जहां से निधि की शुरुआती होती है नए रिश्ते की
और कहानी की
निधि — एपिसोड 1
“कहानी वहीं से नहीं… जहाँ टूटती है,
कहानी वहाँ से शुरू होती है—जहाँ पहली धड़कन जागती है।”
निधि की कहानी को लोग बीच से जानते हैं—उसके अपमान, उसके आँसू, उसके मौन प्रेम को…
पर एक लेखक के तौर पर मैं आज पाठकों को वहाँ ले जाना चाहता हूँ जहाँ यह कहानी सचमुच शुरू हुई थी।
जहाँ एक माँ की चिंता, एक बेटी की मासूमियत और एक अनदेखी मुस्कान का बीज पहली बार धरती को छूता है।
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🌼 रूपा चाची का आना और सीता की चिंता
“बस… मेरी आँखों के सामने निधि की शादी हो जाए।”
सीता की आँखों में बरसों की थकान, जिम्मेदारियों की रेखाएँ, और एक माँ की अंतिम इच्छा थी।
रूपा चाची लखनऊ से आई थीं। बातें करते-करते उन्होंने कहा—
“दीदी, एक लड़का है… सरकारी नौकरी में। पढ़ा-लिखा है… और संस्कारी लड़की चाहता है। निधि ठीक रहेगी उसके लिए।”
सीता ने गहरी साँस छोड़ी—
“ठीक है… पिताजी से बात करके बताऊँगी।”
उसी साँस में जैसे बरसों का बोझ लटक गया।
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🌼 रिश्ता देखने का दिन
कुछ ही दिनों में लड़का घर देखने आने वाला था।
दोपहर का समय था। बैठक में सुधांशु के पिता, माँ, छोटा भाई और एक दोस्त बैठे थे—
सभ्य लोग, सलीके में, और चेहरे पर उम्मीद लिए हुए।
उधर अंदर—
निधि ने गोल्डन रंग का सूट पहना था।
सीधा-सादा… पर उसकी शालीनता किसी रानी की तरह चमक रही थी।
सिर पर दुपट्टा, आँखों में झिझक, और हाथों में चाय की ट्रे।
जैसे ही वो बैठक में पहुँची—
सुधांशु की माँ मुस्कुराईं—
“बेटा, तुम्हारा नाम?”
“जी… निधि…”
बस इतना ही।
और फिर उसे अंदर भेज दिया गया।
पर गुरुर—क्योंकि देवांश, उसका बड़ा भाई, चुप कहाँ रहने वाला!
“एक मिनट!
लड़के-लड़की को बात तो करने दो। ऐसे कैसे फ़ैसला हो जाएगा?”
सबने उसकी बात मान भी ली।
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🌼 पहली मुलाक़ात — शब्द कम, धड़कनें ज़्यादा
थोड़ी देर बाद सुधांशु को अंदर भेजा गया।
कमरे में निधि पलंग के किनारे बैठी थी। सुधांशु कुर्सी खींचकर सामने बैठा।
कमरा शांत…
सिर्फ़ घड़ी की टिक-टिक…
और दोनों की धड़कनों का शोर।
निधि की नज़रें झुकी हुई थीं।
वो पलकों को उठाती, फिर झट से नीचे कर लेती।
सुधांशु ने पूछा—
“आपको कुछ पूछना है?”
निधि ने धीरे से सिर हिलाया—
“नहीं…”
सुधांशु हल्का-सा मुस्कुराया—
“तो बस एक सवाल—क्या आपको मैं पसंद हूँ?”
निधि ने पहली बार उसकी आँखों में देखा…
पल भर को।
और फिर शर्म से सिर झुका लिया।
वही एक पल—इस कहानी की असली शुरुआत था।
लेखक होने के नाते, मैं दावा कर सकता हूँ—
यहीं पर प्रेम ने पहली बार सांस ली थी।
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🌼 पहली मुलाक़ात के बाद—दिलों की चुप बातचीत
दो दिन बाद ही सुधांशु ने कहा—
“मैं निधि से अकेले मिलना चाहता हूँ।”
सीता माँ पुरानी सोच की थीं—
“शादी के बाद करो जो करना है। अभी नहीं।”
बहुत समझाने के बाद आखिर वे मान गईं।
निधि ने उस दिन अपने हाथों से खाना बनाया—
प्याज़ के पराँठे, आलू की सब्ज़ी, और हलवा।
टिफिन लेकर गाड़ी में बैठी।
नज़रें अब भी झुकी हुई।
सुधांशु उसे चुपचाप देखता रहा—
“तुम बहुत अ…”
शायद वह कहना चाहता था—“अच्छी हो”…
पर शब्द वहीं अटक गए।
खाना खत्म होने पर वह बोला—
“मेरा हाथ पकड़ो…”
निधि हिचकिचाई।
तो सुधांशु ने खुद उसका हाथ पकड़ लिया।
वही स्पर्श—
वही सारी कहानी की असली नींव।
“तुम वैसी ही हो जैसी मैंने सोचा था।
तुम मुझे बहुत पसंद हो…”
पहली बार किसी ने निधि को इतने अधिकार से, इतने सम्मान से देखा था।
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🌼 दीपावली — पहला तोहफा, पहली मुस्कान
दीपावली के दिन सुधांशु ने सरप्राइज़ भेजा—
चॉकलेट, एक शायरी वाला कार्ड, और नया मोबाइल।
निधि का छोटा भाई पैकेट लेकर आया।
“दीदी! देखो जीजा जी का तोहफा!”
जैसे ही उसने फोन ऑन किया, उसी वक्त कॉल—
“कैसा लगा?
होने वाली पत्नी को खुश रखना मेरा हक है।”
निधि का चेहरा खिल उठा।
उसे लगा—ईश्वर ने उसकी झोली में सचमुच एक अच्छा पति डाल दिया।
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🌼 हर रात की बात—दिल का दरवाज़ा धीरे-धीरे खुलना
कॉल्स बढ़ने लगीं।
शब्द लंबी रातों में फैलने लगे।
एक दिन सुधांशु बोला—
“मुझे कॉलेज में बहुत-सी लड़कियाँ मिलीं…
पर प्यार किसी से नहीं हुआ।
प्यार तो मुझे तुमसे हुआ है।
तुम पहली लड़की हो जिसने मेरा दिल छुआ।”
उस रात निधि ने खुद को आईने में देखा—
जैसे किसी ने उसके जीवन की खाली जगहों पर हल्का-सा रंग भर दिया हो।