Triplets - 2 in Hindi Motivational Stories by Raj Phulware books and stories PDF | ट्रिपलेट्स भाग 2

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ट्रिपलेट्स भाग 2

ट्रिपलेट्स भाग 2 

लेखक राज फुलवरे

अध्याय 3 : शहर पर एक ही चेहरे का आतंक
भाग 1 : शहर की नींद टूटती है
रात के ठीक दो बजे थे।
शहर के सबसे व्यस्त इलाके लक्ष्मी मार्केट में अचानक अफरा-तफरी मच गई।
एक ज्वेलरी शॉप के बाहर भीड़ जमा थी।
काँच टूटा हुआ था, अलार्म बज रहा था और अंदर एक आदमी लहूलुहान हालत में पड़ा था।
दुकान का मालिक रोते हुए चिल्ला रहा था—
“वो… वो आदमी… बिल्कुल उसी जैसा था… रोज़ जो ऑफिस जाता है…”
भीड़ में किसी ने कहा—
“अमर… या प्रेम?”
शब्द हवा में तैर गया।
भाग 2 : पुलिस की उलझन
इंस्पेक्टर शेखर राठौड़ घटनास्थल पर पहुँचे।
उन्होंने खून से सनी ज़मीन देखी, सीसीटीवी फुटेज देखी।
स्क्रीन पर एक चेहरा।
राठौड़ बुदबुदाए—
“कमाल है… यही चेहरा… वही आँखें…”
कांस्टेबल बोला—
“सर, यही शक्ल दो लोगों की है।”
राठौड़ ने गहरी साँस ली।
“या फिर… तीन की।”
भाग 3 : अमर–प्रेम पर पहला वार
सुबह।
शांति नगर।
पुलिस की जीप घर के सामने रुकी।
शारदा देवी का दिल धक से रह गया।
अमर ने दरवाज़ा खोला।
इंस्पेक्टर राठौड़ सख्त आवाज़ में बोले—
“अमर, प्रेम… कुछ सवाल हैं।”
प्रेम ने शांत स्वर में कहा—
“सर, हम जानते हैं… और हमें भी जानना है।”
थाने में पूछताछ।
राठौड़—
“तुम दोनों रात दो बजे कहाँ थे?”
अमर—
“घर पर… माँ के साथ।”
शारदा देवी रो पड़ीं—
“मेरे बच्चे झूठ नहीं बोलते।”
राठौड़ ने फाइल बंद की।
“सबूत नहीं हैं… लेकिन शक गहरा है।”
भाग 4 : कंपनी में भूचाल
ऑफिस मीटिंग।
मैनेजर वर्मा गुस्से में बोले—
“हर जगह आपकी शक्ल… हर जुर्म में!”
प्रेम—
“सर, हम खुद परेशान हैं।”
वर्मा—
“कंपनी का नाम खराब हो रहा है। अभी आप दोनों को छुट्टी पर रहना होगा।”
अमर ने सख्त लहजे में कहा—
“हम भाग नहीं रहे… सच्चाई लाएँगे।”
भाग 5 : अंडरवर्ल्ड का सच
अंधेरी रात।
अंडरग्राउंड लैब।
डॉक्टर एन. चंद्रन सामने खड़ा था।
राज के कपड़ों पर खून के छींटे।
डॉक्टर ने ठंडी मुस्कान के साथ कहा—
“शहर डर रहा है, राज।”
राज—
“लेकिन नाम किसी और का बदनाम हो रहा है।”
डॉक्टर हँसा—
“यही तो खेल है।”
राज चुप रहा।
भाग 6 : राज का पहला संदेह
राज अकेला बैठा था।
टीवी पर खबर चल रही थी।
“एक ही चेहरे के दो आरोपी?”
राज ने स्क्रीन को घूरा।
“दो?”
उसने खुद से कहा—
“तो मैं अकेला नहीं हूँ…”
उसका दिल ज़ोर से धड़कने लगा।
भाग 7 : आमने-सामने आने की आहट
रात।
छत पर अमर और प्रेम।
प्रेम बोला—
“अमर… कोई जानबूझकर हमें फँसा रहा है।”
अमर—
“और वो हमारी शक्ल का है।”
प्रेम—
“तो अब छुपने का वक्त खत्म।”
अमर ने मुट्ठी भींच ली।
“अब ढूँढेंगे।”

अध्याय 4 : अंडरवर्ल्ड का दरवाज़ा और रानू का डर
भाग 1 : मजबूरी का फैसला
सुबह की हवा भारी थी।
शांति नगर की गलियों में सन्नाटा था, जैसे हर घर डर को छुपाए बैठा हो।
अमर और प्रेम घर के अंदर बैठे थे।
माँ, शारदा देवी, चुपचाप तुलसी के सामने दिया जला रही थीं।
प्रेम ने धीरे से कहा—
“माँ… आज हम घर देर से आएँगे।”
शारदा देवी ने पीछे मुड़कर देखा।
“कहाँ जा रहे हो?”
अमर ने झूठ नहीं बोला।
“सच की तरफ।”
माँ का चेहरा पीला पड़ गया।
“जिस रास्ते पर सच मिलता है, वहाँ खून भी बहता है।”
प्रेम ने माँ के हाथ पकड़ लिए।
“अगर आज नहीं गए… तो कल हम ज़िंदा होते हुए भी मर जाएँगे।”
शारदा देवी की आँखें भर आईं।
“जाओ… लेकिन वापस ज़रूर आना।”
भाग 2 : टूटी हुई शराब की दुकान
शहर का सबसे बदनाम इलाका — मजनू अड्डा।
दिन में भी अँधेरा, रात में तो जैसे शैतान जागते हों।
एक पुरानी शराब की दुकान।
काँच टूटा हुआ, अंदर धुआँ और बदबू।
वहीं बैठा था रानू।
दुबला-पतला, आँखें डर से भरी हुईं।
हाथ काँप रहे थे।
अमर ने पास जाकर कुर्सी खींची।
“रानू… नाम सुना है तेरा।”
रानू ने सिर उठाया, चौंक गया।
“साहब… आप… आप यहाँ क्यों?”
प्रेम ने दरवाज़ा बंद कर दिया।
“क्योंकि तू जानता है।”
रानू की साँस तेज़ हो गई।
“मुझे मत फँसाओ… डॉक्टर साहब मार डालेंगे।”
अमर की आवाज़ सख्त हो गई।
“अगर नहीं बताया… तो आज डॉक्टर से पहले हम मारेंगे।”
रानू पसीने में भीग गया।
भाग 3 : डॉक्टर एन. चंद्रन का नाम
रानू फुसफुसाया—
“सब कुछ डॉक्टर एन. चंद्रन के इशारे पर होता है।”
प्रेम चौंका।
“वही डॉक्टर? जो टीवी पर आता है?”
रानू हँसा—
“डॉक्टर? वो मौत का व्यापारी है।”
अमर—
“और हमारी शक्ल वाला आदमी?”
रानू ने आँखें बंद कर लीं।
“राज…”
कमरे में सन्नाटा छा गया।
भाग 4 : राज की सच्चाई
रानू बोलता गया—
“राज सड़क से उठा हुआ बच्चा है… डॉक्टर ने पाला… उसे हथियार बनाया।”
प्रेम—
“वो हमें क्यों फँसा रहा है?”
रानू ने डरते हुए कहा—
“क्योंकि डॉक्टर चाहता है कि पुलिस कभी असली चेहरे तक न पहुँचे।”
अमर की आँखों में आग थी।
“तो हम सिर्फ मोहरे हैं?”
रानू ने सिर हिलाया।

भाग 5 : अंडरग्राउंड लैब की झलक
रानू ने बताया—
“शहर के नीचे एक दुनिया है… लैब… जहाँ गुंडे रहते हैं… ट्रेनिंग होती है… और बाहर जाने का रास्ता सिर्फ मौत है।”
प्रेम—
“और राज?”
रानू—
“वो डॉक्टर का सबसे खतरनाक हथियार है।”
भाग 6 : रानू की चेतावनी
रानू उठ खड़ा हुआ।
“साहब… अब आप जान चुके हो… मेरी लाश मत बनवाना।”
अमर ने कहा—
“अगर तू हमारे साथ रहा… तो बचेगा।”
रानू ने कड़वी हँसी हँसी।
“इस दुनिया में कोई नहीं बचता…”
भाग 7 : उधर — राज की बेचैनी
अंडरग्राउंड लैब।
राज अकेला बैठा था।
डॉक्टर चंद्रन की आवाज़ गूँजी—
“तुम्हारा अगला टारगेट वही जुड़वाँ हैं।”
राज चुप रहा।
डॉक्टर—
“क्या हुआ? डर?”
राज ने सिर उठाया।
“डर नहीं… सवाल है।”
डॉक्टर की आँखें संकरी हो गईं।
भाग 8 : तूफ़ान से पहले की शांति
रात।
अमर और प्रेम बाइक पर।
प्रेम—
“अमर… अगर वो हमारी तरह है…”
अमर—
“तो वो हमारा भाई भी हो सकता है।”
दोनों की आँखों में एक अध्याय का अंत और जंग की शुरुआत थी।

अध्याय 5 : राज — अँधेरे में पला एक आईना
भाग 1 : ज़मीन के नीचे की दुनिया
लिफ्ट ज़ोर की आवाज़ के साथ नीचे रुकती है।
लोहे का दरवाज़ा खुलता है।
सामने फैली हुई एक विशाल अंडरग्राउंड लैब।
सफेद टाइल्स, लाल लाइट, हथियारों की कतारें।
हर कोने में लोग — कोई कसरत कर रहा है, कोई बंदूक साफ़ कर रहा है, कोई खून से सने कपड़े बदल रहा है।
यह कोई लैब नहीं थी।
यह मौत का कारखाना था।
बीचों-बीच खड़ा था — डॉक्टर एन. चंद्रन।
उसकी आवाज़ गूँजी—
“यह जगह अस्पताल नहीं… यहाँ इंसान टूटते हैं और हथियार बनते हैं।”
सब चुप।
एक कोने में खड़ा था — राज।
भाग 2 : राज का बचपन — जो किसी ने नहीं देखा
राज की आँखों में कुछ चमका।
यादें।
गंदी गलियाँ।
भूख।
मार।
लात।
एक गुंडा चिल्लाता—
“ए कूड़े के ढेर से उठे! जल्दी काम कर!”
छोटा राज जवाब देता—
“मैं इंसान हूँ।”
थप्पड़ पड़ता।
“यहाँ इंसान नहीं… काम आते हैं।”
राज ने उसी दिन सीखा —
दर्द चुपचाप सहना।
भाग 3 : डॉक्टर की नज़र
डॉक्टर ने पहली बार राज को देखा था,
तो उसकी आँखों में डर नहीं — जिद थी।
डॉक्टर ने कहा था—
“तू इस दुनिया में रोने के लिए नहीं… राज करने के लिए पैदा हुआ है।”
राज ने पूछा—
“आप मुझे क्यों उठा लाए?”
डॉक्टर मुस्कराया—
“क्योंकि तू खाली है… और खाली इंसान सबसे खतरनाक होता है।”
भाग 4 : हथियार बनता इंसान
सालों की ट्रेनिंग।
सुबह चार बजे उठना।
लोहे से लड़ना।
खुद के डर को मारना।
एक ट्रेनर चिल्लाता—
“राज! सामने वाला दुश्मन है… चाहे वो तेरा साया क्यों न हो!”
राज गिरता… उठता… फिर मारता।
खून बहता, लेकिन आँखें सूखी रहतीं।
डॉक्टर देखता रहता।
“अच्छा… बहुत अच्छा…”
भाग 5 : पहला जुर्म
एक रात।
एक आदमी घुटनों पर।
राज के हाथ में चाकू।
आदमी रोता—
“मेरे बच्चे हैं…”
राज के हाथ काँपते।
पीछे से डॉक्टर की आवाज़—
“अगर तूने नहीं मारा… तो कल तू मरेगा।”
राज ने आँखें बंद कीं।
वार किया।
खून फर्श पर गिरा।
राज ने उल्टी कर दी।
डॉक्टर ने कंधे पर हाथ रखा।
“अब तू तैयार है।”
भाग 6 : सवाल जो अंदर जलते रहे
समय बीतता गया।
राज अपराध करता रहा।
लेकिन हर बार शीशे में खुद को देखता।
“मैं कौन हूँ?”
एक दिन टीवी पर खबर चली।
“एक जैसे चेहरे के दो निर्दोष युवक…”
राज ठिठक गया।
“दो?”
उसका दिल ज़ोर से धड़कने लगा।
उसने डॉक्टर से पूछा—
“मेरी शक्ल किसी और से क्यों मिलती है?”
डॉक्टर की आवाज़ ठंडी हो गई।
“आईने देखना बंद कर दे।”
भाग 7 : अंदर की दरार
राज अब पहले जैसा नहीं था।
डॉक्टर महसूस करने लगा।
डॉक्टर—
“याद रख… मैं ही तेरा भगवान हूँ।”
राज ने पहली बार नज़र मिलाकर देखा।
“भगवान सवालों से नहीं डरता।”
कमरे में सन्नाटा छा गया।
भाग 8 : उधर — अमर और प्रेम की तैयारी
एक सुनसान गोदाम।
अमर और प्रेम खड़े थे।
रानू बोला—
“अगर वहाँ गए… तो लौटना मुश्किल है।”
अमर—
“हम लौटने नहीं… सच्चाई लेने जा रहे हैं।”
प्रेम—
“और अगर वो हमारा भाई निकला…”
अमर—
“तो उसे छोड़ेंगे नहीं।”
भाग 9 : टकराव की आहट
राज बालकनी में खड़ा।
शहर को देखता हुआ।
नीचे पुलिस की गाड़ी।
ऊपर उसके हाथ में खून।
राज बुदबुदाया—
“अगर मेरे जैसे और हैं… तो मैं क्या हूँ?”
पीछे से डॉक्टर की आवाज़ आई—
“तू वही है जो मैं चाहता हूँ।”
राज ने मुट्ठी भींच ली।।