रात का अंधेरा धीरे-धीरे अपने पंख फैलाए हुए था। हवा में ठंडक थी और जंगल के बीच से आती झींगुरों की आवाज़ उस सन्नाटे को और गहरा बना रही थी। दूर पहाड़ की तलहटी में एक छोटा-सा गाँव बसा था — “भानपुर।” वहाँ लोग जल्दी सो जाते थे, क्योंकि गाँव के पास वाले पुराने महल के बारे में कहा जाता था कि वहाँ एक “पिशाच” रहता है। कोई नहीं जानता था उसका नाम, पर हर कोई उससे डरता था।
गाँव के बीचोंबीच एक लड़की रहती थी — अनाया। वो अपने पिता के साथ अकेली रहती थी। उसकी माँ की मौत तब हो गई थी जब वो बस पाँच साल की थी। अनाया अब अठारह की हो चुकी थी। उसकी आँखों में कुछ ऐसा था जो किसी को भी रोक दे — गहराई, मासूमियत और थोड़ी सी उदासी।
एक रात जब गाँव में बिजली चली गई और आसमान में बादल गरज रहे थे, अनाया अपने आँगन में दीपक जलाने गई। तभी तेज़ हवा चली और दीपक बुझ गया। उसने जैसे ही दोबारा उसे जलाने की कोशिश की, उसकी निगाह उस पहाड़ी की तरफ गई जहाँ पुराना महल खड़ा था। एक पल के लिए उसे ऐसा लगा जैसे कोई वहाँ खड़ा उसे देख रहा हो। उसकी रगों में ठंडा डर दौड़ गया, लेकिन फिर उसने खुद को समझाया — "ये मेरा वहम है।"
अगले दिन, वो अपने पिता के लिए जंगल में जड़ी-बूटियाँ लेने गई। वहाँ उसने देखा कि एक घायल कौआ ज़मीन पर पड़ा था। जब वो उसे उठाने झुकी, तभी पीछे से किसी की आवाज़ आई — “उसे मत छुओ।”
वो चौंक कर पीछे मुड़ी। वहाँ एक लंबा, गोरा, बेहद सुंदर आदमी खड़ा था। उसकी आँखें गहरे लाल रंग की थीं, जैसे उनमें कोई आग जल रही हो। उसकी आवाज़ धीमी लेकिन आदेश जैसी थी।
“तुम कौन हो?” अनाया ने पूछा।
वो मुस्कराया, “नाम जानना ज़रूरी नहीं… मैं तुम्हें नुकसान नहीं पहुँचाऊँगा।”
“तो फिर मुझे डर क्यों लग रहा है?”
“क्योंकि तुम इंसान हो… और मैं वो नहीं हूँ।”
उसके कहने का तरीका अजीब था। वो पलटने लगी, लेकिन तभी कौआ हवा में गायब हो गया। वो देखती रह गई। उस आदमी ने कहा, “यह जंगल जीवित है, यहाँ जो दिखता है, वो हमेशा सच नहीं होता।”
उस रात अनाया के सपनों में वही आदमी आया। उसने उसे महल में देखा, अकेला बैठा, किसी पुरानी पेंटिंग को देखता हुआ। पेंटिंग में एक लड़की थी जो हूबहू अनाया जैसी दिखती थी। अगले दिन अनाया की बेचैनी बढ़ गई। वो दोपहर होते ही उस महल की ओर निकल पड़ी।
महल में चारों ओर धूल और मकड़ी के जाले थे, लेकिन वहाँ की हवा में एक अनोखी ठंडक थी। जैसे ही उसने अंदर कदम रखा, मोमबत्ती अपने आप जल उठी। और सीढ़ियों के ऊपर वही आदमी खड़ा था।
“तुम आ ही गईं…” उसने कहा।
“तुम कौन हो?” अनाया ने फिर पूछा।
“मैं आरव हूँ।”
“और तुम इंसान नहीं हो…?”
“मैं कभी था।” उसकी आँखों में गहराई थी, “तीन सौ साल पहले, मैं इस गाँव का राजा था। मेरी रूह को धोखा मिला, और मैं शापित हो गया। मेरी आत्मा इस महल में कैद हो गई — एक पिशाच के रूप में।”
अनाया को जैसे सब कुछ समझ नहीं आया। “तो मैं यहाँ क्यों?”
“क्योंकि तुम वही हो… वही आत्मा जो मुझे छोड़कर चली गई थी। तुम्हारा चेहरा, तुम्हारी आँखें… सब वैसा ही है।”
अनाया पीछे हटने लगी, पर कुछ उसे रोक रहा था। आरव उसके पास आया और बोला, “मैं तुम्हें नुकसान नहीं पहुँचाऊँगा। मैं बस एक बार तुम्हें छूना चाहता हूँ… यह यकीन करने के लिए कि तुम सच में लौट आई हो।”
उसने उसका हाथ थामा, और अचानक जैसे उसकी आँखों के सामने बीते जन्म की यादें चमक उठीं। उसने खुद को एक राजकुमारी के रूप में देखा, जो आरव से प्रेम करती थी, लेकिन लोगों ने उनके प्रेम को पाप कहकर उन्हें अलग कर दिया था। और उस रात आरव को मार दिया गया था। तब उसकी आत्मा ने प्रतिज्ञा ली थी — “जब तक वो लौटकर नहीं आएगी, मैं नहीं मरूँगा।”
अनाया की आँखों से आँसू गिर पड़े। “तो ये सच है…”
आरव ने हल्के से मुस्कराया, “मेरा श्राप तब खत्म होगा जब तुम मुझे क्षमा करोगी, और मैं फिर से महसूस कर पाऊँगा कि प्रेम क्या होता है।”
दिन बीतते गए। अनाया अब अक्सर उस महल में जाने लगी। वो आरव से बातें करती, उसके अकेलेपन को सुनती। धीरे-धीरे उसके डर की जगह दया ने ले ली, फिर दया ने अपनापन, और अपनापन ने प्रेम।
लेकिन गाँव वालों को उसकी ये आदत खटकने लगी। एक रात उन्होंने देखा कि वो महल में जाती है और किसी से बात करती है। अगले दिन पंचायत ने फैसला लिया कि उस महल को आग लगा दी जाएगी।
रात को जब अनाया आरव से मिलने पहुँची, आरव ने कहा, “आज आख़िरी रात है… तुम्हारे गाँव वाले आने वाले हैं। वो मुझे नहीं छोड़ेंगे।”
“तो चलो यहाँ से!”
“मैं नहीं जा सकता। मेरी आत्मा इस महल से बंधी है।”
बाहर से मशालों की रौशनी दिख रही थी। लोग चिल्ला रहे थे, “पिशाच को जला दो!”
आरव ने कहा, “मैं नहीं चाहता कि तुम भी मेरे साथ जलो।”
अनाया ने उसकी आँखों में देखा और कहा, “तीन सौ साल का इंतज़ार अब खत्म होना चाहिए, चाहे जीवन में या मृत्यु में।”
उसने आरव का हाथ पकड़ा, और दोनों आग की लपटों में घिर गए।
जब सुबह हुई, तो महल राख में बदल चुका था। लेकिन गाँव वालों ने देखा — राख के बीच दो पथरीले दिल रखे थे, जो एक-दूसरे से जुड़े हुए थे।
कहते हैं, आज भी जब भानपुर की रातों में चाँद पूरा होता है, तो महल की जगह पर दो परछाइयाँ दिखाई देती हैं — एक इंसान की और एक पिशाच की — जो चुपचाप एक-दूसरे का हाथ थामे हुए खड़े रहते हैं।
वो प्रेम जो मृत्यु से भी परे था, आज भी हवा में ज़िंदा है।