भाग 1
उपन्यास: चिड़ियावन के पाँच दोस्त
“चिड़ियावन की सुबह और पाँचों की टोली”
सुबह का वक्त था।
गाँव चिड़ियावन में सूरज की पहली किरण जैसे ही आम के पेड़ की पत्तियों पर पड़ी, चिड़ियों की चहचहाहट पूरे गाँव में गूंज उठी।
तालाब के किनारे बत्तखें तैर रही थीं, और दूर से बैलों की घंटियाँ छन-छन बज रही थीं।
गाँव के बीचोबीच पाँच दोस्त रोज़ की तरह इकट्ठा हुए —
रिंकू, मिंकू, पिंकू, सिंटू और चिंटू।
इन पाँचों की दोस्ती ऐसी थी कि गाँव के लोग इन्हें प्यार से “चिड़ियावन की टोली” कहते थे।
जहाँ ये पाँच मिलते, वहाँ हँसी, शोर और मस्ती अपने आप चली आती।
पाँचों का परिचय
रिंकू सबसे बड़ा था — थोड़ा समझदार, पर हमेशा शरारतों में आगे।
वो कहता, “भाई, दिमाग लगाओ, ताकत नहीं।”
पर ज़्यादातर ऐसा प्लान बनाता कि आखिर में सबकी दौड़ लग जाती।
मिंकू उसका सबसे अच्छा साथी था — डरपोक पर दिल का साफ़।
कभी-कभी इतना सोचता कि बाकी सब ऊँघने लगते।
लेकिन अगर किसी को मदद चाहिए होती, तो सबसे पहले वही पहुँचता।
पिंकू सबसे हँसमुख था।
हर बात में मज़ाक ढूँढ लेता।
यहाँ तक कि अगर कोई फिसल जाए तो पहले हँसेगा, फिर उठाएगा।
सिंटू खेल-कूद में सबसे तेज़ था।
उसे क्रिकेट का बहुत शौक था और उसका सपना था कि एक दिन टीवी पर मैच खेले।
लेकिन रोज़ माँ कहती — “पहले पढ़ाई कर, फिर बल्ला घुमा!”
चिंटू सबसे छोटा था, पर सबसे होशियार भी।
उसे चीज़ें खोलकर देखने का बड़ा शौक था — रेडियो, टॉर्च, और एक बार तो बकरी की घंटी तक खोल डाली थी।
सुबह की शरारत
उस दिन पाँचों ने तय किया कि वे तालाब के पास पतंग उड़ाएँगे।
रिंकू बोला – “आज मेरी पतंग सबसे ऊँची जाएगी!”
मिंकू बोला – “नहीं, मेरी बादलों को छू लेगी!”
पिंकू बोला – “और मेरी तो आसमान में गाना गाएगी!”
सिंटू बोला – “पहले पतंग बनाओ तो!”
चिंटू बोला – “धागा लाया हूँ, पर थोड़ा उलझा हुआ है…”
पाँचों ने आधा घंटा धागा सुलझाने में लगाया,
और जब पतंग उड़ाई, तो हवा उल्टी चल पड़ी।
पतंग की जगह पाँचों के बाल उड़ गए!
पिंकू चिल्लाया – “अरे मेरी पतंग गई!”
चिंटू बोला – “नहीं भाई, तू जा रहा है उसके साथ!”
गाँव वाले हँसने लगे – “देखो-देखो, फिर शुरू हो गए चिड़ियावन की टोली वाले!”
शाम की जिज्ञासा
शाम को पाँचों चौपाल पर बैठे थे।
सूरज ढल रहा था और हवा में मिट्टी की खुशबू थी।
तभी चिंटू ने कहा –
“भाई लोगो, तुमने सुना? रोहन काका की बकरी बोलने लगी है!”
सभी के मुँह खुले रह गए।
रिंकू बोला – “बकरी बोले? ये तो देखने वाली बात है!”
मिंकू बोला – “कहीं फिर कोई गड़बड़ न हो!”
पिंकू बोला – “अगर वो सच में बोलेगी, तो मैं उससे कविता सुनवाऊँगा!”
सिंटू बोला – “कल सुबह चलेंगे, सच्चाई पता करेंगे।”
सब हँसते हुए अपने घर चले गए।
पर रातभर उनके मन में एक ही बात घूमती रही —
“क्या सच में बकरी बोलती है?”
— बोलता बकरी का बच्चा
सुबह की सुनहरी किरणें अब चिड़ियावन के नीम और आम के पेड़ों से छनकर मिट्टी की सोंधी खुशबू में घुल रही थीं। खेतों में ओस की बूँदें चमक रही थीं जैसे किसी ने ज़मीन पर मोती बिखेर दिए हों। रिंकू, मिंकू, पिंकू, सिंटू और चिंटू – पाँचों दोस्त – आज बहुत खुश थे। कारण था, रोहन काका की बकरी ने बच्चा दिया था और सुना था कि वह बच्चा कुछ अजीब-सा है।
रिंकू ने टोपी सीधी करते हुए कहा, “चलो जल्दी चलो! मैंने सुना है वो बकरी का बच्चा बोलता है!”
मिंकू ने हँसते हुए जवाब दिया, “अरे, बोलता है? क्या बोलेगा? ‘नमस्ते बच्चों, मैं बकरी का बच्चा हूँ !’”
सब ज़ोर-ज़ोर से हँस पड़े। चिंटू, जो सबसे छोटा था, बोला, “अगर सच में बोलता हुआ मिला, तो मैं उसका नाम रख दूँगा गोलू बकरा!”
थोड़ी देर में वे सब रोहन काका के आँगन पहुँच गए। मिट्टी का बड़ा सा घर, सामने बँधा भैंस का बछड़ा, और कोने में टीन की छत के नीचे वह बकरी का बच्चा – एकदम सफ़ेद जैसे रुई का गोला।
रोहन काका बरामदे में बैठे चाय पी रहे थे। उन्होंने मुस्कराते हुए कहा,
“आ गए पाँचों शैतान? सुन लिया न, मेरे घर का नया मेहमान?”
पिंकू बोला, “काका, हमें दिखाइए ना, वो जो बोलता है!”
रोहन काका हँस पड़े, “अरे ओ बेटा , वो कोई जादू नहीं है। बस मज़े की बात है, देखो तो सही।”
बकरी का बच्चा ‘में-में’ करता हुआ उछल पड़ा और फिर अचानक बोला—
“दूध! दूध दो!”
पाँचों के मुँह खुले के खुले रह गए।
रिंकू ने कहा, “अरे ये तो सच में बोलता है!”
मिंकू ने कान मलते हुए कहा, “मुझे तो सपना लग रहा है।”
सिंटू बोला, “नहीं रे, मैंने साफ सुना — इसने कहा दूध दो!”
रोहन काका मुस्कराते हुए बोले, “असल में ये बच्चा जब छोटा था, तब मैं हर बार उसे दूध देते वक्त कहता था — ‘लो दूध लो’। अब सुनने की आदत हो गई होगी, तो आवाज़ की नकल करने लगा।”
सभी ने राहत की साँस ली। लेकिन तभी बकरी का बच्चा फिर बोला,
“मिंकू मत पकड़ो कान!”
सब चौंक पड़े! अबकी बार तो उसने नया वाक्य बोला था।
मिंकू डर के मारे पीछे हट गया, “काका! ये तो मेरा नाम भी जानता है!”
अब मामला दिलचस्प हो गया। पिंकू ने फुसफुसाया, “कहीं ये कोई जादुई बकरी तो नहीं?”
चिंटू बोला, “हो सकता है ये गाँव की रक्षा करने आई हो।”
सिंटू ने कहा, “चलो इसे बातों में लगाते हैं।”
रिंकू झुककर बोला, “गोलू बकरा, तुम बोलना कहाँ से सीखे?”
गोलू ने सिर हिलाया, “रोज़ सुनता हूँ। सब बोलते हैं, मैं भी बोलता हूँ।”
पाँचों दोस्त अब ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगे। मिंकू बोला, “वाह! बोलता भी है और जवाब भी देता है!”
रोहन काका मुस्कराए, “देखो, ये बस नकल करता है, समझता नहीं पर गाँव में सब इसे बोलता बकरा कहने लगे हैं।”
उसी वक्त चिंटू की नज़र पड़ी — कमरे के पीछे कोई डिब्बा पड़ा था।
वो बोला, “काका, ये क्या है?”
काका बोले, “अरे वो पुराना रेडियो है, खराब पड़ा था।”
चिंटू ने रेडियो उठाया और उसमें धूल झाड़ी। तभी एक हल्की-सी आवाज़ आई —
“मिंकू मत पकड़ो कान!”
सबने एक-दूसरे को देखा — यही तो वही शब्द थे जो बकरी ने बोले थे!
रिंकू बोला, “मतलब बकरी नहीं, रेडियो बोल रहा था?”
रोहन काका ज़ोर से हँस पड़े, “अरे हाँ बेटा! मैंने कल रेडियो ठीक करने की कोशिश की थी, शायद किसी चैनल पर ये रिकॉर्डिंग आ गई थी।”
सभी बच्चे पहले तो हैरान हुए, फिर ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगे।
पिंकू बोला, “तो असली बोलता बकरा तो रेडियो निकला!”
मिंकू बोला, “अरे नहीं, रेडियो तो मशीन है। बकरा भी बोल रहा था, उसने ‘में-में’ तो कहा था!”
रिंकू ने कहा, “चलो मान लेते हैं कि आज का दिन बोलता दिन था — बकरा भी बोला, रेडियो भी!”
रोहन काका ने सबको गुड़ और मूँगफली खिलाई। बोले, “देखो बच्चों, कभी-कभी चीज़ें वैसी नहीं होतीं जैसी लगती हैं। लेकिन सच्चाई जानने का मज़ा तभी आता है जब मन साफ़ हो।”
पाँचों ने सिर हिलाया। फिर सबने गोलू बकरे के साथ फोटो खिंचवाई और लौट पड़े।
रास्ते में चिंटू बोला, “अगली बार हम खुद का रेडियो बनाएँगे!”
पिंकू बोला, “हाँ, और उसका नाम रखेंगे ‘गोलूवाणी!’”
सब फिर ठहाके लगाने लगे, और मिट्टी का रास्ता उनकी हँसी से गूंजने लगा।
सूरज धीरे-धीरे ढल रहा था। खेतों में हवा बह रही थी।
चिड़ियावन के पाँचों दोस्त नए रहस्य की तलाश में आगे बढ़ते जा रहे थे —
क्योंकि उन्हें यक़ीन था कि इस गाँव में हर दिन कुछ न कुछ अनोखा घटता ज़रूर है।
— रहस्यमयी पेड़ की फुसफुसाहट
चिड़ियावन गाँव में मानसून की पहली बारिश के बाद सब कुछ नया-नया लगने लगा था।
मिट्टी की खुशबू, टीन की छतों पर गिरती बूँदें, और तालाब में कूदते मेंढक — हर चीज़ जैसे जीवन से भर गई थी।
रिंकू, मिंकू, पिंकू, सिंटू और चिंटू आज सुबह-सुबह ही तालाब के किनारे पहुँचे थे।
उनका इरादा था — “कुछ नया खोजा जाए।”
रिंकू बोला, “पिछली बार तो बोलता बकरा मिल गया था, अब देखते हैं आज क्या मिलता है।”
मिंकू ने कहा, “सुना है तालाब के उस पार एक पेड़ है जो रात में फुसफुसाता है।”
पिंकू ने आँखें गोल करते हुए कहा, “मतलब बोलता है?”
“नहीं रे,” सिंटू बोला, “लोग कहते हैं कि पेड़ के पास जाओ तो आवाज़ आती है — जैसे कोई धीमे से बात कर रहा हो।”
चिंटू डर के मारे बोला, “अगर सच में बोला तो? पेड़ भी बोलने लगे तो गाँव का क्या होगा!”
सब ठहाका मारकर हँस पड़े।
रिंकू ने कहा, “चलो आज उसी पेड़ का राज़ पता लगाते हैं।”
फुसफुसाने वाला पेड़
वे सब कंधे पर थैला डालकर, बरसाती झाड़ियों के बीच से होते हुए तालाब के पार निकल गए।
वहाँ एक पुराना विशाल पाकड़ का पेड़ था — उसकी जटाएँ ज़मीन तक लटकी हुई थीं, और तना इतना चौड़ा कि पाँचों बच्चे मिलकर भी उसे घेर न पाते।
पेड़ के चारों ओर काई जमी थी और नीचे सूखी पत्तियाँ फैली थीं।
पिंकू ने डरते-डरते कहा, “यही है न वो पेड़?”
मिंकू ने सिर हिलाया, “हाँ, बूढ़े लल्लन काका कहते थे, रात में इससे फुसफुसाहट आती है।”
रिंकू ने पास जाकर कान लगाया। कुछ पल खामोशी रही... फिर अचानक स्स्स्स्स्... जैसी आवाज़ आई।
चिंटू तो पीछे भागा, “माँ ! ये तो सच में बोल रहा है!”
सिंटू बोला, “रुको ज़रा!” और पेड़ के दूसरी तरफ़ घूम गया।
वहाँ उन्होंने देखा — एक छोटी सी सुराख़ से हवा जा रही थी।
रिंकू बोला, “अरे ये तो हवा की आवाज़ है, जैसे बांसुरी में निकलती है!”
मिंकू बोला, “तो ये पेड़ नहीं बोलता, बस हवा इसके अंदर से गुज़रती है।”
पाँचों ने राहत की साँस ली, लेकिन तभी आवाज़ आई —
“जाओ... यहाँ से... जाओ...”
अब सबके पैरों तले ज़मीन खिसक गई।
चिंटू तो सीधे सिंटू के पीछे छिप गया।
रिंकू ने काँपती आवाज़ में कहा, “ये हवा नहीं थी... किसी ने बोला!”
पाँचों ने हिम्मत जुटाई और पेड़ के चारों ओर घूमने लगे।
तभी एक जगह पत्तियों के नीचे कुछ चमकता हुआ दिखा।
पिंकू ने झुककर देखा — एक पुराना डिब्बा था ।
डिब्बा उठाते ही उसमें से आवाज़ आई —
“जाओ... यहाँ से...”
अब सबकी आँखें फटी की फटी रह गईं।
मिंकू ने झट डिब्बा खोला — अंदर एक पुराना टेप रिकॉर्डर था!
सिंटू हँसते हुए बोला, “अरे ये तो वही है जो स्कूल में मास्टरजी के पास था!”
रिंकू ने कहा, “लगता है किसी ने यहाँ छोड़ दिया होगा और हवा लगने से चालू हो गया।”
उन्होंने टेप रोकने की कोशिश की, लेकिन बटन फँसा हुआ था।
जब उन्होंने पीछे की पट्टी देखी, तो उस पर लिखा था —
“प्रोजेक्ट – वन की सुरक्षा के लिए – रिकॉर्डिंग परीक्षण, चिड़ियावन स्कूल।”
मिंकू ने कहा, “मतलब ये तो स्कूल का प्रोजेक्ट है! किसी ने जंगल के जानवर भगाने के लिए रिकॉर्डिंग लगाई थी।”
सभी हँसने लगे।
चिंटू बोला, “मतलब पेड़ तो नहीं बोलता, लेकिन रिकॉर्डर बोल रहा था!”
रिंकू ने कहा, “अरे ये तो ‘बोलता बकरा’ वाली बात जैसी ही है — एक बार फिर धोखा खा गए!”
नई खोज की शुरुआत
वो टेप रिकॉर्डर लेकर स्कूल पहुँचे और मास्टरजी को दिखाया।
मास्टरजी ने देखकर कहा,
“अरे वाह, ये तो वही रिकॉर्डर है जो पिछले महीने स्कूल के साइंस प्रोजेक्ट के लिए गाँव के बाहर रखा गया था। हमने सोचा था खो गया। अच्छा किया तुमने ढूँढ लिया!”
पाँचों दोस्त गर्व से मुस्कराने लगे।
मास्टरजी बोले, “तुम सब तो चिड़ियावन के छोटे वैज्ञानिक हो। अगर ऐसे ही मेहनत करते रहे, तो एक दिन बड़ा नाम करोगे।”
रिंकू ने कहा, “लेकिन मास्टरजी, वो रिकॉर्डर से जो आवाज़ आती थी, वो डरावनी थी।”
मास्टरजी हँसे, “वो जानवरों को डराने के लिए थी, ताकि खेतों में न घुसें। लगता है टेप वहीं फँस गया था और बार-बार वही लाइन बजती रही।”
पाँचों को बहुत मज़ा आया। उन्होंने तय किया कि अब से हर दिन “गाँव की गुत्थी” सुलझाएँगे।
और टोली का नाम रखा — टीम पाँच दोस्त – रहस्य खोज दल!
फुसफुसाहट का असली रहस्य
रात को जब सब अपने घर लौटे, तब चिंटू खिड़की से बाहर देख रहा था।
उसे अब भी वो पाकड़ का पेड़ दिख रहा था —
चाँदनी में चमकता, हवा में झूलता, और कभी-कभी उसकी जटाओं से आती धीमी सरसराहट सचमुच फुसफुसाहट-सी लगती।
पर अब वो डर नहीं रहा था।
उसे लगा — “हर रहस्य में डर नहीं होता, कभी-कभी बस समझ की कमी होती है।”
अगले दिन पाँचों दोस्त फिर तालाब के पास मिले।
मिंकू ने कहा, “अगला मिशन तय कर लो!”
पिंकू बोला, “अगली बार गाँव के पुराने कुएँ की कहानी सुलझाएँगे!”
रिंकू ने हाथ उठाया, “ठीक है! मिलते हैं — शाम के वक्त, उसी जगह।”
फिर सबने जोर से कहा,
“टीम पाँच दोस्त – रहस्य खोज दल, जय हो!”
उनकी हँसी और शोर से चिड़ियावन की गलियाँ फिर गूँज उठीं।
और पाकड़ का वो पेड़ — जो अब भी हवा में झूम रहा था —
जैसे मुस्कुरा कर कह रहा हो,
“सच को जानने की चाह रखने वालों से, मैं कभी नहीं डराता।”
— रहस्यमयी आवाज़ वाला कुआँ
चिड़ियावन के पाँचों दोस्त फिर इकट्ठा हुए — रिंकू, मिंकू, पिंकू, सिंटू और चिंटू।
इस बार उनका नया मिशन था — गाँव के पुराने कुएँ का रहस्य जानना।
कहा जाता था कि उस कुएँ से रात में आवाज़ें आती हैं —
कभी कोई “हैलो” बोलता है, कभी “बचाओ!”
गाँव के लोग डर के मारे वहाँ नहीं जाते थे।
रिंकू बोला, “शायद पानी के नीचे कोई रहस्य छिपा है।”
मिंकू बोला, “या फिर कोई भूत!”
चिंटू डरते हुए बोला, “भूत नहीं चाहिए, पिछली बार पेड़ ने ही काफी डरा दिया था।”
वे सब रस्सी और टॉर्च लेकर कुएँ के पास पहुँचे।
कुआँ पुराना था, चारों ओर घास और बेलें चढ़ी थीं।
उन्होंने झाँककर देखा, पानी काफी नीचे था।
अचानक कुएँ के अंदर से आवाज़ आई —
“अरे कोई है ऊपर?”
चिंटू चिल्लाया, “माँ !” और पीछे भाग गया।
रिंकू ने हिम्मत करके कहा, “कौन है नीचे?”
आवाज़ आई, “मैं हूँ – मिस्त्री! कल बाल्टी गिर गई थी, उसे निकालने आया था, रस्सी फँस गई।”
सभी दोस्त हँस पड़े।
पिंकू बोला, “तो ये भूत नहीं, मिस्त्री निकला!”
उन्होंने रस्सी फेंककर मिस्त्री को बाहर निकाला।
मिस्त्री ने हँसते हुए कहा, “धन्यवाद बच्चों, तुम तो सच में बहादुर हो।”
मिंकू ने मुस्कराते हुए कहा, “हम हैं चिड़ियावन रहस्य खोज दल!”
सबने ताली बजाई और फिर ठहाके लगाते हुए वापस गाँव की ओर चल दिए।
तालाब में चमकती परछाई -
बरसात के दिन खत्म हुए कुछ ही हफ़्ते बीते थे, लेकिन चिड़ियावन के चारों ओर की हरियाली अब भी आँखों को सुकून दे रही थी। खेतों के किनारे मक्के की बालियाँ हवा में झूम रही थीं और पेड़ों पर बैठे तोते मानो किसी गुप्त सभा में बातचीत कर रहे हों। ऐसे ही एक दिन, पाँचों दोस्त — रिंकू, मिंकू, पिंकू, सिंटू और चिंटू — अपने रोज़ के ठिकाने, पुराने पेड़ के नीचे मिले।
रिंकू के हाथ में एक छोटी नोटबुक थी, जिस पर लिखा था — “टीम पाँच दोस्त – रहस्य खोज दल”
वो बोला, “अब तक हमने तीन रहस्य सुलझाए — बोलता बकरा, फुसफुसाता पेड़, और बोलता कुआँ। अब बारी है अगले रहस्य की।”
मिंकू ने मुँह बनाकर कहा, “अब कोई ऐसा रहस्य बताओ जिसमें न भूत हो, न टेप रिकॉर्डर, और न मिस्त्री!”
सिंटू हँसते हुए बोला, “मतलब तू डर गया?”
मिंकू बोला, “अरे डर नहीं, पर हर बार हम गीले, कीचड़ में लथपथ और डाँट खा कर लौटते हैं।”
सब हँस पड़े।
तभी चिंटू ने उंगली से तालाब की ओर इशारा किया — “अरे वो देखो! तालाब के बीच कुछ चमक रहा है।”
सबने देखा — सचमुच पानी के बीचोंबीच कुछ धूप में चमक रहा था।
पिंकू बोला, “कहीं खज़ाना तो नहीं?”
रिंकू बोला, “चलो, पता लगाते हैं!”
तालाब का रहस्य
तालाब का किनारा फिसलन भरा था।
रिंकू ने अपनी चप्पल उतारी और बोला, “मैं पहले जाता हूँ।”
मिंकू ने चेताया, “ध्यान से! पिछली बार कीचड़ में मछली समझकर मेंढक पकड़ लिया था।”
रिंकू मुस्कराया और धीरे-धीरे पानी में उतरा। बाकी सब किनारे से देखते रहे।
जैसे-जैसे वह करीब पहुँचा, चमकती चीज़ साफ़ दिखने लगी —
वह कोई धातु का गोल डिब्बा था, आधा पानी में डूबा हुआ।
उसने डंडी से खींचा और किनारे ले आया।
डिब्बा बहुत पुराना लग रहा था। ढक्कन पर कुछ उभरे हुए अक्षर थे —
“R.K.”
पाँचों ने उत्सुकता से देखा।
मिंकू बोला, “ये तो किसी का नाम लगता है।”
चिंटू ने कहा, “शायद किसी ने खज़ाना रखा हो!”
पिंकू बोला, “चलो खोलते हैं।”
रिंकू ने पत्थर से धीरे-धीरे ढक्कन खोला।
भीतर से बदबूदार पानी निकला, फिर कुछ गीले कागज़।
उन्होंने सावधानी से उन्हें निकाला और सूखने के लिए पत्थर पर रखा।
धीरे-धीरे कागज़ पर लिखावट दिखने लगी —
एक पुरानी डायरी का पन्ना!
उस पर लिखा था —
> “अगर किसी दिन यह डिब्बा किसी को मिले,
तो जान लो — चिड़ियावन में एक पुराना रहस्य छिपा है।
उसे खोजो, पर सावधानी से — क्योंकि सब कुछ वैसा नहीं जैसा दिखता है।”
— आर.के.
सब सन्न रह गए।
मिंकू बोला, “अब तो ये सच में रहस्य लग रहा है!”
सिंटू ने कहा, “पर आर.के. कौन है ?”
रिंकू ने कहा, “पता लगाना पड़ेगा। शायद गाँव के किसी बूढ़े को याद हो।”
पुराने रहस्य की खोज
पाँचों दोस्त गाँव के सबसे बुज़ुर्ग व्यक्ति, रोहन काका, के पास पहुँचे।
काका नीम के नीचे चारपाई पर बैठे चाय पी रहे थे।
रिंकू ने पूछा, “काका, गाँव में कोई था क्या जिसका नाम आर.के. था?”
रोहन काका ने भौंहें चढ़ाईं, फिर मुस्कराए।
“अरे बेटा, हाँ, बहुत साल पहले एक आदमी था — राघव काका। सब उन्हें आर.के. कहते थे। वो गाँव के पहले मास्टर थे। कहते हैं, उन्होंने एक बड़ा प्रयोग किया था — कोई ‘तालाब का चमत्कार’। फिर अचानक एक दिन गायब हो गए।”
सबकी आँखें फैल गईं।
पिंकू बोला, “कहीं ये वही रहस्य तो नहीं?”
काका बोले, “शायद। किसी को कुछ पता नहीं चला। बस सुना था, उन्होंने तालाब में कुछ गिराया था और कहा था — ‘जो इसे पाएगा, वही अगला खोजी होगा।’”
रिंकू बोला, “तो अब हम खोजी हैं!”
रोहन काका हँस पड़े, “हाँ, पर याद रखना — रहस्य जितना पुराना हो, उतना गहरा भी होता है।”
डायरी के सुराग
कागज़ के पीछे कुछ अजीब-सी आकृतियाँ बनी थीं —
एक नक्शा जैसा।
उस पर एक बड़ा पेड़, तालाब, और एक तीर बना था जो गाँव के उत्तर दिशा की ओर इशारा कर रहा था।
रिंकू बोला, “इसका मतलब हमें तालाब के उस पार जाना होगा।”
मिंकू ने गहरी साँस ली, “फिर पानी, फिर कीचड़, फिर डाँट!”
सिंटू बोला, “चल, अब तो खोजी बन गए हैं।”
उन्होंने अगले दिन सुबह निकलने की योजना बनाई।
तालाब के पार
अगली सुबह सूरज उगते ही पाँचों निकल पड़े।
तालाब के पार की ज़मीन थोड़ी ऊँची थी, वहाँ झाड़ियाँ और कुछ पुराने पत्थर बिखरे थे।
जगह सुनसान थी, बस झींगुरों की आवाज़ आ रही थी।
रिंकू ने नक्शा खोला।
“देखो, यहाँ एक बड़ा पेड़ दिखाया है। उधर वो नीम है, चलो उसी तरफ।”
चलते-चलते वे एक पुराने नीम तक पहुँचे, जिसके नीचे मिट्टी उभरी हुई थी — जैसे किसी ने कुछ गाड़ा हो।
रिंकू ने लकड़ी से खोदना शुरू किया।
थोड़ी देर में कुछ सख़्त चीज़ टकराई —
एक लकड़ी का बक्सा!
पाँचों ने बक्सा बाहर निकाला।
उस पर जंग लगा ताला था।
मिंकू बोला, “अब ये कैसे खुलेगा?”
चिंटू बोला, “हमारे पास तो कुछ नहीं है।”
तभी सिंटू को याद आया — उसके पास घर की पुरानी चाबी है।
उसने कोशिश की… और ताला खुल गया!
बक्से का रहस्य
बक्से में एक और डायरी थी, कुछ पुराने सिक्के, और एक छोटी बोतल — जिसमें नीला द्रव भरा था।
रिंकू ने डायरी खोली।
उसमें लिखा था —
> “यह प्रयोग पानी को साफ करने के लिए था।
अगर इसे तालाब में डाला जाए, तो सारा गंदा पानी कुछ ही घंटों में साफ़ हो जाएगा।
पर सावधान रहना — ज़्यादा मात्रा में डालना ठीक नहीं।”
मिंकू बोला, “मतलब राघव काका वैज्ञानिक थे!”
सिंटू बोला, “तो उनका रहस्य कोई जादू नहीं, प्रयोग था!”
उन्होंने तय किया कि यह द्रव मास्टरजी को दिखाया जाए।
सच्चाई का खुलासा
मास्टरजी ने बोतल देखी और बोले, “अरे, ये तो पुराने जमाने का जल-शुद्धिकरण रसायन है। बहुत कीमती चीज़ थी! राघव जी बहुत होनहार थे, उन्होंने यह खुद बनाया था।”
फिर मास्टरजी ने गाँव के सामने प्रयोग किया —
थोड़ा-सा द्रव तालाब में डाला गया, और कुछ ही घंटों में तालाब का पानी एकदम साफ़ हो गया।
पूरा गाँव हैरान रह गया।
रिंकू और उसके दोस्तों को सबने शाबाशी दी।
रोहन काका ने मुस्कराते हुए कहा, “देखा बेटा, खोजी बनना सिर्फ़ रहस्य सुलझाना नहीं होता, कभी-कभी इतिहास भी मिल जाता है।”
उस रात पाँचों दोस्त फिर पेड़ के नीचे बैठे।
चिंटू बोला, “अब अगला मिशन क्या होगा?”
रिंकू बोला, “अब देखना पड़ेगा, चिड़ियावन के किस कोने में अगला रहस्य छिपा है।”
पिंकू ने आसमान की ओर देखा — तारे झिलमिला रहे थे, जैसे सब कुछ सुन रहे हों।
पाँचों की हँसी और बातचीत देर रात तक चलती रही।
और चिड़ियावन का तालाब — अब पहले से भी ज़्यादा सुंदर लग रहा था,
क्योंकि उसकी परछाई में अब सिर्फ़ पानी नहीं,
बल्कि पाँच दोस्तों की दोस्ती और जिज्ञासा भी चमक रही थी।