अरे बेटा, तू आ गई?
हां मां, देखिए मैं क्या लाईं हूं आपके लिए, नंदिनी ने धीरे से कहा।
तेरे हाथ से लाया खाना तो दवा से भी बढकर है, लता जी ने प्यार से नंदिनी के सिर पर हाथ फेरा। मां- बेटी साथ बैठकर खाना खाने लगीं।
थोडी देर बाद नंदिनी जाकर अपना project तैयार करने लगती है लता जी बर्तन साफ कर कर शाम की तैयारी करने लगी.
शाम के करीब छह बजने को आए थे। आसमान में ढलती धूप की सुनहरी किरणें खिडकी से झांक रही थीं। मॉल से लौटते हुए वेदिका, ईशान, निशा और अवनी सबके चेहरे पर हल्की- सी थकावट तो थी, लेकिन उसके पीछे छुपी हुई दिनभर की खुशी साफ नजर आ रही थी।
भैया, घर पर मम्मी को हमारा खाना बहुत पसंद आया होगा, है न? वेदिका ने गाडी से उतरते हुए कहा।
ईशान ने मुस्कुराते हुए सिर हिलाया, और मम्मी को तुझसे ज्यादा छोले भटूरे पसंद हैं, ये तो तू जानती ही है!
वेदिका खिलखिलाई। वहीं, निशा और अवनी भी अपना- अपना सामान संभालते हुए अंदर की ओर बढ गईं।
निशा और अवनी अब हमें भी आप अपने घर चलना चाहिए काफी शाम हो चुकी है, मम्मी का फोन आता ही होगा निशा ने कहा वेदिका निशा तुम तो यहां पास में रहती हो तुम्हें क्या प्रॉब्लम है।
तुम बाद में चली जाना फिर वो अवनी की तरफ देखकर अवनी तुम्हें भाई छोड देंगे, क्योंकि काफी अंधेरा हो गया है और तुम्हारा घर यहां से काफी दूर है.
अवनी ठीक है मैं एक बार आंटी को Bye बोलकर आती हूं और ये सामान अंदर रख देती हूं अवनी सामान रखकर लता जी को Bye बोलकर वहां से बाहर आ जाती है।
बाहर ईशान गाडी के पास खडा उसका इंतजार कर रहा था थोडी देर में वो दोनों गाडी में बैठते हैं और वहां से निकल जाते हैं
जब वेदिका और निशा घर के अंदर आती है तो देखती हैं।
नंदिनी और लता जी बरामदे में बैठकर चाय की चुस्कियों के साथ हल्का- सा मीठा स्वाद ले रही थीं।
मम्मी, दिन कैसा गया? वेदिका ने आते ही पूछा।
लता जी मुस्कुराईं, बहुत अच्छा. नंदिनी ने मुझे जो छोले भटूरे खिलाए, उससे आज मेरा दिन बन गया।
वेदिका और नंदिनी एक- दूसरे को देखकर मुस्कुराईं। तभी दरवाजे की घंटी बजी।
नंदिनी ने दरवाजा खोला, सामने नंदिनी और वेदिका के पापा — अशोक जी खडे थे, उनके साथ एक और सज्जन थे। एक अधेड उम्र के विनम्र चेहरे वाले सज्जन अशोक जी के साथ अंदर आए।
अशोक जी अरे नंदिनी की महा कहां है आप देखिए आज हमारे साथ कौन आया है, लता जी लिविंग Room में आती हैं तो उनके सामने वही सज्जन आदमी खडे हुए थे वह उनको देखते ही कहते हैं।
राम राम भाभीजी! उस सज्जन ने अंदर आते ही लता जी को हाथ जोडकर अभिवादन किया।
अरे मिश्रा जी, राम राम! आप कब आए शहर में? लता जी ने आश्चर्य से पूछा।
बस आज ही. और सोचिए, आते ही सीधे आपके घर चला आया। बात ही कुछ ऐसी है।
सभी बैठ गए।
थोडी देर की बातचीत और चाय- नाश्ते के बाद मिश्रा जी ने अपनी बात रखी।
अशोक भाईसाहब, नंदिनी ’" बिटिया के लिए जो मैंने रिश्ता बताया था। वो लोग कल नंदिनी बिटिया को देखने आना चाहते हैं मैंने आपको बताया था उनका बडा बेटा अर्जुन डीआईजी कमिश्नर बन चुका है।
अब वो इसी शहर में आ चुका है उसकी पोस्टिंग यहीं हो गई है वो अब उनके पिताजी चाहते हैं वो अपने बेटे की शादी एक अच्छे घर में और एक सुशील लडकी से करें आप तो जानते ही हैं आज के जमाने में सुशील लडकियां मिलना बहुत मुश्किल है।
जब मैंने उन्हें नंदिनी बिटिया की फोटो दिखाई, और आपके परिवार के बारे में बताया तो वो आप सब से मिलने के लिए उत्सुक हैं इसीलिए मैंने आप लोगों से बिना पूछे ही उन्हें कल शाम को आने के लिए कह दिया है
लता जी और अशोक जी दोनों चौंक गए।
अशोक जी मिश्रा जी की तरफ देखते हुए हां आपने मुझे बताया था और मैंने आज सुबह ही अपने बच्चों को इस बारे में बताया था.
मैं आज शाम को इस विषय में ही अपने सारे बच्चों से बात करने वाला था उससे पहले ही आप मुझे घर के बाहर मिल गए और अब आपके सामने ही सारी बातें हो रही हैं
मिश्रा जी ने मुस्कुराकर कहा। अच्छी बात है अशोक जी तो मैं उनको फोन करके कल आने के लिए पक्का बोल देता हूं लता जी भाई साहब उनका परिवार कैसा है।
हमारी बेटी इतनी बडे परिवार में कैसे रहेगी आप जानते हैं हम तो मिडिल क्लास लोग हैं हमारे ज्यादा बडे सपने नहीं है बस हम चाहते हैं कि हमारी बेटी हमेशा खुश रहे
अशोक जी थोडा गंभीर होते हुए बोले, ये तो बहुत बडा प्रस्ताव है, मिश्रा जी। नंदिनी अब भी पढाई कर रही है। क्या वह हमारी बेटी को आगे पढने की आज्ञा देंगे।
मिश्रा जी ने कहा आप एक बार उनसे मिल लीजिए अपने मन की सारी बातें उनसे कीजिए और उनको जानिए उसके बाद ही आप कोई फैसला लीजिएगा।
ईशान, हां पापा वैसे तो मुझे भी लग रहा है कि ये लोग हम से काफी बडे हैं जैसे अंकल ने बताया कि उनका बहुत बडा बिजनेस है और लडका डीआईजी कमिश्नर है। उस हिसाब से तो हम उनके आगे कुछ नहीं है।
पापा फिर भी एक बार हम उनसे मिल लेते हैं मिलकर ही आप कोई फैसला लेना।
अशोक जी ने धीरे से सिर हिलाया और लता जी की ओर देखा। लता जी के चेहरे पर एक भाव उभरा — मां होने का गौरव और साथ ही आने वाले कल की चिंता।
कल शाम हम तैयार रहेंगे, अशोक जी ने नम्रता से कहा।
मिश्रा जी अच्छा अशोक जी भाभी जी अब मुझे भी आजा दीजिए घर पर सब मेरी राह देख रहे होंगे। लता जी ठीक है भाई साहब लेकिन आप कल उन सबके आने से थोडी देर पहले आ जाना।
मिश्रा जी हां हां बिल्कुल आप चिंता मत कीजिए, नंदिनी मेरी भी बेटी है और जब तक आप लोगों की बातचीत होगी। रिश्ता पक्का होगा, मैं यहीं पर मौजूद रहूंगा
थोडी देर बाद.
डाइनिंग टेबल पर सब एकत्र थे। अशोक जी ने नंदिनी को पास बिठाकर पूरे आदर और प्यार से सारी बात बताई।
नंदिनी ध्यान से अपने पापा की बातें सुन रही थी। नंदिनी, पापा वो सब तो ठीक है लेकिन जिस हिसाब से आप बता रहे हैं वो काफी बडे लोग लग रहे हैं।
ऐसे में आपका बहुत सारा खर्च हो जाएगा और अभी तो ईशान भाई का भी एक साल बचा है और ऊपर से नील की भी पढाई शुरू हो चुकी है आप अभी शादी का खर्चा क्यों उठा रहे हैं अभी थोडा और रुक जाते.
अशोक जी, बेटा मैं आपकी बात मानता हूं लेकिन अच्छे रिश्ते किस्मत से ही मिलते हैं और अगर हमें एक अच्छा लडका मिल रहा है।
आपके लिए तो हम उसे जरूर स्वीकार करेंगे, और वैसे भी आपकी शादी की उम्र हो गई है कुछ टाइम बाद तुम्हारे इंटर्नशिप शुरू हो जाएगी। और तुम भी अपने पैरों पर खडी हो जाओगी तो अब ये शादी का सही वक्त है।
और क्या पता बेटा वो हमारी बेटी को बहुत खुश रखे जब उन्होंने तुम्हारी फोटो देखते ही तुम्हें पसंद कर लिया है तो हमें भी एक बार उनसे मिल लेना चाहिए
वेदिका ओ हो क्या बात है। दीदी आपको तो फोटो देखते ही लडके वालों ने पसंद कर लिया। ये सुनकर नंदिनी ने शरमा कर सिर झुका लिया।
बेटा, हम किसी पर दबाव नहीं डालते। कल तुम बस मिल लो, उसके बाद फैसला तुम्हारा, लता जी ने नंदिनी का हाथ थामते हुए कहा।
हां मां, पापा. मैं मिलूंगी। लेकिन. मैं वही करूंगी जो दिल कहेगा, नंदिनी ने नजरों में संजीदगी और चेहरे पर मासूम मुस्कान लिए कहा।
ईशान ने चुटकी लेते हुए कहा, बस अब मुझे DIG साहब से डर लगने लगा है!
सब हँस पडे।
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क्या नंदिनी का रिश्ता पक्का हो जाएगा। जानने के लिए सुनते ये रहिए स्टोरी ...