Death and Birth (brief expressions): in Hindi Anything by महेश रौतेला books and stories PDF | मृत्यु और जन्म ( संक्षिप्त भाव ):

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मृत्यु और जन्म ( संक्षिप्त भाव ):

मृत्यु और जन्म( संक्षिप्त भाव):

मृत्यु और जन्म मनुष्य के लिए सदा रहस्य रहे हैं। जीवन जन्म और मृत्यु के बीच हथेली भर होता है।कुछ मृत्यें धीरे-धीरे खिसक कर आती हैं। कुछ अचानक। और कुछ स्तब्ध और आश्चर्यचकित कर जाती हैं।  जिसे लोग अच्छी भी बताते हैं। मैं स्तब्ध हूँ लेकिन बहुत सी महिलाएं बोलती हैं दादी का स्वर्गवास भाग्यशाली समय में हुआ है( देव उठनी,विष्णु भगवान के जगने के बाद)। अभी देव जागे हुये हैं। यह हमरी  पावन मान्यता है,आस्था है। हिन्दू ग्रन्थों के अनुसार सात अमर पुरुष हैं।परशुराम, राजा बलि, व्यास महर्षि, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य और अश्वत्थामा और ये कलियुग के अन्त तक पृथ्वी पर रहेंगे।दिन का आरम्भ सुबह से होता है। वे नहायी। पूजा की। घूमने निकली।ठंड थी और घर आ गयी। नाश्ता बनाने गयी। बोली किस आटे की रोटी खाओगे? उत्तर मिला जिसका तुम खा रही हो, उसी की बना दो। एक रोटी आयी फिर दूसरी रोटी आयी। दूसरी रोटी देते समय बोली," मेरे दायें गाल पर ये क्या हो रहा है? गैस बन्द कर दो। सोफे पर धीरे से बैठ गयी। आँखें बन्द कर दी। मैंने नाड़ी देखी, चल रही थी। फिर लगभग बीस सेकंड के बाद आँखें खोली और फिर बन्द कर दी।लगा आत्मा शरीर छोड़ चुकी है। पड़ोसियों को बुलाया। 108 नम्बर पर फोन किया। आदमी हर प्रयत्न करता है।  बातों-बातों में कहती थी," आपके बाद मेरा क्या होगा?यदि आप पहले चले गये तो। बहुत बार यह विचार मन में आता है।" मेरे पास भी इसका कोई उत्तर नहीं होता था। लोग आये लेकिन इस संसारिक नियम को बदला नहीं जा सकता था। बेटियों द्वारा मुखाग्नि दी गयी और पंचतत्व, पंचतत्व में मिल गया। अस्थि विसर्जन हरिद्वार में किया गया, उनकी इच्छा के अनुसार,बेटियों द्वारा। और मन कहता है-"ओ गंगा कितनों को तारेगीकब तक तारेगी,कब तक  प्राणों को छूअमरता को बहाती रहेगी।"हम सब जानते हैं कि जीवन चलायमान है। इसी प्रश्न का उत्तर महाभारत में युधिष्ठिर से जब पूछा जाता है संसार का सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है? तो वे उत्तर देते हैं- सब जानते हैं कि मृत्यु निश्चित है लेकिन मनुष्य ऐसे जीता है जैसे वह अमर है। भाव आते-जाते हैं जो व्यक्त होते हैं-"अथाह प्यार के अथाह स्वरों कोजीते मरते देखा मैंने,कब दिन आये,कब बीत गयेझाँक-झाँक कर देखा मैंने। सुख-दुख चारों ओर रहेगीत जीवन का गाया हमने,अनन्त यात्रा पर सबको जानायह  सच भी माना हमने।जीवन में उद्यान बहुत थेतुम माला अनन्य प्रेम की,इधर-उधर की बातों मेंप्रतिस्पर्धा थी जीवन भर की।साथ चलकर जहाँ तक आयेरोटी में निखार बहुत था,हमने सुख को जीते देखाफिर शरीर को मरते देखा।"मृत्यु घटाती है या जोड़ती है यह भी एक प्रश्न है। गीता में श्रीकृष्ण भगवान मनुष्य को तीन श्रेणियों, सात्विक, राजसी और तामसी में घुमाते रहते हैं।इस बीच प्यार किया लेकिन उसे कोई अंक नहीं दिये। वह अविरल गति से नदी की तरह कंकड़-पत्थरों से टकराता समुद्र की ओर बढ़ता रहता है। तीर्थ बनाता है। जहाँ मनुष्य होने का आभास मिलता है। शायद यही तीर्थ हमारे साथ रह जाते हैं या हमारे साथ जाते हैं। किसी का महत्व तब पता चलता है जब उनकी रिक्तता हमारे अन्दर घर करती है। घर के आसपास वृक्ष होते हैं। फूल होते हैं। एक विस्तृत आकाश होता है जहाँ नक्षत्र टिमटिमाते हैं। आकाश गंगायें दिखती हैं। जो बनती और मिटती है। ब्रह्मांड बनता है। स्थिरता और अस्थिरता दोनों होती है।  सूरज भी एक दिन श्वेत बौना ( व्हाइट ड्वार्फ) में बदल जायेगा। उसके बाद क्या? मनुष्य की कल्पना से बाहर है। यहीं पर ईश्वर का आभास होता है। तर जाने के भाव आते हैं अतर कुछ न हो यही सब चाहते हैं।तमोगुण का तम और सतोगुण का उजाला एक वास्तविकता है। फैलते और सिकुड़ते ब्रह्मांड में जो सजीव है वह अलौकिक,शुभ्र और सम्मोहक है।"तुम से आगे स्नेह बहुत हैउड़ना होगा उड़ जाओगे,लम्बा जीवन क्षण में लय हैगहरी बातें कह जाओगे।अन्त समय तक पूजा में थीरोटी लाती, रोटी में थी,यम का आना, जान न पायाआँखें खुली पहिचान न पाया,लय होने में, लय ही पाया।दिन वैसे ही आता है। अनन्त होने के लिए नहीं। उसे अस्त होना है। फूल पहले जैसे खिल रहे हैं। आकाश उतना ही फैला है, दृष्टि के अनुसार। रात को उतने ही तारे जगमगाने लगे हैं। हो सकता है कुछ कम या अधिक हों लेकिन पता नहीं लगता है।ध्रुव तारा जो माता-पिता ने दिखाया था सबसे पहले, ठीक उत्तर दिशा में चमक रहा है। हाँ मित्र बोल रहे हैं मृत शरीर का सिर उत्तर दिशा की ओर रखते हैं। अखण्ड दिया जलाते हैं। अगबत्ती करते हैं। बेटियों ने उन्हें सजाया,  सुहागिन की तरह जैसा बोलकर गयी थी बच्चों को । बनारसी साड़ी पहनायी,कुमाऊंनी पिछोड़ा उड़ाया।  पड़ोसी, बिल्डिंग के और अन्य बिल्डिंग के जो उपस्थित थे, ने अमूल्य सहयोग दिया। मृत व्यक्ति आदरणीय होता है। और उस सीढ़ी को सभी को पार करना होता है।बेटियों ने मुखाग्नि दी। पायल आदि श्मशान में लकड़ी देने वाले आदमी की पत्नी को दे दिये। कहा जाता है मृत शरीर पर कोई बंधन नहीं होने चाहिए। बेटियों ने ही हरिद्वार में अस्थि विसर्जन किया,उनकी इच्छा के अनुसार। गीता पाठ किया। पीपल में पानी तेरहवीं को चढ़ाया गया। माना जाता है पीपल में ईश्वर का वास होता है। हमारी एक रिश्तेदार बोली," मैं भी चाहती हूँ मैं भी ऐसे ही सुहागिन मरूँ।," मैंने कहा ,"ऐसा क्यों बोल रही हैं!"  और मेरा गला भर आया।पीपलपानी/तेरहवीं में ब्रह्म भोज/प्रसाद रखा था। ब्रह्म भोज सब लोग नहीं करते हैं। सनातन धर्म में अलग-अलग क्षेत्रों में परंपरायें थोड़ी अलग-अलग हैं। ----।

स्नेह के साथ- सभी का आभार।


*** महेश रौतेला