भारत के एक शांत से कस्बे देवपुर में ज़िंदगी हमेशा की तरह चल रही थी। सुबह मंदिर की घंटियाँ, दोपहर को स्कूल की छुट्टी की आवाज़ और शाम को मैदान में खेलते बच्चों की हँसी—यही देवपुर की पहचान थी। लेकिन उसी कस्बे के बाहर, सूखे जंगल के पीछे, एक पुरानी और रहस्यमयी इमारत थी, जिसे लोग अनुसंधान केंद्र–17 कहते थे। वहाँ क्या होता है, यह कोई नहीं जानता था। बस इतना पता था कि रात के समय वहाँ अजीब रोशनियाँ दिखाई देती थीं।
देवपुर में चार दोस्त रहते थे—आरव, मोहन, पंकज और नीला। चारों आठवीं कक्षा में पढ़ते थे और स्कूल के बाद अक्सर साइकिल लेकर घूमने निकल जाते थे। आरव सबसे समझदार था, मोहन मज़ाकिया, पंकज थोड़ा डरपोक और नीला तेज़ दिमाग वाली लड़की थी। उन चारों को रहस्यों से बहुत लगाव था।
एक शाम बारिश शुरू हो गई। चारों दोस्त जंगल के पास से लौट रहे थे तभी उन्हें अनुसंधान केंद्र की ओर से तेज़ सायरन की आवाज़ सुनाई दी। उसी पल ज़ोरदार बिजली गिरी और पूरा इलाका अंधेरे में डूब गया। डर के मारे वे घर की ओर भागे, लेकिन उसी रात आरव अचानक गायब हो गया।
सुबह होते ही पूरे देवपुर में हड़कंप मच गया। आरव की साइकिल जंगल के रास्ते पर मिली, लेकिन उसका कोई सुराग नहीं। पुलिस ने खोज शुरू की, पर जंगल के भीतर जाते ही उन्हें अजीब सी ठंडक और घुटन महसूस होने लगी। जैसे हवा में कुछ गलत घुला हो।
आरव की माँ सरिता रो-रोकर बेहाल थी। उधर मोहन, पंकज और नीला ने हार मानने से इनकार कर दिया। उन्होंने तय किया कि वे खुद आरव को ढूँढेंगे।
उसी दिन शाम को उन्हें एक अजीब लड़की मिली। वह रेलवे लाइन के पास बैठी थी—नंगे पाँव, गंदे कपड़े और आँखों में डर। वह ठीक से बोल नहीं पा रही थी। काफी कोशिश के बाद उसने बस इतना कहा,
“मेरा नाम… इरा है।”
इरा को मोहन अपने घर ले आया। तभी कुछ अजीब हुआ। पंकज का गिलास हवा में उठ गया और ज़मीन पर टूट गया। सब सन्न रह गए। इरा डरकर चिल्लाने लगी। नीला समझ गई कि यह लड़की साधारण नहीं है।
धीरे-धीरे इरा ने बताया कि वह अनुसंधान केंद्र–17 में रहती थी। वहाँ वैज्ञानिक बच्चों पर प्रयोग कर रहे थे। उनका उद्देश्य था—दिमाग की छिपी शक्तियों को जगाना। उन्हीं प्रयोगों के दौरान एक दूसरी दुनिया का दरवाज़ा खुल गया, जिसे वैज्ञानिक परछाईं लोक कहते थे।
परछाईं लोक हमारी दुनिया जैसा था, लेकिन वहाँ सब कुछ टूटा हुआ, सड़ा हुआ और अंधेरे में डूबा था। वहाँ अजीब जीव रहते थे, जो इंसानों के डर से ताकत पाते थे। उसी रात आरव गलती से उस दुनिया में चला गया था।
नीला ने कहा, “अगर आरव ज़िंदा है, तो वह वहीं होगा।”
मोहन ने हिम्मत दिखाते हुए कहा, “तो हमें वहीं जाना होगा।”
उधर पुलिस इंस्पेक्टर राघव को भी अनुसंधान केंद्र पर शक होने लगा था। जब उन्होंने वहाँ जाने की कोशिश की, तो उन्हें अंदर जाने से रोक दिया गया। उसी रात उन्होंने देखा कि इमारत के पीछे ज़मीन से काली धुंध निकल रही है।
इरा की मदद से बच्चों ने परछाईं लोक का रास्ता ढूँढ लिया। वह रास्ता पुराने पानी के टैंक के नीचे था। डरते-डरते तीनों दोस्त अंदर उतरे। टैंक के नीचे सीढ़ियाँ थीं, जो अंधेरे में गायब हो रही थीं।
परछाईं लोक में कदम रखते ही सब सन्न रह गए। हवा ठंडी थी, चारों ओर सड़ांध थी और दीवारों पर अजीब लताएँ फैली हुई थीं। दूर से किसी के रोने की आवाज़ आ रही थी।
“आरव!” मोहन चिल्लाया।
थोड़ी दूर पर उन्हें आरव मिल गया। वह ज़िंदा था, लेकिन बहुत कमजोर। उसके पीछे एक भयानक जीव था—लंबा, काला और बिना चेहरे का। इरा ने बताया कि वह भय छाया है, जो इंसानों के डर से पैदा होता है।
जैसे ही बच्चे डरते, वह जीव और पास आता। पंकज काँपने लगा, लेकिन नीला ने उसका हाथ पकड़ा।
“डर मत करो। यही इसकी ताकत है,” उसने कहा।
चारों ने गहरी साँस ली और अपने डर को काबू में करने की कोशिश की। धीरे-धीरे भय छाया कमजोर पड़ने लगा।
उसी समय इंस्पेक्टर राघव और कुछ लोग भी वहाँ