Operation Thunderbolt: Israel's heroic miracle in Hindi Motivational Stories by Mayuresh Patki books and stories PDF | ऑपरेशन थंडरबोल्ट : इस्राइल का साहसिक चमत्कार

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ऑपरेशन थंडरबोल्ट : इस्राइल का साहसिक चमत्कार


1976 में दुनिया ने एक ऐसा चमत्कार देखा जिसने आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई की परिभाषा ही बदल दी। यह कहानी है एक छोटे से देश, इस्राइल की, जिसने अपने नागरिकों की सुरक्षा के लिए हज़ारों किलोमीटर दूर जाकर मौत के मुंह से लोगों को वापस लाने का असंभव-सा मिशन पूरा किया। यह था “ऑपरेशन एंटेबे”, जिसे “ऑपरेशन थंडरबोल्ट” भी कहा जाता है। यह दुनिया के सबसे साहसिक सैन्य अभियानों में से एक माना जाता है।

घटना 27 जून 1976 की है। उस दिन एयर फ्रांस की फ्लाइट 139, जो तेल अवीव से पेरिस जा रही थी, को चार आतंकवादियों ने हाईजैक कर लिया। विमान में कुल 248 यात्री और 12 क्रू मेंबर थे। ये चार आतंकवादी, दो फिलिस्तीनी और दो जर्मन नागरिक “पॉपुलर फ्रंट फॉर द लिबरेशन ऑफ पलेस्टाइन” नामक संगठन से जुड़े थे। उन्होंने पहले विमान को एथेंस से उड़ान भरने के बाद अपने नियंत्रण में लिया और फिर उसे बेंगाज़ी, लीबिया में कुछ घंटों के लिए उतारा, जहाँ उन्होंने ईंधन भरवाया। इसके बाद विमान को युगांडा के एंटेबे एयरपोर्ट पर उतारने का आदेश दिया गया।

उस समय युगांडा का शासक था इदी अमीन, एक तानाशाह, जो अक्सर इस्राइल से पहले अच्छे संबंध रखता था लेकिन बाद में उसने पलेस्टाइन समर्थक देशों का साथ देना शुरू किया। जब विमान एंटेबे एयरपोर्ट पहुँचा, तो इदी अमीन ने आतंकवादियों को खुला समर्थन दिया और हवाई अड्डे पर उन्हें सुरक्षा तक मुहैया कराई। अब यह घटना केवल एक हाइजैकिंग नहीं रही, बल्कि एक अंतरराष्ट्रीय संकट बन गई।

हाइजैकर्स ने घोषणा की कि वे 40 पलेस्टिनी कैदियों की रिहाई चाहते हैं जो इस्राइल और अन्य देशों की जेलों में बंद थे। उन्होंने 1 जुलाई तक का समय दिया और कहा कि अगर उनकी माँगें पूरी नहीं की गईं तो वे बंधकों को मार देंगे। अगले दो दिनों में आतंकवादियों ने गैर-इस्राइली और गैर-यहूदी यात्रियों को रिहा कर दिया। लेकिन लगभग 106 यहूदी और इस्राइली यात्री बंधक बने रहे।

तेल अवीव में इस्राइल सरकार गहरी चिंता में थी। प्रधानमंत्री यित्झाक राबिन और रक्षा मंत्री शिमोन पेरेस के सामने कठिन निर्णय था, क्या आतंकवादियों से समझौता किया जाए या सैन्य कार्रवाई की जाए। इस्राइल का सिद्धांत स्पष्ट था कि वे आतंकवाद के आगे झुकेंगे नहीं। फिर भी, वे हर संभव शांतिपूर्ण रास्ते की कोशिश कर रहे थे। इस बीच, “मोसाद” यानी इस्राइल की खुफिया एजेंसी ने अफ्रीका में अपने नेटवर्क को सक्रिय किया। एंटेबे एयरपोर्ट की पूरी जानकारी जुटाई गई, वहाँ के नक्शे पुराने इस्राइली इंजीनियरों से प्राप्त किए गए जिन्होंने कुछ साल पहले वही टर्मिनल भवन बनाया था।

योजना बेहद गुप्त रखी गई। 3 जुलाई 1976 की रात को, यानी हाइजैकिंग के छह दिन बाद, इस्राइल ने दुनिया का सबसे साहसिक बचाव अभियान शुरू किया। इस मिशन का नाम रखा गया “ऑपरेशन थंडरबोल्ट”। चार सी-130 हरक्यूलस विमान, जिनमें लगभग 100 से 150 विशेष प्रशिक्षित कमांडो थे, बिना किसी को जानकारी दिए अफ्रीका की दिशा में उड़ चले। यह उड़ान लगभग 4000 किलोमीटर लंबी थी और रास्ते में उन्हें किसी भी देश से आधिकारिक अनुमति नहीं मिली थी।

विमानों में “सायेरेट मटकल” नामक इस्राइल की विशेष कमांडो यूनिट थी, जिसका नेतृत्व लेफ्टिनेंट कर्नल योनेतान नेतन्याहू कर रहे थे, जो बाद में इस्राइल के प्रधानमंत्री बने बेंजामिन नेतन्याहू के बड़े भाई थे।

जब विमान एंटेबे पहुँचे, तब रात के लगभग 11 बजे थे। पहला हरक्यूलस विमान उतरा और उससे एक काली मर्सिडीज़ कार निकली, बिल्कुल वैसी जैसी इदी अमीन इस्तेमाल करता था। उसके पीछे दो लैंड रोवर गाड़ियाँ थीं। यह रणनीति आतंकवादियों और युगांडाई सैनिकों को भ्रमित करने के लिए बनाई गई थी। हवाई अड्डे के गार्डों को लगा कि खुद अमीन आ गए हैं। लेकिन कुछ मिनटों में ही कमांडो ने गोलीबारी शुरू कर दी और मुख्य टर्मिनल की ओर बढ़ गए।

संपूर्ण ऑपरेशन केवल 90 मिनट तक चला, लेकिन उस समय में जो हुआ वह किसी फिल्म से कम नहीं था। कमांडो ने आतंकवादियों को मौके पर ही मार गिराया, बंधकों को सुरक्षित बाहर निकाला और उसी हरक्यूलस विमानों में बैठाकर वापस इस्राइल की ओर उड़ चले। लेकिन इस संघर्ष में योनेतान नेतन्याहू वीरगति को प्राप्त हुए, वे अपने देश के सैकड़ों नागरिकों की जान बचाकर खुद शहीद हो गए।

इस अभियान में कुल 102 बंधकों को बचाया गया। तीन बंधक मारे गए, और एक महिला जो युगांडा के अस्पताल में थी, बाद में इदी अमीन के आदेश पर हत्या कर दी गई। इस्राइल के सैनिकों में केवल एक की शहादत हुई, लेकिन लगभग 20 उगांडा सैनिक मारे गए और 11 उनके मिग फाइटर जेट्स को नष्ट कर दिया गया ताकि वे पीछा न कर सकें।

जब यह खबर दुनिया भर में पहुँची, तो इस्राइल की प्रशंसा हर ओर से होने लगी। कई देशों ने कहा कि यह मिशन “साहस और सटीकता” का उदाहरण है। अमेरिका, ब्रिटेन और अन्य पश्चिमी देशों ने इसे आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक कदम बताया। दूसरी ओर, अफ्रीकी देशों में मिश्रित प्रतिक्रिया थी, कुछ ने इस्राइल की बहादुरी की सराहना की, तो कुछ ने कहा कि यह किसी अन्य देश की संप्रभुता का उल्लंघन है।

ऑपरेशन एंटेबे ने यह साबित कर दिया कि यदि किसी देश में अपने नागरिकों के प्रति जिम्मेदारी और विश्वास हो, तो कोई भी दूरी या जोखिम उसके साहस को रोक नहीं सकता। इस्राइल ने दिखाया कि जब उसके लोगों की जान खतरे में होती है, तो वह हजारों किलोमीटर दूर जाकर भी कार्रवाई करने से नहीं झिझकता। यह सिर्फ एक सैन्य विजय नहीं थी, बल्कि यह “राष्ट्रीय गौरव” का प्रतीक बन गया।

इस घटना के कई रणनीतिक और मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़े। सबसे पहले, आतंकवादियों को स्पष्ट संदेश मिला कि इस्राइल अपने नागरिकों की सुरक्षा के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। दूसरे, इस मिशन ने पूरी दुनिया को दिखाया कि विशेष कमांडो यूनिट्स कितनी निर्णायक भूमिका निभा सकती हैं। तीसरे, इस्राइल की खुफिया एजेंसी “मोसाद” की प्रतिष्ठा और बढ़ गई क्योंकि उसने बिना किसी प्रत्यक्ष समर्थन के अफ्रीका में इस तरह की जटिल योजना तैयार की।

यह घटना आज भी सैन्य अकादमियों में पढ़ाई जाती है। अमेरिका, ब्रिटेन, भारत, और अन्य देशों की विशेष बलों ने इस ऑपरेशन से बहुत कुछ सीखा — खासकर यह कि सीमित संसाधनों और समय में भी कैसे एक सटीक, तेज़ और साहसी मिशन अंजाम दिया जा सकता है।

इदी अमीन ने ऑपरेशन के बाद इस्राइल के खिलाफ भड़काऊ भाषण दिए, लेकिन दुनिया को साफ दिख गया कि उसकी सहमति और आतंकवादियों को दी गई सहायता ने उसकी छवि को और खराब किया। कुछ सालों बाद उसका शासन भी खत्म हो गया और वह निर्वासन में चला गया।

ऑपरेशन एंटेबे की सबसे प्रेरक बात यह है कि यह केवल हथियारों या योजना का नहीं, बल्कि “संकल्प” का उदाहरण था। इस्राइल ने यह दिखाया कि राष्ट्रीय नीति में नागरिकों का जीवन सर्वोपरि होना चाहिए। यह कहानी आज भी दुनिया भर के देशों के लिए एक सबक है कि आतंकवाद के सामने झुकना कभी विकल्प नहीं हो सकता।

अगर इस मिशन का मानव पहलू देखें, तो यह एकता, जिम्मेदारी और बलिदान की कहानी है। बंधकों में शामिल लोगों ने बाद में कहा कि जब उन्होंने अपने कमांडो को आते देखा, तो उन्हें ऐसा लगा जैसे मौत के अंधेरे में अचानक रोशनी फूट पड़ी हो। किसी ने कहा, “हम जान गए कि हमारा देश हमें कभी नहीं छोड़ेगा।” यही भावना हर उस राष्ट्र की पहचान होती है जो अपने नागरिकों के साथ खड़ा रहता है।

आज इतने दशकों बाद भी “ऑपरेशन एंटेबे” को याद किया जाता है। इस पर कई फिल्में बनीं, जैसे “Operation Thunderbolt” (1977) और “7 Days in Entebbe” (2018)। हर बार यह कहानी लोगों को याद दिलाती है कि साहस और संगठन से असंभव को संभव बनाया जा सकता है।

इस्राइल ने इस ऑपरेशन से एक नया इतिहास रचा। उसने न केवल अपने नागरिकों को बचाया, बल्कि पूरी दुनिया को यह संदेश दिया कि आतंक के सामने सिर झुकाना नहीं, बल्कि उसका मुकाबला करना ही सच्ची नीति है। योनेतान नेतन्याहू का बलिदान आज भी इस्राइल में राष्ट्रीय वीरता का प्रतीक है।

ऑपरेशन एंटेबे केवल एक सैन्य अभियान नहीं था, यह इंसानियत, जिम्मेदारी और राष्ट्र के प्रति निष्ठा की सबसे ऊँची मिसाल थी। इसने साबित किया कि जब संकल्प दृढ़ हो, तो कोई भी दूरी, कोई भी खतरा, और कोई भी बाधा बड़ी नहीं होती।