Bejuban ishq - 3 in Hindi Love Stories by soni books and stories PDF | बेजुबान इश्क - 3

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बेजुबान इश्क - 3

✨ वो बारिश वाली शाम उनके रिश्ते मेंएक खूबसूरत शुरुआत छोड़ गई थी।अगले कुछ दिनों मेंआदित्य और अन्या का साथ और भी गहरा हो गया।जहाँ पहले नज़रें मिलती थीं,अब मुस्कुराहटें मिलती थीं।जहाँ पहले खामोशी बोलती थी,अब दिल बोलने लगा था।---लेकिन जिंदगी हमेशा आसान नहीं होती…एक दिन अन्या लोकल में नहीं आई।फिर दूसरा दिन…फिर तीसरा।आदित्य फिर वही बेचैनी, वही डर,वही खालीपन महसूस करने लगा।उसने हर कोच, हर स्टेशन पर खोजा,जैसे उसके बिना शहर में कुछ भी नहीं बचा था।चौथे दिन,अन्या आखिरकार आई।लेकिन इस बार वो पहले जैसी नहीं थी—चेहरा फिका, आंखें सूजी हुई,उसके हाथ काँप रहे थे।आदित्य तुरंत उसके पास गया—“अन्या, क्या हुआ? तुम ठीक हो?”अन्या ने नज़रें झुका लीं,काफी देर तक कुछ बोली नहीं।फिर धीमे से बोली—“आदित्य… मुझे नौकरी छोड़नी पड़ सकती है।”आदित्य सन्न—“क्यों? अचानक क्यों?”अन्या ने रोके हुए आँसू पोंछे—“पापा का लोन, घर के खर्च, हॉस्पिटल बिल… सब मेरे ऊपर है।जगह बदलनी पड़ सकती है…शायद दूसरे शहर भी जाना पड़े…”आदित्य जैसे किसी ने अंदर से झकझोर दिया हो।उसने खुद को संभाला, और कहा—“तो मैं तुम्हारे साथ चलूँगा।हम मिलकर सब करेंगे।”लेकिन अन्या ने उसका हाथ पीछे हटा दिया।“नहीं आदित्य…मैं तुम्हें अपनी मुश्किलों में नहीं खींच सकती।मैं खुद टूटने से डरती हूँ,और तुम्हें टूटते देखने से और भी ज़्यादा।”उसकी आवाज काँप रही थी—“हमारा रिश्ता अभी नाम भी नहीं है…और मैं तुम्हें बोझ बनकर नहीं चाहती।”---आदित्य की आँखें भर आईं…उसने गहरी सांस लीऔर पहली बार अपनी खामोशी तोड़ी।“अन्या… प्यार बोझ नहीं होता।प्यार साथ चलना होता है।तुम मुझे दूर कर दोगी, तो सच में टूट जाऊँगा।”अन्या की आँखें भर आईं,पर उसने चेहरा मोड़ लिया।“मैं तुमसे दूर जाना नहीं चाहती…लेकिन अगर किस्मत अलग रास्ते ले जाए?”आदित्य ने ठहरकर कहा—“मैं किस्मत नहीं मानता…मैं हमारे इश्क पर यकीन करता हूँ।”एक पल की गहरी खामोशी—फिर अन्या ने धीरे से कहा—“आदित्य… अगर कभी मैं चली जाऊँ…तो वादा करो तुम टूटोगे नहीं।”आदित्य की आँखें लाल हो गईं,पर उसने मुस्कान बनने की कोशिश की—“और अगर तुम चली गई…तो बिना कहे मैं तुम्हें ढूँढने आऊँगा।”अन्या का दिल भर आया,वो रोते-रोते आदित्य के गले लग गई—और फुसफुसाई—“कृपया मुझे मत छोड़ना…”आदित्य ने उसे कसकर पकड़ा—“कभी नहीं। चाहे कुछ भी हो जाए।”---पर किस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था…अगले ही हफ्तेएक खत आया—अन्या को नई नौकरी के लिए दिल्ली जाना था।और जाने का दिन—बस दो दिन बाद था।उन दोनों की दुनिया थम गई।--- दिन बीतते-बीतते वो पल भी आ गयाजिससे दोनों डर रहे थे—अन्या का दिल्ली जाने का दिन।सुबह 8:22 की लोकल नहीं,आज मुलाकात स्टेशन पर थी।वो स्टेशन जहाँ उनकी कहानी शुरू हुई थी…आज वहीं, एक मोड़ पर खड़ी थी।आदित्य पहले से वहाँ था,हाथ में एक छोटा सा बैग औरएक सफेद गुलाब—खामोश प्यार का निशान।कुछ देर बाद अन्या आई।सूटकेस उसके साथ,आँखों में पानी, होंठों पर दर्द भरी मुस्कान।आदित्य ने उसकी ओर कदम बढ़ाए,पर अन्या की नज़रें जमीन पर थीं—शायद उसे डर था किआदित्य की आँखों में कुछ टूटता हुआ न दिख जाए।आदित्य ने धीरे से कहा—“आ गई तुम…”अन्या ने गहरी साँस ली—“हाँ… जाना तो होगा।”---आखिरी बातचीतकुछ पल दोनों चुप रहे।शब्द गले में अटके थे,दिल पत्थर की तरह भारी।फिर आदित्य ने हाथ बढ़ाकरउसका सूटकेस पकड़ लिया—“ये बोझ मैं उठा लेता हूँ…तुम्हारे हिस्से की भावनाएँ तुम संभाल लो।”अन्या रो पड़ी।उसने पहली बार आदित्य के हाथ पकड़ेइतनी कसकर जैसे जाने ही न देना चाहती हो।“आदित्य… मैं तुम्हें छोड़कर नहीं जा रही…बस दूर जा रही हूँ। ज़रूरत की वजह से।”आदित्य ने आँखें पोंछी—“दूरी से प्यार कम नहीं होता, अन्या।बस इंतज़ार लंबा हो जाता है।”अन्या ने काँपती आवाज़ में कहा—“अगर कभी मैं तुम्हारी जिंदगी में वापस नहीं आ पाई?”आदित्य ने उसके दोनों गालों पर हाथ रखकर कहा—“मैं इंतज़ार करूँगा… चाहे एक साल लगे,चाहे पूरी ज़िंदगी।”अन्या की आँखें भर आईं,वो उसके सीने से लग गईऔर फुसफुसाई—“मत बदलना… मैं बदल जाऊँ तो भी।”आदित्य ने मुस्कुराकर कहा—“मैं प्यार हूँ, मौसमी मौसम नहीं।”---ट्रेन का अनाउंसमेंटलाउडस्पीकर पर आवाज़ गूंजी—> “दिल्ली जाने वाली ट्रेन प्लेटफॉर्म नंबर 3 पर आ रही है।”उन दोनों की साँसें थम गईं।अन्या ने चुपचाप सफेद गुलाब लियाऔर कहा—“धन्यवाद…मेरी टूटन को संभालने के लिए।”आदित्य ने उसके बैकपैक मेंएक छोटा सा लिफाफा डाल दिया—“ये ट्रेन में पढ़ना।”आँसुओं को छिपाते हुएअन्या ने आखिरी बार उसे देखाजैसे आँखों में उसकी तस्वीर उतार रही हो।धीरे-धीरे वो ट्रेन में चढ़ गई।दरवाज़ा बंद हुआ।ट्रेन चल पड़ी।आदित्य वहीं खड़ा रह गया—बिलकुल स्थिर,पर आँखों में तूफ़ान।अन्या सीट पर जाकर बैठी,लिफ़ाफा खोला।अंदर सिर्फ एक लाइन लिखी थी—“दूरी बस रास्ते बदलती है, दिल नहीं।”— आदित्यऔर आखिरी पेज पर—“जब लौट आओ… मैं यहीं मिलूँगा।उसी लोकल में, उसी जगह।”अन्या ने कागज़ को सीने से लगायाऔर फूट-फूटकर रो पड़ी।बाहर खिड़की सेआदित्य बस मुस्कुराने की कोशिश करते हुएहाथ हिला रहा था…लेकिन उसके गालों पर आँसू बह रहे थे।--- एक साल बाद, किस्मत का मोड़ समय आगे बढ़ता गया…एक साल बीत गया।दिल्ली में नई नौकरी, नए लोग, नई ज़िम्मेदारियाँ—अन्या ने खुद को काम में ऐसे डुबो दियाकि दर्द महसूस करने का समय ही नहीं बचता।लेकिन रात के सन्नाटे में,दिल्ली की ठंडी हवा मेंजब भी वो खिड़की से बाहर देखती,उसे बस मुंबई की लोकल याद आती—और एक मुस्कुराता चेहरा… आदित्य।उसके फ़ोन में आज भी अनमने हाथों से टाइप किए गएकई अधूरे मैसेज पड़े थे— “कैसे हो?”“याद आती है…”“वापस आऊँ क्या?”पर भेजने की हिम्मत कभी नहीं हुई।---उधर मुंबई में…आदित्य आज भी 8:22 की लोकल पकड़ता था।उसी दार के पास खड़ा रहता,जहाँ कभी अन्या बैठती थी।बहुत लोगों ने कहा—“आगे बढ़ जाओ।”पर उसने सिर्फ मुस्कुरा कर जवाब दिया—“इश्क की मंज़िल बदलती नहीं, बस रास्ते लंबे होते हैं।”उसके दोस्त मज़ाक में कहते— “एक दिन वो आएगी क्या?”और आदित्य शांत होकर कहता—“एक दिन ज़रूर।”---वो दिन…एक साल पूरे होने के दिन,साल का वही 8 दिसंबर,अन्या ऑफिस से जल्दी निकली।दिल जैसे अचानक बेचैन हो उठा। दिल्ली की गलियों में चलते-चलतेउसे अचानक आदित्य की दी हुई लाइन याद आई—“दूरी बस रास्ते बदलती है, दिल नहीं।”वो रुक गई।कई महीनों बाद उसके चेहरे परएक सच्ची मुस्कान आई।उसने खुद से पूछा— “क्या मैं अब तैयार हूँ?”और जवाब था— हाँ।उसने उसी पल टिकट बुक कियाऔर उसी रात मुंबई जाने वाली फ्लाइट पकड़ ली।---मुंबई एयरपोर्ट — रात 11:45शहर वही था,महसूस करना भी वही था।वो कहीं भी जा सकती थी,पर उसके कदम खुद-ब-खुद स्टेशन की ओर बढ़ गए।रात की आखिरी लोकल आने वाली थी।प्लेटफॉर्म सुनसान था,पर दिल धड़क रहा था जैसे पहली बार धड़क रहा हो।लोकल आई…डिब्बे का दरवाज़ा खुला…और वही जगह—उसी खंभे के पास,आदित्य खड़ा था।हाथ में वही सफेद गुलाब,और आँखों में वही इंतज़ार।अन्या की आँखे नम हो गईं।वो धीरे से आगे बढ़ी…आदित्य ने उसे देखा—पहले हैरानी, फिर मुस्कान,और फिर आँखों में चमक।कुछ पल खामोशी…सिर्फ दिलों की धड़कनें।अन्या ने काँपती आवाज़ में कहा—“मुझे ढूँढने आने की जरूरत नहीं पड़ी…किस्मत खुद ले आई।”आदित्य ने उसके करीब आकरसफेद गुलाब उसकी हाथों में रखा और कहा—“वापस आने में देर हो सकती है…पर वापस आना ही प्यार होता है।”अन्या हँसी, रोई, और उसी पलआदित्य के सीने से लग गई।दोनों के दिल एक साथ बोले—बेजुबान इश्क… आज आवाज़ बन गया।-------next part