सर्जा राजा – भाग 3
लेखक राज फुलवरे
अध्याय 7 – नई सुबह, नया जीवन
सूरज की हल्की–हल्की किरणें गाँव के कच्चे रास्तों पर फैल रही थीं। धूल की हल्की परत सुनहरी रंगत ओढ़े खेतों पर जमा थी। हवा में चारे की ताज़ी सुगंध और मिट्टी की खुशबू तैर रही थी। आज का दिन हिम्मतराव के लिए खास था—क्योंकि सर्जा और राजा पहली बार पूरे खेत का बड़ा काम संभालने वाले थे।
हिम्मतराव बाहर आते ही दोनों बैलों के सामने खड़े हुए। उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा—
हिम्मतराव (सर्जा के सिर पर हाथ फेरते हुए):
“सर्जा… राजा… आज का दिन बड़ा है। तुम दोनों सिर्फ बैल नहीं हो, मेरे साथी हो। चलो, आज हम मिलकर इस खेत को खुशियों से भर देंगे।”
सर्जा ने हल्के से हिम्मतराव के हाथ को महसूस किया और राजा ने गर्व से अपनी गर्दन उठाई।
उसी समय विमलादेवी भी बाहर आईं, उनकी आँखों में ममता भरी थी। हाथ में थाली—आरती, हल्दी, कुमकुम और फूल।
विमलादेवी (नरम आवाज में):
“मेरे वीरों… पहली बार खेत में उतरने जा रहे हो। भगवान तुम्हारा हर कदम सफल करे।”
उन्होंने दोनों की आरती की, माथे पर तिलक लगाया। सर्जा–राजा शांत खड़े थे, जैसे समझ रहे हों कि यह सम्मान सिर्फ उनके लिए नहीं, उनके परिश्रम के लिए है।
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अध्याय 8 – खेत में पहली कसौटी
खेत का दृश्य बहुत बड़ा था—चारों ओर हरियाली, सिंचाई का पानी, हल की जोतने की तैयारियाँ।
हिम्मतराव हल उठाते हुए बोले—
हिम्मतराव:
“चलो बेटा… आज हम दुनिया को दिखा दें कि भरोसा किसे कहते हैं।”
राजा ने हल्की फुंकार मारी, जैसे कह रहा हो—“चलो मालिक, मैं तैयार हूँ।”
जब हल मिट्टी में चला, पहली ही लकीर सीधी निकली। हिम्मतराव की आँखें चमक उठीं।
उन्होंने सर्जा की पीठ थपथपाई—
हिम्मतराव:
“वाह! ये तो किसी अनुभवी किसान के बैलों की तरह सीधी जोत है!”
कुछ दूरी पर खड़ी विमलादेवी ने हाथ जोड़कर कहा—
विमलादेवी:
“भगवान, इन्हें हमेशा ऐसे ही सुरक्षित रखना।”
पूरा दिन मेहनत चली—पर सर्जा–राजा थकने का नाम नहीं ले रहे थे। हवा चल रही थी, मिट्टी की महक गहरी हो गई थी।
शाम को जब काम पूरा हुआ, खेत की धरती लकीरों से भरी थी—मानो किसी कलाकार ने ब्रश से चित्र बनाया हो।
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अध्याय 9 – चारों की अटूट बंधन
समय बीतता गया।
दिन बनकर महीने और महीने बनकर साल हो गए।
अब ये चारों—हिम्मतराव, विमलादेवी, सर्जा और राजा—एक परिवार बन चुके थे।
विमलादेवी जब भी खाना बनातीं तो कहतीं—
विमलादेवी:
“सर्जा-राजा को पहले देना, ये भी खानदान के सदस्य हैं।”
हिम्मतराव अपने बच्चों की तरह उनकी चिंता करते। सर्दी हो, बारिश हो या गर्मी—सर्जा–राजा हमेशा सुरक्षित रहें यह उनका पहला कर्तव्य था।
रात को वे दोनों बैल अपने खूटे के पास बैठे हिम्मतराव के गाने सुनते।
हिम्मतराव अक्सर कहते—
हिम्मतराव:
“तुम दोनों ने मेरी किस्मत बदल दी… तुम्हारे आने से मेरे घर में सच में लक्ष्मी आई है।”
और यह बात सच भी थी—
सर्जा–राजा की मेहनत से खेती बढ़ी, अनाज बढ़ा, पैसे बढ़े, जमीन बढ़ी।
घर में सुख–शांति ऐसे आई जैसे वरदान मिल गया हो।
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अध्याय 10 – ईर्ष्या का जन्म
लेकिन जितनी खुशियाँ बढ़ीं… उतनी ही एक जगह जहर भी पलने लगा—
जयदेवराव के दिल में।
वह दूर से हिम्मतराव का बढ़ता सम्मान, बढ़ती संपत्ति, और सर्जा–राजा की शक्ति देखकर जलने लगे।
एक दिन वह अपनी पत्नी से बोले—
जयदेवराव (गुस्से में):
“सिर्फ दो बैल आए और हिम्मत की किस्मत किस तरह खुल गई!
किस्मत ऐसी किसी-किसी पर ही आती है।
मैंने ही गलती की, वरना ये बैल मेरे होते!”
पत्नी ने समझाने की कोशिश की—
पत्नी:
“अरे पराए के सुख पर नज़र मत रखो। मेहनत करो, सब मिलेगा।”
लेकिन जयदेवराव की ईर्ष्या अब बढ़ चुकी थी।
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अध्याय 11 – जहर की साजिश
एक रात, जब गाँव शांति में डूबा था, परेशानियों से भरा जिसका दिल था—वह था जयदेवराव।
वह चुपके से सर्जा–राजा के घेरे के पास पहुँचा।
हाथ में एक मुट्ठी काला पाउडर—जहर।
उसकी आँखों में लालच चमक रहा था—
जयदेवराव (धीमी आवाज में खुद से):
“ये बैल नहीं रहेंगे तो सब खत्म हो जाएगा… हिम्मत फिर वहीं आ जाएगा जहाँ पहले था।”
लेकिन जैसे ही उसने चारे की ओर हाथ बढ़ाया—
अंधेरे में एक आवाज गूंजी—
हिम्मतराव:
“जयदेव!! ये क्या कर रहे हो तुम!?”
जयदेवराव चौंक गया।
हिम्मतराव ने उसके हाथ पकड़े, चारा दूर फेंक दिया।
हिम्मतराव (कठोर आवाज में):
“मेरे बच्चों को मारने चले आए थे तुम?
सिर्फ ईर्ष्या के कारण!?”
जयदेवराव की आँखें शर्म से झुक गईं।
उसकी आवाज कांप रही थी—
जयदेवराव:
“भ… भाई… गलती हो गई… मैं लालच में अंधा हो गया था… माफ कर दो…”
हिम्मतराव का दिल दुखा, पर उन्होंने उसे डांटा नहीं।
उन्होंने सिर्फ इतना कहा—
हिम्मतराव:
“जयदेव… बैल सिर्फ जानवर नहीं होते।
वे भगवान का रूप होते हैं।
तूने बहुत बड़ा पाप किया है।”
जयदेवराव रोते हुए उनके पैरों पर गिर पड़ा—
जयदेवराव:
“भाई… माफ कर दो!
मैं अपनी गलती स्वीकार करता हूँ।
कसम देता हूँ—अब कभी ऐसा नहीं करूँगा।”
हिम्मतराव ने उसे उठाया और शांत स्वर में बोले—
हिम्मतराव:
“मैं तुझे माफ करता हूँ।
लेकिन याद रखना—दूसरों का सुख देखकर जलने वाला आदमी कभी खुश नहीं रहता।”
और ऐसे कहानी का पहला बड़ा संघर्ष खत्म हुआ।