Lala Lajpat Rai, Indian revolutionary in Hindi Motivational Stories by Badal Paandey books and stories PDF | लाल लाजपत राय भारतीय क्रांतिकारी

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लाल लाजपत राय भारतीय क्रांतिकारी

लाला लाजपत राय की शहादत भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास का एक ऐसा पन्ना है जो आज भी वीरता और बलिदान की मिसाल बनकर खड़ा है।

वीरता से जुड़ी उनकी हत्या की कहानी

1928 में अंग्रेज़ सरकार ने साइमन कमीशन को भारत भेजा। इस कमीशन में एक भी भारतीय सदस्य नहीं था। पूरे देश में इसका ज़बरदस्त विरोध हुआ। लाला लाजपत राय, जिन्हें “पंजाब केसरी” कहा जाता है, ने लाहौर में इसका नेतृत्व किया।

30 अक्टूबर 1928 को जब साइमन कमीशन लाहौर पहुँचा, तो लाला लाजपत राय ने विशाल प्रदर्शन का नेतृत्व किया। हजारों लोग “साइमन गो बैक” के नारे लगा रहे थे। अंग्रेज़ पुलिस ने इस जुलूस को रोकने के लिए बेरहमी से लाठीचार्ज कराया।

उस समय लाठीचार्ज का नेतृत्व पुलिस अधीक्षक जेम्स ए. स्कॉट कर रहा था। उसने खुद लाला लाजपत राय पर बार-बार लाठियाँ बरसाईं। सिर और सीने पर चोटें लगीं। लेकिन खून से लथपथ हालत में भी राय जी डटे रहे और भीड़ से कहा:

👉 “मेरे शरीर पर पड़ी हर लाठी अंग्रेज़ी शासन की ताबूत की कील साबित होगी।”

कुछ दिनों बाद 17 नवंबर 1928 को लाला लाजपत राय ने इन चोटों के कारण प्राण त्याग दिए।
लाला लाजपत राय की अनसुनी कहानी : जब मौत से लौटे “पंजाब केसरी”

लाला लाजपत राय का नाम सुनते ही हमें आज़ादी की लड़ाई में उनकी बहादुरी और बलिदान याद आता है। लेकिन बहुत कम लोगों को पता है कि 1914 में उन्हें अंग्रेज़ों ने ‘देशद्रोही’ करार देकर मांडले (बर्मा) जेल भेज दिया था।

घटना की शुरुआत

अंग्रेज़ों को डर था कि लाला लाजपत राय पंजाब और उत्तर भारत में युवाओं को भड़का रहे हैं। इसलिए उन्हें बिना मुकदमा चलाए मांडले की कुख्यात जेल में डाल दिया गया। यह जेल इतनी खराब हालत में थी कि वहाँ जाते ही कैदी बीमार हो जाते थे।

मौत के करीब

जेल की गंदी परिस्थितियों और खाने की खराबी के कारण लाला लाजपत राय को गंभीर बीमारी हो गई। उनके शरीर में इतनी कमजोरी आ गई थी कि कई बार डॉक्टरों ने कह दिया – “ये शायद ज़िंदा नहीं बचेंगे।”

चमत्कारी बचाव

लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। अपने शरीर को मजबूत रखने के लिए जेल में ही योग और प्राणायाम शुरू किया। धीरे-धीरे उनकी तबीयत सुधरने लगी। कई अंग्रेज़ अफसर भी हैरान थे कि इतनी मुश्किलों के बाद यह शख्स ज़िंदा कैसे बच गया।

बाहर आने के बाद

जेल से रिहा होने के बाद भी लाला लाजपत राय ने अंग्रेज़ों के खिलाफ अपनी आवाज़ और बुलंद की। उन्होंने कहा था:
“अगर मेरी मौत भी आ जाए तो मेरा खून देश की मिट्टी को सींचेगा और आज़ादी की लड़ाई को और तेज़ करेगा।”

निष्कर्ष

यह कहानी हमें बताती है कि लाला लाजपत राय केवल अंग्रेज़ों की लाठी से शहीद नहीं हुए थे, बल्कि वे पहले भी कई बार मौत के करीब पहुँचे, मगर देशप्रेम ने उन्हें ज़िंदा रखा


वीरता की गूंज

उनकी शहादत व्यर्थ नहीं गई। भगत सिंह, राजगुरु और चंद्रशेखर आज़ाद जैसे क्रांतिकारी लाला जी की मौत से बुरी तरह आक्रोशित हुए। उन्होंने लाला जी की हत्या का बदला लेने के लिए लाहौर में स्कॉट को मारने की योजना बनाई, हालांकि गलती से जॉन सॉन्डर्स की हत्या हो गई।

फिर भी, लाला लाजपत राय की वीरता और उनके बलिदान ने स्वतंत्रता आंदोलन की ज्वाला और प्रखर कर दी। वह आज भी साहस और बलिदान की अमर गाथा हैं।