किसी किताब में मैने पढा था कि जीवन का रहस्य आपके विचार हैं। यदि आप यह समझ लें कि आप क्या सोचते हैं, क्या चाहते हैं, या कैसी मानसिकता रखते हैं तो आप जीवन में घटने वाली घटनाओं को अपने अनुसार नियंत्रित कर सकते हैं। इसका अर्थ यह है कि आपको केवल स्वयं पर नजर रखनी है। हम कहा करते है कि यदि हम लोगों की क्रियाओं-प्रतिक्रियाओं पर नजर रखें तो उनके विषय में अधिक से अधिक जान सकते हैं। और हम ऐसा करते भी हैं, किसी व्यक्ति से पहली बार मिलते वक्त हम उसे ऊपर से नीचे तक निहारते रहते हैं, वह कैसे बोल रहा है, कैसे बैठता है, उठता है, कैसे खाना खाता है, या अपनी नजरें किन चीजों पर केंद्रित करता है, ये सब देखकर हम उसके स्वभाव, उसके व्यवहार तथा उसकी मानसिकता तक ज्ञात कर पाते हैं, ये गुण बच्चों में सबसे अधिक होता है, वे बहुत ही कम समय में किसी का स्वभाव जान लेते हैं, इसीलिए वे उन्हीं लोगों के पास जाते हैं जो उनसे प्यार से बात करे, उनको महत्व दे। परन्तु बड़े होते-होते जैसे-जैसे वे बोलना-सुनना-समझना सीख लेते हैं, वे अपनी इस क्षमता को पीछे छोड़ देते हैं। क्योंकि उनके समझने का साधन बदल जाता है, उन्होंने बोलना सीख लिया होता है। परन्तु सच तो ये है कि हमें जीवन के हर स्तर पर इस क्षमता की आवश्यकता होती है। न केवल दूसरों के लिए अपितु अपने लिए भी। वास्तव में मैं यही बताना चाहती हूँ कि यदि हम दूसरों की अपेक्षा स्वयं पर अधिक ध्यान रखेंगे तो हम अपने जीवन को अधिक सुरक्षित और व्यवस्थित बना सकते हैं।
अपने सुबह से शाम तक की दिनचर्या पर प्रकाश डालिए, आप क्या-क्या करते हैं, कैसे करते हैं, किससे प्रसन्न होकर बात करते हैं और किससे केवल कहने के लिए? कौन-सी और किसकी बात आपको सर्वाधिक प्रभावित करती है और क्यों? आपकी पसंद-नापसंद क्या है? आपकी आदतें क्या हैं जिन्हें आप कभी छोड़ना नहीं चाहते आपकी विशेषताएँ क्या हैं किस प्रकार का व्यवहार आपके द्वारा प्रदर्शित किया जाता है आप कितने हँसमुख हैं या कितने गम्भीर हैं आदि बातों को समझने का प्रयास कीजिए और इन सब को लिखकर रखिए। ऐसे-ऐसे प्रश्नों का निर्माण कीजिए जो आप स्वयं से पूछना चाहते हैं और उनके उत्तर भी लिखकर रखिए। अपने आप को समझने का पूरा प्रयास करिए। अपने दैनिक चर्या को करते हुए स्वयं पर नज़र रखिए। जिसे कहते हैं- कर्ता होते हुए भी दृष्टा होना। हम सभी को स्वयं का दृष्टा होने की आवश्यकता है। हम कौन सा कार्य किस उद्देश्य के लिए कर रहे हैं, वह उद्देश्य उचित है अथवा अनुचित। ये सब किसी को बताने की आवश्यकता नहीं है, केवल स्वयं के जानने के लिए कीजिए और इन सब विचारों और निष्कर्षों को लिखकर रखिए। आपके जीवन का प्रत्येक क्षण केवल आप पर ही नज़र रखे।
ये सब आत्मकेंद्रित होने के लिए नहीं है बल्कि अपने विचारों और आकांक्षाओं के निर्माण के लिए है। नियम यही है कि इस संसार में केवल आप हैं, केवल आप अकेले...। बाकी जो कुछ भी है वह आपकी कल्पना है, आपके विचार हैं और आपका विश्वास है। ये आपका विश्वास है कि आपका परिवार है, आपका विशिष्ट समाज है या इसी तरह से इस संसार में उपस्थित प्रत्येक चीज़ है अथवा नहीं, ये केवल आपका विचार है और विश्वास है। हम सभी जिन पारिवारिक तथा सामाजिक परिस्थितियों में पले-बढ़े होते हैं हमें जैसी शिक्षा तथा संस्कार प्राप्त होते हैं उन्हीं के अनुसार हमारी सोच तथा समझ विकसित होती रहती है। जिसके आधार पर हम अपने लिए सही या गलत, धर्म, कर्तव्य, सिद्धान्त तथा व्यवहार का निर्धारण करते हैं तथा जीवन भर चाहे जिस भी परिस्थिति या पर्यावरण में रहें हमारा स्वभाव और व्यवहार पूर्व निर्धारित मानकों पर चलता रहता है। हाँ, जीवन के अनुभवों के आधार पर बदलता अवश्य है परंतु फिर भी हमारी मूल प्रवृत्ति वैसी ही होती है।