Moonflower in Hindi Short Stories by pink lotus books and stories PDF | शशिमुखी

Featured Books
Categories
Share

शशिमुखी


रानी शशिमुखी… सोलह वर्ष की कोमल कली, जिसकी आँखों में सागर-सी गहराई थी और मन में भक्ति की ज्योति।
राजा रयशिह — अठारह का, रणभूमि में विजयी, कठोर अनुशासन वाला पर भीतर से नर्म।
जब शशिमुखी उसके सामने आती, तो उसकी सारी कठोरता जैसे पिघल जाती; वो बस एक साधारण मनुष्य रह जाता — एक ऐसा जो उस लड़की की मासूम हँसी, उसकी नमी भरी आँखों और उसके भोलेपन में खो जाता।

शादी के बाद जब शशिमुखी को उस एकांत महल में भेजा गया, तो वो अकेली नहीं थी — उसके भीतर था उसका विश्वास, उसका प्रेम, उसकी पूजा।
राजा दूर था, मगर उसका नाम हर श्वास में बसता था।
वो दिन-रात भगवान शिव और माँ काली की भक्ति करती रही, जैसे उसी भक्ति में अपने प्रिय की छवि खोजती हो।

किंतु कुछ कारवश राजा को और एक विवहा केकरना पड़ा जिस बात का शशि को पता नही था। पर जब ये बात उड़ती उड़ती रानी सा तक पोहोची वोह अंदर से टूट चुकी थी क्युकी यह उसका विश्वाश टूटा था। 

उस रात शशि ने आत्महत्या कर ली वही महल मे तलाब के पास. जब राजा ने शशिमुखी की लाश देखी — पहले तो जैसे समय ठहर सा गया। उसके सीने में वह वह धड़कन रुक गई, आँखों से दुनिया ओझल हो गई। कल्पना करो — वह वीर जो रणभूमि में अनगिनत मौतें देख चुका था, वही आदमी अचानक एक बच्चे सा बेबस रह गया।

उसकी पहली भावना झटके में—आश्चर्य और अविश्वास: “यह कैसे हो सकता है?”। फिर जैसे भावनाएँ एक–एक कर टूटने लगीं — चुप्पी में जलन बनी हुई ग्लानि, गुस्से का एक सन्नाटा (खुद पर, किस्मत पर, उन लोगों पर जिन्होंने ऐसा करवाया), और अंततः एक गहरा, खाली सा दर्द जो शब्दों में बयां न हो। उसकी आँखें जलती रहीं पर आँसू बहना भी रोका हुआ था — क्योंकि जो रोता है, मानो मान्यता दे देता है कि उसने खो दिया; पर यह खोना तो आत्मा का था।

फिर वह धीरे-धीरे ढह गया—पहले घुटनों पर, फिर पूरी तरह जमीन पर बैठा; उसका शौर्य, उसकी राजसी गरिमा, सब बिखर गए। स्वर में काँप आई, शब्द बचे नहीं; बस एक टूटता हुआ वचन निकला — पछतावे का, माफी माँगने जैसा, और एक प्रतिबद्धता: “मैंने जो वादा किया था, मैंने तोड़ा; अब मैं तुम्हें कभी नहीं खोऊँगा।”

माफ़ी, पिड़ितता और अपार प्रेम का मिश्रण उसकी क्रिया-कलाप बन गया — उसने महल के सारे दिये बुझा दिए, रेक्त-रंग परिधान त्याग दिये, और जीवन को तपस्या और सेवा में विलीन कर दिया — जैसे हर दिन उसकी प्रायश्चित की आग हो। लेकिन भीतर का वह खालीपन, शशिमुखी की मुस्कान की कमी, हमेशा उसके साथ रही — और हर स्मृति उसे चुभती रही, एक नीरव कर देने वाली पुकार की तरह।
— सारा महल सन्नाटे में डूबा है। हवा तक रुक गई है। राजा धीरे-धीरे चलता हुआ शशि के पास आता है — ज़मीन पर फूलों के बीच पड़ी हुई उसकी देह, जैसे कोई सोई हुई परी… चेहरा अब भी शांति से दमक रहा है।

राजा काँपते हुए हाथों से उसे अपनी गोद में उठाता है। उसके सिर को अपने सीने से लगा लेता है — वही सीना, जहाँ कभी शशि सिर रखकर मुस्कुराती थी। अब बस ठंडी साँसें हैं… कोई जवाब नहीं।

उसका दिल फट जाता है — वह बार-बार उसके बालों को सहलाता है, उसके माथे पर हाथ रखता है जैसे कह रहा हो — “जागो शशि, देखो मैं आ गया हूँ।”
पर शशि अब मौन थी।

उसने धीरे से कहा —
“तुमने कहा था मैं तुम्हारा श्रृंगार पूरा करूँगा… देखो, आज भी आया हूँ, लेकिन तुम्हारा सिंदूर तुम्हारे साथ ही चला गया…”

वह अपनी आँखों से उसके माथे पर थोड़ा सा सिंदूर लगाता है, जो अब उसकी आँखों के आँसुओं से मिलकर गीला हो चुका है।
उसने शशि को अपनी छाती से कसकर लगाया, और वहीँ बैठा रहा — घंटों, शायद पूरी रात तक।

उस रात राजा नहीं रोया — क्योंकि शशि की आत्मा को वह अपने भीतर महसूस कर रहा था।
उसने शपथ ली कि अब राज नहीं, केवल शशि का नाम जपेगा।
और शायद उसी रात से वह राजा नहीं, बल्कि साधक बन गया…
जब राजा ने शशि को अपनी गोद में लिया — उसके पैरों में वही पायल अब भी हल्के-हल्के खनक रही थी…
मानो उसकी आत्मा अब भी राजा के स्पर्श को महसूस कर रही हो…
वो कंगन, जो राजा ने युध्द से पहले उसके हाथों में पहनाया था — वही अब भी उसकी कलाई में था, मगर अब ठंडा और निश्चल।

और उसके पास रखा था — कमल का इत्र, जिसकी खुशबू शशि को सबसे प्रिय थी।
वही इत्र अब हवा में फैला हुआ था, जैसे शशि की आखिरी सांसें उस खुशबू में घुलकर पूरे वातावरण को अपने प्रेम से भर गई हों।

राजा ने उस इत्र की शीशी उठाई, धीरे से खोला —
और बोला,

> “ये खुशबू… अब मेरे जीवन की आख़िरी पहचान होगी तुम्हारी…”



उसने वो इत्र अपने हाथों में लगाया, और शशि के बालों को सहलाते हुए कहा —

> “देखो शशि… तुम्हारा वादा पूरा हुआ। अब तुम हर सांस में, हर खुशबू में, मेरे साथ हो…”



पायल की वो धीमी खनक, रात की निस्तब्धता, और कमल की महक —
तीनों मिलकर जैसे कह रही थीं —
“प्रेम कभी मरता नहीं… बस रूप बदल लेता है।”

     पर शशि ने राजा के लिए जो पत्र छोडा था उसमे दिल देहेला देने वाली बात लिखी थी 

धीरे से उसने पत्र में लिखा —

> “प्राणनाथ,
मैं तीन महीने की गर्भवती हूँ…
हमारा प्रेम अब केवल दो आत्माओं में नहीं,
एक नयी सांस में भी धड़कता है।
पर मैं अब इस संसार में नहीं रह पाऊँगी।
जब आप यह पत्र पढ़ेंगे, तब मैं शिव की शरण में जा चुकी होंगी।
मुझे माफ़ कर देना… पर मुझसे प्रेम करना मत छोड़ना।”



पत्र को रखकर उसने दीपक को प्रणाम किया,
विष का प्याला उठाया, और कहा —

> “हे महादेव…
जिस जीवन में मैं उनके बिना नहीं रह सकती,
उसमें जीने का क्या अर्थ?”



विष उसके भीतर उतर गया।
उसकी साँसें धीमी हुईं, पर होंठों पर हल्की मुस्कान थी।
उसने धीरे से whispered किया —

> “रायशिग… मैं चल रही हूँ… पर जाऊँगी नहीं…”




---

उसी रात — राजमहल में…

राजा रायशिग अचानक बेचैन हुए।
दिल में अजीब-सी घबराहट।
घोड़ा काठी में डालते ही वो निकल पड़े — बिना किसी को बताए।
वन के उस रास्ते से गुज़रते हुए, जो सिर्फ़ शशि को मालूम था।

वहाँ पहुँचकर उन्होंने उसे देखा —
शशि ज़मीन पर लेटी थी,
चेहरे पर वही शांत मुस्कान,
पैरों में पायल अब भी धीरे-धीरे बज रही थी।

राजा घुटनों पर गिर गए,
शशि का सिर अपनी गोद में लिया,
और टूटे स्वर में बोले —

> “शशि… मेरी प्राण, जागो… मैं आ गया हूँ…”



उसके माथे को चूमा,
आँखों में आँसू और मुस्कान दोनों थे।

> “मैंने कहा था न, मैं लौटूँगा…
पर तुमने इंतज़ार नहीं किया…”



फिर राजा ने देखा — पास में वही पत्र था।
पढ़ते हुए उनकी आँखों से आँसू गिरे, जो उसके गालों पर गिरे —
और जैसे उसने मुस्कुरा दिया हो एक बार फिर।

राजा ने उसकी कलाई थामी,
वही कंगन चमक रहा था।
उन्होंने कहा —

> “अब मैं इस कंगन को नहीं उतारूँगा…
जब तक ये देह है, तुम इसमें बसो…”



फिर उन्होंने चाँद की ओर देखा और कहा —

> “तुम्हारी देह भले मरी है शशि,
पर तुम्हारी आत्मा…
अब मेरे हर श्वास में जीवित रहेगी।”

पत्र में लिखा —

> “प्राणनाथ,
मैं तीन महीने की गर्भवती हूँ…
हमारा प्रेम अब केवल दो आत्माओं में नहीं,
एक नयी सांस में भी धड़कता है।
पर मैं अब इस संसार में नहीं रह पाऊँगी।
जब आप यह पत्र पढ़ेंगे, तब मैं शिव की शरण में जा चुकी होंगी।
मुझे माफ़ कर देना… पर मुझसे प्रेम करना मत छोड़ना।”



पत्र को रखकर उसने दीपक को प्रणाम किया,
विष का प्याला उठाया, और कहा —

> “हे महादेव…
जिस जीवन में मैं उनके बिना नहीं रह सकती,
उसमें जीने का क्या अर्थ?”



विष उसके भीतर उतर गया।
उसकी साँसें धीमी हुईं, पर होंठों पर हल्की मुस्कान थी।
उसने धीरे से whispered किया —

> “रायशिग… मैं चल रही हूँ… पर जाऊँगी नहीं…”


By:pink lotus
      Hii guys agr muje likhne me galti hui hoto sorry maaf krna and thank u so much to read this comment kr ke zarur bataye ye kesi likhi he 🌸👍❣️🙏