अजीब दास्तान है, मेरी,
चाहता था, क्या बनना
और
किस्मत
किस मोड़ पर ले आयी,
उन दिनों, मै जोधपुर विश्व विद्यालय में बी एस सी में पढ़ रहा था।
यह बात है, वर्ष 1969 की
पिताजी रेल सेवा में थे,वह आर पी एफ में  इंस्पेक्टर थे,उनकी पोस्टिंग आबूरोड में थी।सब कुछ हंसी खुशी चल रहा था
दीवाली का त्यौहार चल रहा है, और मै इस श्रंखला को इसी त्यौहार से शुरू कर रहा हूँ,
वर्ष1969 में भी दीवाली थी, जो औरों के जीवन मे उजाला और खुशियां लायी थी लेकिन मेरे जीवन मे दुख और अंधकार लेकर आयी।
10 नवम्बर का दिन,
9 नवम्बर की दीवाली थी और पिताजी को हार्ट अटक पड़ा।
10 नवम्बर को सुबह रेलवे डॉक्टर ने घर से अस्पताल में भर्ती करवा दिया
और
उसी दिन उनका अस्पताल में निधन हो गया।
उनका अंतिम संस्कार 11 नवम्बर यानी दौज के दिन हुआ था क्योंकि रिश्तेदार दूसरे दिन ही आ पाए।अंतिम संस्कार में शामिल होने सिन्हा साहब भी आये थे।उन दिनों अजमेर में आर पी एफ के सिक्योरिटी अफसर  गणपति और सहायक सिन्हा साहब थे।
वे दोनों चाहते थे कि मैं अपनी बी एस सी पूरी करू और ये बात उन्होंने मेरे ताऊजी से कही थी।मेरे बड़े ताऊजी  बांदीकुई से मेल से रिटायर हुए थे।
लेकिन मै जानता था,कहना और करना दोनों बातो में अंतर है।पिताजी के देहांत के साथ ही आय का श्रोत्र बन्द हो गया।मेरी पढ़ाई के साथ परिवार का खर्च कोई नही उठायेग ।ईईइसलिए मैंने सिन्हा साहब से कहा था--
मै आगे पढ़ाई नहीं करूंगा, नौकरी करूंगा।
हमारे साथ दो चचेरे भाई
बड़े ताऊजी का बेटा इंद्र और छोटे ताऊजी का बेटा रमेश रह रहे थे।
इंद्र को पिताजी ने लोको में और रमेश को डीज़ल शेड में नौकरी पर लगवा दिया था।और पिता की तेरहवीं के बाद ताऊजी उन्हें अपने साथ ले गए।हम लोग अकेले रह गए।
स्टाफ सहयोग करता है और अधिकारी अधीनस्थ का ख्याल रखते हैं।पिता के देहांत के बाद क्वाटर खाली करना पड़ता और भाई बहन पढ़ रहे थे,उन्हें लेकर गांव भी नही जा सकता था क्योंकि अभी सेशन खत्म होने में छ महीने थे।
इसलिए पिताजी की जगह आर इन शर्मा की पोस्टिंग की गई जो परिवार साथ नही रखते थे।वह ऑफिस में ही रहते, उन्होंने पितृवत स्नेह दिया।
रेलवे कॉलोनी में ही हमारे से कुछ आगे पी डब्लू आई अग्रवाल जी रहते थे।जब उन्हें पता चला मै नौकरी करूंगा तो उन्होंने मुझे ऑफिस बुला लिया।मेरा नाम subsitute में लिख लिया और मुझे टाइम कीपरके साथ अटैच कर दिया।शायद कुछ दिन ही काम किया था कि आबूरोड डीजल शेड में sr DME श्री यू वी एस पंवार थे, उनकी पत्नी रेल अस्पताल में डॉक्टर थी।उनके पिताजी से अच्छे सम्बन्ध थे।जब उन्हें मेरे बारे में पता चला तो उन्होंने आर पी एफ ऑफिस में फोन किया और एक सिपाही मुझे उनके पास ले गया।और एक अर्जी टाइप हुई और उन्होंने as a special case मुझे subsitute में नौकरी दे दी और मुझे जोशी बाबू के साथ attach कर दिया।
और मेरा काम था सुबह आठ बजे से पहले पहुंचकर डीजल शेड में हाजरी लेना।और यह करीब छ महीने काम किया।और मुझे अनुकम्पा पर आर पी एफ में नौकरी के लिए प्रयास हुए
लेकिन मुझे कोचिंग क्लर्क के रूप में नियुक्ति मिली।