सुबह की धूप कपूर हवेली की दीवारों तक नहीं पहुँच पाई थी। आसमान अब भी बादलों से ढका था, मानो कोई अदृश्य साया पूरे घर को ढक कर बैठा हो।
हवेली के बाहर पुलिस की गाड़ियाँ, अन्दर फुसफुसाहटों का माहौल।
दीवारों पर पुराने चित्र, जिनकी आँखें मानो सब कुछ देख रही थीं।
राजेश का शव अब जा चुका था, लेकिन उसकी मौजूदगी हवा में तैर रही थी।
हर कोना उसके गुस्से और डर की कहानी कह रहा था।
सविता धीरे-धीरे कमरे में आईं, उनके हाथ काँप रहे थे। उन्होंने राजेश की कुर्सी पर हाथ रखा —
“तू भी चला गया, बेटा… और अब ये घर सच में वीरान हो गया।”
उनकी आवाज़ में टूटन थी, पर कुछ और भी था — जैसे वो कुछ जानती हों, जो बाकी किसी को नहीं पता।
इसी बीच, इंस्पेक्टर अर्जुन मेहरा ने कमरे का मुआयना शुरू किया।
उनके हर कदम की आवाज़ फर्श पर गूँजती थी।
उन्होंने खिड़की की ओर देखा — ताला जंग खाया हुआ, बरसों से बंद।
उन्होंने धीरे से कहा —
“अगर दरवाज़ा अंदर से बंद था, तो हत्यारा अंदर ही छिपा था… या फिर उसने अंदर से बाहर निकलने का कोई दूसरा रास्ता चुना।”
उनके सहायक सावंत ने ध्यान से दीवारें ठोकीं।
एक जगह से खोखली आवाज़ आई।
“सर, यहाँ कुछ है…”
अर्जुन मेहरा ने दीवार की दरार में चाकू डाला, और थोड़ी ईंट हटाई — अंदर से एक पुरानी चिट्ठी मिली, पीली पड़ चुकी थी।
उन्होंने दस्ताने पहने और चिट्ठी खोली।
उसमें लिखा था —
> “मैं जानती हूँ, ये सब गलत है… पर अगर मैं मुँह खोलूँगी, तो ये हवेली मुझे ज़िंदा नहीं छोड़ेगी।
— देवयानी”
अर्जुन मेहरा ने सबकी ओर देखा —
“देवयानी? ये कौन थी?”
सविता के चेहरे का रंग उड़ गया।
उन्होंने धीमी आवाज़ में कहा —
“रघुनाथ की पुरानी जान-पहचान… बहुत साल पहले की बात है। कोई नहीं जानता था कि उनके बीच क्या रिश्ता था।”
किरण बीच में बोला —
“माँ, आप तो कहती थीं कि वो मर चुकी है?”
सविता ने आँखें बंद कर लीं —
“शायद मैंने झूठ बोला था…”
कमरे में सन्नाटा छा गया।
अर्जुन मेहरा ने पास पड़ी फटी तस्वीर उठाई — वही तस्वीर जिसमें रघुनाथ देशमुख के साथ वो अजनबी था, जिसकी गर्दन पर तीन निशान थे।
उन्होंने लेंस से देखा —
“ये फोटो सिंधिया हवेली की है… वही जगह जहाँ देवयानी रहती थी।”
सावंत ने चौंकते हुए कहा — “मतलब… यह कहानी तीस साल पुरानी है?”
अर्जुन मेहरा बोले — “हाँ। और अब किसी ने उन अधूरे किस्सों को पूरा करने की क़सम खाई है।”
अचानक हवा का झोंका आया।
राजेश की टेबल पर रखी फाइलें अपने आप उड़ने लगीं, और एक कागज़ सीढ़ियों की ओर चला गया।
सावंत उसे उठाने गया —
वो पुराना मानचित्र था।
उसमें हवेली की संरचना बनी थी — और पीछे के हिस्से में एक छोटा, लाल घेरे में चिह्नित भाग —
“गुप्त कोठरी (तहख़ाना)”
अर्जुन मेहरा ने धीरे से मुस्कराया —
“यानी राजेश कुछ ढूँढ रहा था। और शायद, वही चीज़ उसकी मौत का कारण बनी।”
सभी सीढ़ियों की ओर बढ़े।
सीढ़ियाँ नीचे अंधेरे में उतरती थीं, जहाँ दीवारों से सीलन और पुराने खून की गंध आ रही थी।
अर्जुन मेहरा की टॉर्च दीवारों पर घूमी —
पुराने खरोंच, धुंधले हाथों के निशान, और दीवार पर उकेरे शब्द —
> “देवयानी का न्याय”
सावंत की आवाज़ काँपी — “सर, ये कोई इंसान नहीं… कोई आत्मा का खेल लग रहा है।”
अर्जुन मेहरा ने कहा —
“हर आत्मा के पीछे एक सच होता है। हमें वही ढूँढना है।”
अचानक टॉर्च की रोशनी बुझ गई।
कुछ पल अंधेरा।
फिर किसी के कदमों की आहट — “टप… टप… टप…”
अर्जुन मेहरा ने ज़ोर से पुकारा — “कौन है वहाँ!”
कोई जवाब नहीं।
सिर्फ दीवार पर लगी पुरानी घड़ी चल रही थी —
टिक... टिक... टिक... 2:03 AM.
सविता की आवाज़ पीछे से आई —
“यही समय था… जब राजेश मरा था।”
अर्जुन मेहरा धीरे से बोले —
“शायद यह हवेली हमें कुछ दिखाना चाहती है।”
दीवार के उस पार से किसी स्त्री की धीमी आवाज़ सुनाई दी —
“पाप का हिसाब बाकी है…”
सभी के रोंगटे खड़े हो गए।
आशा की आँखों से आँसू बह निकले।
और तभी सावंत चिल्लाया —
“सर, दीवार के पीछे से किसी का साया हिला!”
अर्जुन मेहरा ने टॉर्च जलाई —
दीवार के बीच में, जैसे किसी ने अंदर से हाथ मारा हो —
पुराने खून के निशान, उंगलियों के आकार में।
सन्नाटा गाढ़ा हो गया।
और हवेली की दीवारों ने मानो साँस लेना शुरू कर दिया।
अर्जुन मेहरा ने धीरे से कहा —
“अब यह केस सिर्फ हत्या का नहीं रहा…
यह किसी के लौटने की कहानी है।”