Shrapit ek Prem Kahaani - 18 in Hindi Spiritual Stories by CHIRANJIT TEWARY books and stories PDF | श्रापित एक प्रेम कहानी - 18

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श्रापित एक प्रेम कहानी - 18

वर्षाली कहती हैं----


 ये क्या एकांश जी अगर किसी ने देख लिया तो गलत सोचेंगे। 


एकांश कहता है-----


क्या गलत सोचेंगे? 


वर्षाली कहती है------


 रात के समय एक लड़का और एक लड़की को एक साथ अगर किसी ने यू मिलते हुए देख लिया तो क्या वो गलत नहीं सोचेगा एकांश जी।? 


एकांश तुरंत वर्षाली का हाथ छोड़ देता है और कहता है----

नहीं..नहीं वर्षाली तुम जाओ मैं नहीं चाहता मेरी वजह से लोग तुम्हें गलत सोचे।



 वर्षाली एक मुस्कान देकर वहां से चली जाती है। 



 इधर संपूर्णा और आलोक एक दुसरे के होंठो के चुमे जा रहा था दोनो की सांसे गर्म थी और अब दोनो का मन अब बेताब था। तभी आलोक देखता है के लाईट आ चुकी थी आलोक और संपूर्णा से एक-दुसरे से अलग होकर एक दुसरे को दैखने लगता है । तभी संपूर्णा बिना कुछ बोले वहां से चली जाती है। आलोक अभी भी उधर ही देख रहा था। 


तभी आलोक वहां एकांश के पास आ जाता है और एकांश के कंधे पर हाथ रखता है। एकांश एक दम से घबरा जाता है और झट से पिछे मुड़कर देखता है। के वहां कोई और नहीं बल्की आलोक था। 

  आलोक एकांश से कहता है---

आलोक :- क्या बात है यार। तू यहां अकेले क्या कर रहा है और उधर क्या देख रहा है। 


एकांश कहता है ---

एकांश:- वर्षाली आई थी मिलने। आलोक हेरानी से कहता है---

आलोक :- क्या...! वही वर्षाली ना जो कल रात को सपने में आई थी। 


एकांश चिड़कर कहता है ---

एकांश :- वो सपना नहीं था हकीकत था। 


आलोक एकांश के करिब आकार कर कहता है--

एकांश :- तूने पी के तो नहीं रखी है ना।


 एकांश गुस्सा होकर कहता है---

एकांश :- तुझे भरोसा नहीं है ना। तो ठिक है कल सुबह चल तू मेरे साथ। आलोक कहता है---

आलोक :- तू पागल तो नहीं है। उस जंगल में दुबारा जाने के बारे में सोचना भी मत। ऐसे ही मैंने आज बड़े पापा से डांट खाया हूं। मरते मरते बचे है हमलोग ।


एकांश कहता है ---


एकांश :- तू पुरी बात तो सुन लिया कर ।

 आलोक कहता है----

आलोक :- हां बोल..! 

एकांश कहता है----.

एकांश :- कल हम जंगल के अंदर नहीं जा रहे हैं। वर्षाली हमें जंगल के बाहर ही मिलने वाली है। समझा !

आलोक कहता है। 

आलोक :- ठीक है..! पर अभी तू अंदर चल वर्ना सभी तुझे ढुंढते हुए बाहर आ जाएंगे।


पार्टी अब खतम हो चुकी थी सभी अपने अपने घर को जाने लगे थे। संपूर्णा अपने कमरे से बहार आ रही थी के तभी आलोक भी वहां आ जाता है दोनो एक दुसरे को देखकर वही रुक जाता है संपूर्णा आलोक को देखकर सरमाने लगती है। 

संपूर्णा वहां से जाने लगती है तो आलोक संपूर्णा का हाथ पकड़ कर रोक लेती है।

 संपूर्णा कहती है --

आलोक :- आलोक अभी नही अभी पार्टी ख़तम हो चुकी हैऔर सभी यहीं है।

 तभी आलोक संपूर्णा से कहता है--

आलोक :- संपूर्णा मुझे तुमसे कुछ जरुरी बात कहना है। और अभी करना है ।

आलोक के इतना ही संपूर्णा आलोक को अपने कमरे मे ले जाकर दरवाजा बंद कर देती है और कहती है ---

संपूर्णा :- अब बोलो। 

आलोक कहती है --

आलोक :- संपूर्णा कॉलेज के दिनो से ही हम एक दुसरे को जानते है और पंसद भी करते है पर जब भी मैं एकांश के बारे मे सोचता हूँ ।

तभी संपूर्णा कहती है---
संपूर्णा: - हां और इसिलिए हम कॉलेज के बाद कभी नही मिले पर आलोक जब भाई को पता चलेगा के मैं तुमसे प्यार करती हूँ तो वो तुमसे नाराज नही खुश होगें । और ये सब सोचकर हम इतने दिनो से अलग रहे पर अब नही आलोक ।


इतना बोलकर संपूर्णा आलोक को गले लगा लेती है आलोक भी संपूर्णा को अपने बाहों मे भर लेता है। 

आलोक भी संपूर्णा को उतना ही प्यार करता था जितना के संपूर्णा, पर आलोक अपनी दोस्ती के वजह से चुप था , पर आज संपूर्णा के बातों ने उसका मन बदल दिया था 


और दोनो ही एक दुसरे को बंहो मे भर कर खो जाता है। संपूर्णा आलोक के कमीज को उठाकर चुम्बन करने लगती है आलोक भी संपूर्णा को सहलाने लगता है और एक हाथ संपूर्णा के पीठ पर फेरने लगता है। जिससे संपूर्णा की सांसे तेज हो जाती है। 

आलोक का छुना संपूर्णा को अच्छा लगने लगता है। तभी गुना का आवाज आता है जो आलोक को पुकारता है। 

गुना :- आलोक...आलोक..कहा हो तुम ! 


गूना की आवाज सुनते ही आलोक और संपूर्णा अलग हो जाता है। दोनो एक दसरे को देखने लगता है। आलोक कहता है---

आलोक :- अब मुझे जाना होगा। 


संपूर्ण कहती है----

संपूर्णा :- जाना जरुरी है। कुछ दैर रुक नही सकते ।

आलोक कहता है---

आलोक :- हां मैं यहां नही रुक सकता ।

 इतना बोलकर आलोक दरवाजा खोलने लगता है के संपूर्णा आलोक को पकड़ लेती है। आलोक पलट कर संपूर्णा के गाल पर हाथ रखता है और संपूर्णा के होंट को चुमलेता है और कहता है---

आलोक :- अभी मुझे जाने दो संपूर्णा नही तो कही मैं कुछ गलत ना कर बैठुं । 

इतना बोलकर आलोक वहा से चला जाता है और गुना वहां आलोक को ढुंढते हूए पँहुच जाता है गूना आलोक को देख कर कहता है---

गुना:- ओ तुम यहाँ हो और मैं तुम कहां - कहां ढुंढ रहा हूं। चल अब निकलना है के नहीं । पार्टी खतम हो चुकी है ।

आलोक कहता है---

आलोक :- हाँ चलो। 


इतना बोलकर आलोक गुना और चतुर वहां से जाने लगता है तभी एकांश उन सबको रोक कर कहता है---

एकांश :- इतनी रात को कहाँ जा रहे हो तुम लोग ?

चतुर कहता है---

चतुर :- घर जा रहा हूं और कहां । 

एकांश कहता है---

एकांश :- आज यही रुको सुबह चले जाना। आज रात को धापा का भी इंतजारम कर लिया हूं। 

गुना धापा का नाम सुनकर खुश होकर कहता है---

गुना :- अरे वाह तब तो बहुत अच्छी बात है।

 गुना और चतुर रुकने के लिए राजी हो जाता है। पर आलोक सोचने लगता है----
"" के अगर में रुका तो संपूर्णा से फिर कहीं... नहीं... नहीं...वो मेरे दोस्त की बहन है और मैं अपने दोस्त के घर आके उसके साथ विश्वासघात नहीं कर सकता. " 


तभी एकांश कहता है---

एकांश :- ओए अब तू कहां खो गया। 

आलोक कहता है---

आलोक :- नहीं यार आज मैं नहीं रुक सकता है, मुझे बहुत काम है।


एकांश कहता है---

एकांश :- सुबह काम है ना तो अभी घर जा के क्या करेगा। तू यही से चला जाना काम पे।


 आलोक के पास इसका कोई जवाब नहीं था और वो रुकने के लिए राजी हो जाता है। रात के 12:30 बज रहे हैं। सभी धापा पी रहे थे। गुना और चतुर काफी ज्यादा पी लिया था जिस कारण से दोनो को नशा हो जाता है और दोनो वही सो जाता है।


 एकांश वहा बैठकर वर्षाली के बारे में सोच रहा था। आलोक हाथ में धापा लेकर हल्की हल्की घुट पी रहा था। तभी वहां वृंदा आ जाती है। 


जिसे देख कर एकांश हड़बड़ा जाता है और धापा का गिलास छुपाने लगता है और कहता है---

एकांश :- वृंदा तुम यहाँ । सोई नही अभी तक ।


 वृंदा एकांश के पास आ कर बैठ जाती है और कहता है---

वृदां :- मैं तुम्हें पुरी हवेली में ढुंढ रही हूं और तुम यहाँ बैठे हो। 

आलोक वृंदा और एकांश को दैखकर वहां से उठकर दूसरी और जाने लगता है तो एकांश पुछता है----

एकांश :- अरे आलोक तुम कहां जा रहे हो ?

आलोक कहता है---


आलोक :- कहीं नहीं यूं ही बस हल्का होकर आता हूँ । 

इतना बोलकर आलोक निचे चला जाता है। 

एकांश वृंदा से पुछता है----

एकांश :; तुम इतनी रात को यहाँ कैसे सोयी नहीं अभी तक। 


वृंदा कहती है---

वृदां :- निंद ही नहीं आ रही है तो सोचा कुछ दैर तुमसे बात करलूं ।


To be continue.....229