कुछ यूं हुआ in Hindi Horror Stories by Anup Gajare books and stories PDF | कुछ यूं हुआ

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कुछ यूं हुआ

मुझे सूर्यास्त के बाद कभी भी नींद नहीं आती। रात की चादर ओढ़कर बैठ जाना मेरे लिए आसान है। कभी पुराना अखबार लेकर घंटों पढ़ता हु।

मेरे मकान की दीवारों पर एक भी तस्वीर नहीं लगी हुई। यानी मेरा कोई भी नहीं है।

हो सकता है की मेरा कोई रिश्तेदार कही अस्तित्व में हो, जिसे मैं आजतक कभी मिला नहीं हु। मिलना आसान होता है क्या? किसी ऐसे इंसान को जिसे आप जानते तक नहीं हो।

अब मुझे ही देख लीजिए, कहां जानते है आप मुझे। क्या पता है मेरे बारे में; यही न की मैं सूर्यास्त के बाद कभी नहीं सोता या मेरे मकान में एक भी तस्वीर नहीं लगी हुई है।

तो आप कहेंगे की हमें और एक बात पता है तुम्हारे बारे में कि, तुम्हारा कोई नहीं है और हैं भी तो तुम उसे कभी मिलना नहीं चाहते हो। क्यों सही कहा ना? 

ऐसा आप सब मुझे कहेंगे 

लेकिन ये सारी जानकारी आपके पास कहां से आई। मैने ही बताया न आपको की, ऐसा–ऐसा है। 

लेकिन क्या हो जब मैं आप सबसे कहूं कि, जो भी मैने अभी कहा वह सब झूठ हैं।

आप मेरे बारे में अब कुछ भी नहीं जानते हैं। किसी कागज की तरह आप कोरे है। उस पन्ने की तरह जिसपर मैं स्याह बनकर कुछ भी लिख सकता हु। चाहे जैसा हो सकता हु; चाहे जो बन सकता हु। 

अंततः आपको पता चल ही जाएगा कि, मेरा पता लगाना मतलब अनंत ब्रह्मांडो में घूमते हुए छोटीसी नीली पृथ्वी का पता लगाना।

अब मैं कहता हु कि, ये नीला ग्रह सांस लेता है तो?

आप मेरी तरफ कुछ ऐसे देखेंगे: जैसे किसीने उस दीवार पर थूंक दिया जिसपर लाल अक्षरों में लिखा था "यहाँ थूकना मना है"

चलिए आप जो चाहे मानिए मेरा क्या। मैं तो हमेशा से मानता आया हु के ये धरा सांस लेती है। और हम मनुष्यों ने उसके फेफड़े खराब कर दिये है।

मनुष्य?

एक मिनट... "क्या मैं मनुष्य हु?" पता नहीं, लेकिन अगर यहां इस नीले गोले पर रहता हु तो ये शायद सच हो सकता है कि, मैं मनुष्य हु। कुछ संभावना तो है ऐसी।

छोड़िए जाने दीजिए 

अब इंर्पोटेंट बात करते है। अबतक मैने जितनी बाते की उससे आप अंदाजा लगा रहे हैं कि, मै कौन हु, क्या हु... वगैरा वगैरा।

पर मेन बात ये है कि, मेरे हाथ में अभी कुछ वजनदार सामान है। पीठ पर एक बोरी लदी है। जिसे मुझे इस शहर के बाहर किसी सुनसान इलाके में फेकना है।

वक्त रात का है, ठंड भी बहुत है। इसलिए आपसे कुछ यूं ही बाते कर रहा हु। मेरे दांत भी किटकिटा रहे है। ऊपर से रास्ते के दुर्तफ़ा विशालकाय वृक्ष है जो इस घने अँधेरे में दैत्य जैसे महसूस हो रहे हैं।

अब तो आप को मालूम पड़ा होगा कि, मै किस तरह का क्या हु।

क्या हु इसलिए कहां, क्योंकि मैं खुद को इंसान नहीं समझता।

तो क्या हु मैं 

जो आपसे इतनी देर से बाते कर रहा हु। आप सुन रहे हैं और मैं बोल रहा हु, बोल रहा हु। बोलते ही जा रहा हु, यह सबकुछ जो मैं बोल रहा हु किसीने पढ़ लिया तो...

आप नहीं जानते 

जो मुझे सुन लेता है उसपर मेरी नजर पड़ जाती है।

और फिर कुछ यूं होता है!

मैं चल रहा हूँ — या चलाया जा रहा हूँ, पता नहीं।

रात मेरे कंधों पर बोझ की तरह लटक रही है।

हवा ठंडी है, लेकिन मेरे अंदर जो कुछ जल रहा है, वह बुझता नहीं।

आप अब भी साथ हैं न?

मुझे अच्छा लगता है जब कोई साथ चलता है, भले ही अदृश्य ही क्यों न हो।

आपके कदमों की आवाज़ नहीं आती, फिर भी मैं महसूस करता हूँ — कोई मेरे पीछे है।

शायद आप ही हैं, या वो जो अक्सर मेरे सपनों में खड़ा रहता है — बिना चेहरों वाला कोई आदमी।

कभी-कभी मुझे लगता है कि मैं एक दार्शनिक हूँ —

जो सदी के किसी कोने में खो गया,

और अब खुद से ही तर्क कर रहा है कि नींद क्यों ज़रूरी है।

लेकिन अगले ही पल,

मुझे लगता है मैं बस एक पागल हूँ —

जिसे किसी ने घर से निकाल दिया और अब वो अपने ही साये से बहस कर रहा है।

कभी मैं अपने कदम गिनता हूँ,

कभी पेड़ों के बीच से गुजरती हवा को सुनता हूँ।

हर आवाज़ में कोई अर्थ छिपा है — जैसे ये पेड़ भी मुझसे कुछ कह रहे हों।

शायद ये भी सांस लेते हैं।

शायद यही वो सांस है जिसे हम धीरे-धीरे चुरा रहे हैं।

आप सोच रहे होंगे, मैं कौन-सा आदमी हूँ —

जो अंधेरे में अकेला चलता है, और बोरी में कुछ छिपा रहा है।

कभी मैं खुद सोचता हूँ कि अगर मैं हत्यारा हूँ,

तो किसका खून मेरे हाथों पर है?

और अगर मैं निर्दोष हूँ,

तो यह बोरी इतनी भारी क्यों लगती है?

कभी-कभी मैं रुक जाता हूँ।

पीछे मुड़कर देखता हूँ — कुछ नहीं होता।

सिर्फ अंधकार, जिसमें कोई चेहरा उभरता है और गायब हो जाता है।

मुझे लगता है वो मैं ही हूँ —

जो कुछ साल पहले मर गया था, और अब खुद को समझाने की कोशिश कर रहा है कि अभी भी ज़िंदा हूँ।

आप सुन रहे हैं न?

क्योंकि जब कोई मुझे सुनता है,

तो मैं थोड़ी देर के लिए वजूद महसूस करता हूँ।

मेरी साँसें अर्थ पाती हैं,

मेरे शब्दों को दिशा मिलती है।

लेकिन हर बार जब आप मेरी बात पूरी सुन लेते हैं —

कुछ होता है।

कोई दरवाज़ा खुलता है।

और कोई बंद हो जाता है।

अब आप सोचिए — क्या ये रास्ता सच में कहीं जाता है?

या मैं बस किसी सदी पुरानी स्मृति के भीतर घूम रहा हूँ,

जहाँ रात का कोई अंत नहीं और सुबह का कोई नाम नहीं।

काफी देर हो गई है न? 

कदमों की गिनती अब छूट चुकी है,

साँसें भी अपने लय में नहीं हैं।

सड़क धीरे-धीरे मिट्टी में बदल गई है,

और मिट्टी अब कीचड़ बन रही है।

हर कदम पर जूते धँसते हैं,

जैसे ज़मीन मुझे नीचे खींचना चाहती हो।

यह जगह अब शहर से बहुत दूर है।

कोई घर नहीं, कोई रोशनी नहीं।

सिर्फ पेड़ हैं — इतने ऊँचे कि आसमान का चेहरा उनसे कट गया है।

उनके बीच हवा नहीं चलती,

सिर्फ एक गंध है — पुरानी, सड़ी हुई, जैसे किसी ने यहाँ बहुत पहले कुछ गाड़ दिया हो।

आप अब भी हैं न?

मत जाइए।

यहाँ बात करने के लिए और कोई नहीं।

मैं नहीं चाहता कि आपकी चुप्पी भी इस अंधेरे में गुम हो जाए।

मैं अभी रुक गया हु, थकान नाम की भी कोई चीज होती है न तो मैने बोरी नीचे रख दी है।

यह बोरी...

इसे देखते हुए हमेशा लगता है, जैसे ये मुझसे ज़्यादा ज़िंदा है।

कभी-कभी यह हिलती है।

बहुत हल्का-सा।

जैसे कोई साँस रोककर इंतज़ार कर रहा हो कि मैं इसका मुँह खोल दूँ।

आपको शायद अब लग रहा होगा कि मैं झूठ बोल रहा हूँ।

पर याद है न — मैंने कहा था,

जो मुझे सुनता है, उसपर मेरी नज़र पड़ जाती है।

यह नज़र मैं नहीं देता,

यह खुद ही चली जाती है।

आपसे।

आपके कमरे तक।

आपके सपनों में।

बहोत गहरा सन्नाटा है यहां। जानते हैं ज़्यादा सन्नाटे में भी कोई इंसान ज्यादा देर तक जिंदा नहीं रह सकता। जैसे कोई ज्यादा पानी नहीं पी सकता, अपनी हद से ज्यादा खा नहीं सकता उस तरह ये गहरी शांति भी इंसान बरसो तक झेल नहीं सकता।

अब सोचिए —

अगर इस बोरी में कोई है,

तो मैं कौन हूँ?

कातिल?

या सिर्फ वह डाकिया, जो किसी का संदेश छोड़ने आया है?

कभी-कभी मुझे लगता है कि मैं कई जन्मों से यही कर रहा हूँ।

हर बार एक बोरी लेकर आता हूँ,

हर बार किसी जंगल में छोड़ देता हूँ,

और हर बार कोई मुझे सुन लेता है।

आप भी सुन रहे हैं न?

तो शायद अब बारी आपकी है।

अब जब मैं यह बोरी यहाँ छोड़ दूँगा,

तो यह जगह मेरी नहीं रहेगी...

यह आपकी हो जाएगी।

और अगर आप थोड़ी देर बाद अपने कमरे में कोई धीमी आवाज़ सुनें —

तो डरिए मत।

वह मैं नहीं हूँ।

वह बस वही साँस होगी

जो इस नीली पृथ्वी ने छोड़ी थी...

और जो अब

आपके फेफड़ों में बसने आई है।

यहां अंधेरा अब कुछ ज्यादा ही गहरा रहा है। मच्छरों की गुन गुन है, वह अपनी नुकीली सोंड से काट तो नहीं रहे हैं। पर ये मामूली आवाजें मुझे परेशान कर रही हैं।

यहाँ अंधेरा वाकई अब कुछ ज़्यादा ही गहरा रहा है।

इतना कि मेरा सियाह साया भी कहीं पीछे छूट गया है —

शायद थककर किसी पेड़ के नीचे बैठ गया होगा।

मच्छरों की गुनगुन मुझे रास्ता दिखा रही है।

वे अपनी नुकीली सोंड से मुझे बता रहे हैं कि, ताजा गर्म खून कहां मिल सकता है।

पर ये मामूली आवाज़ें...

हां, दुनिया के लिए ये सब मामूली सहमीसी आवाजें हैं न, जिन आवाजों को आप किसी जहरीली कॉइन या बस एक हल्की चपाट से ही मार सकते हो। पर मेरे लिए ये आवाजें बिल्कुल भी मामूली नहीं है। ये मेरे लिए ऐसा है मानो 

जैसे कोई अनदेखा दस्तावेज़ हो जिसमें मेरा नाम लिखा हो,

मुझे परेशान नहीं करती।

हर भिनभिनाहट एक स्मृति जैसी लगती है,

कभी किसी चेहरे की,

कभी किसी आवाज़ की,

कभी उस रात की जब किसी ने कहा था — “अब सो जाओ।”

और मैं तब से नहीं सोया।

मैं हाथ झटकता हूँ, हवा हिलती है,

पर गुनगुन बंद नहीं होती।

लगता है जैसे यह आवाज़ बाहर से नहीं,

मेरे कान के भीतर से आ रही हो।

शायद मेरे खून में ही अब इनका गीत बस गया है।

धीरे-धीरे सब कुछ एक ही स्वर में मिल गया है —

हवा, कीड़े, पत्तों का हिलना,

और मेरा भीतर का डर।

वह ताजी गुन गुन छोड़कर मुझे सारी आवाजें परेशान कर रही हैं 

आप सोच रहे होंगे,

मैं इतना परेशान इन आवाज़ों से क्यों हूँ?

आख़िर इंसान तो शोर में ही जीता है।

पर क्या मैं इंसान हूँ?

कौन जानता है।

कभी लगता है कि ये मच्छर नहीं,

किसी और युग की आत्माएँ हैं

जो मेरे इर्द-गिर्द घूम रही हैं,

और मेरे कान में फुसफुसा रही हैं —

"बोरी मत खोलो..."

अरे वा सन्नाटा फिर आ गया।

अब हवा का ताप थोड़ा बदल गया है।

दूर कहीं कुछ हिला —

शायद पत्ते,

या फिर कोई जो अब तक छिपा हुआ था।

आपको अजीब लग रहा है न?

लगना चाहिए।

क्योंकि यह जगह जितनी बाहर अंधेरी है,

उतनी ही भीतर भी।

और मैं नहीं

जानता

कौन पहले निगलेगा —

यह अंधेरा, या मैं।

बोरी अब मेरे पैरों के पास पड़ी है।

थोड़ी देर पहले तक यह स्थिर थी,

पर अब —

जैसे इसके भीतर कोई करवट ले रहा हो।

बहुत धीमी, बहुत महीन-सी हरकत।

अगर ध्यान से न देखो तो शायद लगे, हवा का असर है।

पर हवा यहाँ कब से चल रही है?

मैं झुककर उसे देखता हूँ।

उसका कपड़ा नमी से भारी हो चुका है।

मिट्टी चिपकी है किनारों पर,

और बीच में एक हल्की-सी धड़कन जैसी कंपन —

नहीं, धड़कन नहीं...

कुछ और है, जो धड़कन जैसा लगता है।

कभी-कभी मैं सोचता हूँ,

क्या ये वही चीज़ है जो हर बार मैं छोड़ता हूँ?

हर बार किसी और रात, किसी और जगह?

कभी-कभी लगता है बोरी नहीं,

मैं खुद बंधा हुआ हूँ इसके भीतर,

और कोई दूसरा मुझे उठा कर ला रहा है।

आपको लगता होगा मैं डर रहा हूँ।

हाँ, शायद हूँ भी।

पर डर किससे है —

इस बोरी से या उस बात से जो इसके खुलते ही सामने आ जाएगी,

ये मैं नहीं जानता।

कपड़े पर कुछ निशान हैं।

नीले और भूरे,

जैसे किसी पुराने नक्शे के टुकड़े हों।

मैंने उंगलियों से छुआ —

वो ठंडा था, लेकिन भीतर से गरम।

कितना अजीब है —

कुछ चीज़ें ऐसी होती हैं जो मरने के बाद भी गरम रहती हैं।

या शायद...

वो कभी मरी ही नहीं।

आप भी सुन पा रहे हैं न?

यह जो हल्की सी सरसराहट है,

यह अब मेरे कानों में नहीं — ज़मीन के नीचे से आ रही है।

ऐसा लगता है जैसे पूरी धरती धीरे-धीरे सांस ले रही है,

और इस बोरी में वही सांस कैद है।

मुझे अब एहसास हो रहा है —

मैं यहाँ कुछ फेंकने नहीं आया था,

कुछ लौटाने आया हूँ।

वो जो मेरा नहीं था,

पर किसी वक़्त मेरा हिस्सा बन गया था।

मैं रुकते हुए उसे देख रहा हु,

बहुत देर तक मैं उसे घुरकर देखता ही रहा। आप सब ने मेरा इंतजार किया, शुक्रिया! 

आजकल किसी का कोई इतना इंतजार कहां करता है। वह समय तो कबका लद गया जब राह देखते हुए ही कली फूल हुआ करती थी। मैं बहुत देर तक बोरी को यूं घूरता रहा आपने कुछ ज्यादा ही इंतजार किया, फिर एक बार धन्यवाद!

लेकिन आप डरिए मत,

मैं अभी इसे नहीं खोलूँगा।

मैं वादा करता हूँ।

पर अगर कभी ये खुद-ब-खुद खुल गई,

तो

समझिए —

कहानी वहीं से शुरू होगी जहाँ मैं खत्म हो जाऊँगा।

आप सोच रहे होंगे,

ये सब किसका बोझ है जो मैं उठा रहा हूँ। मैं भी यही सोचता हूँ, हर रात, हर कदम पर।

पर जवाब हमेशा एक ही मिलता है —

यह सब मेरा नहीं है,

पर फिर भी मुझे ही ढोना पड़ता है।

मेरा अपना कोई अतीत नहीं है।

न बचपन, न घर, न किसी तस्वीर की याद।

कभी-कभी लगता है जैसे मैं किसी और के सपनों का बचा हुआ हिस्सा हूँ,

किसी भूली हुई कहानी का अधूरा पात्र।

लोग अपने बीते हुए कल को मुझमें डालकर चले जाते हैं,

और मैं उसे अपना मान लेता हूँ।

शायद इसलिए यह बोरी इतनी भारी लगती है —

क्योंकि इसमें सबका अतीत है,

सिर्फ मेरा नहीं।

मुझे यह बात पता है,

और यही मेरी सबसे बड़ी सज़ा है।

जानते हुए भी कुछ नहीं कर सकता।

क्योंकि जो चीज़ तुम्हारी नहीं,

वह कभी पूरी तरह छोड़ी भी नहीं जा सकती।

कभी कोई बूढ़ी औरत मेरे पास आई थी —

कहती थी, "बेटा, मेरा पति मर गया है, पर उसकी परछाई अब भी मेरे कमरे में है।

ले जा इसे, अगर ले जा सकता है तो।"

मैंने लिया।

शायद वही इस बोरी में है।

या शायद कोई और —

किसी बच्चे की अधूरी हँसी,

किसी आदमी की शर्म,

किसी औरत की वह चीख जो कभी बाहर नहीं आई।

मुझे सब याद रहता है।

जो मेरा नहीं है, वही याद रहता है।

और जो मेरा होना चाहिए था —

वह कभी बना ही नहीं।

अब सोचिए,

अगर किसी का अतीत ही उसका नहीं,

तो वह किसका वर्तमान जी रहा है?

किसकी नींद नहीं सो रहा,

किसका बोझ उठा रहा है?

शायद यही वजह है कि मुझे नींद नहीं आती।

क्योंकि जो सपने मैं देखता हूँ,

वो किसी और के होते हैं।

आप समझ रहे हैं न,

ये कोई दुख भरी बात नहीं है —

बस एक सच्चाई है,

जिसे स्वीकार करने में अब थकान नहीं होती।

क्योंकि अब मुझे भी

लगता है —

इस बात को लेकर कोई अब कर भी क्या सकता है।

कल रात, या किसी ऐसी ही रात। अब याद नहीं आ रहा है, याद नहीं आ रहा हैं; क्योंकि ये बात मेरे बारे में है।

अरे हां याद आया!

किसी ऐसी ही रात एक युवा रिपोर्टर अपने अखबार के लिए खबर लिख रही थी।

उसे कुछ कुछ मेरे बारे में मालूम हो गया था, इसलिए मुझे ही थोड़ी मात्रा में वह कागज पर उतार रही थी।

उसी युवा रिपोर्टर ने लिखा कि,


उसका अपना कोई अतीत नहीं है।

(यहां ‘उसका‘ मतलब मेरा, मैं जो आपसे बाते कर रहा हु। आप कृपया बने रहे)

कम से कम ऐसा कोई जिसे वह नाम दे सके।

वह दूसरों की यादों से बना है —

जैसे किसी ने पुराने अख़बारों को फाड़कर उनसे एक चेहरा बना दिया हो।

लोग उसे देखते हैं, बात करते हैं,

कभी दया से, कभी डर से।

उन्हें लगता है, वे उसे जानते हैं —

कहीं से, कभी से।

पर वह जानता है — वे सब झूठ है।

वह जिनकी कहानियाँ सुनता है,

वही उसका अतीत बन जाती हैं।

किसी बूढ़े मज़दूर की टूटी कमर,

किसी औरत की बुझी आँखें,

किसी बच्चे का ग़ायब हो जाना —

वह सब उसके भीतर दर्ज है,

जैसे किसी ने उसमें ये सब जबरन लिख दिया हो।

कभी-कभी वह सोचता है —

शायद वो बोरी जो उसके साथ है,

उसका असली अतीत है।

पर वह बोरी खुलनी नहीं चाहिए।

क्योंकि जो भीतर है,

वो शायद सिर्फ़ चीज़ें नहीं,

यादें भी हैं — जिनकी गंध अब भी सड़ी हुई है।

और वह मान चुका है,

कि अब इस बात पर रोने से कुछ नहीं होगा।

क्योंकि जो “था” —

वो शायद कभी “था” ही नहीं।

कभी-कभी वह उस बोरी को घूरता रहता है —

लंबे समय तक, बिना पलक झपकाए।

जैसे कोई आदमी आईने में अपने चेहरे को नहीं,

बल्कि अपनी गलती को देख रहा हो।


बोरी शांत रहती है,

पर उसका वजन रोज़ थोड़ा बढ़ता जाता है।

वह जानता है — उसमें कुछ सड़ रहा है।

पर यह भी जानता है —

वह सड़न उसकी अपनी नहीं,

किसी और की भी नहीं...

वह समय की सड़न है।


कभी जब हवा चलती है,

तो बोरी से एक हल्की गंध आती है —

न मिट्टी की, न मांस की।

कुछ बीच का — जैसे किसी पुरानी याद की दुर्गंध।

वह गंध उसे परेशान नहीं करती,

बल्कि सुकून देती है।

क्योंकि वह वही है जो अब तक उसके पास बचा है।


लोग पूछते हैं —

"बोरी में क्या है?"

वह मुस्कुराता है, कहता है,

“अतीत।”


पर भीतर से वह जानता है —

अगर उसने ये बोरी कहीं छोड़ दी,

तो वह भी गुम हो जाएगा।

क्योंकि जो उसमें है,

वही उसका नाम है, उसका चेहरा है,

और शायद, वही उसका अपराध भी।


बस मेरे बारे में इतना ही तो लिखा था, उस नौजवान युवा रिपोर्टर ने। उसकी कोई भी गलती नहीं थी, दो दिन बाद उस युवा रिपोर्टर को जॉब से निकाला गया।

फिर वह युवा जो अब रिपोर्टर नहीं थी। पता नहीं कहां गायब हो गई।

छोड़ दीजिए

पुरानी बात है मै भी भूल गया हूं। हां, कभी कभी याद आती हैं पर भूलना अच्छा होता है।


आप को पता होना चाहिए कि, मेरे पास एक कार थी। अब नहीं है। बहुत उपयोग में आती है कार उनकी डिक्कीया। बोरी लादने में आसान होता है।

चलना ज्यादा नहीं पड़ता।

मुझे बेचनी पड़ी वह गाड़ी। गरीबी अच्छी लगती हैं।

छोड़ो मैं कुछ भी बडबडा रहा हु, क्योंकि ये रास्ता बहुत उबासी भरा होता जा रहा है।

आजकल पीठ भी दर्द करती है। डॉक्टर को दिखा नहीं सकता। फिर से गरीबी जो मुझे अच्छी लगती है।

अब यहां बहोत सारे पत्थर दिख रहे हैं।

आप को बता दूं कि किसीने मुझे कहां था।

इस जगह पर बहुत लंबी खदान है। पत्थरों की खदान। जिसमें बरसो से काम बंद पड़ा है। कोई भी मजदूर या ठेकेदार यहां नही भटकता।

कहनेवाला तो यह भी कह रहा था कि, कोई पशु पक्षी भी इस आवार में नही आता है।

वातावरण होना नहीं चाहिए इतना निर्माणुष्य हैं। बोरी फेंकने के लिए ये खाई जैसी खदान सही जगह है। कोई अगर आप से पूछे तो कहना, मैं यहां कभी नहीं आया था। या आपने कभी भी मेरे बारे में कुछ सुना नहीं है।

बोरी मिलने पर कभी किसी रोज पूछताछ तो होगी ना? तब आप मुकर जाना।

कितने झुरमुट हैं इस जगह। कांटेदार झुरमुट उन्होंने रास्ते में बहोत बड़ा अवरोध बना रखा है।

ये तो मैं हु, जो बिना झिझके आगे बढ़ रहा हैं। कोई और होता तो इसके बारे में कभी सोचता तक नहीं।

कितनी ढलान है 

ओह!

पैर फिसल गया मेरा। वाकई बहुत गहरा अंधकार है नीचे। शायद किसीको पता भी न चले कि, मैने यहां बोरी फेंकी थी। मेरा बोझ हलका हो गया था। मैं वापस चला गया था।


ये पत्थर?

ये यहां किसने रखा। आपको बता दूं ये खड़ा पत्थर काफी ओबड़ खाबड़ है। लेकिन इसपर हाथ रखकर मैं अपना बोझ हलका कर सकता हु।

तो ये सही वक्त है।

तीन की गिनती और ये बोरी मेरे पीठ से नीचे जा गिरेगी। उसके बाद आज रात के लिए सही, मैं बोझहीन हो जाऊंगा।

तो शुरू करते हैं।


एक…

दो…

तीन…


और... ये क्या?

आ... हां…ओ… हो…

न…नो…

अहिष्य!

मैं लटक गया 

गिर गया था। वाकई बहोत फिसलन है, मैं अभी किसी पेड़ की शाखा पकड़े जमीन और आसमान के बिच झूल रहा हु।

इसके गर्म काटे में हाथ में धसे हुए है। बहुत ही लाचारसा महसूस कर रहा हु।

मुझे हाथ दीजिए!

सुन रहे हैं आप, अरे यहां नीचे। प्लीज मुझे हाथ दीजिए…

शिवाय मेरे इस जगह के वातावरण में कोई नहीं है।

आप मुझे बस सुनते मत रहिए 

कुछ करिये ना। निवेदन करता हु आपसे… प्लीज हाथ दीजिए।

अब बर्दाश्त नहीं होता।

पता नहीं अब मेरा क्या होगा? मैने आपकी तरफ हाथ बढ़ा दिया है।

पकड़…पकड़िए!!!

भलेही… आप मेरे बारे में कुछ नहीं जानते 

लेकिन अब मैं झूठ नहीं बोल रहा हु 

आप मुझे अगर सुन… सकते हैं, तो ऊपर भी खींच सकते हैं।

****************


                               क्रमशः