Silent testimony. in Hindi Moral Stories by Ruby Chaudhary books and stories PDF | मूक गवाही।

Featured Books
  • Operation Mirror - 4

    अभी तक आपने पढ़ा दोनों क्लोन में से असली कौन है पहचान मुश्कि...

  • The Devil (2025) - Comprehensive Explanation Analysis

     The Devil 11 दिसंबर 2025 को रिलीज़ हुई एक कन्नड़-भाषा की पॉ...

  • बेमिसाल यारी

    बेमिसाल यारी लेखक: विजय शर्मा एरीशब्द संख्या: लगभग १५००१गाँव...

  • दिल का रिश्ता - 2

    (Raj & Anushka)बारिश थम चुकी थी,लेकिन उनके दिलों की कशिश अभी...

  • Shadows Of Love - 15

    माँ ने दोनों को देखा और मुस्कुरा कर कहा—“करन बेटा, सच्ची मोह...

Categories
Share

मूक गवाही।

"अम्मा मेरे घर पर भी गाय है, जिसको मैं खूब खिलाता हूँ और खूब सेवा भी करता हूँ।"

वैसे इस बैज्जती की हक़दार मैं नहीं थी, मेरी मालकिन थी जो मुझे यहाँ से वहाँ इन गाड़ियो की रफ़्तार में लेकर घूम रही थी। जंगल पेड़-पौधे तो जैसे मैंने देखें ही नहीं कभी। देखूँगी भी कैसे? इस मुंबई शहर में इंसान के लिए जगह नहीं तो निर्जीव के लिए कहाँ स्थान यहाँ। 

मैं स्वयं को कामधेनु तो नहीं कहूँगी क्योंकि सुना है जिनके घर कामधेनु होती थी उन्हें अन्न धन की कमी नहीं थी। ख़ून के एक-एक कतरे से दूध बनाकर देती तो मैं भी हूँ लेकिन लालच की कमी पूरी तो ईश्वर नहीं कर सकते, मैं तो तब भी मूक प्राणी मात्र हुई। 

दिन भर लोगों के ताने सुनकर, कुछ की दुत्कार खाकर, भूल से किसी को दया आ गई तो चंद सिक्को में मेरा मोल लगाकर रख जाते हैं मालकिन के हाथो में। मैं देखती हूँ दया से मालकिन की तरफ़, और अपने मूक होने पर गर्व करती हूँ मैं। ऐसी जुबान ईश्वर मुझे ना ही दे जो केवल माँगने के लिए खुले और उन हाथों का भी क्या ही करूँगी जो लेने के लिए फैलाए जाए। मैं तो गाय हूँ, देना ही मेरा स्वभाव है। 

अब आप सोच रहे होंगे कि कैसी निर्लज्ज हूँ मैं, जो मैं अपनी ही मालकिन के विपक्ष में बोल रही हूँ। मैं बोल सकती तो बोलती कि तेरी खोली के पीछे जो ज़मीन का टुकड़ा ख़ाली पड़ा है सालों से, उसमे उगा, उगे हुए को खाओ और मुझे भी खिलाओ, फिर देखो दूध की नदी बहा दूँगी, उस दूध से पनीर, घी बना और पैसे कमा। ये जो दिन भर भटकती है यहाँ से वहाँ, क्या इसमें मेहनत नहीं लगती? जी मेहनत माँगने में करती है वो कमाने में कर। लेकिन ईश्वर ने हमे जुबान ही कहाँ दी है। दी होती तो भी मैं देखती हूँ सब कहने में है, सुनने में तो हम जैसे मूक प्राणी ही रहे।

आज मालकिन कुछ आधुनिक क्षेत्रों में चली गई तो वहाँ सुनी गई गालियाँ असहनीय हो गई थी इसलिए दर्द बनकर यहाँ बह गई। याद करती हूँ वो जमाना जब गोधन से बड़ा धन नहीं हुआ करता था इंसानों के पास। जान दे देते थे भले लोग, लेकिन अपने गोधन की रक्षा करते थे। ये ना समझिएगा कि कलयुग केवल आपके लिए आया है, हम गायों पर भी प्रकोप भारी है और बेबसी ये कि हम अपने हालात सुधारने के लिए कोई कदम भी नहीं उठा सकते है। लेकिन आप तो इंसान है। आपके कर्म तो आपके हाथ है। आप क्यों कलयुगी माया में उलझे है, हमसे भी अधिक ही।

चलिए, दिन भर की थकान के बाद जो ये रूखा-सूखा पड़ा है, खा लूँ फिर कल दिन भर गालियाँ ही खानी है। मुझे तो सबसे अधिक प्रिय मालकिन की ये गुड़िया है जो है तो पाँच बरस की लेकिन मेरी अम्मा की भाँति मुझे प्रेम प्रकट करती है, इसका बस चले तो मुझे खूँटे से बांधकर रखें, इसका बस चले तो ना...

हाय रे इंसान! खूंटे से आजादी ढूंढता है, और बंधा है मनावेशों से। मैं कहीं बेहतर, मन से आजाद, इच्छाओं से आजाद तो खूंटे से बंधा होना मेरा परम सौभाग्य।