धूप ढल चुकी थी। शहर की भीड़ में हर कोई अपनी मंज़िल की तरफ़ भाग रहा था, पर आरव आज फिर वही पुरानी बेंच पर बैठा था — थका हुआ, टूटा हुआ, और लगभग हार चुका। उसके हाथ में कुछ पुराने कागज़ थे — रिजेक्शन लेटर, जो अब उसकी जिंदगी के पन्नों में दर्द की कहानी बन चुके थे।
कभी उसके सपनों में आग थी। वह चाहता था कि अपनी मेहनत से कुछ बड़ा करे, अपने छोटे शहर का नाम रौशन करे। लेकिन बीते तीन सालों में, हर कोशिश नाकाम रही। कभी इंटरव्यू में रिजेक्ट, कभी प्रोजेक्ट असफल।
आज उसकी हालत यह थी कि जेब में बस कुछ सिक्के थे और दिल में ढेर सारा बोझ।
“कितनी कोशिश करूं मैं?” उसने खुद से बुदबुदाया।
उसकी आंखों से एक आंसू गिरा, और तभी बेंच के दूसरे छोर से आवाज आई —
“थक गए हो क्या बेटा?”
आरव ने मुड़कर देखा — एक बुजुर्ग व्यक्ति बैठे थे। सफेद दाढ़ी, झुर्रियों से भरा चेहरा, पर आंखों में अजीब सी चमक थी।
“हाँ, शायद अब हिम्मत नहीं बची,” आरव ने जवाब दिया।
बूढ़े ने मुस्कुराते हुए पूछा, “क्या खो दिया जो इतना टूट गए?”
“सब कुछ,” आरव ने कहा, “सपने, उम्मीदें, और शायद खुद पर भरोसा भी।”
बूढ़े ने हल्की हँसी के साथ कहा,
“जब तक इंसान सांस ले रहा है, तब तक कुछ भी खोया नहीं। बस समझो, सफ़र थोड़ा लंबा है।”
आरव ने थके हुए स्वर में कहा,
“आपके लिए कहना आसान है। मैंने बहुत कुछ किया — मेहनत, लगन, सब कुछ। लेकिन हर बार नाकामी मिली।”
बूढ़े व्यक्ति ने चुपचाप उसकी आंखों में देखा और बोले,
“मैं तुम्हें एक कहानी सुनाता हूं। शायद तुम्हें जवाब वहीं मिल जाए।”
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कहानी – 'टूटी हुई चिड़िया'
“बहुत साल पहले,” बुजुर्ग बोले, “एक छोटी सी चिड़िया थी जो उड़ना चाहती थी। बाकी पक्षी ऊँचे आसमान में उड़ते थे, और वह सिर्फ देखती रहती थी।
एक दिन उसने तय किया — ‘मैं भी उड़ूंगी।’
वह एक ऊँचे पेड़ पर चढ़ी और अपने छोटे पंख फड़फड़ाने लगी। लेकिन जैसे ही उड़ी, नीचे गिर पड़ी।
पहला घाव मिला।
लोग हँसे, बोले – ‘तेरे जैसे नहीं उड़ सकते।’
पर उसने फिर कोशिश की।
दूसरे दिन फिर गिरी।
तीसरे दिन उसके पंख घायल हो गए।
अब वो डरने लगी। उसने सोचा, शायद मैं उड़ने के लिए बनी ही नहीं।
लेकिन तभी एक बूढ़ा कबूतर उसके पास आया और बोला –
‘तू हर बार गिरती है, इसलिए उड़ नहीं पा रही। पर एक बार अगर गिरते हुए भी तू कोशिश करती रही, तो हवा तुझे उठाना सीख जाएगी।’
चिड़िया ने आखिरी बार कोशिश की।
इस बार वो भी गिरी, पर उसने पंख फड़फड़ाना नहीं छोड़ा।
और वही पल था जब हवा ने उसे उठा लिया।
वो उड़ गई — जितना उसने कभी सोचा भी नहीं था।”
बूढ़े की आंखें चमक उठीं, “समझे? हवा कभी पहले नहीं उठाती, पहले वो गिरना सिखाती है।”
आरव कुछ देर तक चुप रहा। शब्द उसके दिल में उतर चुके थे।
“तो क्या मुझे फिर कोशिश करनी चाहिए?” उसने धीरे से पूछा।
“कोशिश नहीं,” बूढ़े ने कहा, “आख़िरी कोशिश करनी चाहिए।
क्योंकि पता है बेटा, ज़िंदगी उसी को मौका देती है जो आखिरी बार भी पूरी ताकत से उठता है।”
आरव के भीतर कुछ बदल गया था।
वो उठा, रिजेक्शन लेटर को देखा — और मुस्कुरा दिया।
उसने उन कागजों को मोड़ा, जेब में रखा और बोला,
“शायद अब मेरी बारी है हवा को महसूस करने की।”
अगले दिन आरव ने वही किया जो वो लंबे समय से टाल रहा था — नई शुरुआत।
उसने अपने पुराने असफल प्रोजेक्ट को दोबारा खोला।
इस बार उसने दूसरों से सलाह ली, अपनी गलतियों को स्वीकार किया, और हर दिन सीखता गया।
रातों की नींदें गईं, पर दिल में फिर एक उम्मीद जल उठी थी।
वह जान गया था कि मंज़िल देर से मिलती है, पर मिलती ज़रूर है।
छह महीने बीत गए।
एक सुबह उसे मेल आया —
“Congratulations! Your startup idea has been selected for funding.”
आरव की आंखों से फिर आंसू गिरे, पर इस बार खुशी के थे।
उसे याद आया — वह बूढ़ा व्यक्ति, जिसकी कहानी ने उसकी जिंदगी बदल दी थी।
वो उसी पार्क की बेंच पर पहुंचा।
बेंच वही थी, हवा वही थी, पर बूढ़ा अब वहां नहीं था।
केवल एक चिट्ठी रखी थी —
“जब तुम उड़ना सीख जाओ, तो किसी और टूटी हुई चिड़िया को कहानी सुनाना। यही असली जीत है।”
आरव मुस्कुराया।
उस दिन से उसने ठान लिया —
वो सिर्फ अपने लिए नहीं, उन सबके लिए लड़ेगा जो हार मान चुके हैं।
अब आरव एक सफल उद्यमी था।
उसका स्टार्टअप हजारों युवाओं को रोजगार दे रहा था।
हर सप्ताह वह कॉलेजों में जाकर एक ही बात कहता —
“सफलता तब आती है जब आप ‘एक बार और’ की हिम्मत रखते हैं।”
लोग उसकी बातें सुनते और प्रेरित होते, लेकिन किसी को यह नहीं पता था कि उसकी कहानी भी कभी नाकामी से शुरू हुई थी।
एक दिन जब आरव अपने ऑफिस में बैठा था, एक युवा लड़की आई —
“सर, मैं बहुत बार असफल हो चुकी हूं। लगता है अब मुझसे नहीं होगा।”
आरव मुस्कुराया, और धीरे से बोला —
“एक कहानी सुनोगी?”
वो वही कहानी सुनाने लगा — ‘टूटी हुई चिड़िया’ की।
लड़की की आंखों में चमक लौट आई।
वो चली गई, लेकिन पीछे आरव के मन में शांति थी।
वो समझ चुका था — असली जीत अपने सपने पूरे करने में नहीं,
बल्कि दूसरों को हारने से बचाने में है।