भाग 1: गाँव की दास्तान
मालपुरा गाँव के किनारे पर एक पुरानी हवेली खड़ी थी। उसकी दीवारों पर गहरी दरारें थीं, जर्जर झरोखे हवा में चरमराते थे और लोहे के पुराने ताले जंग खाकर लटक रहे थे। गाँव के बुज़ुर्ग कहते थे कि इस हवेली में कभी एक ठाकुर रहता था जो तांत्रिक विद्या करता था। उसकी रहस्यमयी मौत के बाद से हवेली वीरान हो गई और लोग मानने लगे कि उसकी आत्मा अब भी वहीं भटक रही है।
दिन में हवेली एक खंडहर जैसी लगती थी, लेकिन रात होते ही वहाँ से अजीब आवाज़ें आतीं—जैसे कोई ज़ंजीर घसीट रहा हो, या कोई औरत सिसक रही हो। गाँव वाले उस जगह से दूर रहते थे।
भाग 2: दोस्तों का इरादा
एक रात गाँव के चार नौजवान—रवि, मोहित, सुरेश और अंजली—ने तय किया कि वे हवेली में जाकर सच्चाई जानेंगे। उन्हें लगता था कि बुज़ुर्गों की बातें सिर्फ़ डराने के लिए हैं।
“अगर दरवाज़ा खोल दिया तो सब अफ़वाहें ख़त्म हो जाएँगी,” रवि ने हिम्मत दिखाते हुए कहा।
रात के बारह बजे वे चुपके से हवेली के दरवाज़े पर पहुँचे। जैसे ही उन्होंने ताले को धक्का दिया, एक ठंडी हवा का झोंका उनके चेहरों से टकराया। अंदर कदम रखते ही उन्हें महसूस हुआ कि हवेली की हवा गाँव से अलग है—भारी और बेहद ठंडी।
भाग 3: हवेली के भीतर
अंदर की दीवारों पर पुराने चित्र टंगे थे। उन चित्रों में इंसानों के चेहरे धीरे-धीरे बदलते हुए लग रहे थे—जैसे उनकी आँखें सीधे उन्हें घूर रही हों। अंजली ने एक चित्र को छुआ, और अचानक उसमें से हल्की सी चीख की आवाज़ निकली।
नीचे तहखाने की ओर जाने वाली टूटी-फूटी सीढ़ियाँ थीं। मोहित बोला, “चलो नीचे चलते हैं, असली राज़ वहीं छिपा होगा।” डर सबके चेहरों पर साफ़ था, लेकिन जिज्ञासा उन्हें खींच रही थी।
भाग 4: तहखाने का रहस्य
तहखाने में एक बड़ा आईना रखा था। उसका फ्रेम लोहे का था और उस पर अजीब मंत्र खुदे हुए थे। रवि ने आईने में देखा, लेकिन उसकी परछाई वापस नहीं आई। उसकी जगह एक और चेहरा दिखाई दिया—काला, बिना आँखों का, सिर्फ़ एक खाली अंधेरा।
अचानक हवेली के सारे दरवाज़े अपने आप बंद हो गए। ज़ंजीरों की आवाज़ गूंजने लगी। अंजली चीख उठी, “ये जगह श्रापित है!”
भाग 5: भयावह रात
एक-एक करके सबको अलग-अलग भ्रम होने लगे। मोहित को लगा कि उसके कंधे पर कोई खड़ा है, लेकिन जब उसने मुड़कर देखा तो वहाँ कोई नहीं था। सुरेश को अपनी माँ की आवाज़ सुनाई दी, लेकिन वो आवाज़ तहखाने के भीतर से आ रही थी।
रवि ने आईने को पत्थर से तोड़ने की कोशिश की, लेकिन जैसे ही उसने वार किया, आईना और गहरा हो गया—जैसे किसी दरवाज़े में बदल रहा हो। उस दरवाज़े से एक औरत बाहर निकली। वह सफ़ेद साड़ी में थी, लेकिन उसका चेहरा पूरी तरह काला था। उसने बस एक ही वाक्य कहा:
“तुम्हें यहाँ नहीं आना चाहिए था…”
भाग 6: अंतिम भूल
सब भागने लगे, लेकिन हवेली के दरवाज़े बंद थे। ज़ंजीरें अपने आप हिल रही थीं। अंजली ने प्रार्थना शुरू की, लेकिन उसकी आवाज़ तहखाने में गूंजकर वापस आई—जैसे हवेली उसका मज़ाक बना रही हो।
एक-एक करके सबकी परछाइयाँ आईने में समा गईं। जब वे बाहर निकले, गाँव वालों ने देखा कि उनके चेहरे बदल गए हैं। आँखें खोखली थीं और उनकी आवाज़ में अजीब सी खामोशी थी।
उस रात के बाद वो दोस्तों का समूह कभी सामान्य नहीं रहा। गाँव वाले कहते हैं कि उनकी असली आत्माएँ हवेली में फँस गईं और जो बाहर आए वो सिर्फ़ खोखली परछाइयाँ थीं।
भाग 7: गाँव का श्राप
आज भी जब कोई उस हवेली के पास जाता है, उसे अपनी ही आवाज़ सुनाई देती है—जैसे उसकी परछाई उसे बुला रही हो। बुज़ुर्ग कहते हैं कि हवेली एक ऐसा दरवाज़ा है जहाँ इंसान अपनी आत्मा खो देता है।
और जो भी उस दरवाज़े को खोलता है, वो कभी वापस नहीं आता…