Khamoshi ki Dhun - 1 in Hindi Love Stories by Anime Toons books and stories PDF | खामोशी की धुन - 1

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खामोशी की धुन - 1

अध्याय १: धूल, पुरानी किताबें और एक अजनबी आवाज़

अम्बरपुर शहर में समय जैसे सुस्ताने के लिए ठहर जाता था। यहाँ की सड़कें टेढ़ी-मेढ़ी थीं और हवा में हमेशा देवदार के पेड़ों की ताज़गी और गीली मिट्टी की सोंधी महक बसी रहती थी। इसी शहर के एक पुराने कोने में 'द लास्ट पेज' (The Last Page) नाम की एक बुकशॉप थी। यह कोई आधुनिक स्टोर नहीं था जहाँ चमकदार लाइटें और प्लास्टिक की कुर्सियाँ हों; यहाँ सिर्फ लकड़ी की पुरानी अलमारियाँ थीं, जिन पर धूल की एक पतली परत जमी रहती थी—जैसे बीता हुआ वक्त सो रहा हो।

रिया के लिए यह जगह उसका सुरक्षित ठिकाना थी। २३ साल की रिया, जिसकी आँखों में एक अजीब सा ठहराव था, रोज़ शाम कॉलेज के बाद यहाँ आती थी। उसे नई किताबों से ज़्यादा उन पुरानी किताबों में दिलचस्पी थी, जिनके पन्नों के बीच किसी ने सूखा हुआ फूल या कोई पुराना बस टिकट छोड़ दिया हो। वह अक्सर सोचती कि इन किताबों के मालिक अब कहाँ होंगे? क्या वे भी इन पन्नों की तरह कहीं खो गए?

उस दिन बारिश सुबह से ही ज़ोरों पर थी। बुकशॉप की मालकिन, सुमित्रा जी, अपनी मेज़ पर बैठी चश्मा उतारकर अखबार पढ़ रही थीं। रिया हमेशा की तरह सबसे पीछे वाले 'पोएट्री सेक्शन' (Poetry Section) में चली गई। वहाँ की खिड़की से बाहर पहाड़ों पर गिरती बारिश की बूंदें साफ़ दिखाई देती थीं।

उसने अलमारी से अमृता प्रीतम की एक किताब निकाली। जैसे ही उसने पन्ना पलटा, एक आवाज़ उसके कानों में पड़ी।

"वह पन्ना... ३४ नंबर... उस पर लिखी नज़्म बहुत खूबसूरत है।"

रिया चौंक गई। आवाज़ पास ही थी, लेकिन दूसरी अलमारी के पीछे से आ रही थी। वह आवाज़ गहरी थी, जैसे कोई पुरानी वायलिन की धुन हो, जिसमें थोड़ा सा दर्द और बहुत सारा ठहराव घुला हो।

रिया ने कुछ नहीं कहा, बस पन्ना पलटा। वहाँ लिखा था— *'मैं तुम्हें फिर मिलूँगी...'*

"आप... आप मुझसे बात कर रहे हैं?" रिया ने धीमी आवाज़ में पूछा, बिना उस तरफ देखे।

"मैं उस नज़्म से बात कर रहा हूँ जिसे आप पढ़ रही हैं," उस आवाज़ ने जवाब दिया। "कुछ शब्द ऐसे होते हैं जो हमारे अंदर के सन्नाटे को पहचान लेते हैं।"

उस शाम के बाद, यह एक सिलसिला बन गया। रिया रोज़ आती और वह अजनबी आवाज़—जो अपना नाम **आरव** बताती थी—हमेशा उसी अलमारी के पीछे मौजूद रहती।

शब्दों की इस दास्ताँ में, उनके बीच कोई फिल्मी रोमांस नहीं था। वे घंटों बस एक-दूसरे की मौजूदगी में बैठे रहते।

* कभी-कभी आरव बस माचिस की डिब्बी से कोई लय बजाता।
* कभी रिया अपनी डायरी में कुछ लिखती और आरव बस उसके पेन की *खुर-खुर* सुनता।

ये सब ये 'भराव' बातें थीं। इनका दुनिया की नज़रों में कोई मोल नहीं था, लेकिन रिया के लिए ये दुनिया की सबसे कीमती चीज़ें थीं। आरव कभी सामने नहीं आता था। वह हमेशा किताबों की उस ओट में छिपा रहता। रिया ने भी कभी ज़िद नहीं की। उसे डर था कि कहीं देखने की चाहत में यह सुनने का सुकून न छिन जाए।

एक दोपहर, रिया अपने साथ दो कप थर्मस में चाय लेकर आई। उसने एक कप अलमारी के उस छोटे से छेद में रख दिया जहाँ से रोशनी दूसरी तरफ जाती थी।

"अम्बरपुर की सबसे अच्छी अदरक वाली चाय," रिया ने मुस्कुराते हुए कहा।

"शुक्रिया, रिया," आरव ने कहा। "पता है, स्वाद से ज़्यादा मुझे इसकी खुशबू पसंद है। यह याद दिलाती है कि दुनिया में अभी भी कुछ गर्मजोशी बाकी है।"

उस दिन उन्होंने बहुत लंबी बात की। आरव ने उसे बताया कि उसे 'मिस्टी ग्रे' (धुंधला स्लेटी) रंग से डर लगता है। "जब सब कुछ धुंधला होने लगता है, तो इंसान को एहसास होता है कि वह कितना अकेला है," आरव ने कहा।

रिया को उस वक्त समझ नहीं आया कि आरव यह क्यों कह रहा था। वह तो बस उसकी आवाज़ के जादू में खोई हुई थी। उसने उसे अपनी माँ के बारे में बताया, जो बचपन में उसे छोड़कर चली गई थीं। उसने बताया कि कैसे उसे अकेलेपन से प्यार हो गया है।

> "अकेलापन बुरा नहीं होता, आरव। बुरा होता है वो सन्नाटा, जो किसी के जाने के बाद रह जाता है," रिया ने धीरे से कहा।

जैसे-जैसे सर्दियों की दस्तक हुई, आरव की आवाज़ में एक थकान आने लगी। वह अब ज़्यादा देर नहीं बैठता था।

एक शाम, जब रिया पहुँची, तो अलमारी के पीछे कोई नहीं था। वहाँ सिर्फ एक छोटा सा कागज़ का टुकड़ा पड़ा था। उस पर कोई शब्द नहीं लिखे थे, बस एक पेंसिल से बनाया गया 'लाल स्कार्फ' का चित्र था—वही स्कार्फ जो रिया अक्सर पहनती थी।

रिया का दिल तेज़ी से धड़कने लगा। उसने सुमित्रा जी से पूछा, "आरव कहाँ है?"

सुमित्रा जी ने अपनी नज़रें झुका लीं। "वह कल रात शहर छोड़कर चला गया, बेटा। उसकी आँखों का ऑपरेशन होना था... लेकिन डॉक्टरों ने कहा था कि उम्मीद बहुत कम है।"

रिया के हाथ से अमृता प्रीतम की वह किताब गिर गई। उसे अब समझ आया कि आरव कभी सामने क्यों नहीं आया। वह उसे 'देखना' नहीं चाहता था, वह उसे 'महसूस' करना चाहता था—उससे पहले कि उसकी दुनिया पूरी तरह से अंधेरी हो जाए।

बाहर बारिश फिर से शुरू हो गई थी। लेकिन इस बार, बारिश की बूंदें कविता नहीं, बल्कि एक अधूरी कहानी की तरह गिर रही थीं। आरव जा चुका था, और पीछे छोड़ गया था एक ऐसा सन्नाटा, जो अब रिया को चुभने वाला था।