जीवन में हर किसी के सपने होते हैं।लेकिन हर सपना आसानी से पूरा नहीं होता।
कभी हालात रास्ता रोकते हैं, कभी लोग हिम्मत तोड़ते हैं, और कभी हमारी अपनी असफलताएँ हमें पीछे धकेल देती हैं।
पर असली विजेता वही होता है, जो बार-बार गिरकर भी उठता है और अपनी मंज़िल तक पहुँचता है।
यह कहानी है एक छोटे कस्बे के साधारण लड़के राघव की।
सपनों की शुरुआत
राघव का सपना था कि वह एक वैज्ञानिक बने और देश के लिए कुछ बड़ा करे।
वह एक सरकारी स्कूल में पढ़ता था, जहाँ ना अच्छे शिक्षक थे और ना ही प्रयोगशालाएँ।
घर की हालत ऐसी थी कि कभी-कभी दो वक्त की रोटी जुटाना भी मुश्किल हो जाता।
पिता रिक्शा चलाते थे और माँ घरों में काम करती थी।
लेकिन इन हालातों के बावजूद राघव को किताबों से बेहद लगाव था।
वह पुरानी किताबें इकट्ठा करता, कबाड़ी से खरीदे हुए पन्नों पर नोट्स बनाता और आसमान की तरफ़ देखते हुए सोचता –
“एक दिन मैं तारों से भी आगे जाऊँगा।”
पहली ठोकर
जब उसने 12वीं की परीक्षा दी, तो उम्मीद थी कि अच्छे नंबर आएंगे।
लेकिन आर्थिक दबाव और लगातार मेहनत की वजह से वह बीमार पड़ गया।
नतीजा – परीक्षा में उसके अंक बहुत कम आए।
राघव टूट गया।
दोस्तों और रिश्तेदारों ने कहना शुरू कर दिया –
“तेरे जैसे लाखों बच्चे हर साल सपने देखते हैं, लेकिन सबके सपने पूरे नहीं होते।”
“तेरे बस की बात नहीं है, कोई छोटा-मोटा काम कर ले।”
यह बातें उसके दिल को चीर गईं।
लेकिन उस रात जब उसने अपने पिता के हाथों में पड़े छाले देखे, तो उसे लगा –
“अगर मैंने हार मान ली, तो पापा की सारी मेहनत बेकार हो जाएगी।”
संघर्ष का सफर
राघव ने कॉलेज की फीस भरने के लिए पार्ट-टाइम काम शुरू किया।
दिन में वह पढ़ाई करता और रात को कोचिंग सेंटर में बच्चों को ट्यूशन पढ़ाता।
कभी-कभी उसे भूखा भी रहना पड़ता, लेकिन उसने हार नहीं मानी।
उसने वैज्ञानिकों की जीवनी पढ़ी –
एपीजे अब्दुल कलाम, सी.वी. रमन, और आइंस्टीन जैसे महान लोगों की कहानियाँ।
हर बार वह खुद से कहता –
“अगर उन्होंने कठिनाइयों में हार नहीं मानी, तो मैं क्यों हार मानूँ?”
दूसरी ठोकर
राघव ने एक बड़ी प्रवेश परीक्षा दी, जिसका सपना लाखों छात्र देखते थे।
उसने दिन-रात मेहनत की, लेकिन परिणाम आया तो उसका नाम सूची में नहीं था।
वह फिर असफल हो गया।
इस बार उसके अंदर निराशा और गुस्सा दोनों थे।
वह सोचने लगा – “शायद किस्मत मेरे साथ नहीं है।”
लेकिन उसकी माँ ने उसे समझाया –
“बेटा, किस्मत उसी की मदद करती है, जो आख़िरी दम तक कोशिश करता है। असफलता तुम्हें रोकने नहीं, बल्कि और मज़बूत बनाने आई है।”
माँ की बातें सुनकर राघव ने तय किया – वह फिर से तैयारी करेगा।
तीसरी कोशिश और जीत
इस बार उसने और गहराई से पढ़ाई की।
अपने हर कमजोर विषय पर ध्यान दिया, समय का अनुशासन बनाया और गलतियों से सीखा।
उसने न सिर्फ़ मेहनत की, बल्कि सही दिशा में मेहनत की।
आख़िरकार परीक्षा का परिणाम आया।
इस बार उसका नाम चयनित उम्मीदवारों में था।
वह खुशी से रो पड़ा।
सालों की मेहनत, भूख, ताने, असफलताएँ – सब उसी पल सार्थक हो गईं।
आज राघव देश के प्रमुख रिसर्च सेंटर में वैज्ञानिक है।
वह बच्चों को प्रेरित करने के लिए कहता है –
“मुश्किलें तुम्हें रोकने नहीं, बल्कि आगे बढ़ाने आती हैं।
अगर तुम्हारे पास सपने हैं और मेहनत करने की हिम्मत है, तो कोई ताक़त तुम्हें रोक नहीं सकती।”
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सीख क्या है?
इस कहानी से हमें तीन बड़ी बातें सीखने को मिलती हैं –
1. असफलता अंत नहीं है – यह सिर्फ़ एक नया सबक है।
2. मेहनत के साथ धैर्य ज़रूरी है – सफलता रातों-रात नहीं मिलती।
3. आलोचना और ताने – इन्हें बोझ मत समझो, इन्हें अपनी ताक़त बनाओ।
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👉 याद रखो –
“जीवन की लड़ाई में वही जीतता है,
जो सबसे कठिन वक्त में भी खुद से कहता है –
मैं हार नहीं मानूँगा।”