अध्याय 1 : बचपन और मिडिल क्लास की सच्चाई
अनिल एक छोटे से कस्बे में जन्मा था। उसका परिवार मिडिल क्लास था। पिता जी सरकारी दफ्तर में एक क्लर्क थे और माँ गृहिणी। घर का गुज़ारा मुश्किल से चलता था। महीने की सैलरी से घर के खर्च पूरे करना हमेशा चुनौती बन जाता।
अनिल बचपन से ही समझता था कि उसके परिवार की स्थिति दूसरों जैसी नहीं है। स्कूल जाते वक्त वह अपने दोस्तों के नए बैग, चमकते जूतों और रंग-बिरंगी पेंसिल बॉक्स को देखता और मन ही मन सोचता – “काश, मेरे पास भी ये सब होता।”
उसके पास वही पुराना बैग था जो पिछले साल का था, जूते अक्सर पॉलिश करके पुराने जैसे ही दिखते। लेकिन अनिल ने कभी शिकायत नहीं की। माँ हमेशा कहतीं –
“बेटा, पैसा सब कुछ नहीं होता। असली दौलत मेहनत और ईमानदारी है।”
और यही बात अनिल के दिल में उतर जाती।
बचपन में ही उसने महसूस कर लिया था कि अगर ज़िंदगी में कुछ बड़ा करना है तो हालात से लड़ना होगा।
अध्याय 2 : स्कूल की यादें और ताने
स्कूल में अनिल एक होशियार छात्र था। पढ़ाई में हमेशा अव्वल आता। शिक्षक उसकी मेहनत देखकर खुश होते। लेकिन दोस्त उसे अक्सर चिढ़ाते –
“तेरे पास तो स्मार्टफोन भी नहीं है।”
“अरे ये तो टिफिन में हर दिन वही आलू की सब्ज़ी लाता है।”
अनिल उन बातों को हँसी में टाल देता, लेकिन रात को बिस्तर पर लेटे-लेटे सोचता – “क्या मिडिल क्लास होना गुनाह है?”
वह किताबों में डूबा रहता। हर परीक्षा में अच्छे अंक लाना उसका जुनून बन गया था। उसे लगता था कि यही एक रास्ता है जिससे वह अपनी तकदीर बदल सकता है।
अध्याय 3 : कॉलेज की दुनिया और पार्ट-टाइम जॉब
कॉलेज में दाखिला लेना अनिल के लिए आसान नहीं था। फीस ज़्यादा थी और पिताजी की तनख्वाह सीमित। लेकिन अनिल ने हार नहीं मानी। उसने बच्चों को ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया।
शाम को चार बच्चों को पढ़ाने से मिलने वाले पैसे से वह अपनी पढ़ाई का खर्च निकालने लगा। कॉलेज के दोस्तों के पास बाइक थी, लेकिन अनिल रोज़ पैदल या साइकिल से जाता। कभी-कभी वह शर्मिंदा भी होता, लेकिन फिर खुद को समझाता – “मेरे पास भले ही बाइक नहीं है, लेकिन मेरे पास मेहनत है।”
अध्याय 4 : दोस्ती और पहला प्यार
कॉलेज में अनिल की मुलाकात नेहा से हुई। नेहा अमीर परिवार से थी। दोनों की सोच अलग थी, लेकिन दिल मिल गए।
नेहा को अनिल की सादगी और ईमानदारी पसंद थी। वह अक्सर कहती –
“अनिल, तुम्हारे पास पैसे भले न हों, लेकिन तुम्हारे पास साफ दिल है।”
धीरे-धीरे दोनों अच्छे दोस्त बन गए। पर अनिल जानता था कि उनकी दुनिया अलग है। वह नेहा से दूरी भी बनाने की कोशिश करता, लेकिन नेहा हर बार उसे रोक लेती।
अध्याय 5 : सपनों की लड़ाई
कॉलेज खत्म होने के बाद अनिल ने सरकारी नौकरी की तैयारी शुरू की। सुबह से रात तक वह लाइब्रेरी में पढ़ता। ट्यूशन पढ़ाने के बाद देर रात तक किताबों में डूबा रहता।
पहली बार जब उसने एग्ज़ाम दिया, वह पास नहीं हुआ। दिल टूट गया। नेहा ने हौसला बढ़ाया –
“फेल होना हार नहीं होती। असली हार तो कोशिश छोड़ देना है।”
अध्याय 6 : असफलताएँ और टूटे सपने
अनिल ने दूसरी बार परीक्षा दी। इस बार भी वह सफल नहीं हो पाया। घर में माहौल भारी हो गया। पिताजी बोले –
“बेटा, अगर चाहो तो कोई प्राइवेट नौकरी कर लो।”
अनिल रात भर छत पर बैठा आसमान देखता रहा। सोचता रहा – “क्या मैं कभी अपने सपनों को सच कर पाऊँगा?”
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अध्याय 7 : नई उम्मीद – तीसरी बार की कोशिश
नेहा की बातों और माँ के आशीर्वाद से अनिल ने हार नहीं मानी। तीसरी बार उसने पूरी लगन से तैयारी की।
सुबह 4 बजे उठकर पढ़ाई करना, दिन में ट्यूशन और रात को दोबारा रिविज़न – यही उसकी दिनचर्या बन गई।
अध्याय 8 : सफलता की चाबी
परीक्षा का रिज़ल्ट आया। अनिल का नाम लिस्ट में देखकर उसकी आँखों से आँसू बह निकले।
वह दौड़कर माँ-पिता के पास गया और बोला – “माँ, मैं सफल हो गया!”
पिताजी ने उसे गले लगाकर कहा –
“आज तूने साबित कर दिया कि मिडिल क्लास लड़का भी अपनी मेहनत से सितारे छू सकता है।”
अध्याय 9 : परिवार का गर्व
अनिल की नौकरी लग गई। उसने सबसे पहले घर का कर्ज चुकाया। बहन की पढ़ाई का खर्च उठाया और माँ के लिए नई साड़ी खरीदी।
नेहा ने भी उसे बधाई दी। उसने कहा –
“अनिल, यही वजह है कि मैं तुम पर गर्व करती हूँ। तुमने कभी हालात को बहाना नहीं बनाया।”
अध्याय 10 : मिडिल क्लास की असली ताक़त
अनिल की कहानी सिर्फ उसकी नहीं, हर उस लड़के की है जो मिडिल क्लास से निकलकर अपने सपनों के लिए लड़ता है।
उसने समझ लिया था कि मिडिल क्लास होना कमजोरी नहीं है। असली ताक़त वही है – सादगी, संघर्ष और मेहनत।