्म ने राम को बाँधा,
हृदय रोया, मन हुआ क्लान्ता।
सीता को वन में त्याग दिया,
लक्ष्मण ने आदेश निभा लिया।
ऋषि वाल्मीकि आश्रम पहुँची,
सीता दुख की छाया में ढँकी।
वहाँ जन्मे लव और कुश,
रामकथा गाने में कुशल रस।
राम ने सुनी जब रामकथा,
मन में उठी अनोखी व्यथा।
जान लिया ये मेरे ही सुत हैं,
भाग्य के लिखे हुए अमिट सत्य हैं।
सभा में सीता आईं पुनः,
धरती माता से की प्रार्थना तन।
“यदि सदा पवित्र रही हूँ,
तो धरा मुझे समा ले माँ।”
धरती फटी, सीता समा गईं,
राम देख अश्रु बरसा गए।
जीवन से सीता विदा हुईं,
राम अकेले रह गए वहीँ।
अंत में प्रभु राम भी गए,
सरयू जल में लीला समेटे।
देवों ने उनका स्वागत किया,
अवतार ने अपना कार्य किया।
उत्तरकांड का यही संदेश,
धर्म कठिन है, सत्य विशेष।
राम कथा का यही है सार,
सत्य, भक्ति और त्याग अपार।
🙏 जय श्री राम
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समाप्त