Tumse Milne ki Chhuti - 7 in Hindi Love Stories by soni books and stories PDF | तुमसे मिलने की छुट्टी - 7

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तुमसे मिलने की छुट्टी - 7

हेडक्वार्टर्स और एक अनकही सच्चाई :-दो कदम फर्ज़ के, दो कदम परिवार केसुबह की हवा थोड़ी भारी थी।आयुष आज यूनिफॉर्म में था—कमांडो बूट, प्रेस की हुई ओलिव-ग्रीन शर्ट, चमकते मेडल…पर उसके अंदर का मन भारी था।आज उसे फैसला सुनाना था—और फौज में फैसले सिर्फ दिए नहीं जाते…जिए जाते हैं।---सुबह 9:20 — ARMY HEADQUARTERSगेट पार करते हीउसे वही पुरानी गंध मिली—पॉलिश किए हुए बूटों की,फाइलों की,और जिम्मेदारी की।सैनिकों ने उसे सैल्यूट किया।आयुष ने भी सैल्यूट वापस किया,लेकिन उसके दिल में एक ही तस्वीर थी—जिया और आर्या की।कमांडिंग ऑफिसर,ब्रिगेडियर सिंह,टेबल के पीछे गंभीर मुद्रा में बैठे थे।“Come in, Major Thakur.”आयुष अंदर गया,“Sir.”---ऑफिस के अंदर — आमने-सामने दो दुनियाएँब्रिगेडियर सिंह ने फाइल खोलते हुए कहा—“Special Ops Training Team…It’s a rare offer, Thakur.Not everyone gets this.Promotion guaranteed.ये तुम्हारे करियर का सबसे बड़ा मोड़ हो सकता है।”आयुष चुप रहा।ब्रिगेडियर ने आगे कहा—“तो? You are accepting the assignment, I believe?”कमरा शांत हो गया।घड़ी की टिक-टिक भी रुक गई जैसे।आयुष ने आखिर कहा—“Sir… I am requesting a postponement…या near-base assignment.”ब्रिगेडियर सिंह ने चश्मा नीचे किया,और बहुत देर तक उसे देखा।“Major… कोई प्रॉब्लम है?”आयुष ने धीमे स्वर में कहा—“सर… मेरी बेटी को मेरी ज़रूरत है।मेरे परिवार को मेरी ज़रूरत है।मैं अभी उन्हें अकेला नहीं छोड़ सकता।”कमरे में सन्नाटा छा गया।ब्रिगेडियर ने टेबल पर उंगलियाँ थपथपाईं।“Thakur, you’re one of my finest officers.परिवार सबके होते हैं…पर duty—duty सबसे ऊपर होती है।”आयुष ने शांत आवाज़ में कहा—“Sir…Duty के लिए ज़िंदगी दी जाती है,पर ज़िंदगी सिर्फ duty से नहीं बनती।”ब्रिगेडियर सिंह चुप हो गए।कुछ देर बाद उन्होंने कहा—“ठीक है, Thakur…मैं तुम्हारी request भेज रहा हूँ।लेकिन remember…Army needs you.But maybe…तुम्हारा घर तुम्हें ज़्यादा चाहिए।”आयुष ने सैल्यूट किया,पर दिल में एक हल्का-सा डर भी था—अगर request reject हो गई तो?---घर की ओर — उम्मीद और बेचैनीशाम 6 बजेआयुष वापस आया।द्वार खुलते हीआर्या दौड़कर उससे चिपक गई—“पापा! क्या हुआ? आप जाओगे न?”आयुष ने उसे उठाकर कहा— “पता नहीं, परी… पर एक बात पक्की है—मैं तुम्हें छोड़कर कहीं नहीं जाऊँगा बिना सोचे।”आर्या ने उसके गाल पर किस कर दिया—“आप हीरो हो, पर आप मेरे पापा पहले हो!”वह मुस्कुराया, आँखें भीगी थीं।---जिया — जो सब समझती थीजिया दरवाज़े के पास खड़ी थी।उसके चेहरे पर चिंता थी,पर भीतर एक गर्व भी।“क्या हुआ?” उसने पूछा।आयुष ने जिया की ओर देखा—उसकी आँखों में प्रेम का एक शांत-सा तूफान था।“मैंने request डाल दी है…अब जवाब का इंतज़ार है।”जिया ने गहरी सांस ली,और उसके कंधे पर हाथ रखा—“हमें पता है… जो भी होगा, हम साथ में झेलेंगे।”आयुष ने उसका हाथ पकड़ लिया—“मैंने आज पहली बार ऑफिस में…परिवार को खुद से पहले रखा, जिया।”जिया मुस्कुराई,“क्योंकि अब तुम्हें समझ आ गया—फौज दिल से जीती जाती है,और दिल घर से मिलता है।”---रात — अचानक दरवाज़े की घंटी9:47 PM।जिया और आयुष बालकनी में बैठे थे।तभी—डिंग डॉन्ग।आयुष ने दरवाज़ा खोला।सामने एक सेना का जवानएक लिफ़ाफ़ा लिए खड़ा था।“Sir, Headquarters से urgent document.”आयुष के हाथ काँप गए—यह वही जवाब था।लिफाफा अंदर आया,जिया, आयुष और आर्या तीनों एक जगह बैठ गए।आयुष ने कागज़ खोला…---भाग 15 का अंत — एक सांस रोक देने वाला मोड़पत्र पर तीन शब्द थे—“REQUEST APPROVED.NEAR-BASE ASSIGNMENT CONFIRMED.”आयुष की आँखें नम हो गईं।जिया ने उसे गले लगा लिया।आर्या खुशी से उछल पड़ी—“पापा घर पर रहेंगे!!!”और पहली बार—आयुष ने खुद कोफौजी नहीं…पूरा-पूरा पिता और पति महसूस किया। “नई बेस पोस्टिंग का पहला दिन:- सुबह अभी ठीक से जागी भी नहीं थी…कि आयुष की नई बेस पोस्टिंग की पहली सुबह दस्तक दे चुकी थी।कमरे में हल्की-सी धूप और जिया की धीमी-सी आवाज़—“आयुष, उठो… आज तुम्हारा पहला दिन है।”आयुष ने आँखें खोलीं, लेकिन सबसे पहले नज़र पड़ी अपनी बेटी आर्या ठाकुर पर—जो पैर मोड़कर उसके सीने पर सोई थी, जैसे उसे कहीं जाने ही नहीं देना चाहती हो।जिया ने मुस्कुराकर कहा,“इसको समझाओ… पापा को आज जाना है।”आयुष ने आर्या को धीरे से उठाया।“आर्या… पापा की ड्यूटी है बेटा।”आर्या ने आँखें मिचमिचाते हुए कहा—“नयी जगह… वहाँ कोई मुझे जानता भी नहीं होगा… पापा जल्दी आना, ठीक है?”आयुष ने तुरंत उसे अपनी बाँहों में भर लिया।“पापा का पहला दिन हो या आखिरी,तुम दोनों मेरा घर हो… मैं लौटकर आता ही हूँ।”---✨ नया कैंप, नए चेहरे, नया माहौलदरवाज़े पर जिया खड़ी थी कॉफी का कप, आयुष का छोटा बैग,और आँखों में वही गर्व जो हमेशा होता है।“सब संभाल लोगे?” उसने पूछा।आयुष हंसा,“सब तो तुमने सँभाल रखा है जिया।मैं बस अपनी ड्यूटी निभाने जा रहा हूँ।”जिया ने उसके कॉलर को ठीक किया।“पहला दिन है… थोड़ा ध्यान रखना।”“जिया, मैं कॅप्टन आयुष ठाकुर हूँ,”उसने मज़ाक में सलामी दी,“सब ध्यान में रखता हूँ… बस तुम्हें नहीं रख पाता।”जिया शरमा गई।आर्या ने हाथ लहराकर कहा—“पापा, आप जीत जाना!”आयुष ने उसका माथा चूमकर कहा—“तुम दोनों मेरे लिए जीत ही हो।”---✨ बेस पर पहला कदम जैसे ही आयुष ने नया कैंप देखा—कड़े चेहरे, नई यूनिफॉर्म, नए अधिकारी…पर फिर भी उसके दिमाग में सिर्फ एक ही बात थी—“जिया ने मेरे कॉलर को ठीक करते समय जो मुस्कान दी…उसी को मैं अपने साथ लेकर चलूँगा।”नया मेस, नई टेबल, नई फाइलें—सबकुछ थोड़ा अलग था, पर आयुष की शांति वही थी।एक जूनियर ऑफिसर ने कहा—“सर, सुना है आप अपनी फैमिली यहाँ लाने वाले हैं?”आयुष ने हल्के से मुस्कुराकर कहा—“हाँ… मेरी फैमिली नहीं…मेरा जहाँ।”---✨ उसी शाम घर पर…दरवाज़ा खुला।जिया ने पहली नज़र में ही आयुष के चेहरे को पढ़ लिया।“दिन कैसा था?”आयुष ने जूते उतारते हुए कहा—“थका देने वाला… पर जब घर में तुम दोनों हो,तो लगता है दिन पूरा था।”आर्या दौड़कर आई,“पापा! पापा! मेरी ड्रॉइंग देखो—हम तीनों नए घर में!”आयुष ने उसे गोद में उठा लिया और बोला—“ये पोस्टिंग चाहे नई हो…लेकिन मेरा घर वही है—जहाँ तुम और मम्मा हो।”जिया ने कॉफी के तीन कप रखे—एक आयुष के लिए,एक अपने लिए,और एक छोटा आर्या के लिए।आयुष ने दोनों को पास खींचते हुए कहा“पहला दिन अच्छा था…क्योंकि वापस मैं अपने जहाँ में आया हूँ।”-------next part