पहाड़ों के एक छोटे से गाँव में रोहन अपनी अम्मा के साथ रहता था। गाँव छोटा था, लेकिन अम्मा का प्यार इतना बड़ा था कि रोहन को कभी किसी चीज़ की कमी महसूस नहीं होती थी। सुबह जब सूरज पहाड़ों की चोटी से झाँकता, तो अम्मा हमेशा उससे कहती – “बेटा, ज़िंदगी सूरज की तरह है। अँधेरा चाहे कितना भी गहरा हो, सुबह ज़रूर आती है।” ये शब्द रोहन के दिल में गहराई से उतर जाते।
रोहन के पिता उसके बचपन में ही गुजर गए थे। उस दिन के बाद अम्मा ही माँ और पिता दोनों बन गईं। उन्होंने खेतों में काम करके, दूसरों के घर सफ़ाई करके और अपने हाथों से रोटियाँ बेलकर रोहन को पढ़ाया। गाँव के लोग हमेशा अम्मा की हिम्मत की तारीफ़ करते – “ऐसी औरत कम मिलती है जो अकेली होकर भी अपने बेटे को इतनी सीख दे रही है।” अम्मा के चेहरे की झुर्रियाँ उनकी मुश्किलें दिखाती थीं, लेकिन उनकी आँखों का नूर हमेशा उम्मीद जगाता था।
समय तेज़ी से निकलता गया। रोहन बड़ा हुआ और शहर जाकर पढ़ने लगा। शहर के शोर-शराबे में भी उसे हमेशा अम्मा की आवाज़ सुनाई देती थी। रोज़ शाम को जब उसका फ़ोन बजता, दूसरी ओर से अम्मा की आवाज़ आती – “बेटा, खाना समय पर खाया ना? अपनी राह कभी मत भूलना। पैसे तो दोबारा बन जाते हैं, पर संस्कार दोबारा नहीं आते।” ये बातें रोहन के लिए हमेशा सहारा बनतीं।
एक दिन रोहन को ख़बर मिली कि अम्मा बीमार हैं। वह सब कुछ छोड़कर तुरंत गाँव आया। अम्मा बिस्तर पर पड़ी थीं, लेकिन उनके चेहरे पर वही प्यार भरी मुस्कान थी। उन्होंने रोहन का हाथ पकड़कर कहा, “बेटा, ज़िंदगी हमेशा दूसरों के लिए जीनी चाहिए। असली इंसान वही है जो अपने लिए नहीं, दूसरों के लिए कुछ छोड़ जाए।” रोहन की आँखों में आँसू आ गए।
कुछ दिनों बाद अम्मा ने अपनी आख़िरी साँस ली। घर में सन्नाटा छा गया, रोहन का दिल टूट गया, लेकिन उसे एक बात समझ आ गई – अम्मा सिर्फ़ एक माँ नहीं थीं, बल्कि एक सोच थीं जो हमेशा उसके साथ रहेगी। उसने अम्मा की यादों को अपनी ताक़त बनाया, कमजोरी नहीं।
अम्मा के सपने को आगे बढ़ाने के लिए रोहन ने गाँव में एक छोटी पाठशाला खोली। अब गाँव के छोटे-छोटे बच्चे रोज़ उससे पढ़ने आते। जब भी बच्चे ज़ोर से “गुड मॉर्निंग मास्टरजी” बोलते, रोहन को लगता जैसे अम्मा की आवाज़ उसके कानों में गूंज रही है – “बेटा, ज़िंदगी की असली जीत वही है जो दूसरों के लिए कुछ छोड़ जाए।”
अम्मा तो चली गई थीं, पर उनके संस्कार और उनका प्यार रोहन के दिल में सदा के लिए ज़िंदा रह गया। अम्मा की याद अब सिर्फ़ आँसू नहीं, बल्कि एक रौशनी थी जो उसे हर मोड़ पर रास्ता दिखाती थी। अम्मा की दुआओं का असर था कि रोहन हर मुश्किल से लड़ता गया। गाँव के लोग कहते, “रोहन की आँखों में अपनी अम्मा का नूर है।” उसने अपनी ज़िंदगी का हर दिन अम्मा के नाम कर दिया। अब जब भी हवा पहाड़ों से गुज़रती, रोहन को लगता जैसे अम्मा उसके साथ हैं।