जब महाकाल चक्र सक्रिय हुआ, तो भारत की आधी आबादी धूल में बदल गई। न कोई विस्फोट, न कोई युद्ध—बस एक पल में अस्तित्व मिट गया। इसके पीछे था अंध्राज, जो समय और विनाश की शक्ति को नियंत्रित करना चाहता था। बचे हुए नायकों ने उस दिन हार मान ली थी।
पाँच साल बीत चुके थे।
मुंबई की एक सुनसान फैक्ट्री में अर्जुन मल्होत्रा रहता था—देश का सबसे तेज़ दिमाग। कभी वह “लौह कवच” पहनकर भारत का रक्षक था, आज शराब और पछतावे में डूबा हुआ। दिल्ली के एक आश्रम में भीम राव, आधा मनुष्य आधा महाशक्ति, ध्यान में बैठा था—गुस्से से दूर, दुनिया से दूर। केरल के समुद्र तट पर वीर देव, बिजली और वज्र का स्वामी, अपने हथौड़े वज्रास्त्र को रेत में गाड़े बैठा था—देवता होकर भी असहाय।
काशी में नागेश, रहस्यमय योद्धा, समय की धारा पर नज़र रखे हुए था। वकांडा के भारतीय रूप वसुधा लोक में शौर्य सिंह अपनी प्रजा की रक्षा में लगा था। पुणे में माया कुलकर्णी, समय-भौतिकी पर काम करती वैज्ञानिक, असंभव को संभव बनाने की कोशिश कर रही थी।
एक दिन माया ने सूत्र निकाला—काल-गमन। समय में पीछे जाकर महाकाल चक्र के टुकड़े इकट्ठा किए जा सकते थे, उससे पहले कि अंध्राज उन्हें हासिल करे।
नायक फिर से इकट्ठा हुए। थके हुए, टूटे हुए, पर आख़िरी उम्मीद के साथ।
अर्जुन ने नया लौह कवच बनाया—पहले से हल्का, पहले से मज़बूत। भीम राव ने अपने भीतर के क्रोध और करुणा को संतुलित किया। वीर देव ने वज्रास्त्र को पुकारा—आसमान गरजा। नागेश ने समय के द्वार खोले।
टीम बँट गई।
अर्जुन और माया सिंधु घाटी सभ्यता पहुँचे, जहाँ प्रथम चक्र छिपा था। शौर्य और नागेश गुप्त काल में पहुँचे—ज्ञान और शक्ति के युग में। भीम राव और वीर देव महाभारत काल में गए, जहाँ विनाश बीज सुरक्षित था।
सब कुछ योजना के अनुसार चल रहा था—जब तक अंध्राज को भनक नहीं लग गई।
महाभारत काल में भयानक युद्ध छिड़ गया। भीम राव ने पहाड़ उठा फेंके, वीर देव की बिजली से आकाश फट पड़ा। फिर भी अंध्राज मुस्कुराया—“भविष्य मेरा है।”
वर्तमान में लौटते ही अंतिम युद्ध शुरू हो गया।
दिल्ली के खंडहर युद्धभूमि बन गए। अंध्राज की सेना—छाया योद्धा—हर ओर फैल गई। शौर्य सिंह आगे बढ़ा, अपनी ऊर्जा ढाल से हज़ारों को रोका। नागेश ने समय को मोड़ा, दुश्मनों को जकड़ दिया। माया ने उपकरण सक्रिय किया।
अंध्राज ने प्रहार किया—एक वार में आधी टीम ज़मीन पर।
अर्जुन उठा। उसका कवच टूटा हुआ था, चेहरा लहूलुहान। उसने महाकाल चक्र अपने हाथ में लिया। माया चिल्लाई, “मत करो! यह तुम्हें मार देगा!”
अर्जुन मुस्कुराया। “किसी को तो कीमत चुकानी होगी।”
उसने चक्र को सक्रिय किया।
समय थम गया।
अर्जुन ने उँगलियाँ चटकाईं।
एक विस्फोट नहीं—बल्कि मौन।
अंध्राज चीख़ भी न सका। उसकी सेना मिट गई। धूल बने लोग वापस आने लगे—माँ अपने बच्चों से लिपट गईं, शहर फिर साँस लेने लगे।
अर्जुन ज़मीन पर गिर पड़ा।
भीम राव ने उसे उठाया, हाथ काँप रहे थे। वीर देव की आँखों में आँसू थे। माया ने उसकी नाड़ी जाँची—सब ख़त्म।
अर्जुन ने धीमे से कहा, “भारत… सुरक्षित है?”
माया ने सिर हिलाया।
अर्जुन मुस्कुराया… और उसकी आँखें बंद हो गईं।
कुछ समय बाद।
भारत फिर खड़ा था। नायकों के नाम नहीं लिए गए, बस कहानियाँ बचीं। समुद्र किनारे एक छोटा सा स्मारक बना—कोई मूर्ति नहीं, कोई तामझाम नहीं।
उस पर लिखा था—
“कभी-कभी दुनिया को बचाने के लिए
एक इंसान को सब कुछ छोड़ना पड़ता है।”
और दूर कहीं, जब बिजली कड़कती, जब ज़मीन काँपती—लोग जानते थे,
नायक गए नहीं हैं…
वे बस समय की रखवाली कर रहे हैं।