With AI in Hindi Science-Fiction by Vijay Erry books and stories PDF | AI का साथ

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AI का साथ

AI का साथ 

**लेखक: विजय शर्मा एरी**

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रोहन की उंगलियां कीबोर्ड पर तेज़ी से थिरक रही थीं। स्क्रीन पर चमकते शब्द उसके दिमाग से नहीं, बल्कि एक AI चैटबॉट से आ रहे थे। "बस पांच मिनट में असाइनमेंट तैयार," वह मुस्कुराया। उसके कमरे की खिड़की से बाहर मुंबई की भीड़-भाड़ वाली सड़कें दिख रही थीं, जहां हर कोई अपनी ज़िंदगी की रेस में भागा जा रहा था।

"रोहन! खाना तैयार है," मां की आवाज़ आई।

"बस आया मम्मी, एक मिनट," उसने जवाब दिया, आंखें स्क्रीन से हटाए बिना।

रोहन कॉलेज का तीसरे साल का छात्र था। कंप्यूटर साइंस में पढ़ाई कर रहा था। जब से ChatGPT और दूसरे AI टूल्स आए थे, उसकी ज़िंदगी बदल गई थी। अब रात भर जाग कर असाइनमेंट लिखने की ज़रूरत नहीं थी। बस सही प्रॉम्प्ट टाइप करो और काम हो गया।

लेकिन आज कुछ अलग था। उसके प्रोफेसर डॉ. मेहता ने क्लास में एक अजीब घोषणा की थी।

"कल से हम एक नया प्रोजेक्ट शुरू कर रहे हैं," डॉ. मेहता ने कहा था। "इसमें आपको AI की मदद लेनी होगी, लेकिन साथ ही यह भी साबित करना होगा कि आप खुद क्या सोचते हैं। AI आपका टूल है, मालिक नहीं।"

रोहन को यह बात चुभ गई थी। क्या वह सच में AI का मालिक था, या AI उसका मालिक बन गया था?

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अगले दिन, रोहन अपने दोस्त आर्यन के साथ कॉलेज कैंटीन में बैठा था। आर्यन ग्राफिक डिज़ाइनर बनना चाहता था, लेकिन AI इमेज जेनरेटर्स ने उसकी चिंताएं बढ़ा दी थीं।

"यार, मैंने पांच साल ड्रॉइंग सीखी," आर्यन ने कहा, चाय का कप हाथ में घुमाते हुए। "और अब कोई भी 'mountain landscape at sunset' टाइप करके मुझसे बेहतर इमेज बना लेता है। मेरे कैरियर का क्या होगा?"

रोहन ने सोचा। यह सवाल सिर्फ आर्यन का नहीं था। पूरी दुनिया में लाखों लोग यही पूछ रहे थे। राइटर्स, आर्टिस्ट्स, कोडर्स, म्यूजिशियन्स - सभी डर रहे थे कि कहीं AI उनकी जगह न ले ले।

"देख आर्यन," रोहन ने कहा, "AI तो बस डेटा से सीखता है। असली creativity तो इंसान में ही होती है। तू अपनी स्टाइल डेवलप कर, जो AI नहीं कर सकता।"

लेकिन रोहन खुद अपनी बात पर यकीन नहीं कर पा रहा था। क्या वह सच था? या बस अपने आप को तसल्ली दे रहा था?

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शाम को, रोहन अपने पिता के ऑफिस गया। उसके पिता एक बैंक में मैनेजर थे। ऑफिस में एक अजीब सी खामोशी थी।

"क्या हुआ पापा?" रोहन ने पूछा।

"बेटा, बैंक ने आज घोषणा की है कि अगले साल से AI सिस्टम लोन एप्रूवल का 70% काम संभालेगा," पिताजी ने गहरी सांस ली। "मेरी टीम के आधे लोगों की नौकरी खतरे में है।"

रोहन अवाक रह गया। उसने AI को हमेशा एक मज़ेदार टूल समझा था, एक मददगार दोस्त। लेकिन आज उसे समझ आया कि यह तकनीक कितनी गहरी और कितनी खतरनाक हो सकती है।

घर लौटते समय, रोहन की नज़र सड़क किनारे एक छोटी सी दुकान पर पड़ी। "शर्मा जी का स्टेशनरी शॉप - 1985 से।" दुकान लगभग खाली थी। ऑनलाइन शॉपिंग और AI-driven रिकमंडेशन सिस्टम्स ने इन छोटी दुकानों को तबाह कर दिया था।

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रात को, रोहन अपने कमरे में बैठा सोच रहा था। उसने अपना लैपटॉप खोला और AI से पूछा: "क्या AI इंसानों को बेरोज़गार कर देगा?"

AI ने एक लंबा, संतुलित जवाब दिया। इतिहास के बारे में बताया कि कैसे हर नई तकनीक ने कुछ नौकरियां खत्म कीं और कुछ नई बनाईं। Industrial Revolution से लेकर Internet तक।

लेकिन रोहन को तसल्ली नहीं हुई। यह बार कुछ अलग लग रहा था। AI सिर्फ physical काम नहीं, mental काम भी कर रहा था। वह सोच रहा था, लिख रहा था, बना रहा था।

तभी उसकी छोटी बहन तान्या कमरे में आई। वह सातवीं क्लास में थी।

"भैया, मेरा homework करवा दो ना," उसने कहा।

"खुद क्यों नहीं करती?" रोहन ने पूछा।

"अरे, मेरे सभी दोस्त AI से करवा लेते हैं। मैं क्यों मेहनत करूं?"

रोहन को झटका लगा। यही तो सबसे बड़ा खतरा था। नई जेनरेशन सोचना ही भूल जाएगी। वे सवाल पूछना भूल जाएंगे। creativity मर जाएगी।

"तान्या, बैठ," रोहन ने गंभीरता से कहा। "मैं तुझे कुछ बताता हूं।"

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अगले हफ्ते, डॉ. मेहता का प्रोजेक्ट शुरू हुआ। छात्रों को एक ऐसा सॉफ्टवेयर बनाना था जो AI का इस्तेमाल करे, लेकिन ethical हो। जो इंसानों की जगह लेने की बजाय उन्हें empower करे।

रोहन ने अपनी टीम के साथ मिलकर एक idea develop किया: एक AI टूल जो छोटे कारीगरों और दुकानदारों को ऑनलाइन मार्केट में compete करने में मदद करे। जो उनकी unique skills को highlight करे, न कि replace करे।

प्रेजेंटेशन के दिन, रोहन ने कहा: "हमें AI से डरना नहीं चाहिए। लेकिन हमें blindly depend भी नहीं करना चाहिए। AI एक औज़ार है - दिमाग का नहीं, दिल का नहीं। हमें यह तय करना है कि हम इसका इस्तेमाल कैसे करें।"

डॉ. मेहता मुस्कुराए। "यही तो मैं चाहता था कि तुम समझो। Technology neutral होती है। अच्छी या बुरी नहीं। हम इंसान ही तय करते हैं कि इसे किस दिशा में ले जाना है।"

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कुछ महीनों बाद, रोहन की टीम का प्रोजेक्ट एक startup में बदल गया। उन्होंने शर्मा जी की स्टेशनरी शॉप को अपना पहला client बनाया। AI की मदद से शर्मा जी की दुकान का एक beautiful ऑनलाइन presence बना, जिसमें उनकी personal story, handwritten notes की service, और customized stationery का ऑप्शन था।

तीन महीने में शर्मा जी की बिक्री 300% बढ़ गई। उन्होंने दो नए लोगों को काम पर रखा।

आर्यन ने भी अपना रास्ता ढूंढ लिया। उसने AI tools सीखे, लेकिन अपनी unique artistic vision को बनाए रखा। वह अब brands के लिए ऐसे डिज़ाइन बनाता था जो AI और human creativity का perfect blend थे।

रोहन के पिताजी की नौकरी भी बच गई। बैंक ने देखा कि AI loan process कर सकता था, लेकिन customers से emotional connection नहीं बना सकता। जो काम machine कर सकती थी वह machine को दे दी गई, और इंसानों को ज़्यादा meaningful काम मिला - customer relationships, financial counseling, community outreach।

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एक साल बाद, रोहन ने अपने कॉलेज में एक seminar organize किया: "AI के युग में इंसानियत।"

स्टेज पर खड़े होकर उसने कहा: "AI आ गया है और यह रहेगा। यह हमारी ज़िंदगी बदलेगा - जैसे बिजली ने बदली, internet ने बदली, mobile phones ने बदली। लेकिन एक बात नहीं बदलेगी - इंसानों की ज़रूरत।

हमें empathy चाहिए - AI के पास नहीं है। हमें creativity चाहिए - असली creativity, जो experience से आती है। हमें ethics चाहिए - क्या सही है, क्या गलत, यह machine नहीं बता सकती।

AI को अपना दुश्मन मत समझो। इसे अपना competitor भी मत समझो। इसे एक powerful tool समझो जो सही हाथों में दुनिया को बेहतर बना सकता है।

और सबसे ज़रूरी बात - अपना दिमाग इस्तेमाल करना मत भूलो। सवाल पूछना मत भूलो। सीखना मत भूलो। क्योंकि जिस दिन हम सोचना बंद कर देंगे, उस दिन हम machines से हार जाएंगे।"

तालियों की गड़गड़ाहट से हॉल गूंज उठा।

बाहर निकलते समय, तान्या ने अपने भाई को hug किया। "भैया, अब मैं अपना homework खुद करती हूं। AI से सिर्फ help लेती हूं, answers नहीं।"

रोहन मुस्कुराया। यही तो बदलाव था जिसकी दुनिया को ज़रूरत थी। एक ऐसी generation जो technology का इस्तेमाल करे, लेकिन उस पर depend न हो। जो machine की power को समझे, लेकिन अपनी humanity न खोए।

वह घर की तरफ चल पड़ा। सूरज डूब रहा था, और मुंबई की सड़कें फिर से भीड़ से भर गई थीं। लाखों लोग, लाखों कहानियां, लाखों dreams। कोई machine इन सबको replace नहीं कर सकती थी।

और यही सच था। कृत्रिम बुद्धिमत्ता का सच।

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**समाप्त**