सफाई
वो दोस्ती ही क्या जिसमें सफाई देनी पड़ेगी l
सच साबित करने के लिए सौगंध लेनी पड़ेगी ll
वादा देकर मुकर जाने की कोशिश ना करना l
नहि तो मोहब्बत की अदालत में पेशी पड़ेगी ll
महफिल में भीड़भाड़ में कमी महसूस न होगी l
अक्कल ठिकाने आएंगी हुस्न अकेली पड़ेगी ll
जाना चाहो तो शोख़ से चलें जाओ न रोकेंगे l
समझ में आएगा जब तन्हाइयाँ घेरी पड़ेगी ll
नई दुनिया बसाने जा रहे हो ख़ुदा हाफ़िज़ l
अकेलेपन में चाँदनी रातों को झेली पड़ेगी ll
१-१०-२०२५
सैयारा
ईश की दरियादिली से सैयारा गोद में आ गिरा l
बहुत शुक्रिया बेनमून ओ अनमोल तोहफ़ा है मिला ll
अब ज़िंदगी खुशी खुशी बीत जाएंगीं जब के l
सुने सुमसाम गुलशन में खूबसूरत गुल है खिला ll
जिस अलौकिक प्यार की तमन्ना ताउम्र रही थी l
देर से बेहतरीन दिया, अजीब है कुदरत की लिला ll
बिना शिकायत ओ बैचेन हुए वक़्त की राह देखो l
आज यकी हो गया मिलता है इंतजार का सिला ll
तन्हाईयाँ और सूनेपन को कोई न रहा अब गिला l
सैयारा की चमक ओ धमाका सुन रोम रोम हिला ll
२-९-२०२५
राज-ए-दिल
राज-ए-दिल को ज़माने से छुपाए जाते हैं l
हाले दिल हर किसीको नहीं बताए जाते हैं ll
गैरो को तो मजा आ जायेगा सुनकर दास्ताँ l
अपनों के दिये ज़ख्म नहीं सुनाए जाते हैं ll
दर्दों ग़म के कारवाँ के साथ चलते चलते l
सालों से दिल में जुदाई बोझ उठाए जाते हैं ll
ख़ुद ही लेखक बनकर खुद की कविता को l
अपनी मस्ती में मस्त गुनगुनाए जाते हैं ll
सुख का सूरज एक दिन जरूर उगेगा ओ l
उजाला होगा वो दिलासा दिलाए जाते हैं ll
नई मंज़िल नए हमसफ़र की तलाश में l
आगे ही आगे क़दमों को बढाए जाते हैं ll
यार दोस्तों की महफिल में सूर ताल को l
दिल से दिल को छू लेने मिलाए जाते हैं ll
जिंदगी में चैन और सुकून के वास्ते ही l
नशीले प्यार का दरिया बहाए जाते हैं ll
जीवन के गुलज़ार को हरा भरा करने l
मोजिले ओ रंगीन दोस्त बनाए जाते हैं ll
संबंध की फूल वाडी को महकाने को l
खुद हारकर अपनों को जिताए जाते हैं ll
३-१०-२०२५
मिजाज
मिजाज मौसम का बेईमान हो गया हैं l
अपनी ही मस्ती में सुधबुध खो गया हैं ll
बेलगाम रफ़्तार में आकर चौतरफ़ा से l
सन्नाटा फैलाके क़ायनात धो गया हैं ll
कई बार उफान का रूप ले लेता है कि l
उसके झपट में जो आया वो गया हैं ll
इंसान को पाठ पढ़ाने रुद्र रूप धरकर l
डर और दहशत का माहौल बो गया हैं ll
हस्ती जो यूरी तरह से हचमचा गई तो l
छोटा और बड़ा हर आदमी रो गया हैं ll
४-९-२०२५
छुपा
पर्दा ना करो दुनिया से छुपा ही नहीं कुछ भी l
दोनों की मोहोब्बत में जुदा ही नहीं कुछ भी ll
न जाने कौन सी धुन सवार थी दिमाग़ में l
यार ने दूर जाते वक्त कहा ही नहीं कुछ भी ll
आज समय ने उस मोड़ पर खड़ा किया कि l
बातचीत करने जैसा बचा ही नहीं कुछ भी ll
राब्ता करते रहे रिश्ता बनाये रखने के लिए l
कोशिशों के बाद आगे बढ़ा ही नहीं कुछ भी ll
फ़िर दिल की दुनिया नहीं बसाना चाहते कि l
आशिकी में पहेले जैसे मजा ही नहीं कुछ भी ll
५-९-२०२५
जिंदगी के सफ़र
जिंदगी के सफ़र का लुफ़्त उठा लेना चाहिए l
प्यार को दोनों हाथों से लुटा देना चाहिए ll
चार दिन की जिंदगी में जी भरके जी लो ओ l
जो भी गिला शिकवा हो मिटा देना चाहिए ll
एक एक मुकाम हौसलों के साथ बिताकर l
बिना शिकायत जीकर दिखा देना चाहिए ll
हसते गाते बसर करने का नुस्खा देकर l
ममता का नशीला जाम पिला देना चाहिए ll
सफ़र जारी रख मंज़िल मिलेगी जरूर तो l
ईश साथ है ये भरोसा दिला देना चाहिए ll
जब हिम्मत टूटने लगे तब खामोशी से l
सर को ईश के सामने झुका देना चाहिए ll
हादसा था कि मैं उम्र भर सफ़र में रहा l
बिछड़े हुए दिलों को मिला देना चाहिए ll
प्यारा सा रसीला मीठा नगमा गुनगुनाते l
जिंदगी के सफ़र को बिता देना चाहिए ll
एक स्थान से दूसरे स्थान पर भटकते हुए l
कारवाँ को मंज़िल से मिला देना चाहिए ll
६-९-२०२५
आदत हो गई हैं
बिना बात के मुस्कराने की आदत हो गई हैं l
कौअे के का का से घर में दावत हो गई हैं ll
बातचीत की जगह सोसियल मीडिया ने ली l
खामोशी और सन्नाटे से चाहत हो गई हैं ll
संगदिल, बेदिल औ बेदर्द क़ायनात में जब l
थोड़ी सा प्यार दिया तो सआदत हो गई हैं ll
जुदाई के अकेलेपन का एक आखरी सहारा l
इंतिहा देखो तसवीरों से बगावत हो गई हैं ll
जुदा होते वक्त सच कहा था संभालकर रखना l
भीगी शाम में यादों से सजावट हो गई हैं ll
७-१०-२०२५
उम्र बढ़ रही हैं
उम्र बढ़ रही है चलो गिले शिकवे दिल से छोड़ देते हैं l
भाईचारा के साथ सुकून की ओर रास्ते मोड़ देते हैं ll
मन के हारे हार और मन के जीते जीत यहीं सत्य l
अब हो ना पाएगा कुछ भी ख्यालों को झँझोड़ देते हैं ll
शरीर के अंगोमें सारे बदलाव को स्वीकार कर l
सभी नकारात्मक विचारों की बेड़ियों को तोड़ देते हैं ll
पुरानी ग़लतियों से सिख लेकर आगे बढ़के और l
सभी छोटे बड़ों को एक साथ मिलाकर जोड़ देते हैं ll
नए जीवन की शुरुआत करने के दिन आ गये है ओ l
पुराने रीति रिवाजों की मानसिकता को फोड़ देते हैं ll
८-१०-२०२५
अंधेरा हो रहा हैं
अंधेरा हो रहा हैं l
चमक खो रहा हैं ll
नई शुरुआत होगी l
उजाला बो रहा हैं ll
सुबह की आश में l
जहां सो रहा हैं ll
रोशनी खो जाने से l
अगिया रो रहा हैं ll
दिन भरके काम की l
थकान धों रहा हैं ll
९-१०-२०२५
अहबाब
छुपाकर रखना अहबाब अनमोल हैं l
हमसफ़र के साथ जीवन समतोल हैं ll
चेहरे पर मुस्कान देकर खुश रखता l
वो जिंदगी में सब से बड़ा तोल हैं ll
चैन और सुकून में इजाफ़ा कर के l
सुबह शाम सुमधुर बजाता ढ़ोल हैं ll
ईश ने बख्शा हुआ नायाब रत्न है l
उस के माशवरे का बहुत मोल हैं ll
सदा पूरी तरह से भरोसा करना l
अहबाब जो कहें सच्चा बोल हैं ll
१०-९-२०२५
बाढ़ के प्रकोप
यादों की बाढ़ के प्रकोप से आँखों में सुनामी आई है l
साथ अपने आंसुओं की तेज बारिश को भी लाई हैं ll
अब तो आदत सी हो गयी है दर्द सहने की क्योंकि l
कोई नई बात नहीं है कि दर्द से सालों पुरानी शनाशाई हैं ll
सुनो एक हम ही नहीं शिकार इस लाइलाज मर्ज के l
आज तक प्यार करने वाले मोहब्बत में ठोकर पाई हैं ll
रफ़्तार बाढ़ की इतनी तेज और असर कर्ता थी के l
दिल पर न मिटने वाली बहुत बड़ी चोट गहरी लगाई हैं ll
हालात ही ऐसे पैदा कर दिए है कि तहस नहस हो l
बूरी तरह से ज़ख्मी करने की ये अदा खुब भाई हैं ll
१२-१०-२०२५
मंज़िल
गम न कर मंज़िल का रास्ता मिल जाएगा l
चाहत से भरपूर साथी नया मिल जाएगा ll
यू इधर उधर घूमने की जरूरत क्या है कि l
दिलबर के घर का जल्द पता मिल जाएगा ll
फ़िक्र ना कर दुनिया गोल है इतना जान ले l
एक बंध हो तो दरवजा दूसरा मिल जाएगा ll
खुल्ले आम मुलाकात की बातें न किया करो l
लोगों को बात करने का मुद्दआ मिल जाएगा ll
गर हुस्न की परियाँ बेपरदा निकलेगी तो l
हर कोई खिड़की से झाँकता मिल जाएगा ll
ईश्वर के यहाँ देर है पर अंधेर बिल्कुल नहीं l
अच्छे सच्चे कर्मो का सिला मिल जाएगा ll
सुबह सुबह की पहली किरण निकलते ही l
पनघट पर मुखड़ा चाँद सा मिल जाएगा ll
१२ -१०-२०२५
सखी
डॉ. दर्शिता बाबूभाई शाह
हर ग़ज़ल में ढूँढता हूँ
हर महफ़िल में हर ग़ज़ल में ढूँढता हूँ तूझे l
ये खुलखकर कहने की कोशिश नहीं की ll
न जा छोड़कर य़ह कहने गुज़ारिश नहीं की l
फिर से मुलाकात की भी ख़्वाहिश नहीं की ll
जिसने जाने का मन बना लिया हो उस को l
दिल की बात बताने की जुम्बिश नहीं की ll
जिस तरफ़ महक थी वहां जाने निकल पडी l
आज बयारों ने भी कम साज़िश नहीं की ll
क्या जाने कौन सी धुन और अल्लडपन में l
बादलों ने कई दिन हो गये बारिश नहीं की ll
बिना मन के रुकने का कोई भी फायदा नहीं l
उसे जाते हुए रोक ने के लिए गर्दिश नहीं की ll
१३ -१०-२०२५
नूर-ए-ख़ुदा
आगे बढ़ता जा मंज़िल को नूर-ए-ख़ुदा मिल जायेगा l
कड़ी लगन औ मेहनत से एक दिन आशनाना पायेगा ll
ग़र खुद पे भरोसा होगा तो सारी कायनात साथ होगी l
आत्मविश्वास के दम से शख्सियत में खुमारी लायेगा ll
अच्छे कर्मों का सिलसिला तों मिलकर रहता है कि l
सच्चाई की राह पर चलने तो वाईज भी साथ आयेगा ll
सैयारा होके आसमाँ में सदा के लिए चमकता रहेगा l
युगों तक ज़माना याद करेगा जब जहाँ से जायेगा ll
हुस्न की परियों को बे पर्दा करने के वास्ते आज l
जलवों के सदके में महफिल में राग रागिनी गायेगा ll
१४-१०-२०२५
ज़िंदगी है तो इम्तिहाँ जैसा
ज़िंदगी है तो इम्तिहाँ जैसा सदा ही रहेगा l
हर लम्हा हर पल जीवन इस तरह बहेगा ll
सुबह शाम दिन रात मुस्कराते रहते है पर l
एक मकाम पर आकर थकान सा लगेगा ll
एक बात मन में ठान ली है जीत जाएंगे l
क़दम तो मंज़िल की और आगे ही बढ़ेगा ll
हाथ पे हाथ रख बैठे रहने से क्या होगा l
मेहनत करने वाला ऊँचाइयों पर चढ़ेगा ll
मुकम्मल कोशिश ही कामयाबी देती है तो l
जीतेगा वहीं जो इम्तिहाँ का हौसला करेगा ll
१५-१०-२०२५
सखी
डॉ. दर्शिता बाबूभाई शाह