Mohabbat ke wo Din - 4 in Hindi Love Stories by Bikash parajuli books and stories PDF | मोहब्बत के वो दिन - 4

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मोहब्बत के वो दिन - 4

सुबह की रोशनी खिड़की से कमरे में फैल रही थी। Bikash की आँख खुली तो सबसे पहले कल की हर बात याद आ गई—लिफ्ट में फँसा वो पल, Maina की नम आँखें, उसका हाथ थामना, और रात की लंबी फोन कॉल।
दिल अजीब तरह से हल्का भी था और भरा हुआ भी।

वो बिस्तर से उठा, मेज़ पर रखी अपनी डायरी पर नज़र पड़ी।
वही डायरी जिसमें उसने कभी सपनों की बातें लिखी थीं, कभी डर, और अब… Maina।

उसने डायरी उठाई, कुछ पन्ने पलटे और मुस्कुरा दिया।
फिर अचानक ठिठक गया—
"अगर ये किसी के हाथ लग गई तो?"

वो जल्दी से डायरी बैग में रखकर कॉलेज निकल पड़ा, यह नहीं जानते हुए कि किस्मत आज कुछ और ही मोड़ लेने वाली है।

कॉलेज की सुबह और हल्की बेचैनी

कैंपस में हमेशा की तरह चहल-पहल थी।
Bikash ने दूर से Maina को देखा—वो अपनी दोस्तों के साथ खड़ी हँस रही थी।
उसकी हँसी आज और भी सुंदर लग रही थी।

Maina की नज़र Bikash पर पड़ी।
वो दोस्तों से अलग होकर उसकी ओर आई।

"Good morning!"
उसकी आवाज़ में वही अपनापन था।

"Good morning…"
Bikash थोड़ा झिझका, जैसे कुछ छुपा रहा हो।

Maina ने गौर किया—
"क्या हुआ? आज कुछ खोए-खोए लग रहे हो।"

Bikash ने जल्दी से बात बदली—
"नहीं, बस नींद कम हुई थी।"

Maina ने मुस्कुरा कर कहा—
"चलो, लाइब्रेरी चलते हैं। आज ग्रुप स्टडी है।"

Bikash के दिल में हल्की घबराहट हुई।
डायरी… बैग में थी।

लाइब्रेरी और वो अनजाना पल

लाइब्रेरी शांत थी।
Maina सामने की कुर्सी पर बैठ गई, Bikash उसके बगल में।
टेबल पर किताबें, नोट्स और Bikash का बैग रखा था।

कुछ देर तक पढ़ाई चली।
Maina नोट्स पलटते-पलटते बोली—

"तुम हमेशा लिखते रहते हो, कभी-कभी लगता है पढ़ाई से ज़्यादा लिखने में खो जाते हो।"

Bikash हल्का सा हँसा—
"आदत है।"

Maina ने शरारत से कहा—
"क्या लिखते हो? कविताएँ? कहानियाँ?"

Bikash ने बैग को अपनी तरफ खींच लिया—
"ऐसे ही… कुछ भी।"

उसी पल लाइब्रेरी स्टाफ ने आकर कहा कि अगले दस मिनट में सेक्शन बंद होगा।
Maina ने जल्दी-जल्दी अपनी किताबें समेटीं।

"मैं बाहर इंतज़ार करती हूँ, तुम बैग ले आना।"
कहकर वो उठ गई।

Bikash भी खड़ा हुआ, पर जल्दबाज़ी में बैग की ज़िप ठीक से बंद नहीं हुई।
डायरी का एक कोना बाहर झाँक रहा था।
डायरी और वो पन्ने

Maina बाहर बेंच पर बैठी इंतज़ार कर रही थी।
उसकी नज़र Bikash के बैग पर पड़ी—खुला हुआ।
हवा से एक पन्ना बाहर आ गया।

उसने बिना सोचे डायरी उठाई—
बस उसे अंदर रखने के लिए।

पर उसकी नज़र उन शब्दों पर पड़ी…
और हाथ रुक गए।
 “आज लिफ्ट में फँसना डरावना नहीं था,
क्योंकि वो मेरे साथ थी।
Maina की आँखों में जो उदासी है,
मैं उसे कभी अकेला नहीं छोड़ना चाहता।”

Maina की साँस रुक गई।
उसने जल्दी से अगला पन्ना पलटा—

 “पता नहीं ये प्यार है या नहीं,
पर जब वो मुस्कुराती है
तो दुनिया आसान लगती है।”

उसका दिल ज़ोर से धड़कने लगा।
ये शब्द… उसके लिए थे।

सच के सामने खड़ा Bikash

Bikash बाहर आया तो देखा—
Maina के हाथ में उसकी डायरी थी।

उसका चेहरा सफ़ेद पड़ गया।
"Maina… वो…"

Maina ने डायरी बंद की।
उसकी आँखों में कोई गुस्सा नहीं था—
बस सवाल थे।

"ये सब… मेरे बारे में लिखा है?"

Bikash कुछ पल चुप रहा।
फिर गहरी साँस लेकर बोला—

"हाँ।
मुझे नहीं पता था कैसे कहूँ।
मैंने सोचा… लिख लेना आसान है।"

Maina ने उसकी ओर देखा—
"तो तुम मुझे पसंद करते हो?"

Bikash की आवाज़ काँप गई—
"हाँ।
बहुत।"

खामोशी, जो जवाब दे गई

कुछ पल दोनों चुप रहे।
हवा हल्की चल रही थी, पत्ते हिल रहे थे।
Maina ने डायरी Bikash की ओर बढ़ाई।

"मुझे अच्छा लगा ये पढ़कर।"

Bikash ने चौंककर पूछा—
"अच्छा?"

Maina ने सिर हिलाया—
"हाँ।
क्योंकि ये दिखावा नहीं है।
ये सच्चा है।"

वो धीरे से बोली—
"मैं तैयार नहीं थी ऐसे जानने के लिए,
पर शायद… मैं भी कुछ ऐसा ही महसूस करती हूँ।"

Bikash का दिल जैसे रुक गया।
"सच?"

Maina ने हल्की मुस्कान के साथ कहा—
"सच।
पर चलो, अभी इसे नाम न दें।
इसे धीरे-धीरे बढ़ने दें।"
शाम की नर्म रौशनी

शाम को दोनों साथ कैंपस से बाहर निकले।
सूरज ढल रहा था, आसमान नारंगी हो गया था।

Bikash ने हिम्मत करके पूछा—
"तो… हम?"

Maina ने चलते-चलते कहा—
"हम वही हैं जो कल थे।
बस अब दिल थोड़े ज़्यादा खुले हैं।"

उसने रुककर Bikash की ओर देखा—
"और हाँ…
डायरी संभालकर रखा करो।
कभी-कभी शब्द भी सच बोल देते हैं।"

Bikash हँस दिया—
पहली बार बिना डर के।
रात की डायरी, नया एहसास

रात को Bikash ने फिर डायरी खोली।
आज हाथ काँप नहीं रहे थे।

उसने लिखा—

> “आज Maina ने मेरी डायरी पढ़ ली।
डर था, पर जो मिला…
वो उम्मीद से कहीं ज़्यादा था।
शायद प्यार ऐसे ही शुरू होता है—
बिना शोर, बिना वादों के।”

डायरी बंद करते हुए उसने आसमान की ओर देखा।
तारे चमक रहे थे।

कहानी अब सिर्फ एकतरफ़ा नहीं रही थी।
दिलों के बीच एक पुल बन चुका था।