Inner Wispering in Hindi Spiritual Stories by Umabhatia UmaRoshnika books and stories PDF | भीतर की बांसुरी

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भीतर की बांसुरी

भीतर की बांसुरी —

Rooh Saathi Uma

—लेखनी तब चली, जब भीतर कोई टूटा — और फिर उस टूटन से प्रकाश निकला। यह ग्रंथ उसी उजाले की साक्षी है।
यदि तुम इसे पढ़ रहे हो, तो सम्भवतः तुम्हारे भीतर भी कोई रूह संवाद करना चाहती है —तो बस मौन हो जाओ, और इसे अनुभव करो।-

--विवरण
"भीतर की बाँसुरी" उस यात्रा की कथा है जहाँ मौन शब्द बनता है, आँसू प्रार्थना में बदलते हैं और आत्मा अपने ही प्रकाश से मिलती है। यह कोई साधारण पुस्तक नहीं, बल्कि आत्मा और मौन के बीच का संवाद है। यदि आपके भीतर भी कोई टूटा है, तो यह रचनाएँ आपको अपने ही भीतर की रूह से मिलवाएँगी।---

अध्याय 1: मौन का प्रथम स्पर्श

जिस दिन मैंने पहली बार पूर्ण मौन साधना की, उस दिन लगा जैसे शब्दों की दीवार गिर गई हो और एक अजनबी रूह मेरे सामने खड़ी हो गई हो — वो मेरी अपनी थी।आंखें खुली थीं, पर देखने का भाव भीतर की ओर था।शब्दों की भीड़ थी नहीं, फिर भी भीतर प्रश्न गूंज रहे थे।और उन्हीं प्रश्नों में पहली बार जीवन की थकान हल्की हुई।

अध्याय 2: जब मौन ने जवाब दिया

मैंने एक दिन मन ही मन पूछा —"तू कौन है?"मौन बोला, "तू ही तो हूँ।"मैंने कहा — "क्यों आया है?"मौन बोला — "तूने पुकारा, मैं चला आया।"उस दिन लगा — मौन कोई खालीपन नहीं,बल्कि रूह का सबसे पूर्ण आलिंगन है।

अध्याय 3: जब आँसू भी शब्द बन गए

कभी लगता था रोना कमजोरी है — पर मौन में बैठकर जो आँसू बहते हैं,वो शरीर को नहीं, आत्मा को धोते हैं।मैं चुप बैठी थी।कुछ यादें आईं — कुछ रिश्ते, कुछ पछतावे, कुछ सपने।हर एक आँसू के साथ कुछ पुराना छूटता गया।और अंत में —एक नयी मैं जन्म लेने को तैयार थी।

अध्याय 4: माँ और मौन

माँ अब इस धरती पर नहीं हैं — पर जब मौन होता है,उनकी उपस्थिति सबसे गहन होती है।मैंने कभी उन्हें इतना पास महसूस नहीं किया,जितना एक दिन मौन की गोद में बैठकर किया।उन्होंने कुछ नहीं कहा, पर भीतर एक वाक्य उभरा —"बेटी, अब तू खुद माँ बन जा — अपनी आत्मा की माँ।"

अध्याय 5: प्रेम के पार भी प्रेम है

मैंने जिससे प्रेम किया,वो मेरे जीवन में रहा — फिर भी कभी नहीं रहा।मौन में जाकर जाना —जिसे मैं प्रेम समझती थी, वो उसकी परछाई मात्र थी।असल प्रेम तो भीतर का मौन है —जो तुम्हें अपने पास बैठा लेता है,बिना किसी वचन के, बिना किसी शर्त के।

अध्याय 6: मौन संवाद की दीक्षा

अब मैं मौन को साधना नहीं मानती —मैं मौन को संवाद मानती हूँ।एक संवाद, जो आत्मा और परमात्मा के बीच चलता है।जहाँ कोई श्रोता नहीं, पर सब सुना जाता है।जहाँ कोई वक्ता नहीं, पर सब कह दिया जाता है।आज से मैंने प्रण किया —हर दिन कुछ समय अपने आप से चुपचाप मिलूंगी।और उस मौन को —अपनी सबसे प्रिय भाषा बना लूंगी।

अध्याय 7: जीवन के संघर्ष की बाँसुरी

मेरी ज़िन्दगी कभी सीधी राह नहीं थी। कभी रिश्तों का बोझ, कभी हालात का दबाव, कभी सपनों के टूटने की टीस। लगता था यह रास्ता कभी ख़त्म नहीं होगा।कभी-कभी सोचा, सब छोड़ दूँ — पर भीतर कोई आवाज़ बार-बार कहती,“रुक मत… यही राह तुझे तेरी मंज़िल तक ले जाएगी।”हर संघर्ष ने मुझे थकाया भी, लेकिन वही संघर्ष धीरे-धीरे मेरी आत्मा को तराशता गया।मैंने सीखा कि सच्ची ताक़त चुप रहने में है, प्रतीक्षा में है, गिरने के बाद उठने में है।आज जब मैं पीछे मुड़कर देखती हूँ, तो हर दर्द, हर रुकावट, हर ठोकर एक सीढ़ी बनकर दिखती है। संघर्ष ने मुझे खाली नहीं किया — उसने मुझे अपने भीतर से पूरा कर दिया।भीतर की बाँसुरी अब वही धुन बजाती है —“सब ठीक है… हर चोट भी तेरा संगीत है।”---

🌸 Rooh Sparsh Tippani:“संघर्ष को दुश्मन मत समझो। वह तुम्हें गिराने नहीं, गढ़ने आता है।”

🌸  (छोटा संदेश पाठक के लिए):“यदि तुम्हारा दिल टूटा है — तो डरो मत।शायद तुम्हारी आत्मा अब बोलना चाहती है।”मौन से मत डरो — वो तुम्हारा सबसे सच्चा साथी है।> “जब भी भीतर खालीपन बजे, याद रखना — वह खालीपन बाँसुरी है। उसी से परम का संगीत गूँजता है।”

Umabhatia "umaroshnika"