भोपाल का ताजमहल: एक रहस्यमय यात्रा.
मेरा नाम राहुल है और मैं 10वीं कक्षा में पढ़ता हूँ। मैं दिल्ली में अपने पापा, मम्मी और बड़ी बहन के साथ रहता हूँ। मेरे पापा एक बड़ी कंपनी के CEO हैं, और मेरी मम्मी एक टूरिज्म इवेंट मैनेजर हैं। मेरी दीदी कॉलेज की पढ़ाई के लिए पहाड़ पर गई हुई हैं।
हमारा पूरा परिवार हमेशा कहीं बाहर घूमने के लिए तैयार रहता है। जब मेरी गर्मियों की छुट्टियाँ आईं, तो हमने शिमला जाने का विचार किया। पर अचानक पापा के कंपनी मैनेजर (रोहन) ने फ़ोन करके बताया कि पापा को एक डील के लिए तुरंत मध्य प्रदेश जाना होगा, वरना कंपनी को बहुत नुकसान हो सकता है। पापा ने तुरंत हाँ कर दिया। मम्मी ने कहा कि अगर शिमला नहीं तो मध्य प्रदेश ही घूम लेंगे।
हमने कार पैक की और चल पड़े। गाड़ी में मम्मी ने कहा कि हम सबसे पहले पंचमढ़ी जाएँगे, फिर ग्वालियर और उज्जैन, और उसके बाद बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान।
I. ग्वालियर और उज्जैन की यात्रा
उस रात हम भोपाल के ताजमहल में ठहरे। टैक्सी ने हमें वहाँ छोड़ दिया। हमने वहाँ एक बढ़िया सा ट्विन बेड रूम बुक किया। फिर हम भोपाल के कई पर्यटन स्थल घूमते-घूमते भारत भवन पहुँचे।
रात को हम सबने बाहर एक रेस्टोरेंट में पेट भरकर खाना खाया और होटल आकर सो गए।
अगले दिन मम्मी ने उज्जैन घूमने के लिए कहा, क्योंकि "यह देवताओं का शहर है"। मम्मी ने बताया कि स्कंद पुराण के अनुसार, उज्जैन में 84 महादेव, 6 विनायक, 75 योगिनियाँ और 8 भैरव हैं। महान कवि कालिदास भी इस शहर की प्रशंसा करते हैं। उज्जैन में 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है, यह सात मोक्ष प्रदान करने वाले शहरों में से एक है, यहाँ गढ़कालिका और हरसिद्धि दो शक्तिपीठ हैं, और यहीं भारत के चार पवित्र कुंभ मेलों में से एक आयोजित होता है। यहाँ राजा भर्तरी की गुफा भी पाई जाती है। यह सब सुनकर मैं वहाँ घूमने के लिए और उत्साहित हो गया।
उज्जैन में मैंने और मम्मी ने मिलकर खूब शॉपिंग की और फिर हम बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान के लिए निकल पड़े।
II. रहस्यमय महल और अजीब घटनाएँ
जब हम बाँधवगढ़ पहुँचे, तो हम हैरान हो गए क्योंकि वहाँ बहुत तरह के फूल थे और बहुत सारे झूले भी थे। खूब मस्ती करने के बाद हम सब घर लौट आए।
अगले दिन हम सब भोपाल का ताजमहल देखने गए। हमें नहीं पता था कि उस खंडहर जैसी जगह का नाम ताजमहल किसने रखा, पर वहाँ अनेक लोग घूमने आते थे। उस नकली ताजमहल में घुसने वाले दरवाजे पर एक बोर्ड टँगा हुआ था।
उस बोर्ड पर लिखा था कि यह किसी राजा का महल था। किसी ने दूर से राजा और उनके सिपाहियों पर हमला कर दिया था, और उनमें से कोई भी बच नहीं सका। तभी से लोगों का मानना है कि रात को यहाँ से कई आवाज़ें आती हैं, इसलिए रात को यहाँ कोई नहीं रुकता। बोर्ड पर यह भी लिखा था कि दीवारों को छूना नहीं, वरना राजा और सिपाहियों को गुस्सा आ जाएगा।
हमने इन बातों पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया। हम सब अंदर चले गए। वहाँ एक और बोर्ड था, जिस पर लिखा था कि सूरज ढलने से पहले ही बाहर निकल जाना, वरना महल की दीवारें बाहर जाने नहीं देंगी।
जब हम वापस निकल रहे थे, तो गलती से मेरी कार की चाबी दीवार पर लग गई और खरोंच आ गई। पापा ने मुझसे राजा से माफी माँगने को कहा। मैंने डरते-डरते माफी माँगी।
होटल पहुँचकर मैं सो गया। अगले दिन सुबह जब मैं उठा, तो मुझे पता चला कि पापा किसी डील के लिए बाहर गए हैं और शाम तक लौटेंगे। शाम को जब पापा वापस आए, तो हम सब बहुत खुश हुए।
III. बीमारी और भूतों का साया
जिस दिन हम दिल्ली पहुँचे, उस रात खाना खाने के बाद मैं सोने चला गया। अगली सुबह जब मेरी नींद खुली, तो मेरे पूरे शरीर में दर्द हो रहा था और मैं बीमार महसूस कर रहा था। मम्मी ने डॉक्टर को बुलाया। डॉक्टर ने चेक-अप किया और दवाई दे दी।
दीदी ने मुझे डॉक्टर के बताए समय पर खाना खिलाया और दवाई दी। पर अगले दिन भी मेरी तबियत में कोई सुधार नहीं हुआ। मम्मी ने फिर उसी डॉक्टर को बुलाया। डॉक्टर ने कहा कि उन्होंने जो दवाई दी थी, वह बहुत ही हैवी और असरदार थी, जिसे खाने के बाद कोई भी बीमार व्यक्ति ठीक हो जाता है, पर राहुल पर इसका असर नहीं हुआ, ऐसा पहली बार हुआ है।
फिर डॉक्टर ने जड़ी-बूटियों से बनी एक और दवाई दी, पर वह दवाई लेने के बाद भी मेरी तबियत ठीक नहीं हुई।
दोपहर को खाना खाने के बाद जब सब कमरे में थे, तभी अचानक मेरी तबियत में सुधार आने लगा। रात तक मैं पूरी तरह ठीक हो गया।
रात को जब हम टीवी पर मैच देख रहे थे, तो कमरे के बाहर से गिलास गिरने की आवाज़ आई। पापा ने बाहर जाकर देखा और गिलास उठाकर वापस रख दिया। हर रोज़ रात को घर में कोई-न-कोई चीज़ गिरती रहती थी, पर हम ध्यान नहीं देते थे।
एक रात कमरे का गेट अपने आप खुलने-बंद होने लगा और चीज़ें हवा में उड़ने लगीं। यह सब देखकर मेरा पूरा परिवार बहुत डर गया।
IV. बाबा और भूतिया महल का अंत
अगले दिन हम सब एक बाबा के पास गए और उन्हें सारी बात बताई। बाबा हमारी बात सुनकर हैरान रह गए। पापा उन्हें हमारे घर ले आए।
घर में कदम रखते ही बाबा ने बताया कि हमारे घर को 30 भूतों ने घेरा हुआ है। उनमें से एक भूत इन सब का मालिक है और वह राहुल के शरीर में है। हम समझ गए कि यह आत्मा उस भोपाल के ताजमहल के राजा की है और बाकी 29 आत्माएँ उनके सिपाहियों की हैं।
बाबा ने बताया कि इन भूतों से छुटकारा पाने के लिए हमें उस ताजमहल के दस चक्कर लगाकर एक बड़ा यज्ञ करवाना होगा।
हमने तुरंत गाड़ी स्टार्ट की और उस भूतिया महल की ओर चल पड़े। वहाँ पहुँचकर, हमने बिना समय गँवाए महल के दस चक्कर लगाए और वापस बाबा के पास आ गए।
यज्ञ हमारे घर पर ही शुरू हुआ। यज्ञ शुरू होते ही मेरे शरीर में बहुत दर्द होने लगा, मानो कोई मेरे शरीर से मेरी आत्मा को खींच रहा हो। मुझे इतना दर्द हुआ कि मैं बेहोस हो गया।
जब यज्ञ खत्म हुआ, तो पापा ने मेरे मुँह पर पानी छिड़का और मुझे होश आया। जब सब कुछ ठीक हो गया, तब पापा ने उस महल के अंदर की दीवारों के पास एक और दीवार बनवा दी, ताकि फिर ऐसा किसी के साथ न हो।
इसके बाद सब कुछ ठीक हो गया और हम लोग खुशी-खुशी रहने लगे।
( This story, 'The Taj Mahal of Bhopal: A Mysterious Journey', was collaboratively created by the members of our 'Alfha' group. It is entirely based on the authors imagination and serves as a fictional travelogue. All characters and events described in the narrative are purely fictitious. The sole purpose of this story is entertainment. )
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