कभी-कभी सोचती हूँ, तुम्हारे जाने के बाद ज़िंदगी इतनी खामोश क्यों हो गई है?
लोग तो अब भी वैसे ही हैं, दिन वैसे ही निकलता है,
सूरज अब भी उगता है, पर रोशनी नहीं लगती।
शायद इसलिए क्योंकि मेरी दुनिया अब अधूरी है — तुम्हारे बिना।
तुम गए... बिना कुछ कहे,
बिना ये बताए कि क्या मेरी मौजूदगी तुम्हारे लिए बोझ बन गई थी।
एक पल में सब ख़त्म कर दिया तुमने,
वो बातें, वो हँसी, वो पल — जो मेरे लिए ज़िंदगी थे।
अब मेरे कमरे की हर चीज़ तुम्हारी याद दिलाती है।
वो यादें जो तुमने मुझे दिया था, अब भी वहीं रखा है,
हर सुबह उसे देखकर सोचती हूँ 
क्या तुम भी मुझे कभी याद करते हो?
या फिर मेरी यादें भी तुमने किसी पुराने फ़ोन की मैसेज की  तरह डिलीट कर दीं?
मुझे देना था तुम्हारे पसंद की ब्रेसलेट, अपनी हाथों से बांधना था तुम्हारे हाथ की कलाई पर.... पर देखो मैं कितनी बदनसीब हूं यार , तुम्हारे साथ एक भी ख्वाहिश पूरी नहीं हुई मेरी । 
पता है, मिलने की खुशी कितनी थी मुझे ... 
अब शायद खुद को दर्द में धकेल दी हूं , सिसक कर रोने के लिए। गए भी तो बड़ी खामोशी से गए , लेकिन मेरे दिल में बहुत शोर कर दिया ।
सोचती हूं क्या मिला ??
मुझे नहीं पता तुम्हें क्या मिला मुझे ऐसे तोड़कर,
पर मुझे इतना पता है कि मैंने सब खो दिया 
अपना सुकून, अपनी नींद,
और सबसे ज़्यादा, खुद पर भरोसा। और शायद तुम पर भी जो मैने किया था। पहली बार किसी पर ....
अब जब कोई पूछता है, “क्या हुआ?”
तो मैं बस मुस्कुरा देती हूँ , क्योंकि कैसे बताऊँ,
कि मैं अब ठीक होने का नाटक कर रही हूँ।
भीतर से सब बिखर चुका है।
हर रात आँखें नम रहती हैं,
दिल कहता है, “वो लौट आएगा…”
पर दिमाग फुसफुसाता है, “नहीं, वो अब कभी नहीं आएगा।” क्या मेरा दिल हार गया??😔
तुम्हारे जाने के बाद मैं और भी चुप हो गई हूँ।
कभी-कभी लगता है कि इस चुप्पी में ही शायद मैं तुम्हें सुन पाऊँ।
पर नहीं… वहाँ भी अब सन्नाटा है।
मेरे मन में एक अजीब सी खाली जगह बन गई है,
जिसे कोई भर नहीं सकता।
मैं खुद को समझाने की कोशिश करती हूँ 
“सब ठीक हो जाएगा…”
पर हर बार ये झूठ पहले से ज़्यादा भारी लगता है।
अब मैं भीड़ से डरने लगी हूँ,
क्योंकि वहाँ कोई नहीं जो मुझे समझे।
सब कहते हैं 
“भूल जाओ उसे, आगे बढ़ो।”
काश इतना आसान होता ना…
किसी को भूल जाना,
जिससे जुड़ा हर एहसास तुम्हारी रूह में बस गया हो।
मैं थक चुकी हूँ अब…
रोते-रोते, समझाते-समझाते,
ज़िंदगी से बहस करते-करते।
तुम चले गए, पर मेरे अंदर का सुकून,
वो भी तुम्हारे साथ चला गया।
और अब… मैं बस जी रही हूँ,
क्योंकि मरने का हक़ तो तुम भी नहीं लेकर गए।
बस यही सोचकर साँसें चलती हैं,
शायद किसी दिन मैं फिर से मुस्कुराना सीख जाऊँ,
पर अब वो मुस्कान तुम्हारे लिए नहीं होगी। या तुमसे मिले बगैर ही दुनियां से चली जाऊं , तुम्हे पता है न मैं बीमार रहती हूं...
तुम्हारे लिए अब कुछ नहीं बचा,
सिवाय इन शब्दों के
जो हर रात तुम्हें याद करके लिखे गए,
आँसुओं से भीगे हुए, टूटे हुए दिल से।
Thanks for reading....
जब रिश्ता खत्म हो जाए , तो शायद ऐसा ही दर्द होता है।
बस छोटी सी कोशिश लिखने की .... I hope आपको अच्छा लगे ।