candling cafe in Hindi Short Stories by Deepak Bundela Arymoulik books and stories PDF | कडलिंग कैफ़े

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कडलिंग कैफ़े

“कडलिंग कैफ़े”

लेखक: db Bundela
श्रेणी: समाज / व्यंग्य / आधुनिकता
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भारत के बड़े शहरों में “कडलिंग कैफ़े” और “किराये के प्रेमी” जैसी आधुनिक प्रवृत्तियाँ तेजी से बढ़ रही हैं।
यह ब्लॉग व्यंग्यात्मक शैली में बताता है कि कैसे प्यार अब भावनाओं का नहीं, सुविधा का व्यापार बनता जा रहा है —
मजनू की नज़र से देखिए आज का नकली इश्क़।
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#किराये की मोहब्बत

सुबह का वक्त था। मैं रोज़ की तरह पार्क पहुँचा था।
फव्वारे की बूँदें हवा में तैर रही थीं, पर लोगों की निगाहें ज़मीन पर नहीं — मोबाइल स्क्रीन पर थीं।
तभी देखा, एक जाना-पहचाना चेहरा — घुटनों तक का कुर्ता, माथे पर तिलक, और आँखों में पुराने इश्क़ का धुआँ — मजनू!
“अरे मजनू भाई, यहाँ कैसे?” मैंने पूछा।
वो मुस्कराया, “क्या बताऊँ दोस्त, आजकल की मोहब्बत की हालत देखने आया हूँ।”
उसने मोबाइल आगे किया —
“देखो ये नया जमाना — ‘Cuddle Cafe’, ‘Rent a Boyfriend’, ‘Emotional Partner – ₹999/hour!’
अब इश्क़ भी टाइम स्लॉट में बुक होता है।”

“हमारे जमाने में,” मजनू बोला,
“मोहब्बत जुनून थी। अब तो Bronze Plan से शुरू होकर Gold Plan तक पहुँच गई है —

> Bronze – Hand Holding ₹499
Silver – Shoulder Hug ₹799
Gold – Deep Cuddle ₹999
Premium – Listening to Your Sad Story ₹1499

अब कोई दीवार नहीं लांघता, बस 'लॉग-इन’ करता है।”
मैंने मज़ाक में कहा, “वाह, अब तो इश्क़ भी EMI में मिलेगा।”
वो बोला, “हाँ, लेकिन दिल अब भी फुल पेमेंट मांगता है।”
मजनू आगे बोला, “अब लोगों के पास गले लगाने का वक्त नहीं, इसलिए उन्होंने इसके लिए कैफ़े बना लिए हैं।
वहाँ मेन्यू कार्ड होता है —
 Warm Hug ₹299
Friendly Shoulder Rest ₹399
Deep Comfort Cuddle ₹599
और अगर ज़्यादा दुखी हो तो Tissue Free!”
हम दोनों हँस पड़े।
मैंने कहा, “वाह, आँसू भी अब कॉम्प्लिमेंट्री मिलते हैं!”
मजनू गंभीर हुआ —
“दोस्त, पहले प्यार दिल से होता था, अब डेटा पैक से।
अब कोई दिल नहीं देता, सब ‘इमोशनल सर्विस’ बेचते हैं।
रिश्ता नहीं निभाया जाता, ‘रिन्यू’ किया जाता है।”
वो बोला,
“अब गले लगाने से पहले रेट पूछा जाता है 
‘Express Hug या Normal?’
‘Emotional touch चाहिए या सिर्फ presence?’
और क्लोजिंग स्माइल ₹50 extra।”
मैं बोला, “तो अब इश्क़ का भी GST स्लैब बनेगा?”
हम दोनों ठहाके लगाने लगे।
“अब इश्क़ भी हैशटैग है,” मजनू बोला।
“#CuddleTherapy #ModernLove #NoStringsAttached
पहले इज़हार होता था, अब Content Creation होता है।
लोग अपने दर्द की सेल्फी डालते हैं और कैप्शन लिखते हैं —
‘Healing with Cuddles ❤️’
और नीचे कमेंट आते हैं —
‘Stay strong bro, rent another one!’”

“लोग अब असली नहीं, अस्थायी सुकून चाहते हैं,”
मजनू ने कहा।
“पहले गले लगना अपनापन था, अब थेरेपी है।
पहले प्यार दवा था, अब ‘सेशन’।
हर चीज़ का ‘रेट कार्ड’ है —
पर दिल का कोई ‘वारंटी कार्ड’ नहीं।”

“हम भावनाओं को सुविधा में बदल चुके हैं,” उसने कहा।
“अब किसी के साथ रहना मतलब कम्फर्ट जोन शेयर करना है,
दिल साझा करना नहीं।
रिश्ते अब यूज़र एग्रीमेंट हैं —
क्लिक करो, शर्तें मानो, और जब बोर हो जाओ, अनइंस्टॉल कर दो।”

“कडलिंग शरीर को गर्मी देती है, आत्मा को नहीं,”
मजनू बोला।
“प्यार संवेदना है, सिर्फ छुअन नहीं।
पर आज लोग कनेक्शन चाहते हैं बिना कमिटमेंट के,
इमोशन चाहते हैं बिना डेडिकेशन के।”

उसने मोबाइल पर रिव्यू दिखाया 

“ये प्यार है या ग्राहक संतोष रिपोर्ट?”
मैं बोला, “अब दिल नहीं, कस्टमर फीडबैक धड़कता है।”

वो बोला,
“सोचो, जब यह पीढ़ी बूढ़ी होगी,
तो कहेगी — ‘हम एक कडलिंग ऐप पर मिले थे।’
इतिहास हँस पड़ेगा।”
मजनू उठा, बोला —
“अब मैं चलता हूँ,
खुदा से शिकायत करनी है कि धरती पर प्यार अब किराये का हो गया है।
लोग इमोशन नहीं, इमोजी भेजते हैं।
दिल अब डाउनलोडेबल कंटेंट बन गया है।

मैंने घर लौटते हुए सोचा —
भारत जहाँ कभी मीरा, राधा, ताजमहल जैसी भावनाएँ थीं,
वहीं अब “कडलिंग पैकेज” बिक रहे हैं।
हमारे पास वक्त है नेटफ्लिक्स देखने का,
पर अपने बुज़ुर्गों से गले मिलने का नहीं।

हम तकनीकी रूप से आगे बढ़े हैं,
पर मानवीय रूप से पीछे चले गए हैं।
अब लोग साथ रहते हुए भी अकेले हैं।
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अंत में

> अब प्यार का भी यूज़र आईडी है,
और रिश्ता पासवर्ड प्रोटेक्टेड।

गले लगाने से पहले रेट पूछे जाते हैं,
और छोड़ने के बाद फीडबैक।

मोहब्बत अब जुर्म नहीं,
बस ‘सर्विस’ बन गई है।

और मजनू?
वो अब इतिहास नहीं, एरर मैसेज है —
“Love Not Found.”
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कडलिंग कैफ़े और किराये के प्रेमी जैसी प्रवृत्तियाँ अस्थायी सुकून का भ्रम देती हैं,
पर वे भावनाओं को व्यापार में बदल रही हैं।
यह आधुनिकता का नहीं, मानवीयता के पतन का संकेत है।

प्यार को किराये पर नहीं, रिश्तों में जिएं —
क्योंकि सच्ची गर्माहट वही है, जो दिल से मिले, न कि मेन्यू कार्ड से।

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@आर्यमौलिक