चंदनी
लेखक राज फुलवरे
सुनहरे चंदन के पेड़ों की लंबी कतारों के बीच, एक छोटी-सी गुफा थी—शांत, ठंडी और सुगंध से भरी हुई। वही थी चंदनी का घर, चंदनवन की रक्षिणी।
न जाने कितने वर्षों से वह अकेले ही इस विशाल चंदनवन की देखभाल करती आई थी। उसका काम था—
पेड़ों को पानी देना,
खाद डालना,
घावों पर लेप लगाना,
और सबसे बड़ी बात—उन्हें हर खतरे से बचाना।
वह पेड़ों से बात करती थी, उनकी सांसों को समझती थी। और हर सुबह, जब सूरज सुनहरी रोशनी लेकर उगता, चंदनी एक-एक पेड़ के अंदर घुसकर उसकी खुशबू बढ़ाती। यह उसकी एक अनोखी शक्ति थी—जिससे चंदन के पेड़ों की सुगंध चार गुना तक बढ़ जाती थी।
पास के चार–पांच गाँवों में उसके किस्से मशहूर थे।
लोग कहते—
“चंदनवन की रक्षा एक जादुई रक्षिणी करती है, उससे उलझना खुद को बर्बादी देना है।”
पर चंदनी किसी को नुकसान नहीं पहुँचाती थी।
वह केवल डराती थी—सबक सिखाती थी।
उसकी शक्ति दया में थी, विनाश में नहीं।
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एक सुबह…
उस सुबह भी, हर रोज़ की तरह, चंदनी सबसे बड़े चंदन के वृक्ष के पास पहुँची। उसने अपना हाथ तने पर रखा और फुसफुसाई—
“चलो मेरे साथी… आज फिर तुम्हारी खुशबू दुनिया तक पहुँचाऊँ।”
कहते ही उसका शरीर हल्का होने लगा। उसकी देह हवा में घुलने लगी और वह पेड़ के अंदर प्रवेश कर गई। भीतर एक अलग ही दुनिया थी—गरमाहट, रोशनी और सुगंध से भरी।
लेकिन जब वह बाहर आई, तो सामने एक युवक खड़ा था।
उसके चेहरे पर हैरानी भी थी और डर भी।
उसने धीरे से कहा—
“मैडम… ये… ये आपने क्या किया? आप… पेड़ के भीतर कैसे गईं? क्या ये कोई जादू है?”
चंदनी चौक गई।
उसकी भौंहें सिकुड़ गईं।
“कौन हो तुम? यहाँ क्या कर रहे हो? पेड़ को हाथ लगाया, तो मैं तुम्हारे हाथ–पैर तोड़ दूँगी समझे?”
युवक ने दोनों हाथ ऊपर कर दिए।
“नहीं—नहीं! मैं कुछ गलत करने नहीं आया। मेरा नाम शंपक है। मैं बस यहाँ टहलने आता हूँ। पहली बार आपको देखा… तो पूछ लिया।”
चंदनी अभी भी शक में थी।
“टहलने? चंदनवन में? किसी की हिम्मत नहीं जो यहाँ आए, और तुम… इतनी हिम्मत?”
शंपक मुस्कुराया—
“हिम्मत? शायद जिज्ञासा कहिए। आप… सच में किसी रानी जैसी लगती हैं।”
पहली बार कोई ऐसा बोल रहा था।
चंदनी थोड़ा शांत हुई।
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बातों की शुरुआत
अगले दिन फिर शंपक वही आया।
“नमस्ते चंदनी जी… आज कौन सा पेड़ पहले?”
चंदनी ने घूरते हुए कहा—
“तुम फिर आ गए? यहाँ बाहरी लोगों का आना मना है।”
“पर मैंने किसी पेड़ को छुआ नहीं। केवल आपको देखना… मतलब आपकी कार्यप्रणाली समझना चाहता हूँ।”
चंदनी के होंठों पर हल्की हँसी आ गई।
“तुम्हें पेड़ों से इतना प्यार है?”
“नहीं…
—“मुझे आपसे बात करने में अच्छा लगता है।”**
चंदनी ने सिर झटका।
“मैं पेड़ों की रक्षिणी हूँ, बात–चीत के लिए नहीं।”
लेकिन उसके बाद भी वह आया…
हर दिन।
कभी पानी लेकर, कभी खाने का छोटा पैकेट, कभी मुद्दे पर बात—कभी बस चुपचाप बैठकर उसे काम करते हुए देखता।
धीरे–धीरे उनकी मुलाकातों में अपनापन बढ़ने लगा।
शंपक पेड़ों की पत्तियाँ छूकर कहता—
“ये दुनिया सच में जादुई है चंदनी… आप जैसी रक्षिणी हो तो पेड़ कैसे नहीं खिलेंगे।”
चंदनी को महसूस हुआ कि वह भी इस इंसान को पसंद करने लगी है।
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प्यार की खुशबू
महीने बीत गए।
अब शंपक रोज आता।
चंदनी उसे पानी का घड़ा उठाने देती।
कभी पेड़ों के पास बैठकर उसे चंदनवन की पुरानी कहानियाँ सुनाती।
एक शाम दोनों बड़े चंदन वृक्ष के नीचे बैठे थे।
शंपक बोला—
“चंदनी… तुम अकेली रहती हो?”
“हाँ। यह जंगल, यह पेड़—मेरे साथी हैं।”
“और इंसान?”
चंदनी उसकी ओर देखती रह गई।
“इंसान… डरते हैं मुझसे।”
शंपक धीरे से बोला—
“मैं नहीं डरता… मैं तो तुम्हारी तरफ खिंचता जा रहा हूँ।”
चंदनी का दिल धक से रह गया।
“तुम ऐसा क्यों बोल रहे हो?”
“क्योंकि… मुझे तुम अच्छी लगती हो।”
वह उस दिन कुछ न बोली।
पर उसके चेहरे पर एक लाज की लकीर जरूर थी।
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पहली बार शंपक ने प्रक्रिया करने की कोशिश की
एक सुबह शंपक दौड़ता हुआ आया।
“आज मैं भी तुम्हारी तरह पेड़ के अंदर जाना चाहता हूँ!”
चंदनी घबरा गई।
“नहीं! ये प्रक्रिया हर किसी के लिए नहीं होती। ये तुम्हें नुकसान पहुँचा सकती है।”
“मैं सीखना चाहता हूँ… ताकि तुम्हारी मदद कर सकूँ।”
चंदनी ने बहुत मना किया, लेकिन शंपक जिद पर अड़ा रहा।
आखिर चंदनी ने थोड़ी शक्ति उसे ट्रांसफर की और कहा—
“ठीक है… पर ध्यान से। बस पेड़ को छूओ… अंदर मत जाना।”
लेकिन शंपक ने उसका हाथ हटाकर कहा—
“मैं कर लूंगा।”
उसने हाथ रखा।
पेड़ के तने में कंपन होने लगा।
चंदनी घबरा गई—
“शंपक!! रुक जाओ!”
पर तब तक देर हो चुकी थी।
पेड़ ने अचानक नीला रंग लेना शुरू कर दिया।
उसकी खुशबू कड़वी हो गई।
और कुछ ही मिनटों में वह पेड़—सूखकर मर गया।
चंदनी स्तब्ध थी। उसकी आँखों में आँसू थे।
“तुमने… मेरे पेड़ को मार दिया।”
शंपक की आँखें लाल होने लगीं।
उसके कानों के पास नीली लकीरें उभरने लगीं।
और उसके पीठ से हल्की-सी सर्पाकृति निकलने लगी।
चंदनी पीछे हट गई।
“ये… ये क्या हो रहा है तुमको?”
शंपक ने भारी आवाज़ में कहा—
“अब तुम्हें सच्चाई जाननी ही होगी…”
उसका शरीर लंबा होने लगा।
आँखें पीली।
त्वचा पर नीले धब्बे।
और सिर के पीछे एक सर्प का चिह्न उभरता चला गया।
“मैं… शेषनाग का वंशज हूँ।”
चंदनी की सांसें थम गईं।
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सत्य का खुलासा
चंदनी काँपते हुए बोली—
“शेषनाग? पर… तुम्हें पता है शेषनागों की शक्ति चंदन के पेड़ों को विषाक्त कर देती है? तुमने पेड़ को मारा नहीं… तुम्हारी जाति की ऊर्जा ने उसे जला दिया।”
शंपक ने सिर झुकाया।
“मैंने तुम्हें बताना चाहा था… लेकिन डर था कि तुम मुझसे दूर चली जाओगी।”
चंदनी की आँखों में दर्द था, पर गुस्सा नहीं।
“तुमने छल किया… पर प्यार नहीं छल सह सकता।”
शंपक ने हाथ जोड़ते हुए कहा—
“मैं तुम्हारा सहारा बनना चाहता था, तुम्हें अकेले नहीं देख सकता था। पर मैं यही नहीं जानता था कि मेरी शक्ति तुम्हारी दुनिया के विरुद्ध है।”
चंदनी ने मृत पेड़ को सहलाया और बोली—
“अब आगे क्या?”
शंपक ने आँखें बंद करके कहा—
“अब आगे की कहानी… तुम तय करोगी।
अगर तुम चाहो तो मैं हमेशा के लिए चला जाऊँगा।
और अगर तुम चाहो… तो मैं बदलने की कोशिश करूँगा, अपने विष पर नियंत्रण सीखूँगा।”
उसकी आवाज़ कांप रही थी।
चंदनी ने कुछ देर चुप रहकर कहा—
“अभी मैं कुछ तय नहीं कर सकती… पर कहानी रुकी नहीं है।
आगे क्या होता है… ये समय बताएगा।”
और वह धीरे से गुफा की ओर चल दी।
शंपक वहीं खड़ा रहा—
पश्चाताप में, प्रेम में, और डर में।
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कहानी आगे बढ़ती है…
मृत पेड़ के नीचे हवा में उदासी थी।
शंपक दूर से चंदनी को देख रहा था—
वह रो रही थी, लेकिन वह उसे सांत्वना देने भी नहीं जा सकता था।
उस दिन दोनों दूर हो गए।
पर कहानी खत्म नहीं हुई है…
आगे क्या होगा?
क्या चंदनी उसे माफ करेगी?
क्या शंपक अपनी शक्तियों पर नियंत्रण पा सकेगा?
या चंदनवन एक और खतरे की ओर बढ़ रहा है?