कुछ साल बीत चुके थे। राहुल अब अपने ऑफिस के काम में व्यस्त था, लेकिन अचानक कुछ पुरानी यादों ने उसे खींच लिया। शहर के वही पुराने रास्ते, वही स्कूल की इमारत — जैसे समय ने उसे वहीं रोक रखा हो। उसने अपने कदमों को धीरे-धीरे स्कूल की तरफ मोड़ा। सामने वही मैदान था, जहाँ कभी दोस्तों के साथ हँसी और शरारतें होती थीं।
क्लासरूम के बाहर पहुँचकर राहुल की आँखें वही पुरानी खिड़कियों और दरवाजों पर टिक गईं। उसने खुद को रोकते हुए कहा, “शायद ये जगह अब भी वैसी ही है, जैसे हमने छोड़ दी थी।” उसका दिल अचानक तेजी से धड़कने लगा। वह अंदर गया। धूल भरी हवा में भी कोई खुशबू थी — पुराने दिनों की, दोस्तों की, हँसी की।
वह सीधे उसी आखिरी बेंच की ओर गया, जहाँ आयुष ने कभी लिखा था:
> “हर ग्रुप में एक ऐसा होता है, जो हमेशा मुस्कुराता है ताकि बाकी कभी टूटे नहीं।
अगर वो कभी खामोश हो जाए… तो समझना कि उसे भी किसी की ज़रूरत है।”
लेकिन इस बार, कुछ और भी रखा था। एक छोटी नोटबुक, पन्ने मोड़े हुए। राहुल ने उसे खोला और पढ़ा:
> “अगर तुम फिर से लौटे, तो समझ जाना… कि दोस्ती का मतलब सिर्फ पास बैठना नहीं, साथ महसूस करना भी होता है।”
राहुल के दिल में अजीब सा सुकून आया। उसे लगा जैसे आयुष अभी भी वहीं है, और वही बातें फिर से जी उठीं।
तभी दरवाज़े पर एक आवाज़ गूँजी — “राहुल?” वह पलटा और देखा आयुष खड़ा था। मुस्कुराता हुआ, पर वही शांत।
“तुम… यहाँ?” राहुल हक्का-बक्का रह गया।
आयुष ने हल्के से सिर हिलाया, “कभी-कभी लोग अपनी लाइफ़ में बहुत आगे बढ़ जाते हैं, लेकिन यादें हमेशा पीछे रहती हैं। और मैं… बस देखना चाहता था कि तुम वापस आए।”
कुछ ही मिनटों में सौरभ भी वहाँ पहुँचा। तीनों फिर से एक साथ खड़े हुए — वही पुराने दोस्त, वही मुस्कान, वही शरारत। लेकिन इस बार उनके बीच खामोशी भी थी, जिसमें समझदारी और भरोसा छुपा था।
राहुल ने धीरे से कहा, “शायद यही लास्ट बेंचर्स का सिलसिला है — हर पीढ़ी में कोई न कोई मुस्कुराता रहेगा।”
आयुष ने मुस्कुरा कर कहा, “और हम… जो पीछे रह गए, बस याद बनकर रह गए।”
सौरभ ने हँसते हुए कहा, “तो फिर अगली पीढ़ी भी हमारी कहानी सुनाएगी।”
तीनों दोस्त क्लासरूम से बाहर निकले। मैदान में नए बच्चे खेल रहे थे, हँस रहे थे, शरारत कर रहे थे। राहुल ने उनकी तरफ देखा और सोचा — हर बेंच में कोई न कोई मुस्कुराता है, और हर मुस्कान के पीछे कोई कहानी छुपी होती है।
राहुल ने देखा कि अपने पुराने दोस्तों के साथ बिताए पल सिर्फ यादें नहीं, बल्कि एहसास भी बन गए थे। आयुष ने जो खत छोड़ा था, वो सिर्फ शब्द नहीं थे — वो दोस्ती, खामोशी, और समझदारी का प्रतीक थे।
तिनों ने मैदान के बीच में खड़े होकर पुरानी बातें याद की — वो हँसी, वो झगड़े, वो खामोश पल। कुछ पलों में ही उन्हें एहसास हुआ कि लाइफ़ कितनी भी बदल जाए, यादें हमेशा साथ रहती हैं।
राहुल ने देखा कि ये लास्ट बेंचर्स कभी सच में पीछे नहीं रह जाते। वे बस अलग तरह से आगे बढ़ते हैं — यादों में, एहसासों में, और कभी-कभी दूसरों की मुस्कान में।
आयुष ने अपने पुराने तरीके से कहा, “कभी-कभी खामोशी बोलती है, और मुस्कान समझा देती है।”
सौरभ ने सिर हिलाया, “तो फिर हम भी कभी भूलेंगे नहीं… कि लास्ट बेंच पर बैठने वाले ही जिंदगी की सबसे बड़ी बातें सिखाते हैं — दोस्ती, समझदारी और एहसास।”
तीनों दोस्त आखिरी बार मैदान में खड़े रहे। हवा में वही पुरानी खुशबू थी, धूल में भी वही यादें। और जैसे ही सूर्य डूबने लगा, राहुल ने महसूस किया — कुछ चीजें लाइफ़ में कभी नहीं बदलती। मुस्कान, दोस्ती और यादें हमेशा वही रहती हैं।
और इस बार, तीनों ने ठाना कि चाहे कहीं भी जाएँ, ये लास्ट बेंचर्स की दोस्ती हमेशा उनके साथ रहेगी।
शायद यही वो असली मार्क्स नहीं, जो स्कूल में मिलते हैं। ये वो एहसास हैं, जो लाइफ़ में हमेशा याद रहते हैं।
और उस शाम, स्कूल की दीवार पर, पुराने बच्चों की तरह, एक नया ग्रैफिटी उभरा — तीन दोस्त हँसते हुए बैठे थे और लिखा था:
> “Last Benchers – कभी पीछे नहीं रहते, बस याद बनकर रह जाते हैं।”
तीनों मुस्कुराए और नए सफ़र की ओर बढ़ गए।