नौकरी
यह कहानी एक बदनसीब महिला की है जो अपने पति की मौत के बाद जीवन में संघर्ष करती है ….
“ जरा ऑफिस में जा कर पूछो न कि पेमेंट आया कि नहीं ? तीन महीने से वेतन नहीं मिला है . किसी तरह उधार पर काम चल रहा है पर अब तो दुकानदार ने भी और उधार देने से मना कर दिया है . बच्चों के लिए एक बूंद दूध भी नहीं है . “ रीता ने अपने पति से कहा
“ मैं क्या करूं , समझ में नहीं आ रहा है . पेमेंट शीट बन कर तैयार है पर साहब जानबूझ कर साइन नहीं कर रहा है . “ सुरेश ने कहा
“ क्यों ? “
“ उसे रिश्वत चाहिए , मेरी नौकरी टेम्पोरेरी है न . यह नौकरी भी आसानी से नहीं मिली है , कुछ ले दे कर मिली है . हर बार तीन चार महीनों पर एक बार पेमेंट मिलता है , वह भी रिश्वत देने पर . फिर एक बार अपनी माँ से कुछ पैसे मांगो , पेमेंट मिलते ही लौटा देंगे . “
“ ना बाबा , अब मम्मी से और पैसे मांगने की मेरी हिम्मत नहीं है . दो बार ऐसा ही बोल कर लिया पर वापस नहीं कर पाए . जो पैसे मिलते हैं उनसे दुकानदारों और दूध वाले का ही पूरा उधार चुकता नहीं हो पाता है . अब तुम ही कहीं से इंतजाम करो . “ रीता ने कहा
“ मेरा भी बुरा हाल है . स्कूल में भी दो साथियों से उधार लिया हुआ है और कैंटीन का भी दो महीने का बकाया है . “
सुरेश अपने परिवार के साथ रीता के माता पिता के घर में रहता था . सुरेश की नौकरी 15 साल बाद स्थायी हुई तब तक उसकी दोनों बेटियां शादी की उम्र पर दस्तक दे रही थीं . नौकरी स्थायी होने के बावजूद सुरेश को कभी भी समय पर रेगुलर वेतन नहीं मिलता . पेमेंट दो तीन महीनों पर ही मिला करता था वह भी कुछ ले दे कर ही . लगभग पांच साल बाद सुरेश की तबीयत खराब हुई . नौकरी में मेडिकल सुविधा न के बराबर थी . आरम्भ में नजरअंदाज करने से निमोनिया इतना ज्यादा बढ़ गया था कि उसका उपचार ठीक से नहीं हो सका और उसकी मौत हो गयी .
सुरेश की मौत के बाद उसके प्रोविडेंट फंड आदि रुपयों को लेने के लिए रीता को बार बार सचिवालय का चक्कर लगाना पड़ा और कुछ रिश्वत देनी पड़ी . उन रुपयों से रीता ने अपनी बड़ी बेटी की शादी कर दी . उसे सरकार से पेंशन भी मिल रहा था जिस से उसका और छोटी बेटी आशा का गुजारा हो जाता था .आशा बी ए पास कर चुकी थी . रीता ने अनुकंपा के आधार पर आशा के लिए नौकरी की अर्जी दी थी . एक साल तक फिर सचिवालय का चक्कर लगाने के बाद आशा को नौकरी मिली . उसे नौकरी मिली पर अनुकंपा पर नौकरी में रेगुलर पे स्केल नहीं मिलता था बस एक मुश्त पांच हजार रुपये मासिक .
आशा को नौकरी सुरेश के स्कूल में ही मिली जो घर से करीब 8 – 9 किलोमीटर दूर था . सुरेश तो साइकिल से शॉर्टकट रास्तों से चला जाता था जो खेतों और झाड़ियों के बीच बनी पगडंडी होती थी . आशा एक लोकल ट्रेन से जाती फिर भी स्टेशन से स्कूल एक किलीमीटर पैदल खेतों के बीच पगडंडी से जाना पड़ता था .
एक साल बाद रीता की तबीयत भी ख़राब रहने लगी . उसके दोनों किडनी बहुत खराब हो चले थे . डॉक्टर का कहना था कि बिना किडनी ट्रांसप्लांट के रीता एक साल से ज्यादा जीवित नहीं रह सकती है . किडनी ट्रांसप्लांट इतना आसान तो था नहीं . आशा को माँ की देखभाल करनी पड़ती थी , इसके चलते कभी कभी स्कूल पहुँचने में देर हो जाती . वहां उसे हेड मास्टर की डांट सुननी पड़ती थी . जब आशा अपनी कठिनाई बताती तब वह बोलता “ या तो माँ को संभालो या नौकरी . नौकरी नहीं कर सकती तो घर बैठ कर माँ की सेवा करो . यहाँ बच्चों को कौन पढ़ायेगा ? हम दूसरा टीचर रख लेंगे . “
आशा को चुपचाप उसकी डांट सहन करनी पड़ती थी . उस स्कूल में एक और सीनियर टीचर था अमन . अमन को आशा के प्रति सहानुभूति थी . वह विधुर था . उसका छह साल का एक बेटा था जिसे वह अपनी साइकिल पर साथ लाता था . बेटा उसी स्कूल में पहली कक्षा में पढता था .कभी अमन के चलते उसे भी स्कूल पहुँचने में देर हो जाती तो उसे भी हेड मास्टर की फटकार सुननी पड़ती थी .
खेतों के बीच पगडंडी से स्कूल जाने वाला रास्ता अक्सर सुनसान रहता था . उस रास्ते में पहले कुछ ऐसी घटनाएं हो चुकी थीं जिसमें किसी औरत या लड़की को खींच कर खेत में ले जा कर बदमाशों ने उनके साथ दुष्कर्म किया था . इसलिए आशा अक्सर दूसरे रास्ते से जाती जो कुछ लम्बा होता था और कभी उसके चलते लेट से पहुँचती . अमन ने उसे सुझाव दिया कि यदि दोनों में कोई भी पगडंडी के मुंहाने पर पहले पहुंचता है तब वह दूसरे के लिए इंतजार करेगा . फिर खेत वाला रास्ता एक साथ पार करेंगे . इसके बाद आशा , अमन और उसका बेटा तीनों एक साथ उस रास्ते से जाते .
छह महीने के अंदर रीता की मौत हो गयी . अब आशा बिल्कुल अकेली हो गयी .
उधर स्कूल की स्थिति अच्छी नहीं थी . कहने को स्कूल के रखरखाव की जिम्मेदारी हेडमास्टर ने अमन को दे रखी थी पर सरकार से जो भी फंड आता था उसका अधिकांश उपयोग हेडमास्टर और गाँव के प्रधान अपने निजी काम के लिए करते थे . अमन को लगभग एक चौथाई राशि ही मिलती . मिड डे मील की पर्याप्त राशि भी अमन को नहीं मिलती . इसके चलते बच्चों को भोजन ठीक से नहीं मिल रहा था . इस बात के चलते बच्चों के माता पिता स्कूल से नाराज थे . हेडमास्टर का कहना था “ इसके लिए फण्ड अमन को दी जाती है और जिम्मेदारी उसी की है . “
अगले सप्ताह स्कूल का निरीक्षण करने उच्च शिक्षा पदाधिकारी आ रहे थे . हेडमास्टर ने अमन को बुला कर कहा “ आप स्कूल के मेंटेनेंस के लिए जिम्मेदार हैं . कहीं दरवाजा नहीं है तो कहीं खिड़की गायब है और एक क्लास में तो ब्लैकबोर्ड तक टूटा पड़ा है . साहब के आने के पहले सब दुरुस्त होना चाहिए . इसके लिए फंड आपको मिलता है . आप चाहें तो आशा से मदद ले कर सब काम जल्दी से पूरा कर सकते हैं . “
“ सर , मुझे पूरा फंड कभी नहीं मिलता है . मैंने आपको और प्रधान जी को बार बार मीटिंग में इस समस्या के समाधान के लिए कहा था परन्तु किसी ने इस पर ध्यान नहीं दिया . इस बार मैं साहब के सामने स्कूल की समस्या अवश्य रखूंगा . “
“ अगर तुम्हें नौकरी प्यारी नहीं है तब ही तुम ऐसा सोचना . “ हेडमास्टर ने कहा
“ अब पानी सर से गुजर रहा है तब कुछ तो करना ही पड़ेगा , परिणाम जो भी हो . “ इतना बोल कर अमन हेडमास्टर के ऑफिस से बाहर आया . उसके पीछे पीछे आशा भी निकल गयी .
बाहर आकर आशा ने कहा “ आपको ऐसा नहीं कहना चाहिए था . हेडमास्टर और प्रधान जी में अच्छी दोस्ती है . हेडमास्टर और प्रधानजी दस साल से अपनी कुर्सी से चिपके हैं . उन्होंने गाँव में दर्जनों गुंडे और लठैत पाल रखे हैं . “
“ अब जो होगा देखा जायेगा . इस बार तो मैं सच सबके सामने बोलूंगा . “
उस दिन स्कूल में जिला शिक्षा पदाधिकारी का इंस्पेक्शन था . इंस्पेक्शन के बाद अफसर ने हेडमास्टर के रूम में सभी शिक्षकों को बुलाया . प्रधान जी भी वहां मौजूद थे . अफसर ने कहा “ स्कूल की स्थिति बहुत ख़राब है . आपलोगों को सरकार से इतना फंड मिलता है , कहाँ जाता है ? “
“ हेडमास्टर ने अमन की तरफ इशारा कर के कहा “ स्कूल के देखरेख की जिम्मेदारी इनकी है और इन्हें समुचित फंड भी दिया जाता है . यही आपको सही उत्तर देंगे कि पैसों का क्या करते हैं . “
अमन ने एक ही सुर में सारी सच्चाई बताते हुए अंत में कहा “ सरकार से मिला फंड हेडमास्टर और प्रधानजी जाने कहाँ जाते हैं . मुझे तो मुश्किल से आधा हिस्सा ही मिलता है . “
“ तब मुझे सब के विरुद्ध कार्रवाई करनी होगी . “ अफसर ने कहा
“ आप आज यहाँ रुक रहे हैं , कल सुबह तक बहुत कुछ ठीक हो जायेगा . “ प्रधानजी बोले
हेडमास्टर और प्रधानजी दोनों गुस्से से आग बबूला थे पर अफसर के सामने चुप रहे . फिर प्रधान जी ने अमन को पास बुला कर उसके कान में कहा “ साहब रात में यहीं रुक रहे हैं . आशा को बोलिये उनकी सेवा में रात यहीं रुक जाये . “
“ नहीं , ऐसा नहीं हो सकता है . “ अमन ने भी धीरे से कहा
“ मैंने तुम्हें नहीं आशा के लिए कहा है . तुम पहले उस से पूछ कर तो देखो . “ प्रधानजी ने फिर उसे धीरे से कहा
इस बार अमन अपना आपा खोते हुए चिल्लाया “ वह आपके जैसा कमीना इंसान नहीं है . “ इसके बाद अमन आशा को साथ लेकर वहां से निकल गया .
चारों ओर ख़ामोशी पसर गयी . प्रधानजी ने अपने किसी गुर्गे को आँख से कुछ इशारा किया . स्कूल की छुट्टी के बाद अमन , उसका बेटा और आशा तीनों सुनसान खेत के बीच से गुजर रहे थे . अचानक तीन चार गुंडों ने लात जूतों से अमन की पिटाई शुरू कर दी . एक ने लाठी से वार किया पर अमन ने उसे रोक लिया , वह गिर गया . फिर से लात जूते उस पर बरसने लगे . अमन के नाक और मुंह से खून बह रहा था . आशा उस से लिपट पड़ी और बोली “ अमन को सच बोलने की सजा दे रहे हो तुम लोग . बहुत हुआ , अब और कितना मारोगे . “
“ अभी तो सिर्फ मार पड़ी है . कल संडे है परसों तुम्हें सस्पेंसन आर्डर भी मिल जायेगा . “ बोल कर अमन को उसी अवस्था में छोड़ कर वे चले गए .
“ मैं देखूँगी ये क्या कर सकते हैं . हम सरकार की नौकरी करते हैं , हेडमास्टर और प्रधानजी के नौकर नहीं हैं . मैंने मीटिंग की काफी बातें रिकॉर्ड कर ली है . मेरे घर के पास एक प्रेस रिपोर्टर रहता है . मैं पूरा सच देश के सामने दिखाऊंगी . “ आशा ने कहा
“ मैं तो तुम्हें भोली भाली बेवक़ूफ़ औरत समझता था . तुम तो छिपी रुस्तम निकली . “
फिर तीनों किसी तरह आशा के घर आये . आशा ने प्रेस रिपोर्टर को पूरी बात बताते हुए रिकॉर्डिंग उसे फॉरवर्ड कर दिया . अगले दिन रविवार को प्रेस और टी वी में स्कूल वाली कहानी ब्रेकिंग न्यूज़ बन कर आयी . आनन् फानन में शिक्षा मंत्री ने इन्क्वारी कमेटी बैठाई . अमन और आशा दोनों का उस स्कूल से आशा के घर के पास के स्कूल में ट्रांसफर हुआ . मानो दोनों को बिन मांगे मनचाहा वर मिल गया .
अमन ने कहा “ क्यों न हम अब एक ही परिवार का हिस्सा बन जाएँ और एक नयी जिंदगी शुरू करें ? तुम्हें कोई एतराज है ? “
आशा ने सिर हिला कर ख़ामोशी से अपनी स्वीकृति दे दी
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नोट - यह कहानी पूर्णतः काल्पनिक है .