आज फिर एक बाऱ हाथों में पेन और और डायरी है, ऐसा नहीं की पहली बार लिख रही हूं पर जो शगल था डायरी लिखने का वह कहीं पीछे छूट गया.
अपनी भावनाओं को शब्दों मे उतारना कभी मुझे आया ही नहीं पर मन में हमेशा शब्द उथल-पुथल मचाए रहते थे उम्र बढ़ाने के साथ ही डायरी और पेन ने हाथ थाम लिया.अपने मन को डायरी मे उतारना शुरू किया अल्हड़पन के सपने शिकायतें सभी कुछ डायरी में ऊकेरती गई, डायरी ने भी हमेशा मेरा साथ दिया मेरी खुशी मेरे आंसू मेरे सपने सब कुछ समेट लिए,डायरी मेरी सबसे अच्छी दोस्त बन गई, जीवन के उतार-चढ़ाव, में हमेशा साथ रहती, सहेलियों में भी अच्छी सहेली थी, जो आप की बातों की चुगली नहीं करती थी, मेरी शायरी, मेरी कविता, मेरी कहानी और अनगिनत सपने, सब कुछ डायरी को पता थे,
जब शादी हुई तो अपनी डायरी को भी साथ ले ससुराल आ गई शुरू में तो ससुराल और डायरी दोनों के साथ इमानदारी निभाई, नए सपने और नए रिश्तों को भी अपनी डायरी में शामिल किया,.
समय के साथ-साथ बच्चो की जिम्मेदारी भी शामिल हो गई और डायरी कहीं पीछे छूट गई पर साथ हमेशा रहती कांच की अलमारी में से झांकती की कभी तो मैं उससे बात करूंगी पर मैं तो अपनी दुनिया अपने परिवार में डूब गई थी कभी-कभी लगता था कि उससे बात करूं पर समय और जिम्मेदारी के कारण बहुत कुछ छूट जाता था फिर एक समय ऐसा भी आया की डायरी को अपने से दूर करना पड़ा पति ने कहा जब लिखनी नहीं है तो रख कर क्या करोगी अलग करो इसे मैंने कहा नहीं पर वह नहीं माने और से अलग कर दिया डायरी के साथ-साथ मेरे सपने मेरी ख्वाहिशें जो शायद कागज पर थी वह जलकर खाक हो गई कितना कठिन है किसी के सामने अपने मन को खोलना लेकिन तुम ही थी मेरी अपनी, जो मुझे जानती थी, उस दिन मैं रात भर सो नहीं पाई समय चलता रहा और गुजरता रहा.
समय के साथ-साथ सभी व्यस्त होते गए सबकी अपनी दुनिया हो गई और मैं फिर वही अकेली की अकेली, बहुत समय मोबाइल पर रील्स को ऊपर नीचे करने में लगाती रहती और अपने खालीपन को भरने की कोशिश करती. समय की व्यस्तता ने नए दोस्त नहीं बनाए या जो थे भी वो भी व्यस्त थे सबकी अपनी दुनिया और अपना परिवार था उम्र के इस पड़ाव में मन खाली सा हो जाता है, भावनात्मक खालीपन आपको काटने को दौड़ता है तब आपको सबसे ज्यादा जरुरत खुद को समय देने की होती है, मन को समझने की होती है
बहुत कुछ कहना रहता है बहुत कुछ ससुनना रहता है लेकिन वही अपने आप को ना कह पाना , अपने आप को व्यक्त न कर पाना बहुत बड़ी परेशानी है आज स्वतंत्र हूं पर कहीं ना कहीं अकेली भी, आज जब अकेली थी तब लगा क्यों ना फिर से अपनी दोस्त से मिलो बातें कर लूं और मन हल्का कर लूं और फिर मेरे हाथ में आ गई मेरा पेन और मेरी डायरी.
जो मेरी पुरानी दोस्त है, जो मन को सभालती भी सहेजती भी है मेरी अपनी डायरी