There is freedom in bondage in Hindi Motivational Stories by LM Sharma books and stories PDF | बंधन में ही मुक्ति है

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बंधन में ही मुक्ति है

प्रथम दृष्टि में यह शीर्षक विरोधाभास सा  प्रतीत हो सकता है। परंतु गहराई से चिंतन किए जाने पर ज्ञात होगा की उच्च कोटि के साधक सद आचरणों के बंधन में रहकर ही  जीवन से मुक्ति का मर्ग खोज पाते हैं। यही नियम हमारे जीवन में भी लागू होता है।
मनुष्य के ऊपर खासतौर से युवाओं के ऊपर, उनके हित के लिए जिन नियमों का पालन करने के लिए मजबूर किया जाता है तो वह असंतोष या विद्रोह पैदा करता है। बहुत छोटा सा उदाहरण इसे स्पष्ट कर सकता है, जब छोटे बच्चों को मां बाप होमवर्क करने के लिए कहते है तो बच्चों को बोझ सा लगने लगता है। बालक चाहता है कि वह अपने मित्र के बर्थडे में जाए परंतु उसे तो होमवर्क करने के लिए मजबूर किया जा रहा है। परंतु होमवर्क करना उसे बंधन लगता है। अभी बालक का चिंतन इतना परिपक्व नहीं हुआ है कि वह समझ पाए की नियमों में या अपना कार्य करने में ही सफलता या मुक्ति या उन्नति  का रहस्य छुपा हुआ है। 
जैसे-जैसे बालक बड़ा होता है और युवावस्था को प्राप्त होता है उसके ऊपर समाज  अनेक प्रकार के बंधन या अनुशासन में रहने के लिए और अधिक नियमों का पालन करने के लिए कहता है। वह अभी युवा है और सच्चाई से देखा जाए तो वह यह समझने की स्थिति में नहीं है कि अनुशासन में रहकर ही या नियमों का पालन करने में ही उसे सफलता मिलेगी। क्योंकि कहा गया है कि ज्ञान देर से आता है। कभी-कभी  आता ही नहीं। एक छोटी सी कहानी इस बात को स्पष्ट करेगी, एक बालक जब बहुत छोटा था तो विद्यालय से प्रतिदिन कोई न कोई वास्तु अपने मित्रों की चुरा लिया करता था। परंतु उसकी मां ने कभी भी उसे टोका नहीं और ना ही मना किया कि तू दूसरों की वस्तुओं को चोरी करके क्यों लाता है। एक दिन उसे अपनी चोरी की आदतों के लिए मृत्युदंड मिला। फांसी से पहले उसने अपनी मां को बुलाया और कान काट लिया और कहा कि तू यदि मुझे पहले इन आदतों के लिए दंडित करती या मना करती तो मैं आज फांसी पर नहीं लटकता। यदि उसकी मां उसे बंधन में रखती तो आज वह स्वतंत्रत जीवन जी रहा होता। परंतु मां छोटी स्वतंत्रता देने के लालच में बड़ी स्वतंत्रता का पाठ पढ़ना भूल गई। जीवन को यदि बचपन में ही बंधन में रखने लगें तो आने वाला जीवन स्वतंत्रता में बीतेगा।

बहुदा देखा गया है कि आज की युवा पीढ़ी पर यदि थोड़े नियमों का पालन करने का बोझ डालें तो उनके मन में चिंता और विद्रोह पैदा हो जाता है। नियमों के अभाव में जीवन ऐसे बितता है जैसे किसी पतंग की डोरी काट दी जाए। जीवन रूपी पतंग तभी तक स्वतंत्रता से उड़ सकती है जब तक जब नियम रूपी डोरी से बंधी हुई होती है। उचित मार्ग में उड़ती रहती है । युवाओं को यह भली भांति समझ लेना चाहिए कि नियमों के बंधन बोझ नहीं है। यदि इनको बोझ समझ लिया तो जीवन दुखदाई हो जाएगा। असफलता जीवन पर हावी हो जाएगी। स्वामी विवेकानंद कहते हैं की जो भी व्यक्ति ऊंचे ऊंचे पदों पर बैठे हैं वे सब के सब अपनी युवा अवस्था में नियमों के बंधन में रहे हैं। उन्होंने सब कार्य समय पर किया और नियमों को या बंधनों को बोझ नहीं समझा। इसलिए वे आज ऊंचे ऊंचे पदों पर बैठे हैं।
अधिकांशतः आपने देखा होगा कि मां बच्चों से कहती है कि फालतू के लिए इधर-उधर मत जाओ, रात को कम निकला करो, समय ख़राब है। पहले पहले तो इस प्रकार के उपदेशों से चिड़चिड़ापन लागता है परंतु कुछ समय तक इन उपदेशों का पालन करने से जीवन शांतिपूर्ण चलने लगता है। पहले तो इस प्रकार के उपदेश, बंधन लगते हैं परंतु बाद में ये जीवन के आदर्श बन जाते हैं। श्रीमद्भगवद्गीता में कहा गया है की कोई भी वस्तु यदि पहले अप्रिय लगे तो समझो कि इस का अंत मधुर और सुखद होने वाला है। परंतु जो चीज पहले पहल मधुर लगे बहुत प्रिय लगे उसका अंत विष तुल्य होने वाला है। 
हम अपने जीवन में अनेकों बार छोटी-छोटी चीजों का महत्व नहीं समझते हैं या उनके बारे में गहरा चिंतन नहीं करते। यदि कभी ट्रैफिक चौराहे से लाल और हरी बत्ती हटा दी जाए तो क्या स्थिति होगी?, क्या आपने इसकी कल्पना की है? दिल्ली या मुंबई जैसे ट्रैफिक चौराहे की कल्पना कीजिए यदि चौराहे पर एक मिनट के लिए भी सिग्नल बंद हो जाए तो हजारों एक्सीडेंट हो सकते हैं या फिर इधर से उधर चलना असंभव हो सकता है। जीवन भी ट्रैफिक चौराहे के समान है जहां पर नियम रूपी बंधन टूट गए तो जीवन भी जीना मुश्किल हो जाएगा। जीवन में अफरा तफरी मच जाएगी। इसलिए जीवन में रुको देखो और फिर चलो अन्यथा किसी गहरे गड्ढे या किसी गहरी मुसीबत में फंस सकते हैं। जीवन में हादसे हो सकते हो सकते हैं।

बंधन का सबसे अच्छा उदाहरण तो सशस्त्र बलों में देखने को मिलता है। थल सेना हो या वायु सेवा हो या जल सेवा हो यदि इनमें सैनिक बंधनों में ना रहे तो युद्ध कभी भी नहीं जीता नहीं जा सकता। अब ऊंचे स्तर के बंधनों के बारे में थोड़ा सा ज्ञान करने की चेष्टा करते है। जैसे पहले कहा जा चुका है कि बंधन एक प्रकार से नियमों की एक बड़ी पोटली है। कभी-कभी फौज में बंधनों के उल्लंघन करने पर जीवन से भी हाथ होना पड़ जाता है। इसीलिए फौज में नियमों का सख्ती से पालन करवाया जाता है। यहां तक कि यदि नियमों की उल्लंघन हुआ तो कठोर सजा के भी प्रावधान हैं। फौज हमेशा युद्ध जीतने के लिए लड़ती है ना कि हारने के लिए इसलिए फौज में नियमों का पालन न करने की कोई जगह नहीं है। यही हाल जीवन के दूसरे क्षेत्रों में भी है। 
नियम या बंधन एक प्रकार से गाड़ी में ब्रेक का काम करते हैं। आम मनुष्य ने कभी यह नहीं सोचा होगा की गाड़ी में ब्रेक क्यों होते हैं या गाड़ी में पांच पहिए ही क्यों होते हैं। ऐसा देखा गया है की गाय का नवजात बछड़ा जन्म के दूसरे ही दिन से ही छलांग लगाता रहता है। यह अधिक चलांग बछड़े के जीवन के लिए घातक हो सकती है इसलिए उसकी छलांग पर रोक लगानी पड़ती है। यही हाल मानव जीवन का है। नियमों के अभाव में जीवन में उच्छृंखलता आ जाती है।इस उच्छृंखलता को रोक ने के लिए ही बंधन रुपी ब्रेक का सहारा लिया जाता है। यही उदाहरण कार के साथ है कि कार इधर-उधर ना चली जाए या किसी से टकरा ना जाए इसलिए उसमें ब्रेक होते हैं। जीवन इधर-उधर ना चला जाए जीवन असफल न बन जाए इसलिए उसे बंधनों में रखा जाता है। 
आज के इस युग में बंधनों का और भी महत्व बढ़ गया है।  क्योंकि आज के किशोर अधिकांशतः  उच्छृंखल होते जा रहे है अतः उन पर नियमों का बंधन होना बहुत आवश्यक है। क्योंकि बंधन में ही स्वतंत्रता है।
LM SHARMA