Part - 10 Panchtantra in Hindi Children Stories by MB (Official) books and stories PDF | भाग-१० - पंचतंत्र

Featured Books
  • THE ULTIMATE SYSTEM - 6

    शिवा के जीवन में अब सब कुछ बदल रहा था एक समय पर जो छात्र उसक...

  • Vampire Pyar Ki Dahshat - Part 4

    गांव का बूढ़ा गयाप्रसाद दीवान के जंगल में अग्निवेश को उसके अ...

  • स्त्री क्या है?

    . *स्त्री क्या है?*जब भगवान स्त्री की रचना कर रहे थे, तब उन्...

  • Eclipsed Love - 13

    मुंबई शहर मुंबई की पहली रात शाम का धुंधलापन मुंबई के आसमान प...

  • चंद्रवंशी - अध्याय 9

    पूरी चंद्रवंशी कहानी पढ़ने के बाद विनय की आँखों में भी आँसू...

Categories
Share

भाग-१० - पंचतंत्र

पंचतंत्र

भाग — 10

© COPYRIGHTS


This book is copyrighted content of the concerned author as well as NicheTech / Matrubharti.


Matrubharti / NicheTech has exclusive digital publishing rights of this book.


Any illegal copies in physical or digital format are strictly prohibited.


NicheTech / Matrubharti can challenge such illegal distribution / copies / usage in court.

पंचतंत्र

बु़ढ़िया और कद्दू

बच्चों के चहेते फ्रेंड हैं गणेशजी

राजकुमारी और राक्षस

छोटे भीम का हाथ

पाप का प्रायश्चित

बु़ढिया और कद्दू

बहुत पुरानी कहानी है। एक गांव में एक बुढ़िया रहती थी। उसकी बेटी की शादी उसने दूसरे गांव में की थी। अपनी बेटी से मिले बुढ़िया को बहुत दिन हो गए। एक दिन उसने सोचा कि चलो बेटी से मिलने जाती हूं। यह बात मन में सोचकर बुढ़िया ने नए—नए कपड़े, मिठाइयां और थोड़ा—बहुत सामान लिया और चल दी अपनी बेटी के गांव की ओर।

चलते—चलते उसके रास्ते में जंगल आया। उस समय तक रात होने को आई और अंधेरा भी घिरने लगा। तभी उसे सामने से आता हुआ बब्बर शेर दिखाई दिया। बुढ़िया को देख वह गुर्राया और बोला— बुढ़िया कहां जा रही हो? मैं तुम्हें खा जाऊंगा।

बुढ़िया बोली— शेर दादा, शेर दादा तुम मुझे अभी मत खाओ। मैं अपनी बेटी के घर जा रही हूं। बेटी के घर जाऊंगी, खीर—पूड़ी खाऊंगी। मोटी—ताजी हो जाऊंगी फिर तू मुझे खाना।

शेर ने कहा— ठीक है, वापसी में मिलना।

फिर बुढ़िया आगे चल दी। आगे रास्ते में उसे चीता मिला। चीते ने बुढ़िया को रोका और वह बोला— ओ बुढ़िया कहां जा रही हो?

बुढ़िया बड़ी मीठी आवाज में बोली— बेटा, मैं अपनी बेटी के घर जा रही हूं। चीते ने कहा— अब तो तुम मेरे सामने हो और मैं तुम्हें खाने वाला हूं।

बुढ़िया गिड़गिड़ाते हुए कहने लगी— तुम अभी मुझे खाओगे तो तुम्हें मजा नहीं आएगा। मैं अपनी बेटी के यहां जाऊंगी वहां पर खीर—पूड़ी खाऊंगी, मोटी—ताजी हो जाऊंगी, फिर तू मुझे खाना।

चीते ने कहा— ठीक है, जब वापस आओगी तब मैं तुम्हें खाऊंगा।

फिर बुढ़िया आगे बढ़ी। आगे उसे मिला भालू। भालू ने बुढ़िया से वैसे ही कहा जैसे शेर और चीते ने कहा था। बुढ़िया ने उसे भी वैसा ही जवाब देकर टाल दिया।

सबेरा होने तक बुढ़िया अपनी बेटी के घर पहुंच गई। उसने रास्ते की सारी कहानी अपनी बेटी को सुनाई। बेटी ने कहा कि मां फिक्र मत करो। मैं सब संभाल लूंगी।

बुढ़िया अपनी बेटी के यहां बड़े मजे में रही। चकाचका खाया—पिया, मोटी—ताजी हो गई। एक दिन बुढ़िया ने अपनी बेटी से कहा कि अब मैं अपने घर जाना चाहती हूं।

बेटी ने कहा कि ठीक है। मैं तुम्हारे जाने का बंदोबस्त कर देती हूं।

बेटी ने आंगन की बेल से कद्दू निकाला। उसे साफ किया। उसमें ढेर सारी लाल मिर्च का पावडर और ढेर सारा नमक भरा।

फिर अपनी मां को समझाया कि देखो मां तुम्हें रास्ते में कोई भी मिले तुम उनसे बातें करना और फिर उनकी आंखों में ये नमक—मिर्च डालकर आगे बढ़ जाना। घबराना नहीं।

बेटी ने भी अपनी मां को बहुत सारा सामान देकर विदा किया। बुढ़िया वापस अपने गांव की ओर चल दी। लौटने में फिर उसे जंगल से गुजरना पड़ा। पहले की तरह उसे भालू मिला।

उसने बुढ़िया को देखा तो वह खुश हो गया। उसने देखा तो मन ही मन सोचा अरे ये बुढ़िया तो बड़ी मुटिया गई है।

भालू ने कहा— बुढ़िया अब तो मैं तुम्हें खा सकता हूं?

बुढ़िया ने कहा— हां—हां क्यों नहीं खा सकते। आओ मुझे खा लो।

ऐसा कहकर उसने भालू को पास बुलाया। भालू पास आया तो बुढ़िया ने अपनी गाड़ी में से नमक—मिर्च निकाली और उसकी आंखों में डाल दी।

इतना करने के बाद उसने अपने कद्दू से कहा— चल मेरे कद्दू टुनूक—टुनूक। कद्दू अनोखा था, वह उसे लेकर बढ़ चला।

बुढ़िया आगे बढ़ी फिर उसे चीता मिला। बुढ़िया को देखकर चीते की आंखों में चमक आ गई।

चीता बोला— बुढ़िया तू तो बड़ी चंगी लग रही है। अब तो मैं तुम्हें जरूर खा जाऊंगा और मुझे बड़ी जोर की भूख लग रही है।

बुढ़िया ने कहा— हां—हां चीते जी आप मुझे खा ही लीजिए। जैसे ही चीता आगे बढ़ा बुढ़िया ने झट से अपनी गाड़ी में से नमक—मिर्च निकाली और चीते की आंखों में डाल दी।

चीता बेचारा अपनी आंखें ही मलता रह गया।

बुढ़िया ने कहा— चल मेरे कद्दू टुनूक—टुनूक। आगे उसे शेर मिला।

थोड़े आगे जाने पर बुढ़िया को फिर शेर मिला। उसने भी वही सवाल दोहराया।

बुढ़िया और कद्दू ने उसके साथ भी ऐसी ही हरकत की। इस तरह बुढ़िया और उसकी बेटी की चालाकी ने उसे बचा लिया। वह सुरक्षित अपने घर पहुंच गई।

बच्चों के चहेते फ्रेंड हैं गणेशजी

हिन्दू परिवारों में बच्चों को उनके बचपन से ही भगवान के पूजन और उनके रूप का ज्ञान दिया जाने लगता है। घर में दादी—नानी की कहानियां और धार्मिक कर्मकांडों की बच्चों के मानसिक विकास में अहम भूमिका है। बदलते समय के साथ यह परंपरा भी बदली है। कहानियां वही हैं, सीख वही है लेकिन उसके अंदाज में बदलाव आया है।

सूचना के युग में अब बच्चों को भगवान के महत्व को समझाना और अधिक रचनात्मक और रुचिकर हो गया है। बच्चों को सबसे ज्यादा देवताओं की बाल लीलाएं लुभाती हैं जिनसे वो अपने आपको भी उनके जैसा बनाने की कोशिश करते हैं। कृष्णा, भीम और रामा के अलावा जो बाल रूप बच्चों में सबसे अधिक प्रिय है, वह है गणेशा।

भगवान गणेश को सबसे पहले पूजा जाता है। गणेशजी का बाल जीवन भी कई रोचक कहानियों से भरपूर है जिसके चलते बच्चे गणेश को बेहद पसंद करते हैं।

सभी अद्‌भुत हिन्दू देवताओं के अलावा भगवान गणेश सभी के करीब हैं और उनकी उपासना हमारे दैनिक जीवन और विचारों में मदद करने के लिए सबसे सक्षम मानी गई है। सभी हिन्दुओं के पहले ईष्ट देवता चुने हुए भगवान गणेश की पूजा अपने आप ही स्वाभाविक रूप से भक्त को अन्य देवताओं की ओर ले जाती है।

बाल गणेश के जीवन को चरितार्थ कई माध्यमों से किया जाता रहा है। आधुनिकता के दौर में शुरुआत गणेशजी के कॉमिक बुक्स और स्टोरी बुक्स से हुई है। बच्चों को लुभाने वाली रंग—बिरंगे चित्रों से सजी ये किताबें बच्चों को गणेशजी के और करीब ले जाती हैं।

लविंग गणेशाश् और ‘गणेशा स्वीट टूथ' जैसी एनिमेशन से सजी कई किताबों ने बच्चों को गणेशजी से जुड़ी मान्यताओं, किस्सों और ज्ञान से अवगत कराया है। इस तरह की किताबों ने बच्चों के साथ उनके पालकों को बाल गणेश के जीवन के नए पहलुओं के बारे में पता चल रहा है।

किताबों के बाद एनिमेटेड फिल्मों ने भी गणेशा के रूप को हर बच्चे के मस्तिष्क पर बैठा दिया है। बाल गणेश और माई फ्रेंड गणेशा जैसी फिल्में इसके सटीक उदाहरण हैं जिनसे बच्चों ने मनोरंजन के साथ गणेशजी की लीलाओं को देखा है। फिल्म निर्देशक भी मानते हैं कि पौराणिक कथाएं और उनके किरदार, उनके हावभाव, उनकी शक्तियां, बहुत ही दिलचस्प होती हैं।

एनिमेशन और स्पेशल इफेक्ट्‌स के माध्यम से ये सब अनोखे तरीके से प्रस्तुत किए जा सकते हैं। साथ ही जब भी पौराणिक कथाओं पर आधारित एनिमेशन फिल्म या सीरियल दिखाते हैं तो उस स्लॉट की रेटिंग्स सबसे ज्यादा देखी जा रही है।

इन फिल्मों ने न सिर्फ मनोरंजन के लिहाज से बच्चों और दर्शकों को बांधे रखा बल्कि कई और नए माध्यमों का सृजन किया है। फिल्मों के अलावा इंटरनेट और मोबाइल पर भी अब गणेशा बच्चों के खास बन गए हैं, खासतौर में मोबाइल क्रांति ने भगवान गणेश को हर बच्चे तक पहुंचा दिया है।

मोबाइल्स फोन कवर्स, टैटू, टी शर्ट्‌स, बैंड्‌स और कई तरह की चीजों ने बड़े तौर पर धार्मिक प्रारूप को बदलकर रख दिया है। इतना ही नहीं, अब स्मार्ट फोन्स में गणेशा गेम्स भी बच्चों की पहली पसंद बन गए हैं। इससे एक बात तो साफ है कि आधुनिक माध्यमों ने अध्यात्म को भी जनमानस तक पहुंचाने में बड़ी भूमिका निभाई है।

बच्चों में जल्दी सीखने के साथ—साथ समझने की भी अद्‌भुत क्षमता होती है जिसे सही तरह से ढालने से उसका चरित्र निर्माण होता है। गणेशजी के जीवन से जुड़ी कहानियों से बच्चे कई जटिल चीजों को आसानी से समझ सकते हैं जिसे फिल्म, एनिमेशन और इंटरनेट ने इसे पालकों के लिए और आसान बना दिया है।

इस गणेश उत्सव में हर घर में गजानन विराजेंगे और सभी अपने जीवन में खुशहाली की कामना से उनकी आराधना करेंगे। बाल गणेश के ये सभी नए रूप बच्चों को इस पर्व के महत्व और गणेशजी के स्वरूप को समझने में सहायक होंगे।

राजकुमारी और राक्षस

एक राजा की तीन बेटियां थीं। तीनों बेहद खूबसूरत थीं। सबसे बडी बेटी का नाम आहना उससे छोटी याना और सबसे छोटी का नाम सारा था। एक बार तीनों अपने राज्य के जंगल में घूमने निकलीं। अचानक तूफान आ गया। उनके साथ आया सुरक्षा दल इधर—उधर बिखर गया। वे तीनो जंगल में भटक गई थीं।

थोड़ी दूर चलने पर उन्हें एक महल दिखाई दिया। अंदर जाकर देखा तो वहां कोई नहीं था। उन्होंने वहां विश्राम किया और टेबल पर रखा भोजन खा लिया। सुबह होते ही सारा उस महल के बगीचे में घूमने निकल गई। सारा ने वहां गुलाब देखे और बिना कुछ सोचे उन्हें तोड़ लिया। उसके फूल तोड़ते ही उस पौधे में से एक राक्षस बाहर आ गया, उसने सारा से कहा कि मैंने तुम्हें रहने के लिए घर और खाने के लिए भोजन दिया और तुमने मेरे ही पसंदीदा फूल तोड़ दिए। अब मैं तुम तीनों बहनों को मार डालूंगा।

सारा बहुत डर गई उसने विनती की, लेकिन राक्षस नहीं माना। फिर राक्षस ने एक शर्त रखी कि तुम्हारी बहनों को जाने दूंगा पर तुम्हें यहीं रुकना होगा। सारा ने यह शर्त मान ली और राक्षस के साथ रहने लगी। राक्षस के अच्छे व्यवहार से धीरे—धीरे उनके बीच दोस्ती हो गई। एक दिन राक्षस ने सारा को उसके साथ शादी करने के लिए कहा। सारा न ही हां कर पाई और न ही मना। राक्षस ने इस बात के कारण कभी उस पर कोई दबाव नहीं डाला।

एक बार एक जादुई आईने में सारा ने देखा कि उसके पिता की तबीयत ठीक नहीं है। वह रोने लगी। यह देख राक्षस ने उसे सात दिन के लिए घर जाने की इजाजत दे दी। अपने परिवार के साथ वह खुश रहने लगी। उसके पिता की तबीयत भी ठीक हो गई। एक रात सारा ने सपने में देखा कि राक्षस बीमार है और उसे बुला रहा है।

वहां जाकर उसने देखा कि राक्षस जमीन पर पड़ा हुआ है। यह देख सारा रोते हुए उसके पास गई। उसे गले लगाकर बोली उठो मैं तुमसे प्यार करती हूं और तुमसे शादी करना चाहती हूं। यह सुनते ही राक्षस एक सुंदर राजकुमार में बदल गया। वह बोला कि मैं यही शब्द सुनने का इंतजार कर रहा था।

उसने बताया कि एक बुरी औरत ने उसे श्राप दिया था और कहा था कि जब तक उसे उसका प्यार नहीं मिल जाता वह इसी हाल में तड़पता रहेगा। इसके बाद राजकुमार और राजकुमारी ने शादी कर ली और खुशी—खुशी रहने लगे।

छोटे भीम का हाथ

सल्लूभाई के ठाठ निराले हैं, पढ़ते तो नर्सरी कक्षा में हैं किंतु उनके हाव भाव से लगता है कि जैसे किसी बड़े महाविद्यालय के विद्यार्थी हो। पहले तो शाला जाने में ही अपने मम्मी—पापा को बहुत तंग करते हैं, फिर लंच बाक्स में रखने के लिए रोज नए—नए पकवानों की फरमाइश होती है। कभी कहेंगे आलू परांठा बना दो, कभी कहेंगे आज मटर—पनीर की सब्जी लेकर ही जाएंगे..., तो कभी डोसे की फरमाइश कर बैठते हैं।

मम्मी डोसा बना देतीं हैं तो कहते हैं इसमें मसाला कहां है, मैं तो मसाला डोसा ही लेकर जाऊंगा। बस दरवाजे पर आकर कम से कम तीन हार्न बजाती है, तब सल्लूभाई बस की ओर धीरे—धीरे बढ़ते हैं।

वैसे भी शाला में वे पढ़ाई कम और शैतानी ही ज्यादा करते हैं। उनका पूरा नाम शालिग्राम है परंतु दादा—दादी ने जो सल्लू कहकर श्रीगणेश किया तो लोग शालिग्राम भूल ही गए।

उनकी दो बहने भी हैं, दोनों बड़ीं हैं। टिमकी और लटकी उनके घर के नाम हैं। यह दोनों भी शैतानी में मास्टर हैं और धमाचौकड़ी की डॉक्टर हैं, यदि कोई शैतानी की प्रतियोगिता हो तो निश्चित ही दोनों को स्वर्ण पदक प्राप्त हो जाए।

शाला से आते ही बस्ता पटका और तीनों ही बैठ जाते हैं टीवी देखने। तीनों का एक ही शौक है, पोगो और दूसरे कार्टून चौनल देखना। इस चौनल में मजेदार कार्टून बाल सीरियल, कहानियां इत्यादि आते हैं। कभी छोटा भीम तो कभी टॉम एंड जेरी, कभी गणेशा तो कभी हनुमान जैसे सीरियल देखते हुए यह बच्चे अपनी सुधबुध ही भूल जाते हैं।

न खाने की चिंता, न पीने की चिंता बस पोगो में ही जैसे पेट भर जाता हो। पापा मम्मी सब परेशान, पापा को न क्रिकेट देखने को मिलता है न ही मम्मी को कोई भी सीरियल।

दादाजी तो समाचार देखने को तरस जाते हैं और दादी बेचारी मन मसोसकर रह जातीं है भजन सुनने—देखने को आंखें—कान तरसते रहते हैं। अरे जब अपने पापा—मम्मी की नहीं सुनते तो दादा—दादी की तो बात ही छोड़ो।

तीनों बच्चों कि जिद की पोगो देखेंगे, छोटा भीम देखेंगे। रिमोट कंट्रोल लेकर सल्लूभाई ऐसे बैठ जाते हैं जैसे सीमा पर सैनिक रायफल लिए बैठा हो। किसी ने रिमोट छुड़ाने की कोशिश की तो रोने के गोले दागने लगते हैं। आखिर जीत उनकी ही होती है, रुलाई और चिल्लाने के गोलों से सब डरते हैं।

दादीजी बेचारी रामायण सीरियल देखने को तरस रहीं हैं, तो दादाजी को हर—हर महादेव देखना है। पर क्या करें मजबूरी का नाम सल्लूभाई है।

तीनों बच्चे एक साथ बैठते हैं, इनके हाथ से रिमोट छुड़ाने के प्रयास में बड़े—बड़े तूफान आ चुके हैं। जिसका असर घर के तकियों, सोफा, कवरों और चादरों पर पड़ा है।

किन गधों ने यह कार्टून सीरियल बनाए हैं उन्हें शूट कर दोश् — दादाजी चिल्लाते।

भागवत कथा टीवी में देखना मेरी किस्मत में ही नहीं है — दादीजी हल्ला करतीं। पर सब बेकार चिल्लाते रहो, बच्चों पर किसी बात का कोई असर नहीं।

श्टीवी बाहर फेक देते है।'' पापा चिल्लाते। श्कितने अच्छे सीरियल निकल रहे है।'' — मम्मी हाथ झटक कर कहती।

एक दिन तीनों छोटा भीम देख रहे थे। अचानक टीवी के स्क्रीन में से छोटे भीम का हाथ निकला और उसने सल्लूभाई को पकड़ लिया। अरे—अरे यह क्या करते हो — सल्लूभाई पीछे को सरकने लगे। भीम ने बड़े जोर से सल्लू का हाथ पकड़ लिया।' मैंनें क्या किया छोड़ो प्लीज, सल्लू ने डरते—डरते भीम की तरफ देखा।

मैं आपसे बहुत नाराज हूं, मैं नहीं छोड़ूंगा।''

परंतु मैंने किया क्या है मैं तो तुम्हारा प्रशंसक हूं रोज ढिशुम—ढिशुम करता हूं।'

तुम रोज अपने पापा—मम्मी को परशान करते हो। दिन भर टीवी देखते हो, उन्हें कुछ भी नहीं देखने देते। न ही सीरीयल देखने देते हो न ही पिक्चर देखने देते हो।''

श्मेरा हाथ छोड़ों भीम भैया दर्द हो रहा है नश्

नहीं छोडूंगा, पहले तुम तीनों प्रतिज्ञा करो कि दिन भर टीवी नहीं देखोगे। टिमकी और लटकी तुम दोनों भी कान खोलकर सुन लो। कि आइंदा तुम लोग भी दिन भर टीवी नहीं देखोगे।'' इन दोनों को गोलू और ढोलू ने पकड़ रखा था।

हां—हां टिमकी और लटकी भीम भैया ठीक कह रहे हैं, सारे दिन अकेलेअकेले टीवी नहीं देखना चाहिए गोलू ने समझाइश दी। श्सबको मौका मिलना चाहिए। दादाजी, दादीजी को, पापा को, मम्मी को सब लोग अपने पसंद की चीजें देखना चाहते हैं।'' ढोलू ने कहा।

फिर ज्यादा टीवी देखने से आंखें भी खराब होतीं हैं।'' सल्लू की लाल लाल आंखों में झांक कर उन्होंने उसकी पीठ पर एक हल्की धौल भी जमा दी।

पर भीम भैया और ढोलू—गोलू भैया हमें आप लोगों को देखने में बहुत मजा आता है।'

देखो मित्रों हर काम की एक सीमा होती है, हद से बाहर जाकर कोई काम करोगे तो नुकसान होता है। हमारे बुजुगोर्ं ने कहा है अति सर्वत्र वर्जयेत। पापा को समाचार देखने दिया करो, मम्मी को उनके पसंद के सीरीयल देखने दिया करो तो वे तुम्हें अच्छी—अच्छी चीजें लाकर देंगे।

पर मुझे तो पोगो...' सल्लूभाई कहना चाह रहे थे कि भीम ने रोक दिया।

नहीं सल्लूभइया टीवी से पेट नहीं भरता, खाना नहीं खाओगे और लगातार टीवी देखोगे तो बीमार हॊ जाओगे न।''

ठीक कह रहे हैं भीम भईया आप,श् लटकी और टिमकी ने भी उनकी बात का समर्थन किया।

दादाजी को भी रामायण देखने दिया करो तो दादाजी भी खुश रहेंगे। उनको क्रिकेट मैच भी देखने दिया करो, आखिर बूढ़े आदमी हैं कहां जाएंगे। तुम लोगों को खूब दुआएं देंगे।'' भीम ने सबको फिर समझाया।

‘परंतुश्३ सल्लू ने फिर कुछ कहना चाहा।

अब बिल्कुल कुछ नहीं सुनूंगा। हां दादी को भजन अच्छे लगते हैं, जब भजनों का समय हो तो दादी को बुलाकर बोलना कि दादी प्लीज भजन सुन लीजिए, भजन आ रहे हैं। भीम थोड़ा जोर से बोला तो तीनों बच्चे सहम गए।

ठीक है भीम भईया हम सबको टीवी देखने देंगे, तीनों एक साथ बोले।

प्रॉमिसश् भीम ने सबकी ओर आशा भरी नजरों से देखा।

मदर प्रॉमिस भैया, मदर प्रामिसश् सल्लू ने हंसकर कहा।

और टिमकी—लटकी आप भी प्रॉमिस करे।'' गोलू—ढोलू ने कहा।

श्हां—हां प्रॉमिस दोनों ने जोर से चिल्लाकर कहा।'' भीम गोलू और ढोलू तीनों ने अपने हाथ टीवी के भीतर खींच लिए।

अब यदि आपने लगातार टीवी देखा तो अगली बार हम लोग कालिया को भी ले आएंगे।'' जाते—जाते गोलू जोर से चिल्लाया।

नहीं—नहीं उस मोटे को मत लाना, हम लोग आप का कहना मानेंगेश् तीनों चिल्लाकर बोले।

जब से आज तक सब ठीक है, पापाजी समाचार देखते हैं, मम्मीजी सीरियल देखती हैं और दादाजी क्रिकॆट और दादी के मजे हैं। खूब भजन देखती हैं सुनतीं हैं। सल्लूभाई कभी—कभी लगातार बैठने की कोशिश करते तो हैं, परंतु कालिया को बुलाने की बात से वे डर जाते है। आखिर उस मोटे कालिया को क्यों घर में आने देंगे।

पाप का प्रायश्चित

तेनालीराम ने जिस कुत्ते की दुम सीधी कर दी थी, वह बेचारा कमजोरी की वजह से एक—दो दिन में मर गया। उसके बाद अचानक तेनालीराम को जोरों का बुखार आ गया।

एक पंडित ने घोषणा कर दी कि तेनालीराम को अपने पाप का प्रायश्चित करना पड़ेगा नहीं तो उन्हें इस रोग से छुटकारा नहीं मिल पाएगा।

तेनालीराम ने पंडित से इस पूजा में आने वाले खर्च के बारे में पूछा। पंडितजी ने उन्हें सौ स्वर्ण मुद्राओं का खर्च बताया।

लेकिन इतनी स्वर्ण मुद्राएं मैं कहां से लाऊंगा?', तेनालीराम ने पंडितजी से पूछा।

पंडितजी ने कहा, श्तुम्हारे पास जो घोड़ा है, उसे बेचने से जो रकम मिले वह तुम मुझे दे देना।''

तेनालीराम ने शर्त स्वीकार कर ली। पंडितजी ने पूजा—पाठ करके तेनालीराम के ठीक होने की प्रार्थना की। कुछ दिनों में तेनालीराम बिलकुल स्वस्थ हो गए।

लेकिन वे जानते थे कि वे प्रार्थना के असर से ठीक नहीं हुए हैं, बल्कि दवा के असर से ठीक हुए हैं।

तेनालीराम पंडितजी को साथ लेकर बाजार गए। उनके एक हाथ में घोड़े की लगाम थी और दूसरे में एक टोकरी।

उन्होंने बाजार में घोड़े की कीमत एक आना बताई और कहा, श्जो भी इस घोड़े को खरीदना चाहता है, उसे यह टोकरी भी लेनी पड़ेगी जिसका मूल्य है एक सौ स्वर्ण मुद्राएं।''

इस कीमत पर वे दोनों चीजें एक आदमी ने झट से खरीद लीं। तेनालीराम ने पंडितजी की हथेली पर एक आना रख दिया, जो घोड़े की कीमत के रूप में उसे मिला था। एक सौ स्वर्ण मुद्राएं उन्होंने अपनी जेब में डाल ली और चलते बने।

पंडितजी कभी अपनी हथेली पर पड़े सिक्के को, तो कभी जाते हुए तेनालीराम को देख रहे थे।