रात के अँधेरे में दूर से दिखती हवेली किसी भूतिया चित्र की तरह लग रही थी। आसमान में काले बादल छाए थे और बिजली की कड़कड़ाहट उसके सन्नाटे को और भी डरावना बना रही थी। हवेली की ऊँची दीवारें और बंद खिड़कियाँ जैसे सदियों से कोई रहस्य अपने अंदर छुपाए बैठी थीं। अचानक हवेली के अंदर से एक दर्द भरी चीख गूँजी—इतनी तीखी कि पेड़ों पर बैठे पंछी तक सहम कर उड़ गए।
मुंबई की भीड़-भाड़ से भरी जिंदगी में इस हवेली की खबरें टीवी चैनलों और अखबारों तक पहुँच चुकी थीं। लोग कहते थे कि वहाँ भूत है, कोई अदृश्य शक्ति लोगों को सताती है।
इसी दौरान, शहर की एक कॉलोनी में 22 साल की अनन्या अपनी माँ संध्या के साथ रहती थी। अनन्या हंसमुख स्वभाव की, सपनों में खोई रहने वाली लड़की थी, लेकिन पिछले कुछ दिनों से उसके चेहरे पर अजीब-सा डर दिखने लगा था। उस रात भी वह नींद से अचानक चीखते हुए उठी। उसने देखा कि वह हवेली उसके सपने में आई थी और कोई औरत उसे बार-बार बुला रही थी।
संध्या उसके कमरे में भागती हुई आई। उसने घबराकर पूछा, “क्या हुआ बेटा? फिर वही सपना देखा?”
अनन्या की आँखों में आँसू थे। उसने धीमे स्वर में कहा, “माँ… कोई मुझे उस हवेली की तरफ बुला रहा है। वहाँ कोई है… जो मुझे पुकार रहा है।”
संध्या का चेहरा डर से पीला पड़ गया। उसने अनन्या को गले लगा लिया और बोली, “वो हवेली… उस जगह का नाम मत लो। वहाँ सिर्फ अंधेरा है, मौत है। मैं तुझे वहाँ कभी नहीं जाने दूँगी।”
लेकिन अनन्या के दिल में अब सवालों का तूफ़ान उठ चुका था। उसकी माँ आखिर किस चीज़ से इतना डरती थी?
अगले दिन कॉलेज में अनन्या अपने दोस्त आरव से मिली। आरव उसे लंबे समय से पसंद करता था लेकिन कभी इज़हार नहीं कर पाया था। उसने महसूस किया कि अनन्या आज बहुत परेशान है।
“तुम ठीक तो हो?” आरव ने उसकी आँखों में झाँकते हुए पूछा।
अनन्या ने हिचकिचाते हुए जवाब दिया, “बस… अजीब सपने आते हैं। लगता है जैसे कोई मुझे कहीं खींच रहा हो।”
आरव ने उसका हाथ पकड़ लिया। “अगर कभी डर लगे, तो मुझे बताना। मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ।”
आरव की बातें अनन्या को थोड़ी राहत देतीं, मगर उस रात फिर से वही सपना आया। इस बार उसने खुद को हवेली के अंदर देखा। धूल से ढकी दीवारें, टूटे झूमर और अजीब-सी आवाज़ें। अचानक शीशे में उसे अपनी जैसी दिखने वाली एक और लड़की नज़र आई। वही चेहरा, वही आँखें, पर होठों पर उदासी।
वो लड़की बोली, “मैं अंजलि हूँ… तुम्हारी जुड़वां बहन। मैं इस हवेली में क़ैद हूँ। मुझे बचाओ… वरना बहुत देर हो जाएगी।”
अनन्या चीख पड़ी और नींद से जाग गई। उसका पूरा शरीर पसीने से तर था।
संध्या फिर कमरे में दौड़ी आई। अनन्या ने काँपते हुए कहा, “माँ… मैंने अपनी बहन को देखा। मेरी जुड़वां बहन?”
संध्या की आँखें नम हो गईं। उसने दरवाज़ा बंद किया और बुदबुदाई, “सच से दूर रह अनन्या… सच बहुत खतरनाक है।”
इधर हवेली से जुड़ी खबरें तेज़ हो रही थीं। अनन्या का मामा, राजवीर, जो सालों से विदेश में था, अचानक वापस लौटा और बोला कि वह हवेली में ही रहेगा। गाँव वाले दहशत में आ गए।
“वो जगह मौत का घर है, कोई वहाँ नहीं टिक सकता,” लोग आपस में कहते।
पर राजवीर ने सबको अनसुना कर दिया।
उधर अनन्या का चचेरा भाई राघव, जो अंदर से लालची और चालाक था, हवेली को अपने कब्ज़े में लेने की साजिश रचने लगा। उसके मन में ख्याल आया—
“अगर हवेली हाथ लग जाए तो करोड़ों की जमीन बिक सकती है। लेकिन इसके लिए अनन्या और उसकी माँ को रास्ते से हटाना होगा।”
धीरे-धीरे हवेली की परछाई सिर्फ सपनों तक नहीं रही, बल्कि असल ज़िंदगी में भी घुसने लगी। एक रात संध्या के कमरे की खिड़की अपने आप खुल गई। परछाईं दीवार पर पड़ी और एक डरावनी आवाज़ गूँजी—
“अनन्या को हवेली लाओ… वरना सब खत्म हो जाएगा।”
संध्या ने काँपते हुए हाथ जोड़ दिए, “नहीं… मेरी बेटी को मत छुओ।”
पर हवेली का साया अब अनन्या की किस्मत से बँध चुका था।
अगले दिन अनन्या ने माँ से जिद की, “माँ, अब मुझे सच जानना है। आप मुझसे कुछ छुपा रही हो। हवेली का हमसे क्या रिश्ता है?”
संध्या ने रोते हुए कहा, “वो हवेली तेरे नाना की थी। वहाँ तेरी मौसी और… तेरी जुड़वां बहन का जन्म हुआ था। लेकिन…”
अनन्या ने हैरानी से कहा, “लेकिन क्या माँ? आप ने मुझसे क्यों छुपाया?”
संध्या चुप हो गई। उसकी आँखों में डर और दर्द दोनों थे।
उस रात अनन्या खिड़की के पास खड़ी थी। ठंडी हवा चल रही थी। अचानक उसे वही आवाज़ सुनाई दी—
“अनन्या… आओ… तुम्हारा इंतज़ार है…”
उसकी आँखें झपकीं और उसे लगा जैसे हवेली की परछाईं उसके सामने खड़ी हो।
अब अनन्या समझ चुकी थी कि यह सिर्फ सपनों का खेल नहीं, बल्कि उसकी असली ज़िंदगी से जुड़ा कोई गहरा राज़ है।
उसने मन ही मन ठान लिया—
“सच जानना ही होगा, चाहे इसकी कीमत जो भी हो।”
~~~अगला भाग जल्द ही ~~~