O Mere Humsafar - 27 in Hindi Drama by NEELOMA books and stories PDF | ओ मेरे हमसफर - 27

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ओ मेरे हमसफर - 27

(प्रिया रियल एस्टेट में असफल हो रही है, तभी कुणाल उसकी कंपनी का ट्रेनर बनकर लौटता है और चालाकी से उसे घेर लेता है। ऑफिस में उसके नाम से बोर्ड देखकर प्रिया हैरान रह जाती है, लेकिन कुणाल इसे अपनी साज़िश का हिस्सा बनाता है। इस्तीफ़ा देने पर भी कॉन्ट्रैक्ट और जुर्माने की शर्त उसे रोक लेती है। ट्रेनिंग सेशन में कुणाल का आत्मविश्वास और प्रभाव देखकर प्रिया उलझन में पड़ जाती है—वह उससे नफ़रत भी करती है और खिंच भी जाती है। कहानी अब रहस्य, शक्ति संघर्ष और भावनात्मक टकराव की ओर बढ़ती है। अब आगे)

प्रिया का बदला रूप 

अगले दिन

कुणाल जैसे ही केबिन पहुँचा, टेबल पर खुराना होम्स की फाइल रखी थी।

उसने ध्यान से पन्ने पलटे और फोन घुमाया।

प्रिया अंदर आई, उसकी नजरें झुकी थी।

कुणाल ने प्रिया की ओर देख कहा — "प्रिया! प्रॉपर्टी चैन पूरी नहीं…"

तभी प्रिया ने नजर उठाकर कुणाल की ओर देखा और कुणाल फौरन ही सँभलते हुए बोला — "आई मीन, मिस डोगरा… प्रॉपर्टी चैन पूरी करो। और हाँ, देखो— लोन देने वाले बैंक भी कम हैं। पता करो, लीडिंग बैंक फाइनेंस क्यों नहीं करना चाहते? हमें रास्ता निकालना होगा।"

प्रिया चुपचाप सिर हिलाकर बाहर निकल गई।

कई बैंकों से कॉल पर बात करती रही। थक गई, पर हार नहीं मानी।

आख़िरकार उसकी डायरी में एक नाम दर्ज हुआ—

"फाइनली, एक बैंक प्रोजेक्ट के लिए इंट्रेस्टेड है!"

चेहरे पर संतोष की चमक थी।

वह जल्दी-जल्दी कुणाल के केबिन में घुसी।

लेकिन वह बोलती, उससे पहले ही लैंडलाइन बज उठा।

कुणाल को नहीं पता था कि प्रिया दरवाजे में है, उसने फाइल में नजर रखते हुए बिना देखे फोन स्पीकर पर डाल दिया उठाया। "हैलो—"

दूसरी ओर से ठंडी, तेज़ आवाज़ आई—

"हमें प्रिया डोगरा की पूरी जानकारी चाहिए। पिता — वैभव डोगरा, माता — कुमुद डोगरा। उनका एड्रेस… और ये प्रॉपर्टी वे बेच रहे हैं या गिफ्ट कर रहे हैं भीम रियल एस्टेट को?"

प्रिया ठिठक गई।

उसकी आँखों में गुस्सा और दर्द एक साथ भर उठा।

धीरे-धीरे उसकी नज़र कुणाल पर टिकी।

"तो यही खेल है?" उसकी आवाज़ काँप रही थी।

कुणाल ने कुछ कहना चाहा, मगर प्रिया गरज उठी —

"तमाशा बना दिया मेरी ज़िंदगी का!"

वह तेज़ क़दमों से बाहर निकली।

पर दरवाज़े पर रुककर पलटी —

"समझ क्या रखा है, कुणाल? कंपनी मेरे नाम खरीदकर तुमने क्या साबित किया? तुम अमीर हो, पूरी दुनिया खरीद लो। लेकिन याद रखना— मेरा ज़मीर तुम्हारे पैसों से कभी नहीं बिकेगा!"

उसने बाहर आकर अपने नाम का चमकता बोर्ड पकड़कर ज़ोर से ज़मीन पर दे मारा।

बोर्ड टुकड़ों में बिखर गया।

कुणाल ने खामोशी से आँखें बंद कर लीं…

जैसे हर टुकड़ा उसके दिल को चीर रहा हो।

वह खिड़की से उसे जाते देखता रहा और बुदबुदाया —

"मुझे छोड़कर जाना… तुम्हारे लिए इतना आसान कैसे हो जाता है, प्रिया?"

कुणाल तेज़ी से आगे बढ़ा और प्रिया का हाथ कसकर पकड़ लिया।

कॉरिडोर में कई लोग आ रहे थे, वह उसे खींचते हुए सीधा अपने केबिन में ले गया और अंदर से दरवाज़ा बंद कर दिया।

प्रिया चिल्लाने ही वाली थी कि कुणाल ने उसके होंठों पर हथेली रख दी।

उसकी आँखें ठंडी और आवाज़ बर्फ जैसी नुकीली थी —

"तुम्हारा ज़मीर नहीं सही… लेकिन तुम्हें दो साल के लिए मैंने खरीद लिया है।

ऑफिस टाइम शुरू हो चुका है, तो बिना मेरी इजाज़त इस दफ़्तर से बाहर कदम मत रखना।

और हाँ… जो नेम प्लेट तुमने तोड़ी थी, वो दोबारा लगेगी — उसके पैसे तुम्हारी सैलरी से कटेंगे।"

वह झुककर और भी नज़दीक आया, उसकी साँसें प्रिया के चेहरे से टकरा रही थीं।

"और आइंदा मुझसे ऊँची आवाज़ में बात मत करना…

वरना पूरे ऑफिस में बता दूँगा कि तुम मेरी मंगेतर थी… और तुमने मुझे धोखा दिया था।

समझी? … Now… just get out."

कुणाल ने धीरे-धीरे हाथ हटाया।

प्रिया ने उसकी आँखों में सीधा देखा — और मुस्कुरा दी।

वह बिना कुछ कहे दरवाज़ा खोली और बाहर निकल गई।

कुणाल उसकी मुस्कान पर ठिठक गया।

वह मुस्कान… उसे अंदर तक हिला गई।

क्योंकि ऐसी मुस्कान प्रिया के चेहरे पर आख़िरी बार तब आई थी…

जब उसने रिया का रिश्ता तोड़कर, उसके पूरे परिवार से नाता तोड़ दिया था… और फिर ग़ायब हो गई थी।

कुणाल की मुट्ठियाँ भींच गईं।

"प्रिया… तुम कुछ करने वाली हो। और इस बार… मुझे अंदाज़ा भी नहीं कि क्या!"

....

मीटिंग रूम में कुणाल अपना सेशन ले रहा था।

लेकिन उसका दिमाग अशांत था — उसकी नज़र बार-बार प्रिया से टकरा रही थी।

हर बार वही मुस्कान… वही रहस्यमयी confidence… जो कुणाल को अंदर तक परेशान कर रही थी।

मीटिंग खत्म हुई।

कुछ लोगों ने सवाल किए, कुणाल ने जवाब दिए —

पर तभी दरवाज़ा खुला और तरुण ने तेज़ आवाज़ में अनाउंस किया —

"Attention please! भीम रियल एस्टेट के नए ओनर्स से मिलिए… कुणाल राठौड़ और प्रिया डोगरा।"

एक पल को पूरा हॉल सन्न हो गया।

सबकी आँखें प्रिया पर टिक गईं।

प्रिया उठी, न कोई हैरानी… न गुस्सा।

बस धीमे-धीमे कदमों से आगे बढ़ी और मुस्कुराते हुए कुणाल के बिल्कुल बगल में आ खड़ी हुई।

सन्नाटा और गहरा गया।

फिर तरुण ने तालियाँ बजाईं — और पूरा हॉल गूंज उठा।

स्टाफ की आँखों में हैरानी थी।

"प्रिया … ओनर?"

"कब… कैसे?"

कुणाल बस खामोश खड़ा था।

उसे समझ नहीं आ रहा था — कुछ मिनट पहले तक प्रिया उसके खिलाफ आग उगल रही थी, और अब उसी स्टेज पर वह उसकी बराबरी में खड़ी थी… मुस्कुराते हुए।

उसी वक़्त विनोद की आवाज़ गूंजी —

"सर! आपने तो कहा था कि आपकी मंगेतर प्रिया डोगरा…"

प्रिया ने बिना पलक झपकाए, उसकी बात बीच में काट दी।

"मैं ही हूँ।"

पूरा हॉल हिल गया।

कुणाल बस हल्की सी मुस्कान के साथ प्रिया को देखता रह गया —उसकी आँखों में सवाल थे… और प्रिया के चेहरे पर जवाब छुपा था।

...

प्रिया ने बिना एक शब्द कहे पेपर पर साइन कर दिए।

फिर उसी नेम प्लेट को — जिसे अभी तक वह चुभता हुआ ज़ख्म मान रही थी — प्यार से सहलाया और बड़े आराम से अपनी कुर्सी पर बैठ गई।

कुणाल उसके पीछे खड़ा था। उसकी आँखों में सवाल थे, गुस्सा था, हैरानी थी। "यह सब क्या है, प्रिया? थोड़ी देर पहले तक तुम…"

प्रिया ने बीच में ही मुस्कुराते हुए कहा —"मैं पागल थी। इतनी बड़ी कंपनी की मालकिन बनने का मौका… और इंडिया का सबसे सक्सेसफुल बिज़नेस टायकून मुझसे शादी करने को तैयार… और मैं मना कर रही थी। चलो कुणाल, आज ही शादी कर लेते हैं भागकर।"

कुणाल की नज़रें उस पर जम गईं। "What the hell, प्रिया? तुम्हारे दिमाग में चल क्या रहा है? What’s your game?"

तभी दरवाज़ा धड़ाम से खुला। तमन्ना अंदर आ गई। "यह सब क्या है प्रिया? तुम और—"

प्रिया अचानक गुस्से से दहाड़ उठी — "हिम्मत कैसे हुई मेरे कमरे में बिना इजाज़त घुसने की? और खबरदार! मुझे मेरे  नाम से पुकारा तो…"

तमन्ना ठिठक गई, सकपका कर पीछे हटी और जबान से मुश्किल से एक ही शब्द निकला "साॅरी" और  चुपचाप बाहर निकल गई।

कुणाल स्तब्ध रह गया। उसकी आवाज़ भारी हो गई — "यह क्या तरीका है अपनी दोस्त से बात करने का? उठो… और जाकर माफ़ी माँगो!"

प्रिया ने ठहाका लगाया। "मैं इस कंपनी की मालकिन… और छोटे-मोटे लोगों से माफ़ी माँगूँ? Seriously, कुणाल?"

कुणाल ने जैसे उसे पहली बार देखा हो। उसकी आँखों में गुस्से और हैरानी का तूफ़ान था। "तुम यह क्या कर रही हो?"

प्रिया ने कुर्सी पर पीछे झुकते हुए लंबी अंगड़ाई ली।

चेहरे पर वही चालाक मुस्कान… "दो साल के लिए तुमने मुझे खरीदा था, कुणाल। और अब… सिर्फ़ दो घंटे भी नहीं हुए और तुमने हार मान ली?"

1. क्या प्रिया वाक़ई कुणाल की चाल में फँस चुकी है, या वह खुद कोई और बड़ा खेल खेल रही है?

2. तमन्ना का अचानक आना — क्या वह प्रिया की असली योजना का पर्दाफ़ाश करेगी या खुद किसी साज़िश में फँस जाएगी?

3. कुणाल, जिसने प्रिया को दो साल के लिए ‘खरीदा’ था, क्या अब उसकी ही शर्तों के जाल में उलझने वाला है?

जानने के लिए पढ़ते रहिए "ओ मेरे हमसफ़र"