गाँव के छोटे से मकान में रहने वाली मीरा बचपन से ही अपने सपनों की दुनिया में जीती थी। उसका सबसे बड़ा सपना था — एक दिन अपने गाँव में एक छोटी सी लाइब्रेरी खोलना, जहाँ बच्चे आकर पढ़ सकें और अपने सपनों को सच कर सकें। लेकिन उसकी आर्थिक स्थिति इतनी कमजोर थी कि वह खुद पढ़ाई जारी रखना भी मुश्किल समझती थी।मीरा हर दिन खेतों में काम करती और शाम को बच्चों को गाँव की छत पर कहानियाँ सुनाया करती। लोग उसे “कहानी की परी” कहते थे, क्योंकि वह अपनी मीठी आवाज़ और जादुई कहानियों से बच्चों का मन मोह लेती थी।एक दिन गाँव में एक नई शिक्षिका, स्नेहा, आईं। उन्होंने देखा कि मीरा बच्चों को पढ़ाने में दिल लगाती है। स्नेहा ने मीरा से कहा, “तुम्हारे सपनों में बहुत दम है। अगर तुम चाहो तो मैं तुम्हारी मदद कर सकती हूँ।” मीरा थोड़ी संकोच में थी, लेकिन स्नेहा के प्रोत्साहन ने उसका आत्मविश्वास बढ़ा दिया।स्नेहा ने गाँव में एक छोटी सी फंडरेजिंग शुरू की। कुछ महीने मेहनत के बाद उन्होंने पर्याप्त पैसे जमा कर लिए। मीरा की आँखों में सपनों की चमक लौट आई। उन्होंने पुराने एक कोने के कमरे को लाइब्रेरी में बदल दिया। दीवारों पर रंग-बिरंगी किताबें, कहानियों की तस्वीरें और एक छोटा सा पढ़ाई का कोना बना।लोगों ने धीरे-धीरे इस लाइब्रेरी को अपना जाना। बच्चे रोज़ आतीं, कहानियाँ सुनते और किताबें पढ़ते। मीरा की खुशी की कोई सीमा नहीं थी। उसका सपना अब सच हो चुका था।एक दिन गाँव में एक बड़ा मेले का आयोजन हुआ। मीरा को मेले में “साल की बेहतरीन कहानीकार” का सम्मान मिला। उस दिन मीरा ने अपनी कहानी बच्चों के सामने सुनाई और कहा — “सपने सच होते हैं, अगर हम उन्हें दिल से चाहें और मेहनत करें।”सपनों की चमक अब मीरा के गाँव में हर कोने में दिखती थी। लाइब्रेरी अब गाँव का सबसे प्यारा स्थान बन चुकी थी। मीरा ने साबित कर दिया कि प्यार, मेहनत और आत्मविश्वास से दुनिया बदल सकती है।
गाँव के बच्चों के लिए मीरा की लाइब्रेरी अब सिर्फ किताबों का घर नहीं रही थी — यह एक सपना सच होने का प्रतीक बन चुकी थी। बच्चे वहाँ आते, किताबों में खो जाते और अपनी कल्पनाओं की दुनिया में यात्रा करते। मीरा उनकी हँसी और सवालों में अपनी सफलता देखती थी।
एक दिन मीरा लाइब्रेरी में बैठी थी, तभी गाँव के बुजुर्ग रामलाल ने आकर कहा, “मीरा, तुम्हारी मेहनत ने हमारे गाँव को बदल दिया है। अब बच्चे पढ़ाई में आगे बढ़ रहे हैं।” मीरा मुस्कुरा दी। उसने महसूस किया कि उसका सपना सिर्फ उसके लिए नहीं, बल्कि पूरे गाँव के भविष्य के लिए था।
मीरा ने सोचा कि लाइब्रेरी को और बेहतर बनाने के लिए उन्हें नए किताबों और कंप्यूटर की जरूरत है। इस बार उसने अकेले ही कोशिश करने का निर्णय लिया। उसने गाँव के त्योहार में अपने हाथ से बनाए कुछ हस्तशिल्प बेचने शुरू किए और छोटे-छोटे समारोह आयोजित किए, जिसमें बच्चों की कहानियाँ सुनाई जातीं।
धीरे-धीरे गाँव वालों ने उसका सहयोग बढ़ाया। स्नेहा और अन्य लोग भी जुड़ गए। कुछ महीनों में मीरा ने पर्याप्त राशि जमा कर ली और लाइब्रेरी में एक कंप्यूटर और नई किताबों का कोना बना दिया।
लाइब्रेरी का उद्घाटन दिन पूरे गाँव के लिए उत्सव बन गया। बच्चे, माता-पिता, शिक्षक — सब खुश थे। मीरा की आँखों में आंसू और चेहरे पर मुस्कान थी।
उस दिन मीरा ने कहा, “जब दिल में विश्वास हो और मेहनत साथ हो, तो कोई सपना बहुत बड़ा नहीं होता।” गाँव वालों ने तालियाँ बजाईं और मीरा को गले लगा लिया।
मीरा की कहानी अब गाँव में एक प्रेरणा बन चुकी थी — यह साबित कर चुकी थी कि प्यार, विश्वास और मेहनत से दुनिया बदल सकती है।
और इस तरह मीरा का सफर खत्म हुआ — एक सपने को सच करने की कहानी के साथ, जहाँ हर दिल में उम्मीद की एक नई किरण जगी। 🌸📚✨
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