अध्याय 1 – हवेली का रहस्य
रात के सन्नाटे में एक पुराना लोहे का गेट चर्र-चर्र की आवाज़ करता हुआ खुला।
ठंडी हवा में धूल उड़ रही थी, और बीचों-बीच खड़ी थी — मेहरा हवेली।
सौ साल पुरानी, जर्जर दीवारों वाली, लेकिन कुछ ऐसा था उसमें जो अब भी ज़िंदा था… जैसे कोई देख रहा हो, हर कदम को, हर सांस को।
इंस्पेक्टर राघव सिंह ने टॉर्च ऑन की।
“यह वही हवेली है जहाँ से कॉल आया था, है ना?” उसने सब-इंस्पेक्टर से पूछा।
“जी सर, लेकिन वहाँ कोई नहीं मिला। दरवाज़ा पहले से खुला था।”
राघव झुका और ज़मीन पर चमकती किसी चीज़ को उठाया —
वो एक टूटी हुई चूड़ी थी, जिसके किनारे पर सूखे खून के निशान थे।
“किसी औरत का होना तय है…” राघव बुदबुदाया।
पास ही खड़ी थी अनाया मेहरा, क्राइम रिपोर्टर, जो इस केस की ख़बर कवरेज के लिए आई थी।
उसकी आंखों में डर था, लेकिन उससे बड़ा था उसका जिज्ञासा का शिकार —
“सर, आपने नोटिस किया? खून के निशान अंदर से बाहर की ओर हैं, लेकिन बाहर... कुछ नहीं।”
राघव ने टॉर्च की रोशनी दरवाज़े के फ्रेम पर डाली — वहाँ उंगलियों के गहरे निशान थे, जैसे किसी ने बाहर निकलते वक्त दरवाज़े को पकड़कर खुद को खींचा हो।
लेकिन बाहर सिर्फ मिट्टी थी — किसी लाश का कोई अता-पता नहीं।
वे धीरे-धीरे हवेली के अंदर बढ़े।
हर कदम के साथ लकड़ी की फर्श कर्कश आवाज़ कर रही थी, जैसे विरोध कर रही हो।
दीवारों पर पुराने चित्र — धुंधले चेहरे, जिनकी आँखें अब भी जैसे देख रही थीं।
कमरे के बीचों-बीच टूटा हुआ दर्पण पड़ा था — और उसमें खुद का चेहरा देखते ही राघव चौंक गया।
उसके पीछे… एक साया खड़ा था।
वो पलटा —
कुछ नहीं।
सिर्फ अंधेरा।
“अनाया?”
“मैं तो यहीं हूँ सर,” उसने घबराई आवाज़ में कहा, “लेकिन आपने ये देखा क्या?”
राघव ने कुछ नहीं कहा।
उसने फिर टॉर्च की किरण दीवार पर डाली — और देखा, दीवार पर किसी ने खून से लिखा था:
> “मैं यहाँ अब भी हूँ…”
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राघव का गला सूख गया।
वो दीवार के पास गया, उंगलियों से खून को छुआ — वो ताज़ा था।
“कोई है यहाँ…” उसने फुसफुसाया।
तभी हवेली के पीछे से अचानक एक ज़ोरदार ठक-ठक-ठक की आवाज़ आई —
जैसे कोई लकड़ी से दरवाज़ा पीट रहा हो…
किसी बंद कमरे से।
“वो... पीछे वाले स्टोर रूम से आ रही है!” अनाया चिल्लाई।
राघव ने बंदूक निकाली और आवाज़ की दिशा में बढ़ा।
कमरा बंद था, लेकिन भीतर से कोई सांसें ले रहा था — तेज़, घबराई हुई।
उसने दरवाज़ा तोड़ा — और भीतर झाँका…
वहाँ एक कब्र खोदी हुई थी —
ताज़ा मिट्टी से बनी हुई —
और उसके बगल में पड़ा था एक महिला का दुपट्टा, जिस पर लिखा था —
> “अनाया।”
राघव उस कब्र के पास घुटनों के बल बैठ गया। मिट्टी अब भी नर्म थी, जैसे किसी ने कुछ देर पहले ही खोदी हो।
उसने अपने दस्ताने पहने और सावधानी से अंदर खुदाई शुरू की।
थोड़ी ही देर में उसकी टॉर्च की रोशनी किसी कपड़े से टकराई — लाल रंग का झिलमिलाता कपड़ा, जैसे किसी दुल्हन का लहंगा हो।
लेकिन वहाँ शरीर नहीं था — सिर्फ कपड़ा और कुछ बालों की लटें।
अनाया की सांसें तेज़ हो गईं।
“सर… अगर ये लाश नहीं है, तो फिर ये कब्र किसकी है?”
राघव ने चारों ओर देखा — हवा अब भारी लग रही थी, और हवेली की छत से पानी टपकने की आवाज़ आ रही थी।
टॉर्च की किरण जैसे ही ऊपर गई, उसने देखा —
छत पर किसी ने मिट्टी से हाथ का निशान बनाया था... और वो अब भी ताज़ा था।