* रोमांच की तलाश में
कहते हैं कुछ यात्राएँ पैरों से नहीं, भीतर की किसी अनसुनी पुकार से शुरू होती हैं; गिरनार की तलहटी पर खड़े राज और युग को लगा जैसे पर्वत ने चुपचाप उन्हें बुला लिया है।
राज और युग बचपन से ही सबसे अच्छे दोस्त थे। दोनों को रोमांच की तलाश रहती थी। एक दिन उन्होंने तय किया कि वे गुजरात के गिरनार पर्वत पर चढ़ाई करेंगे—जहाँ एक पुराना, रहस्यमय मंदिर होने की बात कही जाती थी।सुबह-सुबह वे निकल पड़े। रास्ता कठिन था, लेकिन उत्साह से भरा हुआ। जैसे-जैसे वे ऊपर चढ़ते गए, हवा में अजीब-सी ताजगी और भय का मिला-जुला एहसास भर गया। पेड़ों के बीच से आती ठंडी हवा में वे मंत्रोच्चार जैसी हल्की फुसफुसाहटें सुनते रहे। कई घंटों बाद उन्हें धुंध के बीच एक प्राचीन पत्थर का मंदिर दिखाई दिया। दरवाजे पर कोई नहीं था, लेकिन दीपक जल रहा था। युग ने धीरे से दरवाज़ा धकेला—भीतर एक शिवलिंग था, जिसके चारों ओर चमकते चाँदी के नाग लिपटे थे। राज ने आगे बढ़कर देखा तो मंदिर की दीवारों पर चलायमान छायाएँ उभरने लगीं। मानो किसी को उनका आना पसंद नहीं आया हो। तभी युग को लगा कि किसी ने उसके पीछे से नाम पुकारा—"युग..."दोनों घबराकर पीछे मुड़े, पर वहाँ कोई नहीं था। तभी पूरी जगह में तेज़ घंटियाँ बजने लगीं, पत्थर की प्रतिमाएँ धीरे-धीरे झिलमिलाने लगीं, और मंदिर के बीच से हवा में गूँजती एक आवाज़ आई— “जो परम सत्य की खोज में आता है, उसे डर से पार पाना ही पहला द्वार है।”दोनों तुरंत बाहर भागे, लेकिन जब पीछे मुड़कर देखा, तो वहाँ कोई मंदिर ही नहीं था—सिर्फ़ जंगल और पत्थरों का ढेर।राज और युग आज भी उस घटना का ज़िक्र करते हैं… पर कोई उनकी कहानी पर विश्वास नहीं करता।
* सत्य का द्वार
राज और युग गिरनार पर्वत से नीचे आ चुके थे, लेकिन मन अभी भी वहीँ अटका था। उनके अंदर अजीब-सी बेचैनी थी—कहीं मंदिर था ही नहीं, तो जो उन्होंने देखा, वह क्या था?कुछ दिन बाद, युग ने राज से कहा, “शायद हमें फिर से वहाँ जाना चाहिए। डर से भागने के बजाय उसका अर्थ समझना चाहिए।”
राज ने सहमति जताई। दोनों फिर पर्वत पर चढ़ गए, लेकिन इस बार उनके मन में भय नहीं, श्रद्धा थी।पहुंचते ही उसी जगह पर उन्हें एक वृद्ध साधु बैठे दिखाई दिए। साधु मुस्कुराए और बोले, “तुम दोनों लौट आए? अब तुम मंदिर को देख सकोगे, क्योंकि अब तुम्हारे मन में संदेह नहीं है।”जैसे ही दोनों ने आँखें बंद कीं, उनके सामने मंदिर पुनः प्रकट हो गया—दीपक जल रहे थे, हवा में शांति थी। साधु ने कहा, “गिरनार का यह मंदिर उसी को दर्शन देता है जो भीतर के अंधकार को जीत लेता है। डर और संदेह इंसान को सत्य से दूर रखते हैं।”राज ने पूछा, “लेकिन यह आवाज़ किसकी थी जो हमें पुकार रही थी?”
साधु ने मुस्कुरा कर कहा, “वह तुम्हारे भीतर की चेतना थी, जो तुम्हें याद दिला रही थी—मन का मंदिर ईश्वर का असली निवास है।”मंदिर धीरे-धीरे गायब हो गया, पर इस बार दोनों के दिल में एक स्थायी शांति ठहर गई।
वे समझ गए कि गिरनार का रहस्य ईश्वर की शक्ति से अधिक, आत्मा की सच्चाई का प्रतीक है।