majnoo ki mohabbt part -2 in Hindi Comedy stories by Deepak Bundela Arymoulik books and stories PDF | मजनू की मोहब्बत पार्ट-2

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मजनू की मोहब्बत पार्ट-2

मजनू की मोहब्बत पार्ट -2

अगली ही शाम फिर वही टपरी, वही गिलास, वही भाप उड़ाती चाय।
पर इस बार भीड़ कुछ ज़्यादा थी। मोहल्ले में खबर फैल चुकी थी कि मजनू भाई ने कल इश्क़ पर लेक्चर दिया। अब सबको इंतज़ार था आज के नए खुलासे का।

मैं पहले ही पहुँच गया था। तभी मजनू भाई आते दिखे—कंधे पर झोला, आँखों में वही पुराना इश्क़, और होंठों पर नयी शायरी।

मैं:-“मजनू भाई, कल आपने जो एकतरफा इश्क़ का राज़ खोला था, उससे मोहल्ला अब तक उबर नहीं पाया है। लेकिन एक सवाल सबके मन में है—आपकी शादी हो चुकी है न? तो ये इश्क़ उसके बाद कैसे?”

मजनू भाई: (हँसते हुए):- "अरे भाई, शादी और इश्क़ में फर्क है। शादी घर का राशन है—नून-तेल-आटा। और इश्क़ होटल का खाना है—न मसाला कम, न टेस्ट फीका।
शादी जीने की मजबूरी है, इश्क़ जीने की मस्ती।”

इसी बात पर अर्ज हैं --

"शादी से मिलता है पेट का सुकून,
मोहब्बत से मिलता है दिल का जुनून।”

टपरी पर बैठे सभी शादीशुदा मर्दों ने सिर झुका लिया, बाकी लड़के ठहाके लगाने लगे। 
तभी एक लड़का मजनू के करीब आया

1 लड़का :- "अंकल, मेरी गर्लफ्रेंड मुझसे हर बार यही कहती हैं कि तुम बहुत अच्छे लडके हो इसको मैं क्या समझू
?”

मजनू भाई:- "बेटा, जब कोई लड़की कहे "तुम बहुत अच्छे हो" तो समझ लो अब वो तुम्हें कभी बॉयफ्रेंड नहीं बनाएगी.

1 लड़का:- क्यों?

मजनू:- वरखुद्दार ये वो डिग्री है जिसमें promotion नहीं मिलता, वो तुम्हे अच्छा बोलती रहेगी और तुम उसकी हर डिमांड पूरी करते रहोगे धूर्त कुमार..! बोलो ऐसा ही हैं के नहीं हैं.

लड़का मायुषी से अपना सर झुका लेता हैं

तभी दूसरा लड़का बोलता हैं 

2 लड़का:- अंकल, मेरी वाली रोज़ "seen" करके जवाब नहीं देती। इसका क्या मतलब हैं?”

मजनू भाई:- "बेटा, seen मतलब उसने तुम्हारा मेसेज पढ़ा लिया हैं और उसके जवाब न देना मतलब उसने समझ लिया है कि तुम्हें और उम्मीद में रखना है, आज कल लड़कियों के लिए seen एक तरह का ब्याज है।”

मजनू भाई को इन लड़को में उलझता देख मुझे कोफ्त सी होने लगी थी मैं उन लड़को पर झुंझला पड़ा तब वे शांत हुए फिर मैंने मजनू भाई की प्रेम यात्राको विस्तार से जानने के लिए उनसे पूछा

मैं:- "भाई, ये तो बताओ... वो मोहतरमा अगर शादीशुदा निकलीं तो?”

मजनू भाई: (बेफ़िक्री से):- "तो इश्क़ और मज़बूत हो जाएगा। क्योंकि शादीशुदा औरत के साथ इश्क़ करने में खतरे ज़्यादा और thrill दोगुना, एकतरफा इश्क़ में तो वैसे भी हक़ नहीं माँगना होता।”

"वो किसी की भी हो, पर मेरे ख्वाब की है,
मोहब्बत इबादत है, नहीं किसी हिसाब की है।”

मैं:- "मोहल्ले वाले कहते हैं कि इस उमर में ये सब पागलपना है।”

मजनू भाई:- "मोहल्ले वाले तो ATM मशीन जैसे हैं—हर वक्त बैलेंस पूछते रहते हैं,
इन्हें क्या पता, मोहब्बत उम्र से नहीं, हिम्मत से की जाती है, 55 का हूँ तो क्या हुआ, इश्क़ के लिए तो मैं अब भी 25 का जवान हूँ, जब नेता कुर्सी के मोह में उम्र नहीं देखते तो मैं क्यूँ अपनी उम्र का मातम करूँ l"

मजनू की बातें सुनकर टपरी में बैठे लड़कों ने तालियाँ बजा-बजाकर माहौल गरमा दिया।

लड़का:- अंकल, हम सबने ठान लिया है कि अब आप हमारे लवगुरु हैं, मोहल्ले की लव यूनिवर्सिटी के वाइस-चांसलर।

मजनू भाई: (हँसते हुए)- "अरे बेटा, मैं वाइस-चांसलर नहीं, प्रैक्टिकल मास्टर हूँ। किताबों को नहीं, दिलों को पढ़ाता हूँ।
मेरे पास syllabus सिर्फ एक है—इश्क़ ज़िंदाबाद।”

किताबों में लिखें इश्क मैंने तो भुला दिया
मोहब्बत तो बस तजुर्वे से हुआ करती हैं.

मैं:-“भाई, आपके जवानी के दौर में तो इश्क़ खतों से हुआ करती थी, लेकिन अब ये सब व्हाट्सऐप-इंस्टा से हो रही है, इसमें फर्क क्या पड़ा?”

मजनू भाई:- "अरे बड़ा फर्क पड़ा!" पहले इश्क़ खतों से होती थी —इंतज़ार मीठा होता था, अब इश्क़ चैट में कन्वर्ट हो गया हैं जो seen का ज़हर है, पहले दिल धड़कता था, अब मोबाइल vibrate करता है।”

खतों की स्याही में मोहब्बत गहराती हुआ करती थी,
अब तो typing में ही battery मर जाया करती है।”

थोड़ी देर चुप्पी रही। मजनू भाई गिलास को घूरते रहे, फिर बोले-

"भाई, सच कहूँ तो मोहब्बत ही इंसान को इंसान बनाए रखती है, वरना नौकरी, EMI, बिजली का बिल—सब आदमी को मशीन बना देते हैं, इश्क़ वो चिंगारी है जो दिल को जिन्दा रखती है।”

फिर उन्होंने गहरी आवाज़ में शेर पढ़ा—

ज़िंदगी के हिसाब में मोहब्बत ही जमा है,
बाकी तो सब खर्चो का कमी का गामा है।

इतने में मोहल्ले का एक अधेड़ आदमी बोला

अरे मजनू, तुम्हारी उम्र में लोग ऊपर वाले की शरण में जाते हैं, और तुम हो के अब भी तुम मोहब्बत के पार्क में भट रहें हो।”

मजनू भाई ने चुटकी ली:-भाई, मंदिर में भी लोग मुराद माँगते हैं। मैं भी मोहतरमा से दुआ माँगता हूँ। फर्क बस इतना है कि वो भगवान की मूर्ति है, और ये चलती-फिरती मूर्ति।”

इबादत में और इश्क़ में फर्क क्या है,
दोनों में सिर झुकाना ही असली दुआ है।”

चाय खत्म हो चुकी थी, और भीड़ भी धीरे-धीरे छंट रही थी, लेकिन मजनू भाई अब भी शायराना मूड में थे।

मैं:- "भाई, आख़िर में एक बात बताओ—अगर वो मोहतरमा कभी आपके इश्क़ को मान ही लें, तो?”

मजनू भाई:- "तो फिर ये इश्क़ एकतरफा’ से दोतरफा हो जाएगा लेकिन सच कहूँ, मुझे डर है... दोतरफा इश्क़ में रोज़ लड़ाई, रोज़ समझौते इसलिए मैं एकतरफा मोहब्बत को ही अमर रहने देना चाहता हूँ।”

फिर उन्होंने आख़िरी शेर सुनाया—

मिले तो इश्क़ सिमट जाएगा हक़ के दायरे में,
ना मिले तो उम्र भर अफ़साना बन जाएगा।

चलो मियां अब बहुत हो गया...

और हम अपने अपने घर को चल दिये

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उस दिन समझ में आया—मजनू भाई की मोहब्बत सिर्फ उनका शौक़ नहीं, उनकी फिलॉसफ़ी है। वो मोहतरमा चाहे कभी उनकी न बने, पर उनके इश्क़ ने मोहल्ले को हँसी, शायरी और सिखावन दी। और शायद यही उनकी ज़िंदगी का मक़सद है— लोग हँसते रहें, ठहाके लगाते रहें, और सोचते रहें—“55 की उम्र में भी मोहब्बत जवान हो सकती है।”

समाप्त