Heartfelt Talks with Grandma in Hindi Motivational Stories by Gen z writer books and stories PDF | दिल की बात दादी के साथ

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दिल की बात दादी के साथ

सुबह की हल्की धूप आँगन में उतर रही थी। चिड़ियों की चहचहाहट और रसोई से आती चाय की खुशबू ने घर को एक सुकून भरा एहसास दिया था।
ये घर शर्मा परिवार का था — पाँच लोगों का छोटा लेकिन प्यारा परिवार।

दादी— सावित्री देवी (65), जिनकी मुस्कान जैसे घर की रौनक थी।
दादाजी— ओमप्रकाश शर्मा (68), जिन्हें सुबह का अख़बार और रेडियो सुनने का शौक था।
बेटा— राजेश शर्मा (42), एक सरकारी कर्मचारी, जो वक्त का बहुत पाबंद था।
बहू— मीनाक्षी (39), जो हर सुबह घर को संभालते हुए भी बच्चों की हर छोटी बात पर ध्यान देती थी।
और फिर, उनके बच्चे —
पोती— सान्वी (18), जो 12वीं में पढ़ती थी और दिल में एक सपना छुपाए बैठी थी — फैशन डिज़ाइनर बनने का।
पोता— आरव (15), जो हमेशा जोश से भरा रहता था और खेलों में नाम कमाने का ख्वाब देखता था।

आज भी घर में वही रोज़ का रूटीन था।
दादाजी रेडियो पर खबरें सुन रहे थे, राजेश ऑफिस जाने की तैयारी में थे, और मीनाक्षी रसोई में नाश्ता बना रही थी।
बस सान्वी आज कुछ अलग थी — वो ड्राइंग कॉपी लिए कोने में बैठी थी, पर कलर नहीं कर रही थी। उसकी आँखों में कुछ थकान थी, जैसे किसी अधूरे सवाल का जवाब ढूँढ रही हो।

दादी ने रसोई से झाँक कर देखा, “क्या हुआ सान्वी? आज ब्रश नहीं कर रही अपनी ड्रेस डिज़ाइन?”
सान्वी ने हल्की सी मुस्कान दी — “मन नहीं है, दादी…”
“अरे क्यों बेटा? सुबह-सुबह उदासी अच्छी नहीं लगती तुम पर।”
सान्वी ने कुछ नहीं कहा, बस नजरें झुका लीं।

राजेश ने अखबार मोड़ते हुए कहा, “उसे डॉक्टर बनना है, तो इन सब में टाइम क्यों बर्बाद करती है? अब ये ड्रॉइंग-वॉइंग का शौक छोड़ो सान्वी, बोर्ड के एग्ज़ाम आ रहे हैं।”
मीनाक्षी ने हामी भरी, “हाँ माँ जी, हमने तय किया है — सान्वी को मेडिकल करवाना है। उसकी भलाई इसी में है।”

दादी ने उनकी बातें चुपचाप सुनीं, फिर सान्वी की तरफ देखा।
उसकी आँखें कुछ कह रही थीं — जैसे कोई सपना धीरे-धीरे टूट रहा हो।

आरव बीच में बोला, “माँ, दीदी को डिज़ाइनिंग पसंद है ना, फिर डॉक्टर क्यों?”
राजेश ने भौंहे चढ़ाईं, “बच्चों को हर चीज़ पसंद नहीं करनी चाहिए। ज़िंदगी खेल नहीं है, समझे?”
आरव चुप हो गया, पर सान्वी ने उसके सिर पर हाथ रखा। उसकी आँखों में हल्की नमी थी।

दादी धीरे से बोलीं —
“राजेश, हर बच्चे का रास्ता खुद से बनता है। हम बस उन्हें सही दिशा दिखा सकते हैं, जबरदस्ती नहीं।”
राजेश ने कहा, “माँ, आप तो हमेशा बच्चों का ही पक्ष लेती हैं।”
“क्योंकि मैं बच्चों के दिल की धड़कन सुन सकती हूँ,” दादी मुस्कुराईं।

घर का माहौल कुछ देर के लिए शांत हो गया।
सान्वी अपनी कॉपी लेकर कमरे में चली गई।
दादी की निगाहें उसी पर थीं — वो समझ चुकी थीं कि उसकी मुस्कान के पीछे कितनी चुप्पी छिपी है।

बाहर धूप थोड़ी तेज़ हो गई थी, और घर के अंदर दादी के मन में एक ख्याल आकार लेने लगा था —
कुछ तो करना पड़ेगा…
शाम को वो सबको साथ बैठाकर बात करेंगी — बिना डाँट, बिना बहस… सिर्फ़ समझ से।

उन्होंने खुद से कहा —
“कभी-कभी बच्चों के सपने सुनने के लिए हमें अपनी सोच थोड़ी बदलनी पड़ती है।”

और तभी आरव भागते हुए आया, “दादी! स्कूल का टाइम हो गया, चलो जल्दी आशीर्वाद दो!”
दादी ने हँसते हुए माथे पर हाथ रखा —
“जा बेटा, हिम्मत रखना — और अपनी दीदी का ध्यान रखना।”

सान्वी ऊपर कमरे की खिड़की से उन्हें देख रही थी।
वो जानती थी, दादी कुछ न कुछ ज़रूर सोच रही हैं।
उसके दिल में एक छोटी सी उम्मीद फिर से जागी…