चंदेला 2
लेखक- राज फुलवरे
नांदगांव का वह छोटा सा कस्बा, जहाँ हरीश जोशी और लता जोशी अपने बेटी कांता के साथ रहते थे, अब केवल यादों में मौजूद था.
हरीश जोशी स्कूल में बच्चों को पढाते, उनके शब्द हमेशा सच्चाई और ईमानदारी से भरे रहते.
> हरीश: बेटा, याद रखो, ज्ञान ही इंसान को सबसे ऊँचा उठाता है।
लता जोशी गाँव की महिला समिति चलातीं. वह औरतों के हक की आवाज थीं.
> लता: अगर औरत चुप रहेगी तो समाज की नींव ही हिल जाएगी. अपनी आवाज रखो, कांता।
कांता ने बचपन से यह सब देखा और अपने मन में ठान लिया —
>“ मैं भी बडी होकर वही करूँगी, जो माँ करती हैं. और जो गलत है, उसके खिलाफ खडी रहूँगी।
लेकिन जब कांता सोलह वर्ष की थी, एक रात नांदगांव में भयानक दंगे हुए.
सरपंच के कुछ आदमियों ने उनके घर में आग लगा दी.
> हरीश: कांता! भाग जा, तेज! पीछे मत देखना!
कांता: पापा! माँ! मैं नहीं जा सकती!
हरीश: अगर तू बची रहेगी, तो हम सब जिंदा रहेंगे. अब भाग।
कांता दौडती हुई बाहर आई. पीछे उसका घर आग की लपटों में जल रहा था.
उसने देखा कि माँ लता और पिता हरीश दोनों आग में फँस गए. कांता के होंठ कांप रहे थे, आँखों में आँसू और मन में आग.
उस रात से उसकी जिंदगी बदल गई.
पहला अध्याय – भटकती आत्मा
कांता कई दिनों तक भटकती रही.
कभी खेतों में काम करके पेट भरती, कभी किसी गाँव में पानी मांगकर.
समाज की ठोकरें खाईं, पर हार नहीं मानी.
> कांता( मन ही मन) मैं किसी पर निर्भर नहीं रहूँगी. जो भी मिला, सीखूँगी और मजबूत बनूँगी।
धीरे- धीरे उसने सिलाई, खेती और लेखन सीख लिया.
उसकी आँखों में अब डर नहीं, बल्कि आत्मविश्वास की झलक थी.
एक दिन चंदेला गाँव की पंचायत ने उसे काम का मौका दिया.
वहाँ के अनाथ महिलाओं के लिए बने छोटे घर में उसे रहने की अनुमति मिली.
> कांता: धन्यवाद. मैं भरोसा निभाऊँगी।
पंचायत अध्यक्ष: शुरुआत हमेशा कठिन होती है, बेटा. समय देगा, सब ठीक होगा।
दूसरा अध्याय – चंदेला में पहला दिन
चंदेला गाँव पहाडियों में बसा था, हरियाली और शांति से घिरा.
वहाँ कांता को चार औरतें मिलीं — राधा, कमला, शालिनी और गोमती.
> राधा: तू नवी आल्या का?
कांता: हाँ, नांदगांव से आई हूँ. मेरा नाम कांता है।
कमला: शुभेच्छा! ये घर सुरक्षित है, पर नियम हैं।
शालिनी: तुझं मन साफ है ना? तभी तू टिक सकेगी।
कांता: मैं डरकर नहीं जिऊँगी, पर न्याय के लिए लडूँगी।
उस दिन पहली बार कांता को यह महसूस हुआ — उसने घर औरतों के लिए पाया था, और खुद के लिए भी.
तीसरा अध्याय – संघर्ष की शुरुआत
धीरे- धीरे कांता ने गाँव की महिलाओं को सिलाई और बुनाई सिखाई, बच्चों को अक्षरज्ञान और पढाई.
लेकिन कुछ लोगों को उसकी स्वाभिमानी सोच अखरने लगी.
एक दिन गाँव के कुछ पुरुष ने एक विधवा का मजाक उडाया.
कांता सामने आई और बोली —
>“ इतना मजाक आसान है, पर एक दिन यही बहन या बेटी तुम्हारे सामने खडी होगी. तब भी हँसोगे?
गाँव सन्न हो गया.
एक पुरुष ने कहा —
>“ तू कौन है जो पंचायत में आवाज उठाती है?
कांता: वो औरत, जिसे आपने चुप रहना सिखाया था. अब मैंने बोलना सीख लिया।
इस दिन से गाँव में कांता का नाम“ कांता ताई” के रूप में फैलने लगा.
चौथा अध्याय – पंचायत की साजिश
सरपंच रामदास शिंदे को कांता की सक्रियता पसंद नहीं आई.
वो पंचायत में बोलता —
>“ ही बाई गावात गोंधळ घालते, बायका आता सवाल विचारतात!
कांता शांत खडी रही और बोली —
>“ सवाल विचारना अपराध नहीं. समाज तभी सुधरेगा जब लोग सवाल करेंगे।
सभा में सन्नाटा छा गया.
शिंदे ने धमकी दी —
>“ अगले सप्ताह तक शांत रह, वरना गाँव में मुश्किल होगी।
कांता ने हँसते हुए कहा —
>“ मैं डरकर नहीं रहूँगी. जो डराता है, वह केवल अपनी कमजोरी दिखाता है।
पाँचवाँ अध्याय – रात की धमकी
एक रात, पंचायत का आदमी भिकू कांता के घर आया.
> भिकू: ताई, शिंदे sir बोलावतात. काही कागदांवर सही करायची आहे।
कांता ने समझ लिया कि कुछ गडबड है.
कांता: रात्री सही? तेवढं महत्वाचं कागद?
भिकू: हो ताई, शासनाची गोष्ट आहे।
कांता चली गई, लेकिन वहाँ कोई कागज नहीं था.
शिंदे ने शराब की बोतल उठाकर धमकी दी.
> शिंदे: तू बोलती है, पण मी तुला जाळू शकतो।
कांता ने ठंडे स्वर में कहा —
माझं गाव जळलं, पण मी जिवंत आहे. तू केवल धमकी देतोस, जाळू शकत नाहीस।
छठा अध्याय – पत्थर फेंकने वाले
अगले दिन अफवाह फैल गई —“ कांता ने पंचायत का अपमान किया।
कुछ पुरुषों ने उसके घर पर पत्थर फेंके.
कांता बाहर निकली और बोली —
>“ अगर मैं गलत हूँ, तो मुझे अदालत में बुलाओ. पत्थर फेंकने से कुछ नहीं होगा।
उसकी आवाज में ताकत थी.
औरतों ने पहली बार महसूस किया कि डर के बिना कोई भी लड सकती है.
सातवाँ अध्याय – पंचायत का सामना
पंचायत बुलवाई गई.
शिंदे ने ऊँची आवाज में कहा —
>“ ही बाई गावात अस्थिरता पसरवते!
कांता ने जवाब दिया —
अस्थिरता मैं नहीं फैलाती, तुम्हारा अन्याय फैलता है. मैं केवल सच बोलती हूँ।
गाँव में तालियाँ गूँज उठीं.
शिंदे चुप रहा.
कांता अब केवल एक औरत नहीं, बल्कि गाँव की आवाज बन चुकी थी.
आठवाँ अध्याय – स्त्री संघ का निर्माण
कांता ने अन्य महिलाओं को संगठित किया.
स्त्री संघ चंदेला” का गठन हुआ.
कांता बोली —
>“ आज हम पुरुषों के खिलाफ नहीं, अन्याय के खिलाफ खडे हैं. समाज बदलना है, तो पहले हमें बदलना होगा।
गाँव की बच्चियाँ भी प्रेरित हुईं.
> बच्ची: मुझे कांता ताई बनना है!
नवाँ अध्याय – जनजागरण
कांता गाँव की बच्चियों को पढाती.
उन्हें कहानियाँ सुनाती — रानी लक्ष्मीबाई, सावित्रीबाई फुले.
गाँव में बदलाव धीरे- धीरे दिखने लगा.
पुरुष भी उसके सम्मान करने लगे.
सरस्वती ताई मुस्कुराई —
>“ बघ कांता, तू राखेतून फुल झालीस।
कांता ने कहा —
हाँ, अब मैं केवल खुद के लिए नहीं, बल्कि सभी के लिए लडूँगी।
दसवाँ अध्याय – विजय और आशा
सालों बाद, सरकारी अधिकारी गाँव में आए.
शिंदे झुककर बोला —
>“ ही आमच्या गावची नेत्री आहे, कांता जोशी।
कांता मुस्कुराई, आँखों में आँसू.
> कांता: आई- बाबा, तुम्हारा स्वप्न पूरा हुआ।
चंदेला गाँव अब केवल गाँव नहीं, बल्कि सशक्त औरतों का प्रतीक बन गया.
समापन संदेश
>“ औरत जब डरना छोडती है, तो समाज की नींव हिल जाती है.
कांता ने राख से उठकर साबित किया कि साहस और हिम्मत के सामने कोई अन्याय टिक नहीं सकता.
चंदेला अब केवल गाँव नहीं, बल्कि आवाज है उन सभी औरतों की, जो डर के बिना जिंदा रहना जानती हैं।
समाप्त