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ANSHU VISHWAKARMA

ANSHU VISHWAKARMA

@anshuvishwakarma209785


अलविदा
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ये जो आंखें बंद हैं,
नहीं चाहता जी इन्हें खोलने को।

ये जो समय रुक-सा गया है,
नहीं चाहता जी इसे कुछ बोलने को।

पलटकर क्या दें जवाब उन तानों का,
नहीं चाहता जी लोगों के साथ चलने को।

लोग तो फिर भी हैं पराए,
पर शाम तक साथ देने का वादा था जिनका,
अब नहीं चाहता जी उनके साथ ढलने को।

हम सबसे अकेले तब थे,
जब हमारे चारों ओर सब थे।
अब ये जो शरीर जी रहा है,
नहीं चाहता जी इसे छलने को।

यूँ ही बीत जाए ये क्षण, साल या उम्र,
अब नहीं चाहता जी कुछ खलने को।

क्या होगा किसी को सजा देकर,
मन का संतोष तो दोनों में नहीं है।
अब तो कोई जाकर भी आ जाए,
तो नहीं चाहता जी खुद जलने को।

सबने हमसे दिया होता ये ताना,
तो नहीं मिला होता मुझे ये बहाना।
अब जिस रास्ते पर मैं फिसला हूँ,
नहीं चाहता जी लौटने को।


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the_anshu0..0

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- ANSHU VISHWAKARMA